Author Topic: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार  (Read 153185 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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छोलिया दल कोरिया जाएगा

दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में सितंबर में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह में पिथौरागढ़ का छोलिया दल शामिल होगा। पांच दिन तक इस जिले की सांस्कृतिक गतिविधियों का अध्ययन करने केबाद बेहद प्रभावित कियोंग सांग नेशनल यूनिवर्सिटी सियोल केप्रो. जुंग यून योंग ने यह जानकारी दी। दल के सदस्यों को बृहस्पतिवार को छोलिया महोत्सव समिति ने सम्मानित किया। दल के सदस्य कल शुक्रवार को स्वदेश लौट जाएंगे।
आज कोरियाई दल ने असुरचुला और सेरा गांव जाकर ऐतिहासिक स्थलों का निरीक्षण किया। इन स्थानों पर मौजूद प्राचीन कलाकृतियों के बारे में जानकारी हासिल की। बाद में नवोदय पर्वतीय कला केंद्र परिसर में कोरियाई दल के सदस्यों को छोलिया महोत्सव समिति के अध्यक्ष हेमराज बिष्ट ने प्रतीक चिन्ह और प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया। दल केसदस्यों ने झोड़ा, चांचरी, छपेली, हिलजात्रा के साथ-साथ छलिया नृत्य के बारे में गहराई से जानकारी हासिल की।
कोरियाई बालिकाओं ने छोलिया दलों की परंपरागत वेषभूषा पहनकर जमकर नृत्य किया। उनके इस प्रदर्शन को देखकर स्थानीय लोग हैरान रह गए।
प्रो. जुंग यून योंग ने बताया कि सितंबर में उनके देश की राजधानी सियोल में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सांस्कृतिक कार्यक्रम होने वाला है। उसमें पिथौरागढ़ के छोलिया दल को आमंत्रित किया जाएगा। प्रो. योंग केसाथ मोन बोंग सून, जुंग जे रिम, चोई के सू, जो सुंग बोन, ह्वांग डेल चूल, फ्यो मून युग, सुंग चुन हो और हुन सुन ही यहां पहुंचे हुए हैं। इनको नवोदय पर्वतीय कला केंद्र की नृत्य निर्देशक प्रियंका बिष्ट ने तमाम लोकनृत्यों के बारे में जानकारी दी। दल के सदस्यों को यहां पर छोलिया महोत्सव समिति के सचिव पवन जोशी, राकेश देवलाल, मनोज चौहान, हेम नरियाल, नवीन नरियाल, गोविंद सिंह बिष्ट आदि ने सहयोग दिया।

