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Srujan Se Magazine Published From Sahibabad - त्रिमासिक पत्रिका "सृजन से"

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KAILASH PANDEY/THET PAHADI:
Srujan Parikrima Page (July-Dec 2011 edition)..

KAILASH PANDEY/THET PAHADI:
Srujan se- Color page Last (July-Dec 2011 Edition)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
सृजन से...ने किया काव्य गोष्ठी का आयोजन[/color][/font][/size] चारो ओर आग की लपटे,...........................[/color][/b]  सृजन से त्रैमासिक पत्रिका के तत्वाधान में गत 28 अपव्रेल 2013 साहिबाबाद गाजियाबाद में काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ।  दोपहर बाद शुरू हुई इस गोष्ठी में दिल्ली एन0सी0आर0 के अनेक कवियों ने शिरकत की। गोष्ठी का शुभारम्भ मुख्य अतिथि व वरिष्ठ उपन्यासकार जयप्रकाश डंगवाल व गाष्ठी अध्यक्षता कर रहे गीतकार महेश सक्सैना ने दीप प्रज्जवलित कर किया।     देर शाम तक चली इस गोष्ठी को उपस्थित कवियों ने अपने सुमधुर कविता पाठ से, उसके चरम तक पहुचाया।
सर्वप्रथम कविता पाठ करते हुए अम्बर जोशी ने ग़ज़ल की मिज़ाज़ पर कलम तेज करते हुए कहा-
’’जहन में जब भी खलल हो तो ग़ज़ल होती हैसामने कोई ग़ज़ल हो तो ग़ज़ल होती है एक सा वक्त अगर हो तो कहे क्या कोईवक्त में रद्दोबदल हो तो ग़ज़ल होती है।’’ वर्तमान परिपेक्ष व सत्ता पर तीखा प्रहार कवि,गीतकार मोहन द्विवेदी अपने व्यग्य मिश्रित अंदाज में इस तरह करते नजर आए -
बची न कौडी जेब में, मिला न खोठा दाम। दाव चलाती सोनिया, मनमोहन बदनाम।। महानगर की कुंठा व यंत्रवत जीवन से उदिग्न जयप्रकाश डंगवाल की सशक्त लेखनी कविता का रूप कुछ इस तरह लेती है- महानगर तेरी बंद कोठरी में-
ऐसे बीत रहा जीवन , जैसे किसी बडी जेल में ,एक युवा कैदी का यौवन। पत्रिका की संपादिका व कवियत्री मीना पाण्डे ने भ्रष्ट्राचार व भ्रष्ट्र नेताओ को आडे हाथों लेते हुए कहा-
 लोकतन्त्र झुठ बना ,सदन अखाडा है ,इन सफेद पोशो ने ही , देश को बिगाड़ा है।महंगाई और बेरोजगारी के इस दौर में डॉ जयशंकर शुक्ल का स्नेह और चाहतो की बात करना सुखद लगता है -
आपकी याद में मन सुमन खिल गया। याद में मीत का आगमन मिल गया।चाहतों में हद्य गुनगुनाता रहा। देह को स्नेह का आचमन मिल गया।
गीतकार चन्द्रभानु मिश्र समय की विदुप्रताओं की ओर इशारा करते हुए कहते है-
चारो ओर आग की लपटे, मचा हुआ कोहराम जी।अगर चुप रहे इसी तरह हम, क्या होगा परिणाम जी।
आधुनिकता व पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण पर हास्य का पुट लिए दिनेश दुबे ’निर्मल’ की कविता ने खुब गुदगुदाया-
पके हुए सिर के बालों पर काला रंग चढ़ाती है। झुररी पडे गालों पर मलमल क्रीम लगाती है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष महेश सक्सैना ने अपनी कलम की धार से श्रोताओं कों यूॅ मंत्र मुग्ध कर दिया-   
इधर जलाना उधर बुझाना,तुम्हारी हरकत सही नही है, मेरी वफ़ा को ज़फा बताते, तुम्हारी तुहेमत सही नही है।  बतौर मुख्य अतिथि डंगवाल ने पत्रिका के प्रयासो की सराहना करते हुए कहा कि विगत कई वर्षो से पत्रिका इस तरह की गाेिष्ठयों का आयोजन समय समय पर करती आ रही है। अन्त में पत्रिका सृजन से की संपादिका  ने प्रस्सति पत्र प्रदान कर आमंत्रित कवियों को सम्मानित किया तथा कयिों का आभार व्यक्त करते हुए इस तरह की गोष्ठियों व सृजन से पत्रिका के माध्यम से साहित्य व कला की अनवरत सेवा करते रहने की बात दोहराई। सुमधुर गीत ग़ज़लो से सराबोर इस गोष्ठी में देर रात तक श्रोताओं को बाधे रखा। गोष्ठी का कुशल संचालन गीतकार डॉ0 जयशंकर शुक्ल ने किया। कार्यक्रम में अवनीश शर्मा, कैलाश पाण्डे , नीता डंगवाल,चंचल सेकिया आदि लोग मौजुद थे।   

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