http://buraansh.blogspot.com/राकेश परमार
दोस्तों अपने बारे में क्या कहूं। टिहरी में भागीरथी से एक छोटी सी नदी मिलती है भिलंगना। इसी नदी के किनारे एक छोटे से गांव में पैदाइश हुई। बचपन के कुछ दिन वहां बीते। गंगा और यमुना की घाटी में बसे देहरादून में होश संभाला। लिखने-पढ़ने का शौक शुरू से था। कॉलेज के आखिरी दिनों में पत्रकारिता का चस्का लगा। भारतीय जनसंचार संस्थान में दाखिला मिला तो, यमुना तीरे बसे दिल्ली का रुख कर लिया। पहले कुछ दिन सहारा और फिर अमर उजाला में काम किया। ...लेकिन शायद दिल्ली वालों को मैं रास नहीं आया। सो बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ा। यमुना के किनारे-किनारे आगरा आ पहुंचा हूं। दिल्ली की चकाचौंध से दूर बहुत कुछ है आगरा में। ताजमहल तो है ही, बेड़ई का स्वाद है, गालिब और नजीर हैं, ब्रज की रंगत है और हां चंबल के बीहड़ भी। ...तो सफर जारी है दोस्तों।