Author Topic: Politics In Uttarkhand - उत्तराखंड की राजनीति  (Read 47589 times)

पंकज सिंह महर

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देहरादून। अपने मुन्ना के बगावती तेवरों से भाजपा संगठन की जान सांसत में है। चुनावी माहौल में पार्टी विरोधी बयानों से हालत खराब होने की आशंका के बावजूद भाजपा विधानसभा में संख्या बल के लिहाज से कोई कड़ी कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं है। भाजपा नेताओं ने आज भी कोई तल्ख टिप्पणी से परहेज किया। ऐसे में मुन्ना के तेवर और कड़े होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

भाजपा के तेजतर्रार विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने आज खुले रूप में भाजपा को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि संगठन पर काबिज लोग भाजपा के हितैषी नहीं हैं। यही चंद नेता उन्हें भी राजनीतिक रूप से धकेलने की कोशिश में हैं। एक तरफ संगठन के प्रति यह रुख रहा तो दूसरी तरफ अप्रत्याशित रूप से उन्होंने सरकार को क्लीन चिट दी। आज उन्होंने इशारा भी कर दिया कि 'अगर पानी नहीं मिलेगा तो उन्हें उन्हें कुंआ खोदना भी आता है'। साथ ही यह भी कहा कि 'क्षेत्र के विकास और जनता के सम्मान को वे कुछ भी करने तो तैयार हैं'। अपने मुन्ना के इन तेवरों से भाजपा की जान सांसत में है। चुनावी बेला में इस तरह के खुले आरोपों के जनता में पार्टी की छवि बिगड़ने का खतरा है। इसके बाद भी पार्टी का रुख उनके प्रति नरम है। इस बारे में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बची सिंह रावत ने कहा कि पार्टी ने किसी के साथ कुछ नहीं किया है। मुन्ना पार्टी के सम्मानित विधायक हैं। बचदा का कहना था कि अभी उनकी जानकारी में कोई बात नहीं आई है। यह मामला अनुशासनहीनता के दायरे में आता है या नहीं इस पर अभी कुछ कहना भी ठीक नहीं होगा। दरअसल, भाजपा इस समय मुन्ना के खिलाफ कोई कड़ा कदम उठाने की स्थिति में नहीं है। खुद को आहत बताने वाले मुन्ना कई रोज से इशारों में बातें कर रहे थे। आज वे खुलकर सामने आ गए। इसके बाद भी लगता नहीं कि पार्टी उन पर कोई एक्शन ले पाएगी। पार्टी से निलंबित करके विधानसभा में बहुमत की कगार पर खड़ी भाजपा किसी भी दशा में अपना एक विधायक कम नहीं करना चाहेगी। फिर अगर ऐसा होता भी है तो मुन्ना असंबद्ध सदस्य के रूप में सदन में रहेंगे। ऐसे में सदन के अंदर सरकार और बाहर भाजपा के लिए परेशानियां खुद ही खड़ी होती रहेंगी। साथ ही एक आजाद पंछी के रूप कहीं भी विचरण को वे स्वतंत्र रहेंगे। मुन्ना शायद चाहते भी यहीं हैं कि पार्टी उनके खिलाफ एक्शन ले। अब यह देखना दिलचसप होगा कि भाजपा मुन्ना की इच्छा पूरी करती है या फिर यूं ही सियासत का खेल चलता रहता है।

पंकज सिंह महर

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पौड़ी गढ़वाल, जागरण कार्यालय: उक्रांद के वरिष्ठ नेता काशी सिंह ऐरी ने कहा है कि निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम को पौड़ी संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाने को लेकर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। इसके लिए दल सरकार से समर्थन वापस लेने पर भी विचार कर रहा है। स्थानीय होटल में उक्रांद समर्थकों को संबोधित करते हुए काशी सिंह ऐरी ने कहा कि निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम को दल का प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर गंभीरता से विचार किया जा रहा है और शीघ्र ही अंतिम फैसला ले लिया जाएगा। ऐरी ने कहा कि राज्य आंदोलनकारी शक्तियों के एक साथ होने के नाते यशपाल बेनाम की पहल सराहनीय है और उक्रंाद इस पहल का पूरा सम्मान करते हुए शीघ्र ही उचित निर्णय लेने जा रहा है। ऐरी ने स्वीकारा कि आज जो भावनाएं जनता की उक्रांद के साथ जुड़ी हैं उनको भुनाने में उक्रांद नाकाम रहा है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि प्रदेश सरकार में शामिल होने के बावजूद भी उक्रांद का सरकार से कोई मेल नहीं है। जिन नौ शर्ताे पर उक्रांद ने प्रदेश सरकार को समर्थन दिया है उन पर सरकार से रिपोर्ट मांगी गई है। विधायक पुष्पेश त्रिपाठी ने भी सरकार से समर्थन वापस लिए जाने पर विचार करने की बात की। त्रिपाठी ने कहा कि बेनाम के उक्रांद में शामिल होने का प्रस्ताव स्वागत योग्य है। बैठक में यशपाल बेनाम ने एक बार फिर दोहराया कि उक्रांद के प्रदेश सरकार से समर्थन वापस लेने की दिशा में ही वे उक्रांद के प्रत्याशी बनेंगे।

