Author Topic: Dehradun Capital of Uttarakhand-देहरादून, उत्तराखण्ड की राजधानी(अस्थाई)  (Read 41811 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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                                              देहरादून के दर्शनीय स्थल
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देहरादून एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ एक ओर नगर की सीमा में टपकेश्वर मंदिर, मालसी डियर पार्क, कलंगा स्मारक, लक्ष्मण सिद्ध, चंद्रबाणी, साईंदरबार, गुच्छूपानी, वन अनुसंधान संस्थान, तपोवन, संतोलादेवी मंदिर, तथा वाडिया संस्थान जैसे दर्शनीय स्थल हैं।

 तो दूसरी और नगर से दूर पहाड़ियों पर भी अनेक दर्शनीय स्थल हैं। देहरादून जिले के पर्यटन स्थलों को आमतौर पर चार-पाँच भागों में बाँटा जा सकता है- प्राकृतिक सुषमा, खेलकूद, तीर्थस्थल, पशुपक्षियों के अभयारण्य, ऐतिहासिक महत्व के संग्रहालय और संस्थान तथा मनोरंजन। देहरादून में इन सभी का आनंद एकसाथ लिया जा सकता है।

 देहरादून की समीपवर्ती पहाड़ियाँ जो अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए जानी जाती हैं, मंदिर जो आस्था के आयाम हैं, अभयारण्य जो पशु-पक्षी के प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, रैफ्टिंग और ट्रैकिंग जो पहाड़ी नदी के तेज़ बहाव के साथ बहने व पहाड़ियों पर चढ़ने के खेल है और मनोरंजन स्थल जो आधुनिक तकनीक से बनाए गए अम्यूजमेंट पार्क हैं, यह सभी देहरादून में हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मसूरी, सहस्रधारा, चकराता,लाखामंडल तथा डाकपत्थर की यात्रा की जा सकती है।

संतौरादेवी तथा टपकेश्वर के प्रसिद्ध मंदिर यहाँ पर हैं, राजाजी नेशनल पार्क तथा मालसी हिरण पार्क जैसे प्रसिद्ध अभयारण्य हैं, ट्रैकिंग तथा रैफ्टिंग की सुविधा है, फ़न एंड फ़ूड तथा फ़न वैली जैसे मनोरंजन पार्क हैं तथा इतिहास और शिक्षा से प्रेम रखने वालों के लिए संग्रहालय और संस्थान हैं।

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वन अनुसंधान संस्थान,dehradun



देहरादून शहर में घंटाघर से ७ कि.मी. दूर देहरादून-चकराता मोटर-योग्य मार्ग पर स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान भारत का सबसे बड़ा वन आधारित प्रशिक्षण संस्थान है। भारत के अधिकांश वन अधिकारी इसी संस्थान से आते हैं। वन अनुसंधान संस्थान का भवन बहुत शानदार है तथा इसमें एक संग्रहालय भी है।

इसकी स्थापना १९०६ में इंपीरियल फोरेस्ट इंस्टीट्यूट के रूप में की गई थी। यह इंडियन काउंसिल ऑफ फोरेस्ट रिसर्च एंड एडूकेशन के अंतर्गत एक प्रमुख संस्थान है। इसकी शैली ग्रीक-रोमन वास्तुकला है और इसके मुख्य भवन को राष्ट्रीय विरासत घोषित किया जा चुका है। इसका उद्घघाटन १९२१ में किया गया था और यह वन से संबंधित हर प्रकार के अनुसंधान के लिए में प्रसिद्ध है।



एशिया में अपनी तरह के इकलौते संस्थान के रूप में यह दुनिया भर में प्रख्यात है। २००० एकड़ में फैला एफआरआई का डिजाइन विलियम लुटयंस द्वारा किया गया था। इसमें ७ संग्रहालय हैं और तिब्बत से लेकर सिंगापुर तक सभी तरह के पेड़-पौधे यहां पर हैं। तभी तो इसे देहरादून की पहचान और गौरव कहा जाता है।

