Author Topic: Dehradun Capital of Uttarakhand-देहरादून, उत्तराखण्ड की राजधानी(अस्थाई)  (Read 41792 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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दोस्तों इस टोपिक के जरिये  हम उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून की जानकारी आप लोगों तक पहुचने का एक छोटा सा प्रयास है, मुझे आशा है की आप सभी इसमें मेरी जरूर मदद करेंगें !!

Regards

M S JAKHI

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देहरादून(DEhradun )



देहरादून उत्तराखंड के राजधानी और जिल्ला दोनों हैं,इस जिले में ६ तहसीलें, ६ सामुदायिक विकास खंड, १७ शहर और ७६४ आबाद गाँव हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ १८ गाँव ऐसे भी हैं जहाँ कोई नहीं रहता।देश की राजधानी से २३० किलोमीटर दूर स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है।
 प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह नगर अनेक प्रसिद्ध शिक्षा संस्थानों के कारण भी जाना जाता है। यहाँ तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान आदि जैसे कई राष्ट्रीय संस्थान स्थित हैं।

 देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय मिलिटरी कालेज और इंडियन मिलिटरी एकेडमी जैसे कई शिक्षण संस्थान हैं।यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।

 अपनी सुंदर दृश्यवाली के कारण देहरादून पर्यटकों, तीर्थयात्रियों और विभिन्न क्षेत्र के उत्साही व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। विशिष्ट बासमती चावल, चाय और लीची के बाग इसकी प्रसिद्धि को और बढ़ाते हैं तथा शहर को सुंदरता प्रदान करते हैं।

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देहरादून शब्द की उत्पति

देहरादून दो शब्दों देहरा और दून से मिलकर बना है। इसमें देहरा शब्द को डेरा का अपभ्रंश माना गया है। जब सिख गुरु हर राय के पुत्र रामराय इस क्षेत्र में आए तो अपने तथा अनुयायियों के रहने के लिए उन्होंने यहाँ अपना डेरा स्थापित किया।

कालांतर में नगर का विकास इसी डेरे का आस-पास प्रारंभ हुआ। इस प्रकार डेरा शब्द के दून शब्द के साथ जुड़ जाने के कारण यह स्थान देहरादून कहलाने लगा।
 कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि देहरा शब्द स्वयं में सार्थकता लिए हुए है, इसको डेरा का अपभ्रंश रूप नहीं माना जा सकता है।

देहरा शब्द हिंदी तथा पंजाबी में आज भी प्रयोग किया जाता है। हिंदी में देहरा का अर्थ देवग्रह अथवा देवालय है, जबकि पंजाबी में इसे समाधि, मंदिर तथा गुरुद्वारे के अर्थो में सुविधानुसार किया गया है।

इसी तरह दून शब्द दूण से बना है और यह दूण शब्द संस्कृत के द्रोणि का अपभ्रंश है। संस्कृत में द्रोणि का अर्थ दो पहाड़ों के बीच की घाटी है। यह भी विश्वास किया जाता है कि यह पूर्व में ऋषि द्रोणाचार्य का डेरा था।

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देहरादून के बारे मैं कुछ जानकारी

देहरादून दिल्ली और दूसरे बड़े नगरो के लोगों के बीच एक लोकप्रिय शहर रहा है। राजपुर मार्ग पर अथवा डालनवाला के पुराने आवासीय क्षेत्र में पूर्वी यमुना नहर सड़क पर देहरादून के दर्शन होने लगते हैं। चौड़े बरामदे और सुन्दर ढालदार छतों वाले छोटे बंगले देहरादून की पहचान हैं।

फलों से भरे हुए इन बंगलों के बगीचे बरबस ध्यान आकर्षित करते हैं। देहरादून का भ्रमण तब तक पूरा नही होता जब तक रंगीन पलटन बाजार तक न जाया जाय जो घण्टाघर से आगे तक फैला है। पलटन बाजार तब अस्तित्व में आया जब १८२० में ब्रिटिश सेना की टुकड़ी को आने की आवश्यकता पड़ी।



 आज इस बाजार में फल, सब्जियां, सभी प्रकार के कपड़े, तैयार वस्त्र(रेडीमेड गारमेंट्स) जूते और घर में प्रतिदिन काम आने वाली वस्तुयें मिलती हैं। इसके स्टोर माल, राजपुर सड़क तक है जिसके दोनों ओर विश्व के लोकप्रिय उत्पादों के शो रुम हैं।

अनेक प्रसिद्ध रेस्तरां भी राजपुर सड़क पर है। कुछ छोटी आवासीय बस्तियाँ जैसे राजपुर, क्लेमेंट टाउन, प्रेमनगर और रायपुर देहरादून की पारंपरिक गौरव हैं।

