संकट में देवभूमि के राज्य पक्षी का जीवन, प्रदेशभर में महज 919 पर सिमटी तादाद
खुद के संरक्षण की गुहार लगा रहा मोनाल
‘स्पेशल ब्रीडिंग के लिए फिलहाल राज्य में कहीं भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है। क्योंकि ऊंचाई में जहां मोनाल का प्रजनन होता है, वह इलाके ब्रीडिंग केलिए अनुकूल हैं। राज्य पक्षी को संरक्षित करने के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बसे लोगों को आगे आना चाहिए। इनका शिकार न किया जाए तो मोनाल की संख्या बढ़ेगी।
मनोज चंद्रन, उप वन संरक्षक (कार्ययोजना), पिथौरागढ़
• शमशेर सिंह नेगी
पिथौरागढ़। कहने को वह राज्य पक्षी है। लेकिन उसके संरक्षण की प्रदेश सरकार को कोई परवाह नहीं। यही वजह है कि आज राज्य पक्षी मोनाल की संख्या सिमट कर सिर्फ 919 रह गई है। सिंधु सतह से करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर पाए जाने वाले इस पक्षी का जीवन संकट में है।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत दुर्लभ घोषित मोनाल को उत्तराखंड मेंराज्य पक्षी का दर्जा दिया गया है। लेकिन अफसोस, राज्य गठन के साढ़े दस साल बाद भी इसके संरक्षण के लिए कोई ठोस योजना नहीं बन पाई। बेशक, गढ़वाल के कांचुलाखर्क में मोनाल का ब्रीडिंग सेंटर बनाने का प्रयास हुआ पर यह कोशिश सफल नहीं हो पाई।
हिमालयी रेंज के सबसे खूबसूरत पक्षियों में एक मोनाल (जंतु वैज्ञानिक नाम-लोफोफोरस इंपेजानस) आमतौर पर नौ हजार फीट की ऊंचाई तक उतरता है। इस पर शिकारियों की नजर तो रहती ही है साथ में मांसाहारी पक्षी भी मोनाल के लिए आफत हैं। अक्तूबर में अंडों से मोनाल के बच्चे बाहर आते हैं और इसी वक्त इसके जीवन पर संकट की घड़ी आती है। जनवरी से मार्च तक प्रजनन की समाप्ति के बाद जब मादा मोनाल जुलाई में अंडे देती है तो मांसाहारी पक्षी घोंसलों में रखे अंडों को विकसित होने से पहले ही नष्ट कर देते हैं। बुग्यालों, छोटे बुरांश तथा रिंगाल के जंगलों में ही इसकी ब्रीडिंग होती है। इन्हीं जंगलों में अक्तूबर तक घोंसले बनाकर मादा मोनाल अंडों को विकसित करती है। मुनस्यारी के बुग्यालों में इस समय झुंड में मोनाल के दीदार होने लगे हैं। क्योंकि इसी समय अंडों से बच्चे निकलते हैं।
राज्य गठन के बाद जब हिमालय के इस पक्षी को राज्य पक्षी घोषित किया गया तो 2008 में पहली बार इनकी गणना शुरू हुई। तब सिर्फ केदारनाथ में ही सर्वाधिक 367 मोनाल देखे गए। उत्तरकाशी, मंसूरी, केदारनाथ, पिथौरागढ़, टिहरी, बदरीनाथ, रामनगर, पौड़ी और बागेश्वर आदि के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी ये देखे जा सकते हैं। हालांकि इनकी संख्या में कमी के पीछे जलवायु परिवर्तन को बड़ा कारण माना जा रहा है।
वन विभाग के अधिकारी मानते हैं कि हिमालय की तलहटी में जहां मोनाल का बसेरा है, वहां बर्फबारी कम होने से इसके जीवन के लिए मौसम प्रतिकूल हो रहा है। जब ये बुग्यालों की तरफ आते हैं तो शिकारियों की नजरें इन पर पड़ जाती हैं। 2008 के बाद से दोबारा इसकी गिनती नहीं हुई है और वन विभाग के रिकॉर्ड में राज्यभर में अभी सिर्फ 919 मोनाल हैं।
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