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SURPRISE & UNIQUE NEWS OF RELATED TO UTTARAKHAND- जरा हट के खबर उत्तराखंड की

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
इस हौसले को करें सलाम!

हल्द्वानी(नैनीताल)। घरेलू व खेती के कामकाज में प्राय: पुरुषों को 'आईना' दिखाने वाली पहाड़ की महिलाओं ने अब समाज को भी 'आईना' दिखाने की ठान ली है। जिसे लगता है कि महिलाएं सिर्फ घर की चौखट तक के लिये हैं,वह अपनी सोच बदल कर जोगीपुरा की गुड्डी या नई बस्ती की कमला के हौसले को देखे। दोनों समाज के लिए मिसाल बन गयी हैं, ये समूह बनाकर न केवल जड़ी बूटी की बागवानी कर रही हैं बल्कि किसी दक्ष वैद्य की तरह कैंसर से लेकर मधुमेह की दवायें भी तैयार कर रही हैं। आज इनके हौसले को सभी सलाम कर रहे हैं।

नैनीताल जिले के रामपुर क्षेत्र अ‌र्न्तगत जोगीपुरा, जस्सा गांजा, शिवलालपुर, चूना खान, बेलपोखरा, कमोला तथा चोरगलिया के धर्मपुर, बिहारीनगर, धौला बाजपुर, काठ बांस व बिहारीनगर गांव के दर्जनों घरों के सामने अब जड़ी बूटी की बागवानी लहरा रही है। इन पौधों से कैसंर, मधुमेह, रक्तचाप से लेकर मामूली सर्दी-जुकाम व बुखार की दवायें तो तैयार ही हो रही हैं साथ ही टूटी हड्डी को जोड़ देने का चमत्कार रखने वाली निरगुण्डी पौधे के पेस्ट भी बनाये जा रहे हैं। यह सब ऐसे ही एक दिन में सम्भव नहीं हो गया बल्कि एक संस्था की प्रेरणा व कुछ जागरुक स्थानीय महिलाओं की प्रभावी पहल से सम्भव हो सका है। इन महिलाओं को संसाधन देकर प्रेरित करने वाली सुचेतना समाज सेवा संस्था के फादर पायस की मानें तो यहां की महिलाओं के जज्बे से ही यह सब सम्भव हो सका है। रामनगर के जोगीपुरा गांव निवासी साधारण किसान सलीम की पत्नी गुड्डी की तरह ही कमला, चम्पा,मधू, सुनीता, भावना ऐसे ही हौसले से लबरेज हैं। इन्हें कोई सरकारी प्रोत्साहन या मदद नहीं मिल रही है और न ही ये लोग मदद की आस ही लगाये हैं। इन महिलाओं का कहना है कि सरकारी मदद या होहल्ला के लिये इन्होंने इस काम को नहीं चुना है। इनका मकसद बस इतना ही है कि भारतीय पुरातन चिकित्सा संस्कृति जिंदा रहे। विलुप्त हो रही जीवन रक्षक औषधियों की प्रजाति को संरक्षित रखा जा सके। इन महिलाओं ने जिले के एक दर्जन गांवों तक अपनी पैठ बना कर जागरुकता के जो बीज रोपित किये हैं वे अब औषधियों की खेती व दवाओं के निमार्ण के रुप में सबके सामने हैं। दवा बनाने की प्रेरणा इन्हें संस्था के लोगों ने सिखाये हैं। इस कार्य की मानीटरिंग करने वाली सिस्टर अनूपा, सिस्टर थियोफिन तथा गिरिराज की मानें तो इस तरह के हर्बल दवाओं के निमार्ण के पीछे कोई व्यावसायिक लाभ की मंशा निहित नहीं है अपितु पौधों के संरक्षण को बढावा देना ही सभी का मकसद है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5911032.html

