‘‘सृजन से‘‘‘ पत्रिका के तीन अंक पढ़े । पत्रिका में स्तरीय, प्रबुद्ध लेखकों के साथ नये रचनाकारों का भी समावेष हुआ है। पत्रिका हो, समाचार पत्र या मीडिया की कोई भी विधा, यहॉ तक कि पुस्तकों के लेखक अथवा कवि उसके सृजक तथा सम्पादक पर निर्भर करते है। सम्पादक कैसा है व किस अवधारणा अथवा लालच से पत्रकारिता के क्षेत्र में आया है, कदाचित इन प्रष्नों का उत्तर ही पत्रकारिता का भविश्य हुआ करता है।
पत्रकारिता का पावनतम कर्म पूर्ण निश्ठा, सत्यता एवं पारदर्षिता से देष, समाज व संस्कृति की रक्षा करना है । कलम की नोक से सृजनात्मक विचारों को अभिव्यक्ति देना, उत्कृश्ट कार्य करने वालों को महत्व देना साथ ही दुश्कर्म वालों को हतोत्साहित करना पत्रकारिता का ही कार्य है। इस उददेष्य की पूर्ति के लिए पत्रकारिता से जुंडे़ लोगों का चरित्र अति पावन, विषाल व निश्पक्ष होना जरूरी होता है। प्रायः देखने में आता है कि अधिकांष पत्रकार काली कमाई को ठिकाने लगाने, छदम नाम कमाने या फिर पत्रकारिता के माध्यम से फूहड़ विज्ञापन व सरकारी विज्ञापन बटोर कर सरकार के काले कारनामों पर पर्दा डाल कर और अधिक कमाने के उददेष्य से पत्रकारिता केा ही कलंकित करने लगते हैं व इसी प्रयास में आसमान छू जाने के बाद मटियामेट भी हो जाते हैं। पत्रकारिता के छदम व पीतकर्म से आज देष व समाज में जहॉ फिल्मी नायक व नायिकाएॅ, ्िरककेट खिलाड़ी, ब्यूटी क्वीन तथा विज्ञापनी पुरूश, बालाएॅ वक्त के भगवान बने हुए हैं वही उत्कृश्ट कर्म व सोच देने वाले वैज्ञानिक, विचारक, चिंतक तथा प्रबुद्ध वर्ग के पदाधिकारी, कलाकार, संगीतज्ञ, कवि तथा लेखक उपेक्षित हैं। इन सभी कसौटियों एवं चुनौतियों पर ‘‘सृजन से,,,‘‘ पत्रिका को आकार लेना है।
तारा दत्त पाण्डे ‘‘अधीर‘‘
मानस विहार बिठोरिया न0-1
हल्द्वानी नैनीताल उत्तराखण्ड