Author Topic: Srujan Se Magazine Published From Sahibabad - त्रिमासिक पत्रिका "सृजन से"  (Read 44347 times)

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Srujan Se- Feedback From Sharafat Ali Khan ji....
« Reply #120 on: November 23, 2010, 05:01:58 AM »

‘सृजन से....‘ जु0सि0 2010 अंक मिला पत्रिका अपने पहले वर्ष में ही सामग्री और साजसज्जा के साथ हिंदी की श्रेष्ठ पत्रिकाओं की कतार में खड़ी नजर आने लगी है। साहित्य की सभी विधाओं से सुसज्जित पत्रिका निःसन्देह साहित्य जगत में अपना अलग स्थान बनाए रखेगी, ऐसी कामना है, दादर पुल का बच्चा -बी. बीट्ठल ने जीजीविषा की नयी परिभाषा से अकाग्र कराया। संघर्ष व्यक्ति को कैसे निखारता है उसका ज्वलंत उदाहरण है बी. बीट्ठल।


शराफत अली खान
बरेली (उत्तर प्रदेश)

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Srujan Se- Feedback from Meenu Joshi.....
« Reply #121 on: November 23, 2010, 05:04:07 AM »
‘‘सृजन से‘‘ पत्रिका के प्रथम एवं द्वितीय दोनों अंक प्राप्त हुए। पढ़कर ऐसा लगा कि काफी लम्बे समयान्तराल के बाद हिन्दी की स्तरीय पत्रिका पढ़ी, साहित्य प्रेमियों के लिए यह एक शुभ संकेत है। साहित्य मर्मज्ञों के साथ नव सृजक भी इस पत्रिका में अपना स्थान सुरक्षित देखकर काफी उत्साहित एवं प्रेरित होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। लोकसंस्कृति, साहित्य, कला, रंगमंच का इतना सुन्दर समागम पत्रिका के उज्जवल भविष्य को परिलक्षित करता है। संपादकीय में मीना पाण्डे जी का ‘एक जोडी ताजा आँखों का लोभ’ नवीन पीढ़ी व नव सृजनकर्ताओं के लिए अवश्य ही प्रेरणा का कार्य करेगा। पत्रिका के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए संपादक मंडल को हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ। साथ ही सृजन एवं पठन के माध्यम से पत्रिका से जुड़ना चाहती हूँ।

मीनू जोशी
अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

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Srujan Se- Feedback from Ashok Yadav ji...
« Reply #122 on: November 23, 2010, 05:08:04 AM »

कुछ दिनों पूर्व आप के सम्पादक में निकलने वाली पत्रिका ‘‘सृजन से‘‘ मिली। अपनी एक गज़ल को उसमें देखा तो बहुत प्रसन्नता हुई। इसके लिये आप को धन्यवाद प्रेषित कर रहा हूँं। आप बधाई की पात्र हैं जो एक साहित्यिक पत्रिका निकालने का आपने सफल प्रयास किया है। हालांकि आज के दौर में साहित्यिक पत्रिका निकालना एक कठिन कार्य है लेकिन कोई कार्य पूर्ण मनोयोग एवं सकारात्मक सोच के साथ किया जाये तो सफलता अवश्य मिलती है। आपको पत्रिका की उन्नति के लिये हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित कर रहा हूँ।

अशोक यादव
इटावा (उ.प्र.)

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Srujan Se- Feedback From Ashok 'Anjum'.....
« Reply #123 on: November 23, 2010, 05:11:41 AM »

“सृजन से” का जुलाई-सितम्बर अंक पाया प्रसन्नता हुई। मृदुला गर्ग जी का साक्षात्कार अंक की उपलब्धि है। श्री आलोक शुक्ल की कविता ‘डेमोक्रेसी’ प्रजातंत्र का बड़ा मार्मिक चित्रण है। अन्य रचनाएं भी मार्मिक हैं। गद्य पद्य पर भारी लगा।

अशोक ‘अंजुम’
अलीगढ़ (उ0प्र0)

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Srujan Se- Feedback from Dr. Anupam Shriwastav.....
« Reply #124 on: November 23, 2010, 05:18:58 AM »

गढ़वाल के बाल साहित्य में उदाहरण और उनका हिन्दी अनुवाद कर कई उदाहरण देना अच्छा होता, ‘भारत किस दिन अपनी भाषा में बोलेगा‘ ? ‘भीष्म साहनी‘ आलेख, ‘वाचिक कविता बनाम प्रकाशित कविता‘, ‘पर्यावरण.........में, रचनायें पसंद आई। पत्रिका को बहुआयामी बनायें, पत्र भावनापरक नही रचनाओं पर आधारित छापे जाने चाहिए।

डॉ0 अनुपम श्रीवास्तव
नैनीताल (उत्तराखंड)