साभार : अमर उजाला

नवीन जोशी

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Re: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार
« Reply #31 on: February 11, 2012, 01:13:24 AM »
भूकंप के लिहाज से फरवरी संवेदनशील
दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा भूकंपीय लिहाज से सवंदेनशील फरवरी शोध का विषय बना हुआ है। इस महीने के अद्भुत संयोग से जुड़े अहम सवाल का जहां विज्ञानी जवाब तलाशने में जुटे हैं, वहीं भूगर्भीय हलचल की अप्रत्याशित पुनरावृत्ति को शोध का नया विषय भी माना जा रहा है। पांच साल के अचंभित करने वाले आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न शहरों की धरती फरवरी में करीब 30 बार डोल चुकी है। दरअसल, धरती की बुनियाद यानी भूगर्भीय प्लेटों (भं्रश) में घर्षण से असंतुलन के बाद भूकंप स्वाभाविक प्रक्रिया है। मगर एक ही माह के भीतर झटके आना अचरज का विषय है। वर्ष 2006 से 2010 तक की भूकंपीय हलचल पर नजर दौड़ाएं तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। पंतनगर विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञान विभाग के जुटाए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए डॉ.एचएस कुशवाहा कहते हैं, इस अवधि में छोटे-बड़े 30 झटके फरवरी में ही आए। यानी भूकंपीय दृष्टि से यह महीना संवेदनशील है। जहां तक अद्भुत व अप्रत्याशित इस महीने में झटकों का सवाल है एक फरवरी 06 को भारत-पाकिस्तान सीमा व जम्मू कश्मीर में भकूंप आया था। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 5 थी। इसी दिन भारत-चीन सीमा पर उत्तराखंड के पर्वतीय भूभाग में 5.2 तीव्रता वाले झटके आए। इसी साल 14 फरवरी को प्रदेश में फिर धरती डोली। इनके अलावा इसी अवधि में विभिन्न क्षेत्रों में छोटे-बड़े नौ और झटके आए थे। अगले वर्ष 5 फरवरी 07 को भूकंपीय हलचल की पुनरावृत्ति हुई। भारत-नेपाल सीमा से लगे पर्वतीय अंचल में भूकंप आया। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता हालांकि 3.7 रही। इसी वर्ष 27 फरवरी तक तमाम छोटे कंपनों के साथ देश के अन्य तीन शहरों में भी झटके आए थे। वर्ष 08 में 25 फरवरी को रोहतक (हरियाणा) के साथ ही कुमाऊं व गढ़वाल के पर्वतीय इलाकों में 3.7 तीव्रता ने इस आंकड़े का खुलासा किया। इस माह देश के कच्छ, गुजरात, जम्मू, राजस्थान समेत छह शहरों में धरती डोली थी। बकौल डॉ.कुशवाहा तब रुक-रुक कर सीमांत पिथौरागढ़ व गढ़वाल के कुछ इलाकों में छोटे भूकंप कई बार आए। इनकी तीव्रता हालांकि काफी कम थी। वर्ष 09 में भूगर्भीय हलचल की प्रवृति में बदलाव आया। फरवरी शांत रहा। यह बात दीगर है कि सीमांत पिथौरागढ़ में बेहद कम तीव्रता का असर रहा। मगर एक साल के अंतराल में 21 फरवरी 2010 को भूकंपीय हलचल की पुनरावृत्ति ने दहशत बढ़ा दी। 4.7 तीव्रता के झटके का केंद्र तब बागेश्वर रहा लेकिन इसका असर तराई तक महसूस किया गया। यह उत्तराखंड के इतिहास में 5वां तगड़ा झटका था जो फरवरी में ही लगा। इससे इतर 2011 में 09 की भांति पुनरावृत्ति नहीं हुई। तब फरवरी के बजाय 4 अप्रैल को शाम 5.02 बजे जोरदार भूकंप आया। इसका केंद्र भारत-नेपाल सीमा पर था और रिक्टर स्केल पर तीव्रता 5.7 आंकी गई। इसका असर सीमांत पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल के साथ टनकपुर से लगा तराई तक रहा। इन आंकड़ों के आधार पर माना जा रहा है कि 2012 में भूकंपीय हलचल इतिहास दोहरा सकती है।

