‘सृजन से’ के प्रथमांक हेतु ढेरों बधाइयाँ! आवरण से लेकर कलेवर, चित्रांकन, रचनाएँ, कागज एवं आकार सभी प्रभावषाली हैं। लगता है संपादक, संचालक एवं सहयोगी अतिशय उत्साह से परिपूर्ण हैं।
साहित्य की अनेक विधाओं पर सार्थक रचानाओं का समावेश पत्रिका को परिपूर्णता की ओर अग्रसर करता है। साहित्यिक पत्रिका के प्रारम्भिक अंकों में अच्छे साहित्यकारों को जोड़ने और अच्छी रचनाओं की व्यवस्था में थोड़ी कठनाई होती है।
धीरे-धीरे ‘उत्तराखण्ड’ और ‘गाजियाबाद’ से बाहर निकल कर राष्ट्रीय स्तर पर आइये, आपको भी अच्छा लगेगा और पाठकों को भी।
‘इलैक्ट्रॉनिक-मीडिया’ ने प्रिन्ट-मीडिया’ पर ग्रहण सा लगा रखा है, सच है। ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ और ‘धर्मयुग’ जैसी समृद्ध पत्रिकाओं का बन्द हो जाना इसका ज्वलन्त प्रमाण है। कविता और कहानी ऐसे अनोखे फल हैं जिनके पेड़ों को न पानी मिल रहा है न खाद। कैसे फलेंगे ये पेड़ ? ऐसे में इस जलते रेगिस्तान में आप मीठे पानी की नहर निकालने का प्रयास कर रही हैं।
आपके लिए मेरी दिल से शुभकामनाएँ।मेरा हर प्रकार से सहयोग आपके साथ रहेगा। रचनाओं के चयन में थोड़ी कठोरता बरतें, अच्छा रहेगा। संपादक पत्रिका को जीवन देता है, एक विशिष्ट चरित्र देता है अपना महत्वपूर्ण समय, ज्ञान एवं सृजन शक्ति उस पर लुटाता है यदि चित्र न भी दें तब भी उतना ही महत्वपूर्ण रहेगा। शायद दिल पर और भी अधिक प्रभाव छोड़ जाती हैं अनदेखी शक्तियाँ।
होली की असीम शुभकामनाओं सहित ---
शंकर प्रसाद करगेती
गाजियाबाद (उ0प्र0)