Author Topic: Chamoli,the Land of Forts. Uttarakhand,उत्तराखंड की गढ़ भूमि चमोली  (Read 20905 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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चमोली गढ़वाल (जिसका शाब्दिक अर्थ होता है गढ़  वाली भूमि) मंडल का एक जनपद है। आज का गढ़वाल पहले केदार-खंड के नाम से  जाना जाता था। हिन्दू के धार्मिक ग्रंथों जैसे पुराण आदि में केदार खंड को  देवताओं का निवास-स्थल माना जाता है।


 ऐसा कहा जाता है कि हिन्दू धार्मिक  ग्रंथ जैसे- वेद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि केदार खंड में ही रचे गए।  ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश ने वेद की रचना बद्रीनाथ से मात्र चार  किलोमीटर दूर माना गांव के व्यास गुफा में की।


ऋग्वेद के अनुसार,  जलप्रलय के बाद सप्तऋषि अपनी जान इसी माना गांव में रहकर बचाते है। वैदिक  भाषा की उत्पत्ति गढ़वाल ही समझी जाती है क्योंकि गढ़वाली भाषा में ढ़ेर  सारे शब्द संस्कृत से मिलते हैं।


वैदिक ऋषियों का आवास चमोली के प्रमुख  पवित्र स्थानों में है- अत्रि मुनि आश्रम चमोली शहर से लगभग 25 किलोमीटर  दूर अनुसूया में और कश्यप ऋषि आश्रम बद्रीनाथ के निकट गंधमदन पर्वत पर। इस  जिला में बद्रीनाथ मंदिर आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गय़ा।



आदि  पुराण के अनुसार, वेदव्यास ने महाभारत की कहानी बद्रीनाथ के निकट व्यास  गुफा में रची थी। पांडुकेश्वर, जो एक छोटा सा गांव है, पांडु की तपस्थली  माना जाता है, ऋषिकेश-बद्रीनाथ उच्च मार्ग पर स्थित है।


हेमकुंड  सिक्खों के लिए पवित्र धार्मिक स्थान है जिनका मानना है कि गुरु गोविन्द  सिंह यहां रह चुके हैं। उनकी याद में हेमकुंड में एक गुरुद्वारा की  स्थापना की गई है। हेमकुंड के पास ही फूलों वाली मनोहर घाटी भी स्थित है।




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1960 तक चमोली कुमाऊं के पौरी जनपद का एक  तहसील था। 24 फरबरी 1960 को इसे एक अलग जनपद का दर्जा मिला। इसके अंतर्गत  गढ़वाल प्रदेश का उत्तरी-पूर्वी भाग है। यह मध्य हिमालय के बर्फीले  क्षेत्र में स्थित है, पुरानी पुस्तकों में यह बाहिरगिरि, हिमालय पर्वत के  तीन खंडों में से एक, के नाम से वर्णित है।


अक्टूबर 1997 में चमोली जनपद  के दो पूरा तहसील और दो अन्य विकासखंड (आंशिक) एक नए जनपद रुद्रप्रयाग में  जोड़ दिया गया है। चमोली के उत्तर-पश्चिम में उत्तरकाशी, दक्षिण-पश्चिम  में पिथौरागढ़, दक्षिण-पूरब में अल्मोरा, दक्षिण-पश्चिम में रुद्रप्रयाग  और पश्चिम में टेहरी-गढ़वाल है। जनपद का भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 7520  वर्गकिमी है।

वर्तमान में जनपद में 1233 राजस्व ग्राम, 9 विकासखंड,  6 तहसील, 6 शहरी क्षेत्र, 39 न्याय पंचायत, 552 ग्राम पंचायत और 5 थाना  है। 2001 की जनगणना के अनुसार, जनपद की जनसंख्या 370359 थी जिसमें पुरुषों  की संख्या 183,745 एवं महिलाओं की संख्या 186,614 थी।


जनपद में ग्रामीण  क्षेत्र की कुल जनसंख्या 319656 है जिसमें 154197 पुरुष तथा 165459  महिलाएं हैं। जनपद के नगरीय क्षेत्र की जनसंख्या 50703 है जिसमें पुरुष  29548 तथा महिलाएं 21155 है। इस प्रकार कुल जनसंख्या का 86.30 प्रतिशत लोग  गांवों में तथा शेष 13.70 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं।



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   The authentic script about the history of Garhwal is found  only 6th A.D on word. Some of the oldest example of there are the trishul in Gopeshwar, lalitsur in Pandukeshwar .The Narvaman rock script in siroli the chand pur Gari  rock script by king Kankpal authentitcates   the history and culture of Garhwal.

         Some Historian and scientist believe that this land is origin of Arya
] race. It is believed that about 300B.C. Khasa invaded Garhwal through Kashmir Nepal and Kuman.  A conflict grew due to this invasion a conflict took place between these outsiders and  natives .The natives for their protection builded small forts  called “Garhi’’.

 Later on Khasa  defeated the native totally and captured the forts.
After Khasa], Kshatiya invaded this land and  defeated Khasa accomplished their regime. They confined Garhwal of hundreds of Garhi in to  fifty-two Garhi only.

