Author Topic: उत्तराखण्ड की भोटिया जनजाति : Bhotiyas, Resident of High Altitude Himalayas  (Read 33498 times)

हेम पन्त

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An old photo of a Bhotia woman, wearing her traditional dress. This photo was taken in 1938



Source : oldindianphotos.blogspot.com


हेम पन्त

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रं समुदाय के लोगों ने इन्टरनेट के माध्यम से एकजुट होने के उद्देश्य से एक सुन्दर Community Website बनायी है-

www.RungMung.net

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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tabhi to kahate hai ki bharat vibhinn paramparawo ka desh hai.

हेम पन्त

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मुनस्यारी में लोकनृत्य
 

धनेश कोठारी

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hem ji ye shriman Dhachula ke nahi balki Simant maana ka purv pradhan ps molfa hain,
हमारे सदस्य जखी जी द्वारा कुछ दिनों पूर्व फोरम में यह जानकारी उपलब्ध करायी गई थी



एक भोटिया बन्धु धारचुला में हथ-करघा द्वारा स्वनिर्मित दन (कालीन) बेचता हुआ


ऊनी कपड़े भोटिया समुदाय: जाध, तोलचा और मारचा द्वारा बनाये जाते हैं। ये खानाबदोश लोग अप्रैल से अगस्त तक भारत-तिब्बत सीमा के ऊंचे पठारों पर अपनी भेड़ें चराते हैं। अत्यन्त ठण्डे मौसम की वजह से भेड़ों पर उच्च कोटि की ऊन आती है, जिसे अगस्त और सितम्बर में काटा जाता है।
 ऊन को महिलाएं हाथ से साफ कर धोती और रंगती हैं और फिर निचले प्रदेश में भोटिया समुदाय के शीतकालीन पड़ाव पर पुरूष और महिलाएं मिलकर उसे हाथ से कातती और बुनती हैं। ऊन के रंग भेड़ों के स्वाभाविक फाइबर जैसे भूरे, काले और ऑफ व्हाइट होते हैं। भूरे और रंग के गहरे शेड बनाने के लिए अखरोट की छाल से बनी डाई का इस्तेमाल किया जाता है और डार्क और लाइट ग्रे रंग तैयार करने के लिए ब्लैक और ऑफ व्हाइट को मिलाया जाता है।
खुलिया नामक स्थानीय पौधों की जड़ों से भी ऊन की स्वाभाविक रंगाई की जाती है जिससे कॉपर सल्फेट या नमक जैसे विलिन पदार्थ मिलाने से अलग-अलग रंग आते हैं। भोटिया गांवों में हर घर में महिलाएं करघे पर व्यस्त देखी जा सकती हैं।


हेम पन्त

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कोठारी जी क्षमा चाहूंगा. जखी जी वाली जानकारी को ही मैने आगे बढा दिया था.

त्रुटि सही करने के लिये धन्यवाद, वैसे पी.एस. मोल्फा जी भी भोटिया जनजाति के ही होंगे शायद?

धनेश कोठारी

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ji han mana mein bhi Bhotiya janjati hi niwas karti hai,
कोठारी जी क्षमा चाहूंगा. जखी जी वाली जानकारी को ही मैने आगे बढा दिया था.

त्रुटि सही करने के लिये धन्यवाद, वैसे पी.एस. मोल्फा जी भी भोटिया जनजाति के ही होंगे शायद?

हेम पन्त

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भोट प्रदेश का गर्ब्यांग गांव अब लगभग खाली हो चुका है. तिब्बत से व्यापार के वैभवशाली दिनों में इस गांव में काफी चहल-पहल हुआ करती थी. लेकिन पलायन की चोट इस गांव ने भी झेली और अब इस गांव के मूल निवासी "गर्ब्याल" लोग देश के विभिन्न कोनों में फैल गये हैं.
 

Devbhoomi,Uttarakhand

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 उत्तराखंड के  कुमाऊं क्षेत्र का सबसे प्रमुख जनजाति भोटिया (पिथौरागढ़ का शौकस) है। भोटिया शब्द बो से बना है जिसका तिब्बतन भाषा में अर्थ होता है तिब्बत। भोटिया प्रायः ऊंची हिमालय भूमि पर रहता है (कुमाऊं का उत्तरी एवं उत्तरी-पूर्वी भाग में), तिब्बत सीमा के पास। भोटिया का शारीरिक बनावट तिब्बत के लोगों की तरह होता है।

 कुमाऊं क्षेत्र में भोटिया पिथौरागढ़ के धारचुला के आसपास रहते हैं। कुमाऊं में रहने वाले भोटिया की जनजाति शौका जनजाति से आते हैं इसलिए इन्हें शौकस कहते हैं। भोटिया के अन्य दो जनजाति हैं (जाढ और मारचस/टोलचस) प्रायः हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में रहते हैं।

 जाढ़ उत्तरकाशी के क्षेत्रों में तथा मारचस (व्यापारी) एवं टोलचस (किसान) चमोली के क्षेत्रों में रहते हैं। शौकस हिन्दू-बौद्ध धार्मिक परंपरा का अनुसरण करता है और अपने उत्सवों एवं रीति-रिवाजों के लिए लामा पर विश्वास करता है। कुमाऊं के हिन्दुओं में भोटिया सबसे प्रबल जाति है।

 

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