नवीन जोशी

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Re: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार
« Reply #32 on: February 11, 2012, 01:18:39 AM »
http://rashtriyasahara.samaylive.com/epaperimages/1122012/1122012-md-dd-2/43333984.JPG
उत्तराखंड में निवेश पर पड़ा राजनीतिक अस्थिरता का असर
हरीश जोशी/एसएनबी, देहरादून। लगभग 6201.23 एकड़ क्षेत्रफल पर स्थापित औद्योगिक क्षेत्रों में 2003-2007 के बीच जिस रफ्तार से पूंजी निवेश हुआ, निकट के पांच वर्षो में इसकी गति मंद हुई। वर्ष 2007-2011 के बीच राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का पूंजी निवेश पर असर पड़ा है। हालांकि औद्योगिक पैकेज की समयावधि का न बढ़ना भी पूंजी निवेश में आढ़े आया, लेकिन पैकैज को इसलिए ज्यादा जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि पैकैज वर्ष 2010 में बंद हुआ जबकि निवेश पर इससे पहले भी असर पड़ा है। नवम्बर 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर नये राज्य के रूप में गठित यह भूभाग वास्तविक रूप से उद्योग शून्य क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। राज्य गठन के बाद भी आर्थिक विकास के लिए औद्योगिक विकास को प्रमुख संसाधन के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। औद्योगिक क्षेत्र में पर्याप्त निवेश के अवसर उपलब्ध नहीं थे, जिसका प्रमुख कारण अवस्थापना सुविधाओं की कमी होने से निवेशकों को आकषिर्त करना आसान नहीं था। पहली बार जनवरी 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य को विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज देने की घोषणा की। राज्य में विकसित औद्योगिक क्षेत्रों में देश के प्रतिष्ठित औद्योगिक समूहों द्वारा कई उत्पाद बनाए जा रहे हैं। अधिकतर औद्योगिक समूहों द्वारा अन्य राज्यों तथा विदेशों में भी अपनी इकाइयां स्थापित की गई हैं। औद्योगिक समूहों का मानना था कि उत्तराखंड औद्योगिक वातावरण के लिए सबसे उपयुक्त है। उद्योगों की भूमि के चयन तथा अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए वर्ष 2003 में सिडकुल का गठन किया गया। सिडकुल द्वारा अब तक देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर व पौड़ी (कोटद्वार) चारों औद्योगिक क्षेत्रों में 6201.23 एकड़ क्षेत्रफल में औद्योगिक इकाइयां विकसित की गई हैं। सिडकुल द्वारा अवस्थापना विकास कर पूंजी निवेशकों को पैकेज से मिलने वाली सभी सुविधाएं दी गई। यही वहज है कि वर्ष 2003 से अब तक हजारों की तादाद में छोटी-बड़ी इकाइयां राज्य में स्थापित हो चुकी हैं। इनमें प्रमुख रूप से टाटा, हिंदुस्तान लीवर, महेंद्रा एंड महेंद्रा, हीरो होंडा, एलजी, समसेंग, बजाज, होवेल्स आदि हैं। आंकड़ों के हिसाब से देहरादून में फार्मासिटी , सेलाकुई , आईटी पार्क सहस्रधारा रोड , हरिद्वार में एकीकृत ओैद्योगिक आस्थान बी एच ई एल , ऊधमसिंह नगर में एकीकृत औद्योगिक आस्थान पंतनगर व एल्डिको सिडकुल औद्योगिक आस्थान सितारगंज व विकास केंद्र सिगड्डी कोटद्वार (पौड़ी) में उद्योग स्थापित किए गए हैं। राज्य में उद्योगपतियों द्वारा पिछले 10 वर्ष में किए गए निवेश पर सरसरी नजर डालें तो हाल के पांच वर्ष निवेशकों ने उत्तराखंड में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसके पीछे राज्य में पिछले पांच वर्ष के दौरान राजनीतिक अस्थिरता को एक बड़ा कारण माना जा रहा है। उद्योगों से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि पूंजी निवेश के लिए राज्य में राजनीतिक स्थिरता बहुत जरूरी है। चूंकि इंडस्ट्री का काम काफी जोखिम भरा है इसलिए सरकार का सहयोग औद्योगिक माहौल को स्वस्थ बनाए रखने में बहुत जरूरी है। इस बारे में पूछे जाने पर उद्योग मंत्री बंशीधर भगत का कहना है कि औद्योगिक पैकेज न मिलने के कारण पूंजी निवेश बाधित हुआ है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं निवेशकों का यथावत हैं।

