Author Topic: Srujan Se Magazine Published From Sahibabad - त्रिमासिक पत्रिका "सृजन से"  (Read 44405 times)

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 938
  • Karma: +7/-1

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 938
  • Karma: +7/-1

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 938
  • Karma: +7/-1

सत्यदेव सिंह नेगी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 771
  • Karma: +5/-0
कैलाश भाई बहुत देर से दर पे आँखें लगी थीं
हुजूर आते आते बहुत देर कर दी

जी मेरा नम्बर कब आएगा

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 938
  • Karma: +7/-1
Negi ji,

Kuch samajh me nahi aaya??

Mera Number kab aayega matlab??/

कैलाश भाई बहुत देर से दर पे आँखें लगी थीं
हुजूर आते आते बहुत देर कर दी

जी मेरा नम्बर कब आएगा

सत्यदेव सिंह नेगी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 771
  • Karma: +5/-0
Kailash ji meri patrika abhi tak mili nahi isliye bechainee ho rahi hai aap ise kripaya anyatha naa len utsuktawash maine aise hi likh diya
Negi ji,

Kuch samajh me nahi aaya??

Mera Number kab aayega matlab??/

कैलाश भाई बहुत देर से दर पे आँखें लगी थीं
हुजूर आते आते बहुत देर कर दी

जी मेरा नम्बर कब आएगा

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 938
  • Karma: +7/-1
Srujan Se- Feedback From Bhagwan Das Jain ji
« Reply #116 on: November 23, 2010, 03:31:48 AM »
आपके द्वारा प्रेषित व सुसंपादित त्रैमासिक पत्रिका ‘सृजन से‘ यथासमय प्राप्त हुई। साभार धन्यवाद! बड़े मनोयोग से ‘सृजन से‘ के नवीनतम जुलाई-सितंबर 2010 अंक का पर्यवेक्षण किया! मैं सुखद-आश्चर्य से विमुग्ध हूँ कि अभी तो पत्रिका प्रथम वर्ष के तीसरे सोपान (अंक) तक ही पहुँची है अर्थात् वह शैशवावस्था में है फिर भी अन्तर्बाह्म दोनों दृष्टियों से कितनी परिपुष्ट एवम् नयनाभिराम है, यानि वही कहावत चरितार्थ होती है कि- ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ पाठकीय सार्थक सुझावों का निरंतर क्रियान्वयन करते हुए शीघ्र ही एक दिन पत्रिका बुलंदी पर प्रतिष्ठित होगी। ‘सृजन से‘ की सृजनात्मक चेतना से अभिभूत हूँ। ‘आज़ादी के मायने‘ शीर्षक अपने संपादकीय में आपने यथार्थ ही कहा है कि ‘सिर्फ तानाशाह बदल जाते हैं, गुलामी की सूरत वही रहती है आज़ादी के मायने नहीं बदलते।’ पत्रिका में कुछ बोधप्रद हैं-जैसे ‘लक्ष्य से जीत तक’ (कवि कुलवंत सिंह), ‘पेड़ हमारे जीवन साथी’ (मकबूल वाजिद), ‘शोर‘ शीर्षक संक्षिप्त एकांकी (शराफ़त व अली खान) तो बहुत कुछ ज्ञान वर्द्धक एवं विचारोत्तेजक भी है, यथा-दादर पुल का बच्चा-बी विद्वल (मनमोहन सरल) और यूँ हुई रचना श्री नन्दा स्तुति की (हेमन्त जोशी) और कुछ विशुद्ध साहित्यिक सामग्री भी अंक में मौजूद है- कथा क्षेत्र के बहुश्रुत व बहुआयामी साहित्यकार भीष्म साहनी पर सुश्री किरन पाण्डे का आलेख अच्छा लगा। सुश्री नीतू चौधरी के लेख ‘अवध की आत्मा वाजिदअली शाह‘ ने भी मुझे काफी प्रभावित किया। डॉ. सौमित्र शर्मा का आलेख ‘रामकाव्य के मर्मज्ञ‘ डॉ रमानाथ त्रिपाठी तथा श्री दिनेश द्विवेदी द्वारा लिया गया प्रतिष्ठित कथा लेखिका एवं नारी विमर्श की सकारात्मक सोच की पक्षघर श्रीमती मृदुला गर्ग का साक्षात्कार (पहला भाग) ‘सृजन से‘ की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं जो अंक को संग्रहणीय बनाती हैं। कविताएँ अच्छी हैं। दोनों ग़ज़लें (श्री अंबर खरबंदा, श्री अशोक यादव) बहुत अच्छी और काबिलेदाद हैं। कहानियाँ पढ़ना अभी शेष है, क्या कहूँ? आपका चयन है अच्छी ही होंगी। पढूँगा अवश्य। ‘सृजन परिक्रमा‘ स्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित समाचार भी ज्ञातव्य हैं। इसे जारी रखिएगा। आवरण-4 पर कमाल खावर के प्राकृतिक दृश्यों के फोटोग्राफ रमणीय हैं तथा अंक के भीतर बिखरे सूचक रेखाचित्रों के लिए डॉभूष् ाण साह साधुवाद के पात्र हैं। आपके संनिष्ठ समर्पण एवं जुझारू संघर्ष के मद्देनज़र ‘सृजन से‘ का प्रचार-प्रसार निर्विवाद है। आपका विलक्षण संपादकत्व देश के गुमराह युवा सर्जकों में नई सृजनात्मक चेतना जगाए-यही आपके प्रति मेरी हार्दिक मंगल कामना है।



