Author Topic: Politics In Uttarkhand - उत्तराखंड की राजनीति  (Read 57957 times)

पंकज सिंह महर

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अचानक ही यू-टर्न क्यों ले गई सरकार !

अतुल बरतरिया, देहरादून यह पहले से तय था कि विधानसभा का सत्र दो रोज चलेगा। तीन बार स्थगन के बाद कार्यवाही जिस अंदाज में शुरू हुई उससे किसी को अंदाज भी नहीं लगा कि सदन को स्थगित भी किया जा सकता है। अचानक सरकार ने पैंतरा बदला और सदन स्थगित हो गया। इसके बाद विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष में भी यह चर्चा होती रही कि आखिर सरकार ने यू-टर्न लिया तो क्यों। कहा जा रहा है कि सरकार ने ऐसा करके एक तीर से दो निशाने साधे हैं। यह पहले से तय था कि विस का सत्र दो रोज चलेगा। यह भी तय सा था कि सरकार की कोशिश इसी सत्र में विवि विधेयक पारित कराने की होगी। इसके लिए तैयारियां कर ली गई थीं। तीन बार स्थगन के बाद सदन की कार्यवाही तेज अंदाज में चली। विपक्षी विधायक हंगामा करते रहे और सरकार की ओर से अपना काम किया जाता रहा। प्रवर समिति की रिपोर्ट पटल पर आने के बाद लगा कि कार्यवाही पिछले सत्रों की तरह चलती रहेगी। अचानक सरकार की और से कहा गया कि अगर सदन चाहे तो सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया जा सकता है। सदन से बाहर आने के बाद विधायक आपस में चर्चा करते रहे कि आखिर सरकार ने ऐसा किया क्यों। बताया जा रहा है कि मामला चुनाव आचार संहिता के उल्लघंन का सामने आ गया था। यही कारण रहा कि सरकार की ओर से अल्मोड़ा में कैंप कर रहे राज्य निर्वाचन आयुक्त वीसी चंदोला को एक फैक्स भेजकर विवि विधेयक पेश करने की अनुमति 29 जुलाई को हासिल की। कांग्रेस ने अंदरखाने इस पर आपत्ति जताई और मामले की शिकायत की बात की। मौके की नजाकत को भांप सरकार ने कदम वापस खींचने में ही भलाई समझी। एक बात और, अब विवि विधेयक विधानसभा के पटल पर है। संसदीय कार्य मंत्री से साफ कर दिया है कि अब इस विधेयक पर कोई भी फैसला विधानसभा को लेना है। जाहिर है कि सरकार ने विधेयक की गेंद अपने पाले से सरका दी है।  

पंकज सिंह महर

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देहरादून। विवि विधेयक के बाद अब कांग्रेस ने सीडी खरीद प्रकरण पर सरकार को घेरा है। कांग्रेस ने इस प्रकरण में सीएम के एक करीबी अफसर पर अनियमितता का आरोप लगाया है।

विधानसभा सभागार में आयोजित पत्रकार वार्ता में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य व नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत ने संयुक्त रूप से सीडी खरीद प्रकरण समेत अनेक मुद्दों पर सरकार की घेराबंदी की। श्री आर्य ने कहा कि सरकार अपरिपक्वता से काम कर रही है। चुनाव आचार संहिता के बीच सत्र आहूत करने की पहल से साफ हो चुका है कि सरकार गलत परंपराओं की नींव डाल रही है। सरकार के पास विपक्ष को सुनने का साहस नहीं रह गया है। ऐसे में जनहित के मुद्दे हाशिये पर खिसक गए हैं। नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत ने कहा कि सरकार ने 1.85 करोड़ की सीडी विभिन्न विभागों के लिए क्रय कीं। बीस रुपये की सीडी को पचास हजार की दर पर खरीदा गया। इसके लिए टेंडर भी आमंत्रित नहीं किए गए। इस सारे प्रकरण में सीएम के एक करीबी अफसर की भूमिका रही है। कांग्रेस किसी भी हालत में जनता के धन का दुरुपयोग इस तरह नहीं होने देगी। कांग्रेस को जनता ने विपक्ष की भूमिका सौंपी है। इस दायित्व के तहत ही कांग्रेस ने जल विद्युत परियोजनाओं, गुर्जरों के उत्पीड़न, बेरोजगारों को रोजगार, जाति प्रमाण पत्र, गन्ना मूल्य भुगतान, दैवीय आपदा तथा सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग समेत अनेक मुद्दे मजबूती से सदन के भीतर व बाहर उठाए हैं। सरकार जनहित से जुड़े मुद्दों पर संवेदनशील नहीं दिखाई दे रही है। गिनती के अफसर सरकार पर भारी पड़ रहे हैं और सरकार औपचारिक दावे करने की नीति अपनाए हुए है। विधायक किशोर उपाध्याय ने सीडी प्रकरण के मुख्य बिंदुओं का विस्तार से खुलासा किया। उन्होंने कहा कि एक ओर तो सरकार विकल्पधारियों की वापसी को प्राथमिकता बता रही है तो दूसरी ओर विकल्पधारियों को महत्वपूर्ण दायित्व सौंपे जा रहे हैं। सरकार की नीतियां पूरी तरह विरोधाभासी हैं। यदि कोई गड़बड़ी होती है तो विकल्पधारियों की जवबादेही कैसे तय होगी, इस पर हालात जस के तस बने हैं। पत्रकार वार्ता में विधायक तिलकराज बेहड़, गोविंद सिंह कुंजवाल, महेंद्र सिंह माहरा, कुंवर प्रणव सिंह, शैलेंद्र मोहन सिंघल, रंजीत रावत आदि भी मौजूद थे।