देहरादून सदा ही देश के कुछ आधारभूत संस्थाओं का घर रहा है। उदाहरण के रूप में यहां एन.आई.वी.एच. नामक दृष्टिहीनों का पहला राष्ट्रीय संस्थान स्थित है साथ ही यहां देश की पहली ब्रेल लिपि की प्रेस भी स्थित है। यह निरन्तर राजपुर सड़क पर कार्यशील है और आज यह बडे क्षेत्र को और घरों को कवर करती है।

 (सेवा करती है) इसके कर्मचारी इसके अन्दर रहते हैं इसके अतिरिक्त (तेज यादगार) शार्प मेमोरियल नामक निजी संस्था राजपुर में हैं यें दृष्टि अपंगता तथा कानों सम्बन्धि बजाज संस्थान तथा राजपुर सड़क पर दूसरी अन्य संस्थाये बहुत अच्छा कार्य कर रही है। उत्तराखण्ड सरकार का एक और नया केन्द्र है। करूणा विहार, बसन्त विहार में कुछ कार्य शुरू किये है। तथा गहनता से बच्चों के लिये कार्य कर रहें है तथा कुछ नगर के चारों ओर केन्द्र है।

 देहरादून राफील रेडरचेशायर अर्न्तराष्ट्रीय केन्द है। ‍रिस्पना ब्रिज शायर गृह डालनवाला में हैं। जो मानसिक चुनौतियों के लिए कार्य करते है। मानसिक चुनौतियों के लिए काम करने के अतिरिक्त राफील रेडरचेशायर अर्न्तराष्ट्रीय केन्द्र ने टी.बी व अधरंग के इलाज के लिये भी अस्पताल बनाया। अधिकाँश संस्थायें भारत और विदेश से स्वेच्छा से आने वालो को आकर्षित तथा प्रोत्साहित करती है।

 आवश्यकता विहीन का कहना है कि स्वेच्छा से काम करने वाले इन संस्थाओं को ठीक प्रकार से चलाते है। तथा अयोग्य, मानसिक चुनौतियो और कम योग्य वाले लोगो को व्यक्तिगत रूप से चेतना देते है।

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देहरादून अपनी पहाडीयों और ढलानो के साथ-साथ साईकिलिंग का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। चारों ओर पर्वतो और हरियाली से घिरा होने के कारण यहाँ साईकिलिंग करना बहुत सुखद है।

 लीची देहरादून का प्रयायवाची है क्योंकि यह स्वादिष्ट फल चुनिँदा जलवायु में ही उगता है। देहरादून देश के उन जगहों में से एक है जहाँ लीची उगती है। लीची के अतिरिक्त देहरादून के चारों ओर बेर, नाशपत्ती, अमरूद्ध और आम के पेड है। जो नगर की बनावट को घेरे हुये है। ये सारी चीजे घाटी के आकर्षण में वृद्धि करती है। यदि तुम मई माह या जून के शुरू की गर्मियों में भ्रमण के लिये जाओ तो तुम इन फलों को केवल देखोगें ही नही बल्कि खरीदोंगे भी।

बासमती चावल की लोकप्रियता देहरादून या भारत में ही नही बल्कि विदेशो में भी है। एक समय अंग्रेज भी देहरादून में रहते थे और वे नगर पर अपना प्रभाव छोड गयें। उदाहरण के रूप में देहरादून की बैकरीज (बिस्कुट आदि) आज भी यहाँ प्रसिद्ध है। उस समय के अंग्रेजो ने यहाँ के स्थानीय स्टाफ को सेंकना (बनाना) सीखाया। यह निपुणता बहुत अच्छी सिद्ध हुई तथा यह निपुणता अगली संतति सन्तान में भी आयी। फिर भी देहरादून के रहने वालो के लिये यहाँ के स्थानीय रस्क, केक, होट क्रोस बन्स, पेस्टिज और कुकीज मित्रों के लिये सामान्य उपहार है, कोई भी ऐसी नही बनाता जैसे देहरादून में बनती है।

दूसरा उपहार जो पर्यटक यहाँ से ले जाते है विख्यात क्वालिटी की टॉफी जोकि क्वालिटी रेस्टोरेन्ट (गुणवत्ता वाली दुकानों) से मिलती हैं। यद्यपि आज बडी संख्या में दूसरी दुकानों (स्टोर) से भी ये टॉफी मिलती है परन्तु असली टॉफी आज भी सर्वोतम है। देहरादून में आन्नद के और बहुत से पर्याप्त विकल्प है।

 प्रर्याप्त मात्रा में देहरादून में दर्शनीय चीजे है जो उनके लिये प्रकृति के उपहार है विशेष रूप से देहरादून से मसूरी का मार्ग जो कि पैदल चलने वालों के लिये बहुत लोकप्रिय है। उन लोगो के लिये जो साधारण से ऊपर कुछ करना चाहते है सर्वोतम योग संस्थानों में से किसी एक से जुड़ना चाहिये अथवा सलसा सीखना चाहिये।