नवीन जोशी

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Re: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार
« Reply #33 on: February 12, 2012, 12:14:15 AM »
इस बार कुछ हद तक समय पर खिल रहा बुरांश
नैनीताल : अमूमन मार्च के प्रथम सप्ताह में जंगलों में सुर्ख लाल रंग के खिलने वाले बुरांश के फूल इस बार फरवरी में खिल गया है। ग्लोबल वार्मिग के चलते पिछले कुछ सालों से बुरांश का फूल दिसम्बर से ही खिलना शुरू हो जाता था, लेकिन इस बार बर्फवारी व वर्षा के बावजूद बुरांश कुछ पहले ही खिल गया। यहां ताकुला व हनुमानगढ़ी के पास इन दिनों जंगल सुर्ख लाल फूलों से पटा पड़ा है। हल्द्वानी मार्ग से नैनीताल आने वाले पर्यटकों के लिये यह फूल बेहद आकर्षण का केन्द्र होता है। कुमाऊं विवि वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रचार्य डा. ललित तिवारी के मुताबिक पिछले वर्षो में मौसम परिवर्तन के कारण जंगली फल व फूल दिसम्बर माह में खिलना शुरू हो जाते थे। इस बार बर्फबारी व वर्षा से मौसम में बदलाव आया है। लिहाजा बीते वर्षो की तुलना में इस बार एक माह बाद फूल खिला है, जो संतोषजनक बात है। आने वाले वर्षो में यदि जलवायु परिवर्तन नही हुआ तो फूल समय से ही खिलेंगे। यह पर्यटकों के लिए शुभ संकेत हैं जो स्थानीय व्यापारियों के लिए अच्छे संकेत हैं।

नवीन जोशी

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Re: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार
« Reply #34 on: February 12, 2012, 12:19:31 AM »
उत्तराखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार
हरिद्वार के विकास में लापरवाही पर कोर्ट सख्त
नई दिल्ली (एसएनबी)। धर्मनगरी हरिद्वार का नियोजित विकास न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को फटकारा है। अदालत में मास्टर प्लान- 2025 के मसौदे को पेश करने की राज्य सरकार की कवायद को सुप्रीम कोर्ट ने अपर्याप्त कहा। बेंच ने इस संबंध में दायर हलफनामे पर नाराजगी व्यक्त की। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह विस्तृत ब्यौरे के साथ दोबारा हलफनामा दायर करे। जस्टिस दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष याची उपेंद्र दत्त शर्मा के वकील ने कहा कि राज्य सरकार ने अपने जवाब में समूचा मास्टर प्लान दाखिल करने की बजाए सिर्फ नक्शा पेश किया है। केवल मानचित्र के जरिए मास्टर-प्लान को नहीं समझा जा सकता। बेंच का मत था कि हरिद्वार देश का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां प्रतिवर्ष लाखों लोग गंगा स्नान के लिए आते हैं। हरिद्वार के धार्मिक महत्व को समझते हुए राज्य सरकार को जिले के विकास के प्रति गंभीर होना चाहिए। प्रदेश सरकार समस्याओं का हल खोजने के बजाए उससे बच रही है। बेंच ने कहा कि राज्य सरकार को हरिद्वार की समस्याओं का पता होना चाहिए। समस्या पता होने पर ही उसका निराकरण किया जा सकता है। अदालत ने राज्य सरकार के हलफनामे पर असंतोष जताया.

नवीन जोशी

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Re: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार
« Reply #35 on: February 12, 2012, 12:22:24 AM »
फूलों से बढ़ सकती है आमदनी
पंतनगर : कृषि विशेषज्ञों के अनुसार तराई की भौगोलिक परिस्थिति फूलों की खेती के लिए उपयुक्त है। यहां के कृषक फूलों की खेती के माध्यम से अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। पंत विश्र्वविद्यालय के खनन फार्म में आयोजित कृषक प्रशिक्षण के दौरान वैज्ञानिकों ने कहा कि ग्लैडियोलस सहित कई पुष्प प्रजातियों की खेती के लिए तराई की भौगौलिक परिस्थितियां अनुकूल हैं। स्थानीय व विश्र्व बाजार में फूलों की मांग निरन्तर बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में फूलों की खेती कृषकों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया बन सकती है। हार्टिकल्चर टेक्नोलॉजी मिशन के अन्तर्गत संचालित महत्वपूर्ण पुष्प फसलों का प्रव‌र्द्धन, कटाई उपरान्त प्रबंधन, गतिशील प्रशिक्षण व प्रदर्शन विषयक परियोजना के तहत आयोजित प्रशिक्षण में मुख्य परियोजनाधिकारी डा. प्रभात कुमार ने ग्लैडियोलस की खेती को विशेष रूप से लाभकारी बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि बल्बों की रोपाई के समय में परिवर्तन करते हुए इसकी खेती से लम्बे समय तक आय प्राप्त करना संभव होगा। इसके अतिरिक्त डा. संतोष कुमार, डा. सत्य कुमार व डा. डीएस मिश्र आदि ने भी गुलाब, गेंदा सहित अन्य उपयोगी पुष्पों की खेती की वैज्ञानिक विधियों से कृषकों को अवगत कराया। इस अवसर पर वैज्ञानिकों द्वारा कृषकों की विभिन्न समस्याओं का समाधान भी किया गया।