पंकज सिंह महर

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मनमोहन शर्मा, देहरादून सत्तारूढ़ दल भाजपा में जो घमासान चल रहा है, उससे कांग्रेस की राह आसान होती दिखाई दे रही है। कांग्रेस को भाजपा ने ऐसे मुद्दे थमा दिए हैं, जिनका जवाब देना भविष्य में भाजपा दिग्गजों को खासा भारी पड़ेगा। स्थिति यह है कि कांग्रेस के हमलों को भाजपा के आला नेता नजरअंदाज कर रहे हैं और गिनती के कुछ दायित्वधारी ही कांग्रेस के आरोपों को काउंटर करने में जुटे हैं। भाजपा के क्षत्रपों का जो अंदाज है, उससे साफ है कि भाजपा में तालमेल हाशिये पर खिसक गया है। उत्तराखंड में राजनीतिक दलों के नेताओं की महत्वाकांक्षा इस हद तक बढ़ गई है कि राज्य के हितों को भी ताक पर रखने से गुरेज नहीं किया जा रहा है। भाजपा के सत्तारूढ़ होने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि जो पिछली कांग्रेस सरकार में हुआ, उसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी। उस समय भाजपा के नेता कांग्रेस की गुटबाजी को मुद्दा बनाते थकते नहीं थे। अब भाजपा भी उसी हाल में पहुंच रही है, जिसमें किसी समय कांग्रेस थी। एक तरह से राज्य में राजनीतिक अस्थिरता खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद चेहरे बदले, लेकिन राजनीतिक माहौल में कोई बदलाव नहीं आया। अनुशासन का दंभ भरने वाले भाजपा के दिग्गजों ने वही रास्ता अपनाया, जो तिवारी सरकार के समय में कांग्रेस के एक गुट ने अपनाया था। अंतर केवल इतना है कि तिवारी सरकार में भाजपा के आरोपों को खारिज करने में कांग्रेस नेता एकजुट रहते थे, जबकि भाजपा सरकार में कांग्रेस के आरोपों का काउंटर करने में भी भाजपा के दिग्गज दोहरी नीति अपना रहे हैं। भाजपा में पिछले दो महीनों से गुटबाजी जिस तरह चरम पर है, उससे कांग्रेस की राह आसान हो गई है। अब कांग्रेस के नेता भाजपा को हर मुद्दे पर कठघरे में खड़ा करने के लिए तत्पर दिखाई दे रहे हैं। भाजपा में गहराई गुटबाजी का आलम यह है कि विपक्ष के सवालों पर पार्टी के अधिकतर मंत्री मौन साध रहे हैं। पार्टी संगठन भी सुनियोजित रणनीति के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने की कशमकश में है। भाजपा संगठन के एक-दो पदाधिकारियों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर पदाधिकारी गुटबाजी के खेल में व्यस्त हैं। दरअसल भाजपा में सभी बड़े नेताओं का अपना अलग-अलग एजेंडा है और वह चाहकर भी अपने को उससे अलग नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा में बने बिखराव से कांग्रेस को ऐसा मुद्दा मिल गया है, जिसका उपयोग कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव में करेगी। कांग्रेस ने मुद्दों को सूचीबद्ध करना प्रारम्भ कर दिया है, ताकि समय की नजाकत के हिसाब से उन्हें जनता के बीच उठाया जा सके। कांग्रेस से अलग हटकर अनुशासित पार्टी होने का जो दावा भाजपा करती थी, उस पर अब ग्रहण लग गया है। ऐसे में कांग्रेस के हमले निकट भविष्य में और तेज होंगे और इन राजनीतिक हमलों का तोड़ खोजना भाजपा दिग्गजों के लिए खासा मुश्किल होगा।
 