भगवान दास जैन
अहमदाबाद (गुजरात)

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 938
  • Karma: +7/-1
Srujan Se- Feedback From L.M. Pandey ji (Retd. DIG- SSB)
« Reply #117 on: November 23, 2010, 03:33:11 AM »
‘‘सृजन से‘‘ पत्रिका का तीसरा अंक मिला, धन्यवाद इस पत्रिका के मिलने पर एक आश्चर्य मिश्रित आनन्द की अनुभूति हुई। कुछ देर तक सोचता रहा, मेरा पता इस पत्रिका तक किसने पहुंचाया होगा? पत्रिका खोलने पर दिनेश जी का ‘‘साक्षात्कार देखते ही गुत्थी सुलझ गई। उनके द्वारा ही आप तक मेरा पता पहुचा होगा श्री दिनेश जी मेरे बड़े अच्छे मित्र हैं, जिन्हांेने मुझे भी सही रास्ता दिखलाया। आपकी पत्रिका के संरक्षक मंडल के सदस्यों में से दो सदस्य सर्वश्री डा0 मठपाल वं नईमा जी से भी मैं भलीभांति परिचित हूँ। अब उन्हें याद हो अथवा नहीं, मुलाकातें पुरानी हो गयी हैं। नईमा जी का नाम देखकर ही मुझे अपने बचपन के सांस्कृतिक क्रियाकलापों की स्मृति लौट आई, आपको भी अपने बचपन की एक झलक से परिचित कराने के लिए एक प्रति संलग्न कर भेज रहा हूँ। ‘‘सृजन से‘‘ पत्रिका समय की मांग के अनुरूप साहित्यिक सौष्ठव एवं सहजता से उच्च आदर्शों के प्राप्ति हेतु रची गयी लगती है। उच्च कोटि के लेखकों, कवियों, रचनाकारों की रचनाओं से पत्रिका का कलेवर सजाया गया है जिसमें हिन्दी साहित्य के सभी अंगों का समावेश बड़े सुरूचिपूर्ण ढंग से किया गया है। आलेख, कहानी, कविता, साक्षात्कार, कला समीक्षा, समालोचना आदि 52 पृष्ठों की इस पत्रिका में ‘‘गागर में मोतियों भरा सागर‘‘ लगता है, जिसे आरम्भ से अंत तक पूरा पढ़ने को जी करता है। मैने इस पत्रिका को एक ही बार में सम्पूर्ण पढ़ डाला। हर रचना की इसमे अपनी विशेषता है। कहानियां बड़ी रोचक, कविताएं सारगर्भित, आलेख बड़े सुन्दर हैं। दिनेश जी द्वारा लिया गया मृदुला जी का साक्षात्कार उच्च कोटि का है। मैं इसका दूसरा भाग भी पढ़ना चाहूँगा। सम्पादकीय कुछ अलग होने से उसमें विशेष सुगन्ध है। निष्ठा पूर्वक किया गया कार्य अपना निर्धारित लक्ष्य अवश्य प्राप्त करता है। मैं पत्रिका के लिए बधाई एवं अपनी हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करता हूॅ।