नवीन जोशी

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Re: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार
« Reply #36 on: February 12, 2012, 11:50:29 PM »
चुनाव के बाद ‘गुम’ हो गये नेताजी
मतदान के बाद से जनसमस्याओं के झंडाबरदार हो गए अंतर्ध्यान [/b]
हल्द्वानी। मतदान क्या निपटा तमाम जनसमस्याएं भी सुलझ गई ! अब सब कुछ ठीक-ठाक है। चौंकिए नहीं, यह हम नहीं कह रहे बल्कि नेताओं का व्यवहार यही बयां कर रहा है। जनता की समस्याओं के झंडाबरदार नेता दिखाई नहीं दे रहे। बिजली-पानी की समस्या हो या सड़क-चिकित्सा और शिक्षा से जुड़े तमाम मुद्दे या फिर रोजमर्रा आने वाली समस्याएं नेता अक्सर इनको लेकर आवाज उठाते रहे हैं। धरना-प्रदर्शन, चक्काजाम, जुलूस-प्रदर्शन, पुतला दहन, सदन में जनता के नुमाइंदों और जिम्मेदार अधिकारियों के घिराव, आरोप- प्रत्यारोप समेत आंदोलन के तमाम रूप देखने को मिलते रहते हैं। जनता की समस्याओं का समाधान हो न हो, नेता इसे अपने पक्ष में भुनाने की हरसंभव कोशिश करते हैं। यह सिलसिला सालों से अनवरत चला आ रहा है। उत्तराखंड में चुनाव से पहले इसमें खासी तेजी आ गई थी। हर कोई दल जनता की समस्याओं को लेकर मैदान में कूदा हुआ था। हर नगर-कस्बे-गांव के गली-कूचे में जनसमस्याओं का बोलबाला था। नेता विपक्षियों के सिर इसका ठीकरा फोड़कर सभी समस्याओं के निस्तारण के लिए हंगामे पर आमादा थे। मतदान प्रक्रिया खत्म हुए पखवाड़ा बीत चुका है लेकिन इन दिनों कही से भी जनसमस्याओं को लेकर शोरशराबा देखने या सुनने में नहीं आ रहा है। इसे देखकर तो ऐसा लगता है कि अब सभी समस्याएं खत्म हो गई हैं लेकिन ऐसा है नहीं। दरअसल जनसमस्याओं के झंडाबरदार अंतरध्यान से हो गए हैं। नेताओं के सिर से अभी तक चुनाव की खुमारी नहीं उतरी है। रही सही कसर मतदान के गणित ने पूरी कर दी है। इन दिनों नेता जनता को उसी के हाल पर छोड़कर खुद की दुनिया में रमे हैं। नेताओं का यह रुख देखकर लोग हैरान हैं। चुनाव से पहले तक आगे-पीछे घूमने वाले इन नेताओं को जनता कोस रही है। नेताओं का चुनाव के बाद बदला-बदला यह व्यवहार लोगों को खासा खटक रहा है।