पंकज सिंह महर

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गैरजिम्मेदार व्यवहार राज्य में जन प्रतिनिधियों के बीच सस्ती लोकप्रियता पाने की होड़ लगी है। यही कारण है कि वे गाहे-बगाहे गैरजिम्मेदाराना व्यवहार करने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। पिछले दिनों कुछ मंत्रियों और सत्ता पक्ष के निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के बाद अब विपक्षी विधायकों ने इसी तरह का रवैया अपना कर सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे की कहावत को सही साबित कर दिया। गौर करने योग्य है कि ऐसे कुछ चर्चित कारनामों का संज्ञान कोर्ट को लेना पड़ा है। मुजरिमों को हिरासत से छुड़ाने के मामलों में जनप्रतिनिधियों के व्यवहार पर कोर्ट भी खासा नाराज हुआ और उनके खिलाफ कड़ी टिप्पणी भी की गई थी। लगता है कि राजनेताओं को इस राह पर चलने की आदत पड़ चुकी है। इस वजह से ऐसे मामलों में पक्ष-विपक्ष के खास मायने भी नहीं हैं। ऊधमसिंहनगर जिले में कांग्रेस विधायक का इसी तरह का व्यवहार चर्चा में है। बिजली कटौती की मुखालफत करते हुए महकमे के अधिकारियों को बंधक बनाकर जिस तरह बेइज्जत किया गया, वह जन प्रतिनिधियों के जिम्मेदार रवैये पर तो सवालिया निशान है ही, अशोभनीय और चिंताजनक भी है। राज्य में अतिवृष्टि से कई परियोजनाएं ठप होने से विद्युत उत्पादन काफी गिरा है। इस समस्या के कारण कुछ घंटों की रोस्टिंग की गई थी। यह निर्णय स्थानीय अधिकारी का नहीं, बल्कि उच्च स्तर पर सरकारी मशीनरी का था। इसके बावजूद बिजली महकमे के अधिकारियों के साथ भीड़ का दु‌र्व्यवहार कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। तंत्र को अपने ढंग से हांकने की जन प्रतिनिधियों की इस प्रवृत्ति पर अंकुश जरूरी है। हालांकि, ऐसी घटनाएं नहीं हों इसके लिए तंत्र को भी समय रहते हरकत में आकर जवाबदेही का परिचय देना चाहिए। बिजली कर्मचारियों में भी इस घटना से खासा आक्रोश है। भीड़ का सहारा लेकर जन प्रतिनिधि राज्य को इस तरह अराजकता की ओर धकेलते रहे तो इससे उनकी छवि पर भी असर पड़े तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
 

हेम पन्त

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देहरादून। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व सांसद हरीश रावत का अंदाज इन दिनों कुछ बदला-बदला सा है। कुछ कहे बिना बहुत कुछ बताने को वे दार्शनिक अंदाज अपना रहे हैं। उन्हें न तो पंचायत चुनाव का पता है और न ही पार्टी में हुए फेरबदल का। हां, खुद को कांग्रेस का सिपाही बताते हुए यह जरूर कहते हैं कि काम मिलेगा तो ठीक, नहीं तो भजन-कीर्तन।