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वन अनुसंधान संस्थान :देहरादून


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देहरादून पहुँचाने के रास्ते

देहरादून किसी भी मौसम में जाया जा सकता है लेकिन सितंबर-अक्तूबर और मार्च-अप्रैल का मौसम यहाँ जाने के लिए सबसे उपयुक्त है। यहाँ पहुँचने के लिए बहुत से विकल्प हैं।

    * वायुमार्ग- दिल्ली से इंडियन एयरलाइंस की सप्ताह में पाँच फ्लाइट जोली ग्रांट हवाई अड्डे तक के लिए जाती है। यह हवाई अड्डा देहरादून २५ किमी की दूरी पर स्थित है
    * रेल- देहरादून देश के सभी प्रमुख स्टेशनों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ, वाराणसी समेत सभी बड़े शहरों से जुडा हुआ है। यहां आने के लिए शताब्दी, मसूरी एक्सप्रेस, दून एक्सप्रेस जैसी तीव्र गति की रेलगाड़ियाँ उपलब्ध हैं।
    * सड़क- सड़क मार्ग से देहरादून देश के सभी भागों से सभी मौसमों में जु़डा हुआ है।

दिल्ली से देहरादून का सड़क से सफर पूरी तरह सुविधाजनक है और डीलक्स बस आसानी से उपलब्ध है। यहाँ पर दो बस स्टैंड हैं- देहरादून और दिल्ली। शिमला और मसूरी के बीच डिलक्स/ सेमी डिलक्स बस सेवा उपलब्ध है।

 ये बसें क्लेमेंट टाउन के नजदीक स्थित अंतरराज्यीय बस टर्मिनस से चलती हैं। दिल्ली के गांधी रोड बस स्टैंड से एसी डिलक्स बसें (वोल्वो) भी चलती हैं। यह सेवा हाल में ही यूएएसआरटीसी द्वारा शुरू की गई है।

 आईएसबीटी, देहरादून से मसूरी के लिए हर 15 से 70 मिनट के अंतराल पर बसें चलती हैं। इस सेवा का संचालन यूएएसआरटीसी द्वारा किया जाता है। देहरादून और उसके पड़ोसी केंद्रों के बीच भी नियमित रूप से बस सेवा उपलब्ध है।

इसके आसपास के गांवों से भी बसें चलती हैं। ये सभी बसें परेड ग्राउंड स्थित स्थानीय बस स्टैड से चलती हैं। कुछ प्रमुख जगहों से यहाँ की दूरी- दिल्ली २५५ किमी, हरिद्वार-५४ किमी, ऋषिकेश-४२ किमी, आगरा-३८२ किमी, शिमला-२२१ किमी, यमुनोत्री-२७९ किमी, केदारनाथ-२७० किमी, नैनीताल-२९७ किमी।


http://hi.wikipedia.org

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इंडियन मिलिटरी एकेडमी,Dehradun




एफआरआई (देहरादून) से 3 कि.मी. आगे देहरादून-तकराता मार्ग पर 8 कि.मी. की दूरी पर स्थित इंडियन मिलिटरी एकेडमी सेना अधिकारियों के प्रशिक्षण का एक प्रमुख संस्थान है। एकेडमी में स्थित म्यूजियम, पुस्तकालय, युद्ध स्मारक, गोला-बारुद शूटिंग प्रदर्शन-कक्ष और फ्रिमा गोल्फ कोर्स (18 होल्स) दर्शनीय स्थल हैं।



सन 1932 में राष्ट्रीय भारतीय मिलिट्री कालेज की स्थापना देहरादून के बाहर प्रिंस ऑफ वेल्स ने की थी। इसे रॉयल मिलिट्री एकैडमी, सैंडहर्स्ट के सहायक विद्यालय के रूप में बनाया गया था। मॉन्टेह चेम्स्फोर्ड रिफ़ॉर्म्स के तहत प्रतिवर्ष दस भारतीयों को सैंडहर्स्ट मेंप्रशिक्षण हेतु जाने की अनुमति मिल गयी थी। बाद में लंदन के गोल मेज सम्मेलन में 1930 में सैंडहर्स्ट की भारतीय आवृत्ति करने, (कालेज बनाने) की अनुशंसा की गयी।