 One kantura  vashudev general of kshatriya established his regime on the northern border of garhwal and founded his capital   in joshimath  then Kartikeypur vashudev katyuri was the founder of katyura  dynasty  in Garhwaland they reign Garhwal  over hundreds of years in this period of katyuri regime Aadi-Guru Sankaracharya visited garhwal and established Jyotrimath which  is one of the four famous Peeths established by Aadi-Guru Sankaracharya. In Bharat varsh other these are Dwarika , Puri  and Sringeri.


 He also reinstated idol of lord Badrinath in Badrinath, before this the  idol of Badrinath was hidden in Narad-Kund  by the fear of Budhas. After this ethicist  of vaidic cult started to pilgrim Badrinath.        

 According to Pt.Harikrishna
Raturi  king Bhanu pratap was the first  ruler of Panwar dynasty in garhwal  who founded chanpur-Garhi as his capital. This was is  strongest Garh for the fifty- two garhs  of garhwal.


         The devastating earthquake of 8th September 1803 weakened the economic and  administrative set up of Garhwal
state. Taking advantage of  the situation Gorkhas attacked Garhwal  under the command of Amar Singh Thapa  and Hastidal Chanturia. They  established there reign over half of the Garhwal in 1804 up to  1815 this region remain under Gorkha rule.   

http://chamoli.nic.in/history.htm

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ओली जो  चमोली की पहचान है,औली में प्रकृति ने अपने सौन्दर्य को खुल कर बिखेरा है। बर्फ से ढकी  चोटियों और ढलानों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। यहां पर कपास जैसी  मुलायम बर्फ पड़ती है और पर्यटक खासकर बच्चे इस बर्फ में खूब खेलते हैं।  स्थानीय लोग जोशीमठ और औली के बीच केबल कार स्थापित करना चाहते हैं।

जिससे  आने-जाने में सुविधा हो और समय की भी बचत हो। इस केबल कार को बलतु और  देवदार के जंगलो के ऊपर से बनाया जाएगा। यात्रा करते समय आपको गहरी  ढ़लानों और ऊंची चढाई चढ़नी पड़तीं है। यहां पर सबसे गहरी ढलान 1,640 फुट  पर और सबसे ऊंची चढा़ई 2,620 फुट पर है। पैदल यात्रा के अलावा यहां पर  चेयर लिफ्ट का विकल्प भी है।




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जिंदादिल लोगों के लिए औली बहुत ही आदर्श स्थान है। यहां पर बर्फ गाडी़ और स्लेज आदि की व्यवस्था नहीं है। यहां पर केवल स्किंग और केवल स्किंग की जा सकती है। इसके अलावा यहां पर अनेक सुन्दर दृश्यों का आनंद भी लिया जा सकता है।

नंदा देवी के पीछे सूर्योदय देखना एक बहुत ही सुखद अनुभव है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान यहां से 41 किमी. दूर है। इसके अलावा बर्फ गिरना और रात में खुले आकाश को देखना मन को प्रसन्न कर देता है। शहर की भागती-दौड़ती जिंदगी से दूर औली एक बहुत ही बेहतरीन पर्यटक स्थल है।



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औली बहुत ही विषम परिस्थितियों वाला पर्यटक स्थल है। यहां घूमने के लिए पर्यटकों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि औली आने से पहले शारीरिक व्यायाम करें और रोज दौड लगाएं। औली में बहुत ठंड पडती है। यहां पर ठीक रहने और सर्दी से बचने के लिए उच्च गुणवत्ता के गर्म कपडे पहनना बहुत आवश्यक है। गर्म कपडों में कोट, जैकेट, दस्ताने, गर्म पैंट और जुराबें होनी बहुत आवश्यक है। इन सबके अलावा अच्छे जूते होना भी बहुत जरुरी है।

 घूमते समय सिर और कान पूरी और अच्छी तरह से ढ़के होने चाहिए। आंखो को बचाने के लिए चश्में का प्रयोग करना चाहिए। यह सामान जी.एम.वी.एन. के कार्यालय से किराए पर भी लिए जा सकते हैं। जैसे-जैसे आप पहाडों पर चढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे पराबैंगनी किरणों का प्रभाव बढता जाता है। यह किरणों आंखों के लिए बहुत हानिकारक होती है। इनसे बचाव बहुत जरूरी है। अत: यात्रा पर जाते समय विशेषकर बच्चों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले चश्मे का होना बहुत जरूरी है। वहां पर ठंड बहुत पडती है। अत्यअधिक ठंड के कारण त्वचा रूखी हो जाती है। त्वचा को रूखी होने से बचाने के लिए विशेषकर होंठो पर एस.पी.अफ बाम का प्रयोग करना चाहिए।
ठंड मे ज्यादा देर रहने से शरीर की नमी उड जाती है और निर्जलीकरण की समस्या आमतौर पर सामने आती है। इस समस्या से बचने के लिए खूब पानी पीना चाहिए और जूस का सेवन करना चाहिए। अपने साथ पानी की बोतल रखना लाभकारी है। शराब और कैफीन का प्रयोग न करें। बर्फ में हानिकारक कीटाणु होते हैं जो आपके स्वास्थ्य और शरीर को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। अत: बर्फ को खाने का प्रयास न करें।



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