पृथक राज्य आंदोलन से लेकर कांग्रेस को सत्ता में लाने तक की राजनीतिक जंग लड़ने वाले श्री रावत का अंदाज इन दिनों बदला हुआ है। एक ओर भाजपा सरकार की कार्यशैली पर प्रहार कर रहे हैं तो दूसरी ओर पार्टी के अंदरूनी मामलों में बातचीत से परहेज। राज्य के विकास को लेकर चिंता का भाव है तो भाजपा की भीतरी कलह को नवोदित राज्य के लिए नुकसानदेह मान रहे हैं। राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद की भूमिका के संबंध में श्री रावत ने कहा कि उन्हें जो भी काम सौंपा जाएगा, उसे पूरी क्षमता से करेंगे। वे पार्टी के सिपाही हैं और जनता से जुड़े सवालों पर लगातार सक्रियता बनाए रखेंगे। यह जरूर है कि जब काम नहीं होगा तो भजन-कीर्तन में अपना मन लगाएंगे। यह पहले भी उनकी आदत में शामिल रहा है। श्री रावत ने जिस तरह अपनी बातों को प्रस्तुत किया, उसमें कहीं न कहीं उनका दर्द भी झलका। उपेक्षित होने के भाव उनके चेहरे पर पूरी पत्रकार वार्ता के दौरान तैरते रहे।

पंकज सिंह महर

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देहरादून। विधानसभा में जनहित के मुद्दों पर विपक्ष को हतोत्साहित करने के विरोध में कांग्रेस 23 दिसंबर को लोकतंत्र बचाओ दिवस मनाएगी।
पार्टी के मीडिया प्रभारी सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि सदन में भाजपा सरकार विपक्ष को जनहित के मुद्दे नहीं उठाने दे रही है। आंदोलन करने वालों पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। 23 दिसंबर को कांग्रेस सभी जिला मुख्यालयों पर एक दिवसीय धरना देगी और राज्यपाल को ज्ञापन प्रेषित किया जाएाग। सभी जिलों के जिलाध्यक्षों को इस कार्यक्रम संयोजक की जिम्मेदारी सौंपी गई है।





हेम पन्त

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Shooter Jaspal Rana to contest on BJP ticket from Tehri
« Reply #56 on: January 30, 2009, 11:08:14 AM »
Source : http://www.hindu.com/thehindu/holnus/002200901291831.htm

New Delhi (PTI): Ace shooter and Asian Games gold medallist Jaspal Rana was on Thursday named as BJP's candidate from Uttarakhand's Tehri constituency as the party declared its list of 23 candidates for the Lok Sabha polls.

Rana, who is BJP President Rajnath Singh's daughter-in-law's brother, is one of the four candidates declared from Uttarakhand.

The other candidates from Uttarakhand are: former union minister of state Bacchi Singh Rawat (Uddhamsingh Nagar -- was Nai Nital seat pre-delimitation), Ajay Tamta (Almora-SC) and Madan Kaushik (Haridwar). Kaushik and Tamta are ministers in the Uttarakhand government.

हेम पन्त

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Uttarakhand an exemplary state, says EC
« Reply #57 on: February 16, 2009, 11:24:32 AM »
Source : http://www.hindu.com/thehindu/holnus/002200902141561.htm

Dehra Dun (PTI): Describing Uttarakhand as an "exemplary state", Election Commissioner Navin Chawla on Saturday said he is completely satisfied with the arrangements for the coming Lok Sabha polls here.

Chawla held meetings with top administrative and police officials of districts in Garhwal region besides meeting Chief Election Officer of Uttarakhand Radha Raturi. Later, he told reporters that nearly 96 per cent work on electoral rolls and about 95 per cent work on photo ID cards has already been completed in the Garhwal region and praised the state for speedy work.

"Uttarakhand has done extremely well in the direction of achieving targets for electoral rolls and photo ID cards. All I can say is that Uttarakhand is an exemplary state," he said. He also expressed satisfaction on the arrangements being made to deal with the law and order situation by the officials of the region.

