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Braham Kamal Flower found in Uttarkahand-ब्रहमा जी का फूल ब्रहमकमल

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विनोद सिंह गढ़िया:
ब्रह्मकमल एक प्रकार के अद्वितीय फूल का नाम है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण पश्चिम चीन में पाया जाता है। जैसे कि नाम से ही विदित है, ब्रह्म कमल नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा जी के नाम पर रखा गया है। इसे Saussurea Obvallata के नाम से भी जाना जाता है।

कहा जाता है कि ब्रह्म कमल के पौधों में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। अपने इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
" ब्रह्मकमल "    ब्रह्मकमल का अर्थ है ‘ब्रह्मा का कमल’। यह माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है । तालाबों या पानी के पास नहीं बल्कि ज़मीन पर होता है। ब्रह्मकमल 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है। ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प है। और इसकी भारत में लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में ही होती हैं। ब्रह्मकमल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह एसटेरेसी वंश का पौंधा है। इसका नाम स्वीडर के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि जगहों में इसे आसानी से पाया जा सकता है। इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं। इस के राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है। यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है। गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है। इस फूल की धार्मिक मान्यता भी बहुत हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है । इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है!

(Source-http://khabaronkiduniyaraipur.blogspot.com)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
 हिमालय में खिलने वाला अद्वितीय फूल - ब्रह्मकमल!    10:52 AM जी.के. अवधिया 5 comments   Email This  BlogThis!  Share to Twitter  Share to Facebook        ब्रह्म कमल एक प्रकार के अद्वितीय फूल का नाम है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण पश्चिम चीन में पाया जाता है। जैसे कि नाम से ही विदित है, ब्रह्म कमल नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा जी के नाम पर रखा गया है। इसे Saussurea obvallata के नाम से भी जाना जाता है।
 
 कहा जाता है कि ब्रह्म कमल के पौधों में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। अपने इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। (http://dhankedeshme.blogspot.com)




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
New about Brahma Flower.
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17000 फीट की ऊंचाई से लाए ब्रह्मकमल
Story Update : Tuesday, September 06, 2011    12:01 AM

नाचनी (पिथौरागढ़)। सदियों से चली आ रही परंपरा को निभाते हुए 35 किमी की कठिन डगर पार कर 17000 फीट की उंचाई पर स्थित हीरामणि कुंड से राज्य पुष्प ब्रह्मकमल लाकर मां नंदा को अर्पित किया गया। ब्रह्मकमल हर तीसरे साल नंदादेवी पर्वत शृंखला से लाया जाता है।

भाद्र शुक्लपक्ष में होने वाला नंदा महोत्सव मुनस्यारी क्षेत्र में विशिष्ट तरीके से मनाया जाता है। परंपरा के अनुसार सैणराथी, डोर, गिरगांव, गौला आदि गांवों केलोग भाद्र शुक्लपक्ष की चतुर्थी अथवा पंचमी को पूर्ण शुद्धि के साथ हीरामणि कुंड को रवाना होते हैं। थलठौक नामक स्थान पर पहला पड़ाव डाला जाता है। दूसरे दिन लोग हीरामणि कुंड के लिए रवाना होते हैं। हीरामणि कुंड पहुंचकर शुद्ध वस्त्र धारण कर कुंड की पूजा के बाद स्नान किया जाता है। उसके बाद ब्रह्मकमल तोड़े जाते हैं। रिंगाल केडंडों में पुष्प को बांधकर थलठौक पड़ाव के लिए रवाना हो जाते हैं।
उस दिन अर्थात षष्टी तिथि को थलठौक में बने अस्थाई पड़ाव में रुकते हैं। इस दौरान सभी लोगों का मौनव्रत रहता है। सप्तमी तिथि को थलठौक से गांवों के लिए यह लोग रवाना होते हैं। रविवार की शाम को ब्रह्मकमल लेकर आए दल गांवों में पहुंचे। सोमवार भाद्र शुक्लपक्ष की अष्टमी को लोगों ने अपने घरों में स्थित मां नंदा के मंदिरों में ब्रह्मकमल चढ़ाया। ब्रह्मकमल लाने गए डोर निवासी 66 साल के बुजुर्ग कुमेर सिंह, देव डांगर दीवान सिंह राणा और ग्राम प्रधान गंगा सिंह राणा ने बताया कि ब्रह्मकमल यात्रा में शुद्ध आचरण का विशेष महत्व बताते हुए कहते हैं कि मां नंदा को ब्रह्मकमल काफी प्रिय हैं।

विनोद सिंह गढ़िया:

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