पंकज सिंह महर:
नहीं होता लक्ष्मी पूजन न ही जलतीं मोमबत्तियांभीम सिंह चौहान, चकराता जौनसार-बावर क्षेत्र में तीज-त्योहारों को मनाने का अंदाज अलग ही है। पूरे देश में एक माह पूर्व प्रकाश पर्व दीवाली मनाया जा चुका है तो जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर इन दिनों दीवाली के जश्न में ड़ूबा हुआ है। जौनसारी दीवाली में न तो लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है और न ही मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। यहां रोशनी का माध्यम बनती हैं मशालें। क्षेत्र के 340 से अधिक राजस्व गांवों में सोमवार रात से दीवाली का त्योहार विधिवत शुरू हुआ। इस त्योहार में गांव के लोग रात्रि लगभग 10 बजे पंचायत आंगन में एकत्र हुए। स्थानीय बाजगियों ने ढोल-दमाऊं व रणसिंघा के साथ कुल देव महासू व शिरगुल महाराज की आराधना की। क्षेत्र के कोटा-डिमऊ गांव में परंपरानुसार पुरुष हाथों में हौला (मशाल) लिए आंगन में पहुंचे और सामूहिक रूप से सभी ने हौले जलाए। हौला जलाकर ग्रामीण ढोल-दमाऊं की थाप पर नाचते-गाते मंदिर परिसर पहुंचे और माथा टेका। इसके बाद जलते हुए हौलों को एक-दूसरे पर फेंककर खुशी का इजहार किया। पारंपरिक पोशाक पहन पुरुषों व महिलाओं ने आंगन में सामूहिक रूप से दीवाली की देवगाथा से जुड़ी पौराणिक हारुलों के साथ पूरी रात तांदी नृत्य किया। मशाल फेंकने के कारण अंधेरे में मनोहारी दृश्य बन रहा था। खुशी का इजहार करते समय निकल रही आवाजों से हर कोई उत्साहित था। इस दीवाली ने जौनसारी समुदाय में नए जोश का संचार भी किया। कानों पर हरियाली रखे बच्चे, युवतियां व बुजुर्ग बेहद आकर्षक लग रहे थे। स्याणा द्वारा छत से फेंका जाने वाला अखरोट का प्रसाद पाने के लिए लोग आतुर नजर आ रहे थे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
हर बार जुड़वा बच्चे पैदा करती है बरबरी

गोपेश्वर (चमोली)। बकरी की एक ऐसी नस्ल है, जो हर बार जुड़वा बच्चों को ही जन्म देती है। यह बात पढ़ने में बेतुकी लग रही होगी, लेकिन है सोलह आने सच। बकरी की इस प्रजाति को 'बरबरी' कहा जाता है। पशुपालन विभाग ने बरबरी को पहाड़ी बकरी के विकल्प के रूप में चुना है। इस नस्ल को पहाड़ में चढ़ाने की कवायद सीमांत जनपद चमोली से की जा रही है। यह प्रोजेक्ट ग्वालदम में शुरू किया जाएगा। इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 1.34 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है।

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बकरी की जो नस्ल पाली जाती है उसे 'हिमालन' या 'चौगरखा' नाम से जाना जाता है। ग्लोबल वार्मिग व अन्य कारणों से इस प्रजाति की बकरियों की न सिर्फ औसत आयु कम हो गई है बल्कि उनका शरीर का विकास भी पर्याप्त नहीं हो पा रहा है। लिहाजा, कम वजन की पहाड़ी बकरियां पशुपालकों के लिए बहुत अधिक लाभदायक साबित नहीं हो पा रही हैं। ऐसे में पशुपालन विभाग बरबरी प्रजाति की बकरी को पहाड़ी बकरी के विकल्प के रूप में देख रहा है। दरअसल, बरबरी प्रजाति की बकरी यूपी के ऐटा, मैनपुरी, इटावा क्षेत्र में बहुतायत में पाई जाती है। बरबरी का वजन 20 से 25 किलो तक होता है, जबकि पहाड़ी बकरी का वजन 15 से 20 किलो तक ही होता है। बरबरी की विशेषता यह है कि यह साल में दो बार बच्चे पैदा करती है और हर बार जुड़वा बच्चों को ही जन्म देती है। मैदान के गर्म इलाकों के अलावा इसे पहाड़ के ठंडे इलाकों में भी इसे आसानी से पाला जा सकता है।