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण ब्यूरो: निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम को उक्रांद में शामिल करने और गढ़वाल लोक सभा सीट से चुनाव लड़ाने की मुहिम अभी अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पाई है। मुख्य सवाल क्षेत्रीय मुद्दों के साथ आंदोलनकारियों की गोलबंदी करने का है, जबकि सरकार से समर्थन वापसी का सवाल भी उतना ही महत्वपूर्ण है। विधायक यशपाल बेनाम की अपने समर्थकों के साथ बातचीत के बाद उक्रांद नेताओं के साथ हुई बैठक को हालांकि सकारात्मक माना जा रहा है लेकिन यह बातचीत किसी नतीजे तक अभी नहीं पहुंच पाई है। आंदोलनकारियों को गोलबंद कर क्षेत्रीय मुद्दों के साथ चुनाव लड़ने की बात यशपाल बेनाम के एजेंडे में है और उक्रांद भी इसी मुद्दे के साथ चुनाव मैदान में जाता रहा है। इस मामले में दोनों पक्ष एकमत हैं। मूल सवाल सरकार से समर्थन वापसी को लेकर है, जिसे लेकर दिग्गज भी उलझे हुए हैं। उक्रांद अध्यक्ष डा.नारायण सिंह जंतवाल द्वारा दल के प्रतिनिधि के तौर पर पौड़ी भेजे गए विधायक पुष्पेश त्रिपाठी का कहना है कि समर्थन वापसी उक्रांद का अंदरूनी मामला है। बाहर से कोई भी व्यक्ति उक्रांद पर इसे नहीं थोप सकता। समर्थन वापसी को लेकर दो माह पहले हुए उक्रांद के महाधिवेशन में भी मामला उठा था। हम चुनाव मैदान में जाने का निर्णय कर चुके हैं। इसी के मद्देनजर समर्थन वापसी का मुद्दा पहले से ही विचाराधीन है। कैबिनेट मंत्री दिवाकर भटट का कहना है कि उक्रांद के स्थानीय राजनीतिक मुद्दे हैं। दल का एजेंडा राष्ट्रीय दलों के खिलाफ है। श्री भटट कहते हैं कि हम राष्ट्रीय पार्टियों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। जरूरी हुआ तो दल समर्थन वापसी की हद तक भी जा सकता है, लेकिन यह उक्रांद का अपना मामला है। दल इस पर खुद निर्णय लेगा। जहां तक किसी के दल में शामिल होने का सवाल है, सभी का उक्रांद में आने पर स्वागत है।
 

हेम पन्त

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अब दिवाकर भट्ट जी भी समर्थन वापसी की बात कर रहे हैं तो लगता है उक्रांद सरकार से अलग हो ही जायेगी. यही सही समय भी है, समर्थन वापसी के बाद चुनाव में उतरने का उक्रांद को निश्चय ही फायदा मिलेगा. अगर निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम उक्रांद के टिकट पर लोकसभा चुनाव लङने के लिये तैयार हो जाते हैं तो यह उक्रांद के कार्यकार्ताओं के लिये बहुत बङा Moral Booster का काम करेगा.