पंकज सिंह महर

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देहरादून। भाजपा के वरिष्ठ विधायक केदार सिंह फोनिया ने कहा कि विपक्ष को सहयोगी पक्ष कहने की शुरुआत उत्तराखंड से होनी चाहिए। सरकार जनता के द्वार कार्यक्रम से राज्य में नई परंपरा पड़ी है। शिक्षा के प्रसार, रोजगार व आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए सरकार विशेष कार्य कर रही है।
सदन में अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए श्री फोनिया ने कहा कि राज्यपाल का अभिभाषण महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यदि विपक्ष इसे सुनेगा ही नहीं तो जजमेंट कैसे देगा। सदन में मौजूद सभी लोग संकल्प से बंधे हैं। ऐसे में विपक्ष को सहयोगी पक्ष कहा जाना चाहिए। यदि इसकी शुरुआत उत्तराखंड से होती है तो अधिक बेहतर होगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। शिक्षा, रोजगार, जीवन स्तर में सुधार पर विशेष फोकस है। सड़क सुविधाओं को विशेष महत्व मिल रहा है। पीपीपी मोड के जरिए अनेक कार्य किए जा रहे हैं। स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, कृषि, बागवानी, जड़ी-बूटी आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किए जा रहे हैं। प्रस्ताव के समर्थन में भाजपा के जोगा राम टम्टा ने कहा कि अभिभाषण में सरकार ने सभी विषयों को शामिल किया है। मंत्रियों के शिविरों से अनेक समस्याओं का मौके पर निस्तारण हुआ है। सरकार हर मामले में संवेदनशील है। उपेक्षित वर्गो के लिए विशेष योजनाओं को प्रारंभ किया गया है। धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा गुरुवार को भी जारी रहेगी।

पंकज सिंह महर

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देहरादून। उत्ताराखंड के लोग अपने सांसदों की तलाश में हैं। जब से वे उत्ताराखंड से राज्यसभा के लिए चुने गए हैं, लोगों ने उन्हें देखा तक नहीं है। यह बात अलग है कि इन सांसदों की विकास निधि निरंतर आ रही है, लेकिन उसकी बंदरबांट कुछ ऊंची पहुंच वालों के माध्यम से ही हो रही है।

कांग्रेस शासनकाल में उत्ताराखंड कोटे से पहले कै. सतीश शर्मा उसके बाद सत्यव्रत चतुर्वेदी राज्यसभा के लिए चुने गए थे। राज्यसभा के लिए बाहरी नेताओं को चुने जाने का दबी जुबान में विरोध भी हुआ था, लेकिन हाईकमान के सामने यह नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हुई। चुने जाने के बाद उन्होंने बड़े-बड़े दावे किए थे। उत्ताराखंड के प्रतिनिधित्व की कीमत दिल्ली में चुकाने का वादा करने वाले उत्ताराखंड की तरफ एक बार भी लौटकर नहीं आए। हालांकि कांग्रेस नेता रामशरण नौटियाल दावा करते हैं कि सतीश शर्मा दून, उत्तारकाशी तथा टिहरी में कई बार आ चुके हैं। यह तय है कि इन जन प्रतिनिधियों को उत्ताराखंड से कोई लेना देना नहीं है। ये सिर्फ हाईकमान की मर्जी से राज्य पर थोपे गए हैं लेकिन जब तक ये उत्ताराखंड के जनप्रतिनिधि हैं, इनकी सांसद निधि पर तो उत्ताराखंड का हक है। सतीश शर्मा 04-05 में चुने गए थे। इस वित्ताीय वर्ष में उनकी निधि से 88.316 लाख रुपये मंजूर हुए थे। इसमें देहरादून को सबसे अधिक 22.90 लाख, टिहरी को 20.80 लाख, उत्तारकाशी को 17.50 लाख, नैनीताल को 11.986 लाख, ऊधमसिंह नगर को 9.58 लाख और चमोली को 5.55 लाख रुपये दिए गए हैं। कन्या कुमारी को 11 लाख दिए गए हैं। वर्ष 05-06 में भी 190.200 लाख रुपये श्री शर्मा की निधि से स्वीकृत हुए हैं। इस वर्ष भी देहरादून, उत्तारकाशी, टिहरी को टॉप प्रायरिटी दी गई। हरिद्वार तथा चमोली जिले को कुछ नहीं मिला, अन्य जिलों के हिस्से कुछ आया है। 06-07 में भी वही कहानी दोहराई गई है। 07-08 में देहरादून के हिस्से कम आया है लेकिन उत्तारकाशी और टिहरी फिर भी आगे रहे हैं। सत्यव्रत चतुर्वेदी 06-07 में राज्य सभा के लिए चुने गए। इस वर्ष उन्होंने 196.9 लाख रुपये मंजूर किए। पौड़ी, देहरादून, ऊधमसिंह नगर, अल्मोड़ा उनकी सूची में सबसे ऊपर हैं। वर्ष 07-08 में उन्होंने दो करोड़ से अधिक की स्वीकृतियां दी। नैनीताल, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और हरिद्वार को उन्होंने प्राथमिकता दी।

 

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