नवीन जोशी

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Re: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार
« Reply #37 on: February 13, 2012, 12:02:49 AM »
पहाड़ के गांवों के पहरेदार बने नेपाली
नैनीताल, जाका : पलायन की मार से जूझ रहे पहाड़ के गांवों में अब नेपाली मजदूर पहरेदार बनने लगे हैं। नेपाली मजदूरों के बिना गांवों में सड़क समेत अन्य निर्माण कार्यो कराना आसमान के तारे तोड़ने जैसा हो गया है। राज्य गठन के बाद भी बुनियादी सुविधाओं की कमी का कुप्रभाव सामने आने लगा है। नौकरी की चाहत ने जहां बेरोजगारों को घर छोड़ने पर विवश किया है तो घर में रह रहे बेरोजगार मेहनत मजदूरी करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में गांवों के विकास कार्य पूरी तरह नेपाली मजदूरों पर निर्भर हो गए हैं। नेपाल सीमा से सटे पिथौरागढ़ व चंपावत जिले के गांवों में नेपाली मजदूरों की आवक एकाएक बढ़ गई है। मेहनत मजदूरी करने पहुंचे नेपाली सपरिवार पहुंचे हैं और अस्थायी आशियाना बनाकर अथवा वीरान मकानों में रहकर गांवों को आबाद किए हुए हैं। दोनों जिलों में बड़े पैमाने पर सड़कों के अलावा अन्य निर्माण कार्य हो रहे हैं। गांवों में रह रहे अधिकांश नेपाली खेतीबाड़ी व अन्य घरेलू कार्यो में सहयोगी बन रहे हैं। समाज शास्त्री इस स्थिति को भविष्य के लिए खतरनाक मानते हैं। डीएसबी में समाज शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. भगवान बिष्ट कहते हैं पहाड़ के बेरोजगारों का मेहनत मजदूरी से जी चुराना शुभ संकेत नहीं हैं। नेपाली मजदूरों की आड़ में असामाजिक तत्व गांवों में आ सकते हैं। पहाड़ में मजदूरी का धंधा तो नेपालियों ने कब्जा लिया तो बढ़ई के काम में बिहारी मजदूरों के भवन निर्माण के कार्यो में हाथ आजमाने से पहाड़ परंपरागत शिल्पकारों को बेरोजगार की श्रेणी में ला खड़ा किया है।

नवीन जोशी

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Re: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार
« Reply #38 on: February 13, 2012, 12:07:25 AM »
कभी 80 कोटों में बंटी थी पाल राजाओं की राजधानी
गोविन्द भण्डारी, अस्कोट (डीडीहाट) उत्तराखंड के कुमाऊं का अस्कोट क्षेत्र आजादी से पूर्व पाल राजाओं की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध रहा है, लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि यहां पाल राजाओं से पूर्व 80 खस राजाओं का शासन था। खस राजाओं के 80 राज्यों (कोटों) में बंटा होने की वजह से ही इस पूरे क्षेत्र को अस्कोट नाम दिया गया। तेरहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में कुमाऊं के कत्यूर शासकों का राज्य छिन्न-भिन्न होने लगा। कत्यूर वंशज राज्य के यत्र-तत्र बंटवारे करने लगे। इस वंश के अंतिम सूर्यवंशी राजा ब्रंादेव के पोते अभयपाल की नजर सीमांत क्षेत्र में जा टिकी। उन दिनों यहां खस जाति के राजाओं का शासन था। तब यह पूरा क्षेत्र 80 छोटे-छोटे कोटों में बंटा था, जिनमें अलग अलग 80 खस राजा शासन करते थे। खस राजाओं में कोई शक्तिशाली शासक नहीं था। इसी का फायदा उठाते हुए 1279 में अभयपाल ने खस राजाओं के सभी 80 कोट अपने अधीन कर अस्कोट रियासत की नींव रखी। इतिहासकारों के मुताबिक प्रारंभ में पाल राजा बगड़ीहाट के समीप लखनपुर नामक स्थान पर रहते थे। कालांतर में पाल राजवंश ने वर्तमान अस्कोट कस्बे के मध्य में अपने एक भव्य महल का निर्माण कराया। यह महल राजशाही पर्यन्त देवल दरबार के नाम से प्रसिद्ध रहा और आज भी राजशाही के अमिट सबूत के तौर पर यहां विद्यमान है। 154 वर्षो तक बाधित रहा शासन सामान्यतया अस्कोट रियासत पर पाल राजाओं का शासनकाल 1279 से आजादी तक निरंतर माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। इतिहासकारों के मुताबिक 1588 में राजा रायपाल के गोपी ओझा द्वारा मारे जाने के बाद 154 वर्षो तक यहां पाल राजाओं का शासन बाधित रहा। वर्ष 1742 में राजा अच्छब पाल ने यहां पुन: शासन प्रारंभ किया।

