मेरा अनुभव पंचायत चुनावों का काफी खराब है, इसके द्वारा जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार भले ही मिला हो, लेकिन इस चुनाव की प्रतिद्वंदता ने मेरे पहाड़ के "एकता और संगठित" माहौल को कहीं दूर ढकेल दिया है। आज गांवों में इन चुनावों की प्रतिद्वंदता ने लोगों के रिश्ते बिगाड़ कर रख दिया है, यह जागरुकता और विकास का एक और चेहरा भी है। पहले गांवों में पधानचारी की व्यवस्था थी, गांव के एक समृद्ध और सुलझे हुये व्यक्ति को पूर्वजों ने पधान चुन लिया था और उसके वंशज ही गांव के पधान होते रहे। उन पधानों द्वारा पूरे गांव को अपनी जिम्मेदारी के रुप में स्वीकार किया। कोई भी होनी-अनहोनी पर प्रथम सूचना पधान को ही दी जाती थी और पधान द्वारा समस्याओं का निराकरण भी होता था।
मजाल थी कि बिना पधान जी के आये गांव की किसी बेटी की डोली उठी हो, कोई जवान देश (अपनी फौज की ड्यूटी) गया हो, किसी बुजुर्ग की अर्थी उठी हो और गांव में कोई शुभ कार्य हुआ हो। जितना सम्मान गांव उनको देता था, उतनी ही प्यार और जिम्मेदारी से देखभाल पधानों द्वारा की जाती थी। गांव में किसी का झगड़ा होने पर कोई कोर्ट-कचहरी-थाना लोगों को मालूम नहीं था, या तो पधान द्वारा मामला सुलटा लिया जाता था, या पंचायत बुला ली जाती थी और पटवारी तो जमीन की नाप-जोख तक ही सीमित था। तब कितना खुशहाल था गांव, कितना प्यार था लोगों में........गांव के संजायत ओखलसारी(सभी का ओखल) में धान कूटती महिलायें, चौपाल में हुक्का पीते बुजुर्ग, पास ही खेलते बच्चे, घास के लिये गाना गाती हुई जा रही महिलायें..........गांव के किसी भी व्यक्ति का दुःख पूरे गांव का दुःख और उसके सुख में पूरा गांव खुश....!
लेकिन फिर आये पंचायत चुनाव, लोगों के गुट बनने लगे, बुजुर्ग चौपाल में इकट्ठा न होकर किसी के चाख में खुसर-पुसर करने लगे....महिलाओं में आपसी बोलचाल बंद हुई और अब तो यह हाल है कि गांव वाले किसी और के काम से मुंह चुराने लगे.....गाली-गलौज होते-होते नौबत मार-पीट और कोर्ट-कचहरी तक आई। लोगों के गांव के तो क्या आपसी सगे रिश्ते भी खत्म होने लगे। मेरे गांव में पिछले पंचायत चुनाव में एक नौजवान ग्राम प्रधान का पर्चा भर कर आया तो उसे हराने उसके पिताजी परचा दाखिल कर आये और उनको नीचा दिखाने के लिये उनका छोटा भाई भी प्रत्याशी बन गया। इस बार के चुनाव में तो और भी हाल खराब हैं।
इस राजनीति ने मेरा पहाड़ खराब कर दिया। एक साथ मिल-बैठ कर रहने-खाने वालों को अब दुश्मन बना दिया।