पंकज सिंह महर

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देहरादून (एसएनबी)। पौड़ी की उपेक्षा से आहत निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम ने अंतत: भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया हैै। उन्होंने समर्थन वापसी का पत्र राजभवन को सौप दिया है। राज्यपाल की आ॓र से इसे विधानसभा अध्यक्ष को भेजा गया है। इसके साथ ही उन्होंने उक्रांद को कटघड़े में खड़ा करते हुए कहा कि आंदोलनकारियों की भावना का सम्मान करते हुए उसे सरकार से समर्थन वापस ले लेना चाहिए।
बेनाम की समर्थन वापसी को लेकर पिछले कई दिनों से कयास लगाए जा रहे थे। मंगलवार को उन्होंने इसे हकीकत में बदलते हुए पत्रकार वार्ता में इसकी घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में स्थिरता प्रदान करने के उद्देश्य से उन्होंने विगत विधानसभा चुनाव में अल्पमत में आयी भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने में बिना शर्त समर्थन दिया था। विगत दो वर्ष के कार्यकाल सरकार जन आकांक्षाओं में खरी नहीं उतर पा रही है। उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि उनके विधानसभा क्षेत्र पौड़ी को सर्वाधिक उपेक्षित रखा गया है। जबकि यह मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी का भी गृह जनपद है। ऐसी स्थिति में नैतिक व सैद्धांतिक रूप से सरकार को और समर्थन देना संभव नहीं था। इन्ही परिस्थितियों के देखते हुए उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में आंदोलनकारी शक्तियों को इक्कठा होने की आवश्यकता है। इसीलिए उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल को सरकार से समर्थन वापसी कर चुनाव लड़ने की बात कही है। उन्होंने त्यागपत्र देकर पहल की है अब उत्तराखंड क्रांति दल को फैसला लेना है। उन्होंने कहा कि यदि उक्रांद सरकार से समर्थन वापस लेता है और उन्हें पौड़ी से अपना प्रत्याशी घोषित करता तो वह दल में शामिल होंगे। उन्होंने सत्ता से चिपके उक्रांद के उन नेताओं पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह आंदोलनकारियों की भावना को आहत कर रहे हैं। उक्रांद अपने को उत्तराखंड आंदोलनकारियों की बपौती न समझे। यदि उसे आंदोलनकारियों के सपनों का राज्य बनाना है तो इसके लिए क्षेत्रीय दल के रूप में उक्रांद को आगे आना चाहिए। इसके लिए उसे सभी आंदोलनकारी शक्तियों को साथ लेकर चलना होगा। उन्होंने कहा कि उक्रांद के नेताआ॓ को यह सोचना होगा कि अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दल आगे बढ़ रहे है जबकि उत्तराखंड में एकमात्र क्षेत्रीय दल उक्रांद पीछे जा रहा है। उक्रांद के समर्थन वापसी के बाद किसी अन्य को प्रत्याशी बनाए जाने पर उन्होंने कहा तब वह पार्टी में शामिल न होकर बाहर से उसका समर्थन करेंगे लेकिन उनके कार्यकर्ता इसके लिए बाध्य नहीं होंगे।

पंकज सिंह महर

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Dehradun, March 17
Nothing seems to be going right for the ruling Bharatiya Janata Party (BJP) in Uttarakhand before the crucial Lok Sabha elections. The withdrawal of support by independent legislator Yashpal Benaam has come close on the heels of a near revolt by party legislator Munna Singh Chauhan. Added to this is the ongoing controversy over Haridwar seat.

Although the state government led by Chief Minister BC Khanduri does not face any danger, these developments are sending wrong signals to the electorate.

Moreover, the alliance partner of BJP, the Uttarakhand Kranti Dal (UKD), is also facing problems, as there is a popular demand from their own workers and leaders to withdraw support to the state government and to contest elections on their own.

Yashpal Benaam, along with two other independent legislators, had extended support to the Khanduri government after the 2007 state assembly polls. One of them, Rajinder Bhandari, was made the Sports Minister in the Khanduri council of ministers while Gagan Rajbar was given the charge of Border Area Development Council. Benaam, who was left out, has now come out openly against the government showing intentions of fighting elections from Pauri Garhwal seat provided UKD also withdraws support to the government and back him.

On the other hand, Munna Singh Chauhan, a BJP legislator, has also been vocal against his own party. He has alleged that he was not properly utilised by the party. There are rumors afloat that he was in contact with Bahujan Samaj Party (BSP) along with his wife Madhu Chauhan, who is chairperson of the Dehradun Zila Panchayat.

Kashi Singh Airy, a senior UKD leader, has said his party would take a decision about withdrawal of support from the government in a meeting that will be held on March 18.

The crisis regarding the change of candidate in Haridwar also does not bode well for the BJP. Madan Kaushik, the state Education Minister, was fielded by BJP as its candidate for the Haridwar seat. But following pressure from Vishwa Hindu Parishad (VHP) and other Hindu saints, the central leadership of the party is likely to change him.