इस संबंध में मुख्य पशु चिकित्साधि कारी डा. पीएस यादव ने बताया कि बकरी प्रजनन प्रक्षेत्र ग्वालदम में 250 बरबरी बकरियां प्रजजन के लिए लाई जाएंगी। इनमें से नर बकरियां राष्ट्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मकदूम मथुरा व मादा बकरियां खुले बाजार से खरीदी जाएंगी। उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत पशुपालन विभाग चमोली को एक करोड़ 34 लाख रुपये प्राप्त हो चुके हैं।
Source "
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5991152.html

Devbhoomi,Uttarakhand:
सपनों की उड़ान से धुलेगा कलंक

देहरादून। पेट की आग से हर रोज झुलसने वाले मेहनतकशों के बच्चों के माथे पर अब 'अशिक्षा' का कलंक धुलेगा। मोबाइल स्कूल शहरों से दूरदराज मजूदरों की बस्तियों में पहुंचकर 'बचपन' की 'सपनों की उड़ान' का सबब बनेंगे।

प्राइमरी शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर उठाए जा रहे कदम भारत सरकार को भा रहे हैं। इससे सूबे का सीना गर्व से फूल रहा है। मोबाइल स्कूल की इस योजना में केंद्र ने भी रुचि दिखाई है। दो जून की रोटी को पढ़ाई-लिखाई से किनारा करने वाले बच्चों के पास अब स्कूल खुद चलकर जाएगा। मलिन बस्तियों, श्रमिकों की झुग्गियों में बचपन को शिक्षा से तराशने की योजना को 'सपनों की उड़ान' नाम दिया गया है। इस योजना में खुद मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक खासी रुचि ले रहे हैं। योजना कामयाब रही तो शिक्षा से महरूम बच्चों के सपनों में पढ़ाई के साथ भावी जीवन में आगे बढ़ने के रंग भरे जाएंगे। इस योजना को सर्व शिक्षा अभियान के नए प्लान में शामिल किया गया है। सूत्रों के मुताबिक राज्य के तीन मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर की बस्तियों में बतौर पायलट प्रोजेक्ट इसे शुरू करने की योजना है। यह उड़ान सबसे पहले हरिद्वार में कुंभ मेला क्षेत्र में गंगा किनारे से भरी जाएगी। मुख्यमंत्री जल्द मोबाइल स्टडी रूम को हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे। इसके मद्देनजर शिक्षा महकमा योजना को अंतिम रूप देने में जुटा है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5994385.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
सड़क पर पड़े मिले 17500 रुपये

जौलजीबी(पिथौरागढ़)। बाजार से गुजर रहे पत्रकार और एलआईयू कर्मी को सड़क पर साढ़े सत्रह हजार रुपये पड़े मिले हैं। यह धनराशि पत्रकार के पास जमा कर दी गयी है। पहचान बताकर संबंधित व्यक्ति धनराशि प्राप्त कर सकता है।

रविवार को पत्रकार गिरीश अवस्थी और एलआईयू कर्मी विशनदत्त शर्मा बाजार से गुजर रहे थे। इसी दौरान दोनों को सड़क पर पड़े हुए साढे़ सत्रह हजार रुपये मिले। दोनों ने आस-पास पूछताछ की लेकिन धनराशि के मालिक का पता नहीं लग सका है। धनराशि पत्रकार गिरीश अवस्थी के पास जमा कर दी गयी है। संबंधित व्यक्ति नोटों की पहचान बताकर धनराशि को प्राप्त कर सकता है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6073998.html

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