नवीन जोशी

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Re: Uttarakhand News - उत्तराखंड समाचार
« Reply #39 on: February 13, 2012, 12:09:56 AM »
कभी थी शान, अब बचे सिर्फ निशान
गदरपुर (ऊधमसिंह नगर) : जहां कभी सियासत की बातें होती थीं, आज वहां परिन्दों का कोलाहल सुनाई देता है। जिस आलीशान जगह पर बैठना कभी शान समझा जाता था आज चारागाह बना हुआ है। बात हो रही है ब्रितानी हुकूमत के दौर में बने गवर्नमेंट इस्टेट के ऐतिहासिक डाक बंगले की। उपेक्षा के चलते अब यह महल खंडहर में तब्दील हो गया है। सरकारी तंत्र इस धरोहर को संजोए रखने में नाकाम साबित हुई है। यह बात दीगर है कि इस डाक बंगले में जवाहर लाल नेहरू से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी तक ठहर चुके हैं। किसी जमाने में कुमाऊं के चंद शासकों की रियासत रही गदरपुर के ऐतिहासिक डाक बंगले की स्थापना 1904 में गवर्नमेंट इस्टेट के पहले प्रशासक गिस्टर जेसी मैक्डोनाल्ड ने की थी। उसी दौर में समूचे तराई व गढ़वाल का नियंत्रण तराई एंड भाबर बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के आधीन था। इसी डाक बंगले में गवर्नर फौज के कप्तान कुमाऊं कमिश्नर व अंग्रेजी हुकूमत के आला अधिकारी सियासी मामलों पर चर्चा किया करते थे। सेमिनार व महत्वपूर्ण बैठकों के लिए भी डाक बंगले का उपयोग होता था। तराई कृषि समेत कई मामलों में संपन्न होने के कारण अंग्रेज गवर्नर को यहां की आबोहवा भा गयी। बताया जाता है कि सन् 1920 के करीब तराई में छह परगना गठित हुए। जिसमें गदरपुर भी शामिल था, तब इसे बुक्सौरा के नाम से जाना जाता था। यहां हिन्दुओं के साथ तुर्क व पठानों के भी गांव थे। सन् 1926 में इन परगनों को तराई एंड भाबर बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के नियंत्रण से हटाकर कुमाऊं कमिश्नर के सुपुर्द कर दिया गया। देश आजाद होने के बाद अंग्रेजों की धरोहर इस डाक बंगले को सिंचाई विभाग के हवाले कर निरीक्षण भवन बना दिया गया। हालांकि शुरूआती दौर में विभाग ने पूरा ध्यान रखा। इसकी देखरेख को स्टाफ भी नियुक्त किया। देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू सहित सरदार बल्लभ भाई पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद जैसी महान हस्तियां इस भवन में ठहर चुकी हैं। साथ ही पर्यटकों के लिए भी यह खासा आकर्षण का केंद्र रहा। सन् 1995 तक सब कुछ ठीक-ठाक रहा। उसके बाद हालात बिल्कुल उलट गये। आलीशान बंगला देखते-देखते खंडहर में तब्दील हो गया। उपेक्षा का दंश झेल रहे इस डाक बंगले पर किसी भी मंत्री व जनप्रतिनिधियों की नजरें इनायत नहीं हुई और न ही इसकी दुर्दशा को देख अधिकारियों का दिल पसीजा। कभी उच्च पदस्थ लोगों की आरामगाह रहा डाक बंगला विभागीय उपेक्षा के चलते पूर्णरूपेण ध्वस्त हो चुका है। समय रहते शासन व प्रशासन नहीं चेता तो ब्रितानी हुकूमत की शान रहा डाक बंगला इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जायेगा।

 

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