On its part, BJP has already started a damage control exercise. Ajay Bhatt, general secretary of state unit, said efforts would be made to talk to UKD leaders and address their grievances.

Meanwhile, Congress has termed these developments as failure on part of the Khanduri government to keep his flock together. "The state government will fall in the near future leading to mid-term elections, as there is lot of resentment against BJP legislators," said Suryakan Dhasmana, state Congress spokesman.

On the positive note, Khanduri still has the numbers in the state assembly in his favour.


http://www.tribuneindia.com/2009/20090318/dun.htm#5

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण ब्यूरो: नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा. सुशील मिश्रा ने कहा कि उक्रांद की अल्मोड़ा सीट से प्रत्याशी चंपी आर्या एनसीपी में शामिल हो गई हैं। उन्हें पार्टी का कुमाऊं मंडल अध्यक्ष बनाया गया है। जागरण से बातचीत में श्री मिश्रा ने कहा कि कल देहरादून में वह पत्रकारों के समक्ष एनसीपी में शामिल होने की औपचारिक घोषणा करेंगी। उन्होंने बताया कि चंपी आर्या को पार्टी का कुमाऊं मंडल अध्यक्ष बनाया गया है। उनकी बातचीत पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष शरद पंवार से कराई जाएगी और उनसे अनुरोध किया जाएगा कि श्रीमती आर्या को अल्मोड़ा सीट से टिकट दिया जाए। श्रीमती चंपी आर्या ने भी एनसीपी में शामिल होने की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि उक्रांद चुनाव लड़ने को लेकर अनिश्चितता में है। अभी उक्रांद का भाजपा से समझौता होना है। उन्होंने बताया कि उन्होंने चुनाव लड़ने का मन पहले ही बना लिया था। अनिश्चितता में रहने के बजाय उन्होंने एनसीपी में शामिल होकर चुनाव लड़ने का निर्णय किया है। इस संबंध में उक्रांद नेता काशी ऐरी का कहना है कि उन्हें इस बारे में पता नहीं है।
 

पंकज सिंह महर

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Lucknow, May 19 (IANS) Uttar Pradesh Chief Minister and Bahujan Samaj Party (BSP) supremo Mayawati Tuesday suspended two party legislators in Uttarakhand for working against the party and indulging in anti-BSP activities, party sources said.

Qazi Mohammad Nizamuddin and Chaudhary Yashveer Singh were accused of carrying out election campaigns in Uttarakhand in support of Congress Lok Sabha candidates, they added.

Nizamuddin, who represents the Manglor assembly constituency and Singh, from the Iqbalpur assembly constituency, have been asked to clarify their stand within 10 days, the sources said.

The decision to suspend the two legislators was taken during the BSP's national executive meeting in Lucknow.

हेम पन्त

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कपकोट सीट पर उपचुनाव
« Reply #68 on: May 25, 2009, 12:16:38 PM »
कपकोट सीट पर होने वाले उपचुनाव ने प्रदेश का राजनैतिक तापमान बढा कर रखा हुआ है. इस सीट पर उपचुनाव के तहत 28 मई 2009 को वोट डाले जाने हैं.