 ब्रिटिश भारत की सरकार ने इसकी कार्य योजना बनाने हेतु, फील्ड मार्शल सर फिलिप चेटवोड, तत्कालीन कमांडर-इन-चीफ; की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। जुलाई 1931 में समिति ने चालीस प्रत्याशियों के प्रशिक्षण हेतु (छः मास की अवधि काल में), अकादमी बनाने क नुमोदन किया। इन चालीस प्रत्याशियों में – पंद्रह सीधे प्रत्याशी, पंद्रह किश्नर कालिज, नौगांव के उच्च श्रेणी धारक, और दस राजवंशों के परिवरों से चुने गये होंगे।

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यह अकादमी 1 अक्तूबर 1932 को कार्यशील हो गयी। तब इसकी क्षमता चालीस कैडेट थी। ब्रिगेडियर एल.पी.कॉलिन्स, डी.एस.ओ, ओ.बी.ई, इसके प्रथम कमाण्डेंट थे।



 इसके प्रथम पाठ्यक्रम के रोल्स पर सैम मानेकशाह, स्मिथ डन और मूसा खान थे। ये सभी बाद में अपने देशों की सेनाओं के अध्यक्ष बने, भारत, बर्मा अर पाकिस्तान। सरकार ने रेलवे कालेज, देहरादून की सम्पदा अधिकृत कर ली, जिसमें अच्छी इमारतें, और एक वृहत प्रांगण था, जो इनकी तत्कालीन आवश्यकताओं के अनुरूप था।

अकादमी का औपचारिक उद्घाटन प्रथम पाठ्यक्रम के अन्त में 10 दिसंबर 1932 को किया गयाथा। फ़ील्ड मार्शल सर फिलिप चैटवोड, बैरोनेट, जी.सी.बी, ओ.एम, जी.सीएस.आई, के.सी.एम.जी, डी.एस.ओ, भारत के तत्कालीन कमाण्डर-इन-चीफ, जिनके नाम पर मुख्य इमारत और केन्द्रीय सभागार का नाम है, ने इसका उद्घाटन किया था। उनके भाषण का एक अंश आज भी इस अकादमी का ध्येय कहलाता है।



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सन 1934 में, प्रथम कोर्स के पूर्ण होने से पूर्व, लॉर्ड विल्लिंग्डन, तत्कालीन वाइसरॉय ने, अकादमी को भारत के सम्राट की ओर से, कलर्स प्रस्तुत किये।

 विश्व युद्ध के आरम्भह ने पर यहां प्रत्याशियों की संख्या में वृद्धि हुई। दिसंबर 1934 से मई 1941 के बीच सोलह कोर्स हुए, और 524 उत्तीर्ण छात्र थे।



और अगस्त 1941 से जनवरी 1941 के बीच ३८८७ कात्र निकले। प्रथम नियमित विस्वयुद्ध पस्कात कोर्स 25 फरवरी 1946 को आरम्भ हुआ था। स्वतंत्रता के उपरांत ब्रिग. ठाकुर महादेव सिंह, इसके प्रथम भारतीय कमाण्डेंट रहे। इसके बाद स्वेच्छा से कुछ कैडेट पाकिस्तान चले गये। प्रथम दो पीढ़ियों के अधिकारी, इसी कालिज के पास आउट हैं।

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वाडिया संस्थान

जनरल माधवसिंह रोड पर घंटाघर से 5 कि.मी. दूर पहाड़ी के ऊपर स्थित वाडिया संस्थान उत्तराखंड हिमनदों का एक अनोखा संग्रहालय है।
इनका अपना शोध संस्थान और प्रकाशन संस्थान भी है जो मानचित्र, शोधपत्र तथा पुस्तकें आदि प्रकाशित करता है।


http://wihg.res.in/

 

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