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Srujan Se- Feedback From Aacharya Darshney Lokesh ji....
« Reply #125 on: November 23, 2010, 05:21:55 AM »

‘सृजन से‘ के अवलोकनार्थ प्रेषित अंक मिला धन्यवाद। पृष्ठ 43 पर ‘‘पहचान एक सही तिथि पत्रक की” जो कि मेरा ही लेख है, को प्रकाशित देखकर अति प्रसन्नता हुई, बहुत कम सम्पादक हैं जो कि मेरे लेख प्रकाशित करने का साहस रखते हैं। मैं धारा के विपरीत बहने की प्रचलन के विपरीत चलने की किन्तु सत्यार्थ और यथार्थ के पक्ष में अन्वेषण की बात करता हँू। आपका मार्ग सत्य के पक्ष में अधिक ही गुरूतर और प्रशंसनीय बनता है। मुझे अब उम्मीद करनी चाहिए कि आप जैसे लोग वैचारिक क्रान्त्ति के इस प्रयास में आगे ही रहंेगे। ज्योतिष की गभ्भीर त्रुटियों को दूर कर एक सत्य शुद्ध ‘‘पंचांग‘‘ दे पाने के सर्वथा अद्वितीय एवं अन्यतम प्रयास का नाम है ‘‘श्री मोहन कृति आर्ष तिथी पत्रक‘‘। समाज और संस्कृति के हित में आचार्य दार्शनेय लोकेश आपका उतना ही अधिक आभारी रहेगा जितना ही अधिक आपका प्रयास इस वैदिक तिथि पत्रक की सामाजिक प्रतिष्ठा करने में सहयोगी सिद्ध होगा। सत्य ये है कि भारत की धरती में ‘पंचांग’ नाम से जो भी कुछ प्रकाशित किया जा रहा है वह सब यथार्थ और सत्य से अलग केवल भ्रमात्मक प्रकाशन हैं। फलित ज्योतिष के लिए जिस भचक्र को लिया गया है वह बृहमाण्ड में कहीं नहीं है। कुल मिला कर कभी तो लगता है ज्योतिषी क्या उस व्यक्ति को तो नहीं कहा जाता है जो कि ज्योतिष के यथार्थ को जानता ही नहीं है। ये बातें कटुता हो सकती हैं किन्तु असत्य नहीं। संलग्न पत्रकों का ठीक अवलोकन करने पर यही कुछ आपको भी स्पष्ट हो जायेगा।


आचार्य दार्शनेय लोकेश
ग्रेटर नौएडा (उ0प्र0)

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Srujan Se- Feedback from Prakash Pant Ji.....
« Reply #126 on: November 23, 2010, 05:38:35 AM »
मैंने त्रैमासिक पत्रिका “सृजन से...” का अवलोकन किया। पत्रिका में नाम के अनुरूप उच्चकोटी के साहित्य के द्वारा मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास किया गया है। पत्रिका में मानव जीवन के विभिन्न रंगो का समावेश करते हुए सम्पादक मण्डल ने साहित्य से जुड़े एवं सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों के लिए ज्ञानार्जन रूपी महल के निर्माण में ईंट लगाकर अपना योगदान देने का प्रयास किया है। “सृजन से...” उत्तराखण्ड की संस्कृति, सांस्कृतिक परम्पराओं तथा धरोहर को आम जनमानस तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभायेगी ऐसा मेरा मानना है। मुझे विश्वास है कि पत्रिका “सृजन से...” बुद्धिजीवियों के देश/राज्यों के सम-सामयिक विषयों पर लेख, विचार तथा सुझाव प्रकाशित कर उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए समाज में अपनी एक पहचान बनाने में सफल होगी। सम्पादक मण्डल को पत्रिका के सफल सम्पादन हेतु मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं।

प्रकाश पन्त, (मंत्री)
उत्तराखंड विधानसभा

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Srujan Se- Feedback from Ramesh Chandra Shah ji.....
« Reply #127 on: November 23, 2010, 05:43:45 AM »