"दैनिक जागरण" की एक खबर-
 
कपकोट उपचुनाव को त्रिकोणीय बनाया कुंती ने

बागेश्वर। भाजपा, कांग्रेस व एनसीपी के प्रत्याशियों की मजबूत दावेदारी के कारण कपकोट उपचुनाव में पहली बार त्रिकोणीय संघर्ष नजर आ रहा है। बसपा की गैर मौजूदगी के कारण एनसीपी प्रत्याशी कुंती परिहार ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। सभी दलों की बसपा के मतदाताओं पर नजर है। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के राज्य सभा चले जाने के कारण रिक्त हुई कपकोट विधान सभा सीट पर कांग्रेस ने एडवोकेट चामू सिंह गस्याल को प्रत्याशी बनाया है जबकि भाजपा ने शेर सिंह गढि़या को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। एनसीपी ने पहली बार अपना प्रत्याशी उतारते हुए पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जवाहर सिंह परिहार की पत्‍‌नी कुंती परिहार को मैदान में उतारा है। बसपा प्रत्याशी करम सिंह दानू का नामांकन खारिज होने से अन्य प्रत्याशियों में बसपा के मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की होड़ मची है। भाजपा प्रत्याशी शेर सिंह गढि़या को जमीनी कार्यकर्ता माना जाता है वह पूर्व जिला पंचायत के सदस्य तथा तीन बार भाजपा के जिला महामंत्री रह चुके है। हाल के पंचायत चुनावों में उनकी पत्‍‌नी भी जिपं सदस्य का चुनाव जीतीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का आशीर्वाद भी उन्हे मिल रहा है। श्री गढि़या भी कपकोट में भगतदा के प्रभाव को कैश कराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। कांग्रेस प्रत्याशी चामू सिंह गस्याल भी मतदाताओं के लिए नये नहीं है। वर्ष 02 के चुनावों में वह 9 हजार मत लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे। कांग्रेस का मानना है कि बसपा प्रत्याशी के मैदान में न होने का सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा। लोक सभा चुनावों में बसपा को कपकोट विधान सभा से लगभग 6 हजार मत मिला था। मल्ला दानपुर क्षेत्र से किसी अन्य प्रत्याशी के न होने का फायदा भी चामू सिंह गस्याल को मिल सकता है। एनसीपी प्रत्याशी कुंती परिहार भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए ही परेशानी का कारण बनी हुई है। निर्दलीय तौर पर नामांकन कराने वाली कुंती ने नामांकन के अंतिम दिन एनसीपी से नामांकन कराया। उन्होंने जिस अप्रत्याशित तरीके से दोनों दलों के मतों में सेंधमारी की है उससे भाजपा व कांग्रेस के माथे पर चिंता की लकीरे खिंच गयी हैं। कुंती का मानना है कि महिला मतों का धु्रवीकरण उनकी ओर होगा। पूर्व जिपं अध्यक्ष जवाहर सिंह परिहार द्वारा कपकोट तहसील का निर्माण सहित कई विकास कार्यो का सहारा भी कुंती को मिल रहा है। हाल ही में संपन्न लोक सभा चुनावों में नजर डाली जाए तो पलड़ा भाजपा का भारी रहा था। कपकोट सीटभाजपा को 16120, कांग्रेस को 13507 मत तथा बसपा को 5944, एनसीपी को 504 व उक्रांद को 459 मत मिले थे। इस लिहाज से भाजपा को 2613 मतों की बढ़त मिली थी। भाजपा इस बढ़त को कायम रखने के प्रयास में है। उक्रांद के हरीश पाठक, निर्दलीय रमेश पांडे, कुंदन कोरंगा, किशन राम व सपा के उमेश राठौर भी भाजपा व कांग्रेस के परंपरागत वोटों में सेंधमारी कर उन्हे नुकसान पहुंचा सकते है। कांग्रेस,भाजपा व एनसीपी के बीच दिलचस्प मुकाबला होने के आसार है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि परिणाम चौंकाने वाले भी हो सकते है।

पंकज सिंह महर

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देहरादून। भाजपा सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की स्थिति में सहयोगी दल उत्तराखंड क्रांति दल का स्टैंड खासा महत्वपूर्ण हो गया है। उक्रांद के शीर्ष नेतृत्व में इस मामले में दो मत साफ तौर पर दिखाई दे रहे हैं।

उक्रांद अध्यक्ष डा.नारायण सिंह जंतवाल तथा वरिष्ठ पार्टी नेता काशी सिंह ऐरी का मानना है कि उक्रांद ने भाजपा को मुद्दों पर आधारित समर्थन दिया है। यह समर्थन किसी व्यक्ति विशेष को नहीं दिया गया है। नेतृत्व परिवर्तन भाजपा का अपना मसला है। ऐसे में परिर्वतन की स्थिति में भी उक्रांद का मुद्दों पर आधारित समर्थन जारी रहेगा। यह बात अलग है कि नई राजनीतिक स्थिति में उक्रांद समीक्षा करेगा। इसके विपरीत उक्रांद कोटे के कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट का कहना है कि वैसे नेतृत्व परिवर्तन भाजपा का अंदरूनी मामला है, फिर भी भाजपा को नेतृत्व परिवर्तन से पहले एक बार फिर से सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि नेतृत्व परिवर्तन की स्थिति में उक्रांद पहले समीक्षा करेगा। उक्रांद देखेगा कि नया नेता उक्रांद के मुद्दों पर क्या रुख अपनाता है। आश्वस्त होने के बाद ही समर्थन जारी रखने के बारे में कोई निर्णय लिया जाएगा।

 

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