देहरादून। तबादलों में बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप ने दूरस्थ माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों का संकट खड़ा कर दिया है। मैदानी सुविधाजनक क्षेत्रों की तुलना में दूरस्थ व दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षकों के दोगुना करीब 40 फीसदी पद रिक्त हो गए हैं।
प्रदेश में शिक्षकों के 31 फीसदी से ज्यादा पद खाली हैं। माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों के स्वीकृत 27814 में 8671 पद भरे नहीं गए हैं। 41 फीसदी से अधिक विद्यालय मुखिया विहीन हैं। प्रवक्ताओं के 35.78 फीसदी और एलटी शिक्षकों के 27.58 फीसदी पद रिक्त चल रहे हैं। शिक्षकों के कुल रिक्त पदों में भी दूरवर्ती व कठिनतम क्षेत्रों की हालत ज्यादा पतली है। इन क्षेत्रों में अध्यापकों की तैनाती अत्यधिक विषम होने से प्रभावित हो रही है। इन हालातों को सुधारने के बजाए ज्यादा बिगाड़ने में राजनीतिक हस्तक्षेप की भूमिका है। शिक्षकों के तबादलों व तैनाती में नियम-कानून ताक पर धरे जा रहे हैं। लंबे समय तक ठहराव के बाद सत्रांत में बड़े पैमाने पर तबादले किए जा चुके हैं। सीएजी ने भी बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप का जिक्र किया है कि स्थानांतरण कमेटियों को बार-बार ताक पर रखने की परंपरा शुरू हो चुकी है। बीते तीन वर्षो में कमेटी की सिर्फ एक बैठक हुई थी। बीते वर्ष तो एक भी बैठक नहीं हुई। महकमे की हालत रबर स्टैंप मानिंद हो गई है। सीएजी जांच में शामिल 114 मामलों में पाया गया कि सभी मामलों में तबादले राजनीतिज्ञों की अनुशंसा पर शिक्षा मंत्री की स्वीकृति के बाद किए गए। विशेषकर दूरस्थ इलाकों से अंतरजनपदीय ही नहीं, अंतरमंडलीय तबादलों के जरिए बड़ी संख्या में शिक्षक सुविधाजनक क्षेत्रों में उतर रहे हैं। नई नियुक्तियों के बावजूद सरकार शिक्षकों को पहाड़ों पर चढ़ाने में सफल नहीं हो सकी है। शिक्षा महकमे के आंकड़ों पर नजर डालने से यह साबित है कि मैदानी जिलों में शिक्षकों की कमी 20.51 फीसदी है, जबकि पर्वतीय जिलों में सिर्फ प्रवक्ता श्रेणी में 40.03 फीसदी रिक्तियां हैं। मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर व नैनीताल में एलटी के 16.75 फीसदी, प्रवक्ता के 20.51 फीसदी पद खाली पड़े हैं। इसकी तुलना में पर्वतीय जिलों अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली, चंपावत, टिहरी, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, पिथौरागढ़ एवं उत्तरकाशी में एलटी के 30.72 फीसदी तकरीबन 3998 पद और प्रवक्ता के 2894 पद करीब 40.03 फीसदी पद रिक्त हैं। जिलों के ही मैदानी व दुर्गम इलाकों में रिक्त पदों की संख्या में बड़ा अंतर है। शिक्षकों की तैनाती के असंतुलन की खाई साल-दर-साल चौड़ी हो रही है।