भूकंप के लिहाज से फरवरी संवेदनशील
दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा भूकंपीय लिहाज से सवंदेनशील फरवरी शोध का विषय बना हुआ है। इस महीने के अद्भुत संयोग से जुड़े अहम सवाल का जहां विज्ञानी जवाब तलाशने में जुटे हैं, वहीं भूगर्भीय हलचल की अप्रत्याशित पुनरावृत्ति को शोध का नया विषय भी माना जा रहा है। पांच साल के अचंभित करने वाले आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न शहरों की धरती फरवरी में करीब 30 बार डोल चुकी है। दरअसल, धरती की बुनियाद यानी भूगर्भीय प्लेटों (भं्रश) में घर्षण से असंतुलन के बाद भूकंप स्वाभाविक प्रक्रिया है। मगर एक ही माह के भीतर झटके आना अचरज का विषय है। वर्ष 2006 से 2010 तक की भूकंपीय हलचल पर नजर दौड़ाएं तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। पंतनगर विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञान विभाग के जुटाए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए डॉ.एचएस कुशवाहा कहते हैं, इस अवधि में छोटे-बड़े 30 झटके फरवरी में ही आए। यानी भूकंपीय दृष्टि से यह महीना संवेदनशील है। जहां तक अद्भुत व अप्रत्याशित इस महीने में झटकों का सवाल है एक फरवरी 06 को भारत-पाकिस्तान सीमा व जम्मू कश्मीर में भकूंप आया था। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 5 थी। इसी दिन भारत-चीन सीमा पर उत्तराखंड के पर्वतीय भूभाग में 5.2 तीव्रता वाले झटके आए। इसी साल 14 फरवरी को प्रदेश में फिर धरती डोली। इनके अलावा इसी अवधि में विभिन्न क्षेत्रों में छोटे-बड़े नौ और झटके आए थे। अगले वर्ष 5 फरवरी 07 को भूकंपीय हलचल की पुनरावृत्ति हुई। भारत-नेपाल सीमा से लगे पर्वतीय अंचल में भूकंप आया। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता हालांकि 3.7 रही। इसी वर्ष 27 फरवरी तक तमाम छोटे कंपनों के साथ देश के अन्य तीन शहरों में भी झटके आए थे। वर्ष 08 में 25 फरवरी को रोहतक (हरियाणा) के साथ ही कुमाऊं व गढ़वाल के पर्वतीय इलाकों में 3.7 तीव्रता ने इस आंकड़े का खुलासा किया। इस माह देश के कच्छ, गुजरात, जम्मू, राजस्थान समेत छह शहरों में धरती डोली थी। बकौल डॉ.कुशवाहा तब रुक-रुक कर सीमांत पिथौरागढ़ व गढ़वाल के कुछ इलाकों में छोटे भूकंप कई बार आए। इनकी तीव्रता हालांकि काफी कम थी। वर्ष 09 में भूगर्भीय हलचल की प्रवृति में बदलाव आया। फरवरी शांत रहा। यह बात दीगर है कि सीमांत पिथौरागढ़ में बेहद कम तीव्रता का असर रहा। मगर एक साल के अंतराल में 21 फरवरी 2010 को भूकंपीय हलचल की पुनरावृत्ति ने दहशत बढ़ा दी। 4.7 तीव्रता के झटके का केंद्र तब बागेश्वर रहा लेकिन इसका असर तराई तक महसूस किया गया। यह उत्तराखंड के इतिहास में 5वां तगड़ा झटका था जो फरवरी में ही लगा। इससे इतर 2011 में 09 की भांति पुनरावृत्ति नहीं हुई। तब फरवरी के बजाय 4 अप्रैल को शाम 5.02 बजे जोरदार भूकंप आया। इसका केंद्र भारत-नेपाल सीमा पर था और रिक्टर स्केल पर तीव्रता 5.7 आंकी गई। इसका असर सीमांत पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल के साथ टनकपुर से लगा तराई तक रहा। इन आंकड़ों के आधार पर माना जा रहा है कि 2012 में भूकंपीय हलचल इतिहास दोहरा सकती है।