दोनों अंक अभी हफ्ता भर पहले ही मिले हैं। धन्यवाद। नईमा जी से बड़ा मार्मिक साक्षात्कार आपने लिया- पढ़कर बहुत अच्छा लगा।कई बातें मालूम हुई जो नहीं जानता था। दयानंद अनंत की कहानी ‘रुपयों का पेड़‘ अच्छी लगी। चेखव की सभी कहानियाँ मेरी पढ़ी हुई हैं- पता नहीं कैसे इस कहानी को पढ़े होने की याद नहीं। अद्भुत कहानी है। मेरा सुझाव है प्रत्येक अंक में ऐसी ही एक जबरदस्त कहानी विश्व-साहित्य के भण्डार से निकाल चुनकर अपने पाठकों को परोसा करें। इससे पाठकों की संवेदना का परिष्कार एवं विस्तार होगा। पत्रिका का आकर्षण भी बढ़ेगा। इस वक्त प्रवेशांक सामने नहीं है। कई चीजें पढ़ी थी, हाँ दीप जोशी पर लेख मेरे लिए नई जानकारी- आपके पाठकों के लिए भी प्रेरणास्पद था। इस तरह के प्रेरक पोट्रेट भी होने चाहिए, सही यथार्थ गौरव-बोध और आत्मविश्वास जगाने वाली सामग्री जीवनीपरक। ब्रजमोहन साह के काम को याद किया- अच्छा लगा। भाई मो0 सलीम को उनके बचपन से जानता रहा हूँ। इस अंक में हेमन्त ने यशोधर मठपाल का साक्षात्कार लिया है, पहली बार इनके बारे में जरुरी जानकारी देती सामग्री छपी देखी। हेमन्त ने सही जगहों पर कुरेदा, विस्तृत और प्रेरणादायी जीवन और कर्म के विविध पहलुओं को खोला, उनका जीवन पहाड़ के युवकों के लिये अनुकरणीय होना चाहिये। संग्रहालय उनका मेरा देखा हुआ है उसे लेकर उनकी चिन्ता वाजिफ है, कलेश उपजाती है। उत्तराखण्ड सरकार के हित में ही है, यह कि वह अविलम्ब उसके संरक्षण की व्यवस्था करे और उन्हें चिन्तामुक्त करे। यह उसका दायित्व है। सृजन परिक्रमा के अंतर्गत नितिन जोशी की यह समझबूझ भरी टिप्पणी कि “गोविन्द चन्द्र पाण्डेय अपने जीवन व्यापी अत्यन्त मूल्यवान और स्थायी महत्व के कृतत्व के लिये इस विलम्बित पदम्श्री से कहीं अधिक और उच्चतर सम्मान के अधिकारी थे”। प्रश्न चिन्ह तो लगता ही है इन चयन समितियों पर निसंदेह। मैं नहीं समझता गोविन्द चन्द्र जी के समकक्ष कोई दूसरा विद्धान उस क्षेत्र का इस देश में वर्तमान होगा। यह मैं सुनी सुनाई नहीं कहता उनके कृतित्व के समझबूझ के पक्के आधार पर कह रहा हूँ। वे अनुठे विद्धान ही नहीं अनूठे कवि और अनुवादक भी हैं- यह कितने लोग जानते हैं? स्वयं अपने पहाड़ के ही एकेडेमिक व साहित्यिक क्षेत्रों में कार्यरत कितने लोग उनके किये धरे का महत्व जानते होंगे? कितनों ने उनके वेद के संस्कृत काव्य अतुलनिय काव्यानुवादों को पड़ा होगा? मुझे कतई भरोसा नहीं है इसका। तो फिर हम किस संस्कृति की बात करते हैं? जो उसे उपजाते हैं सचमुच के सर्जक और उनवेषक हैं उसके, उन्हीं का गुण-ज्ञान नहीं बिल्कुल तो फिर हमारे जीवन की, गतिविधियों की क्या कीमत है? जो कृतज्ञ नहीं, उसकी कर्मठता भी (तथाकथित) क्या होगी? किसी आंचलिक संकीर्ण आग्रह से नहीं, बल्कि कितना सार्वदेशीक और व्यापक दृष्टि वाला संस्कार है इस अंचल से जुड़ी ऐसी विभूतियों का इसका कुछ तो बोध नई पीड़ी को हो। मुझे लगता है पहाड़ से जुड़ी साहित्यिक पत्रकारिता इस स्तर की चेतना उपजाने में सहायक हो सकती है, होना चाहिये। पुनश्चः अंक सामने नही है और स्मृति इन दिनों गड़बड़ हो जाती है। मो0 सलीम पर जो मैंने पड़ा- अत्यंत भावोत्तेजक, और पुनः ही पुरानी यादें जगाता लेख, वह आप की ही पत्रिका में पड़ा था या अन्यत्र? जहाँ तक स्मृति साथ देती है, आपके ही प्रवेशांक में पड़ा था। ठीक है ना? क्या ये अल्मोड़ा में हैं अभी? या लखनऊ में? मैं एक माह उधर रहूँगा इसीलिये पूँछ रहा हूँ। बस तो, आपके प्रयत्नों के सफलता हेतु शुभकामनायें।

पद्मश्री डा0 रमेश चन्द्र शाह,
भोपाल (म0प्र0)

Pawan Pahari/पवन पहाडी

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मैंने तो सर्जन से पत्रिका पड़ी भी नहीं. कैलाश जी उपलब्ध कराएँ तदोपरांत कुछ कह पाउँगा. 

Anil Arya / अनिल आर्य

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Ayega Negi ji apka hi to number hai. Are han a gaya!

 

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