‘‘सृजन से‘‘ पत्रिका की बेल देश-विदेश में दूर-दूर तक फैले, फले, फूले, तथा इसकी महक से सभी आनन्दित हों। यही मेरा आशीर्वाद है।

एल. एम. पाण्डे
हल्द्वानी (उत्तराखंड)

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 938
  • Karma: +7/-1
‘सृजन से‘‘ का जुलाई-सितस्बर 2010 अंक प्राप्त हुआ। साहित्य के क्षेत्र में इस नई पत्रिका का स्वागत है। स्त्री विमर्श से सम्बन्धित मृदुला गर्ग जी के उठाये मुद्दे विचारणीय हैं। आज नारी सेसम्बन्धित हमारा समाज हमारी संस्कृति और हमारा साहित्य संक्रमणकाल से गुजर रहा है। इस सब में नारी की भूमिका क्या और कितनी हैं, इसका निर्णय स्वयं नारी को ही करना होगा। इस संबंध में मुझे एक पौराणिक प्रसंग याद आता है। सती अनुसूया की तपस्या से घबराकर उनकी परीक्षा लेने हमारे त्रिदेव-ब्रहमा, विष्णु और शिव पहुँचे और उनसे निर्वस्त्र होकर उनके सामने उपस्थित होने को कहा। अनुसूया ने अपनी तपस्या के बल पर उन्हें हंसते खेलते शिशुओं में बदल दिया और मातृस्वरूप उन्हें निर्वस्त्र रिझाने लगीं। त्रिदेवों ने उनसे क्षमा मांगी और माता के रूप में उनका नमन किया। तो मीना जी हम आज भी जहाँ इस शक्ति के दर्शन करते हैं। मस्तक अपने आप झुक जाता है। पत्रिका के सभी स्तम्भ अत्यंत उपयोगी और रोचक हैं। आप यदि चाहें तो अध्यात्म पर भी एक स्तत्भ रख सकती है.

भागवत प्रसाद मिश्र ‘नियाज’
अहमदाबाद (गुजरात)

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 938
  • Karma: +7/-1
Srujan Se- Feedback from Nandan Singh Rawat Ji....
« Reply #119 on: November 23, 2010, 04:58:06 AM »

कोटद्वार महोत्सव फरवरी 2010 के अवसर पर प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना विदुषी दीपा जोशी जी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत, करने कोटद्वार पहुंची थी उसी दौरान उन्ही के माध्यम से ‘‘सृजन सें‘‘ त्रैमासिक पत्रिका मुझे प्राप्त हुई थी। सबसे पहले मैं श्रीमती दीपा जोशी जी व श्री हेमन्त जोशी जी का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ जिन्हांेने मुझे सामाजिक सरोकारांे से आम जन को सम्प्रेरित करने में अति सक्षम साहित्यिक व सांस्कृतिक पत्रिका ‘सृजन से’ से अवगत कराया। वास्तव में पत्रिका के रूप में यह अनोखा सृजन है। कवर पृष्ठ कागज व छपाई के आधार पर जहाँ पत्रिका का भौतिक कलेवर शसक्त हुआ है वही श्रेणेत्तर कलाकारांे, साहित्यकारों व विभिन्न विषय के विद्वानों की श्रेष्ठ रचनाओं से पत्रिका का बौद्धिक कलेवर भी शसक्त हुआ है। आवरण के रूप में साहित्य और कला का आधार पाकर पत्रिका निश्चित रूप से अपने निर्धारित उद्वेश्य को प्राप्त करने मे सफल सिद्ध होगी ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।

अपनी शतसः हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।


नन्दन सिंह रावत
कोटद्वार (उत्तराखंड)

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22