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देहरादून ऐतिहासिक विवरण (History of DEhradun)

मान्यता है कि द्वापर युग में गुरु द्रोणाचार्य ने द्वारागांव के पास देहरादून शहर से 19 किमी पूर्व में देवदार पर्वत पर तप किया था। इसी से यह घाटी द्रोणाश्रम कहलाती है।

 केदारखंड को स्कंदपुराण का एक भाग माना जाता है। इसमें गढ़वाल की सीमाओं का वर्णन इस तरह है- गंगाद्वार-हरिद्वार से लेकर श्वेतांत पर्वत तक तथा तमसा-टौंस नदी से बौद्धांचल-बघाण में नन्दा देवी तक विस्तृत भूखंड जिसके एक ओर गंगा और दूसरी तरफ यमुना नदी बहती है। तमसा का प्रवाह भी देहरादून से होकर है।



रामायण काल से देहरादून के बारे में विवरण आता है कि रावण के साथ युद्ध के बाद भगवान राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण इस क्षेत्र में आए थे।

 अंग्रेज लेखक जीआरसी विलियम्स ने मेमोयर्स आफ दून में ब्राह्मण जनुश्रुति का उल्लेख करते हुए लिखा है कि लंका विजय के पश्चात् ब्राह्मण रावण को मारने का प्रायश्चित करने और प्रायश्चित स्वरूप तपस्या करने के लिए गुरु वशिष्ठ की सलाह पर भगवान राम लक्ष्मण के साथ यहां आए थे। राम ने ऋषिकेश में और लक्ष्मण ने तपोवन में पाप से मुक्ति के लिए वर्षो तपस्या की थी।

इसी प्रकार देहरादून जिले के अंतर्गत ऋषिकेश के बारे में भी स्कंदपुराण में उल्लेख है कि भगवान् विष्णु ने दैत्यों से पीड़ित ऋषियों की प्रार्थना पर मधु-कैटभ आदि राक्षसों का संहार कर यह भूमि ऋषियों को प्रदान की थी। पुराणों में इस क्षेत्र को लेकर एक विवरण इस प्रकार भी है कि राम के भाई भरत ने भी यहां तपस्या की थी।

 तपस्या वाले स्थान पर भरत मंदिर बनाया गया था। कालांतर में इसी मंदिर के चारों ओर ऋषिकेश नगर का विकास हुआ। पुरातत्व की दृष्टि से भरत मंदिर की स्थापना सैकड़ों साल पुरानी है। स्कंद पुराण में तमसा नदी के तट पर आचार्य द्रोण को भगवान शिव द्वारा दर्शन देकर शस्त्र विद्या का ज्ञान कराने का उल्लेख मिलता है।

 यह भी कहा जाता है कि आचार्य द्रोण के पुत्र अश्वात्थामा द्वारा दुग्धपान के आग्रह पर भगवान शिव ने तमसा तट पर स्थित गुफा में प्रकट हुए शिवलिंग पर दुग्ध गिराकर बालक की इच्छा पूरी की थी। यह स्थान गढ़ी छावनी क्षेत्र में स्थित टपकेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर बताया जाता है।

महाभारत काल में देहरादून का पश्चिमी इलाका जिसमें वर्तमान कालसी सम्मिलित है का शासक राजा विराट था और उसकी राजधानी वैराटगढ़ थी। पांडव अज्ञातवास के दौरान भेष बदलकर राजा विराट के यहां रहे। इसी क्षेत्र में एक मंदिर है जिसके बारे में लोग कहते कि इसकी स्थापना पांडवों ने की थी।

इसी क्षेत्र में एक पहाड़ी भी है जहां भीम ने द्रौपदी पर मोहित हुए कीचक को मारा था। जब कौरवों तथा त्रिगता के शासक ने राजा विराट पर हमला किया तो पांडवों ने उनकी सहायता की थी।

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महाभारत की लड़ाई के बाद भी पांडवों का इस क्षेत्र पर प्रभाव रहा और हस्तिनापुर के शासकों के अधीनस्थ शासकों के रूप में सुबाहू के वंशजों ने यहां राज किया। पुराणों मे देहरादून जिले के जिन स्थानों का संबंध रामायण एवं महाभारत काल से जोड़ा गया है उन स्थानों पर प्राचीन मंदिर तथा मूर्तियां अथवा उनके भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं। इन मंदिरों तथा मूर्तियों एवं भग्नावशेषों का काल प्राय: दो हजार वर्ष तथा उसके आसपास का है।

 क्षेत्र की स्थिति और प्राचीन काल से चली आ रही सामाजिक परंपराएं, लोकश्रुतियां तथा गीत और इनकी पुष्टि से खड़ा समकालीन साहित्य दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र रामायण तथा महाभारत काल की अनेक घटनाओं का साक्षी रहा है। यमुना नदी के किनारे कालसी में अशोक के शिलालेख प्राप्त होने से इस बात की पुष्टि होती है कि यह क्षेत्र कभी काफी संपन्न रहा होगा।

सातवीं सदी में इस क्षेत्र को सुधनगर के रूप में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी देखा था। यह सुधनगर ही बाद में कालसी के नाम से पहचाना जाने लगा। कालसी के समीपस्थ हरिपुर में राजा रसाल के समय के भग्नावशेष मिले हैं जो इस क्षेत्र की संपन्नता को दर्शाते हैं। लगभग आठ सौ साल पहले दून क्षेत्र में बंजारे लोग आ बसे थे। उनके बस जाने के बाद यह क्षेत्र गढ़वाल के राजा को कर देने लगा। कुछ समय बाद इस ओर इब्राहिम बिन महमूद गजनवी का हमला हुआ।

इससे भी भयानक हमला तैमूर का था। सन् 1368 में तैमूर ने हरिद्वार के पास राजा ब्रह्मदत्त से लड़ाई की। ब्रह्मदत्त का राज्य गंगा और यमुना के बीच था। बिजनौर जिले से गंगा को पार कर के मोहन्ड दर्रे से तैमूर ने देहरादून में प्रवेश किया था। हार जाने पर तैमूर ने बड़ी निर्दयता से मारकाट करवाई, उसे लूट में बहुत-सा धन भी मिला था। इसके बाद फिर कई सदियों तक इधर कोई लुटेरा नहीं आया। शाहजहां के समय में फिर एक मुगल सेना इधर आई थी।

 उस समय गढ़वाल में पृथ्वी शाह का राज्य था। इस राजा के प्रपौत्र फतेह शाह ने अपने राज्य की सीमा बढ़ाने के उद्देश्य से तिब्बत और सहारनपुर पर एक साथ चढ़ाई कर दी थी, लेकिन इतिहास के दस्तावेजों के अनुसार उसको युद्ध में हार का मुंह देखना पड़ा था। सन् 1756 के आसपास श्री गुरु राम राय ने दून क्षेत्र में अपनी सेना तथा शिष्यों के साथ प्रवेश किया और दरबार साहिब की नींव रखकर स्थायी रूप से यहीं बस गए।

गूजर और राजपूतों के आ जाने से धीरे-धीरे दून की आबादी बढ़ने लगी। आबादी तथा अन्न की उपज बढ़ने से गढ़वाल राज्य की आमदनी भी बढ़ने लगी। देहरादून की संपन्नता देखकर सन् 1757 में रूहेला सरदार नजीबुद्दौला ने हमला किया। इस हमले को रोकने में गढ़वाल राज्य नाकाम रहा, जिसके फलस्वरूप देहरादून मुगलों के हाथ में चला गया।

 देहरादून के तत्कालीन शासक नजब खाँ ने इसके परिक्षेत्र को बढ़ाने में भरपूर कोशिश की। उसने आम के पेड़ लगवाने, नहर खुदवाने तथा खेती का स्तर सुधारने में स्थानीय निकायों को भरसक मदद पहुंचाई, लेकिन नजब खाँ की मौत के बाद किसानों की दशा फिर दीनहीन हो गई।


Source http://hi.wikipedia.org

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 गुरु राम राय दरबार के कारण यहां सिखों की आवाजाही भी बढ़ चुकी थी। अत: एक बार फिर से देहरादून का गौरव समृद्धशाली क्षेत्र के रूप में फैलने लगा।

सन् 1785 में गुलाम कादिर ने इस क्षेत्र पर हमला किया। इस बार बड़ी मारकाट मची। गुलाम कादिर ने लौटते समय उम्मेद सिंह को यहां का गवर्नर बनाया। गुलाम कादिर के जिंदा रहते उम्मेद सिंह ने स्वामी भक्ति में कोई कमी न आने दी, लेकिन उनके मरते ही सन् 1796 में उम्मेद सिंह ने गढ़वाल राजा प्रद्युम्न शाह से संधि कर ली।

सन् 1801 तक देहरादून में अव्यवस्था बनी रही। प्रद्युम्न शाह का दामाद हरिसिंह गुलेरिया दून की प्रजा का उत्पीड़न करने वालों में सबसे आगे था। अराजकता के कारण दून की वार्षिक आय एक लाख से घटकर आठ हजार रुपये मात्र रह गई थी।

प्रद्युम्न शाह के मंत्री रामा और धरणी नामक बंधुओं ने दून की व्यवस्था सुधार में प्रयास आरंभ किए ही थे कि प्रद्युम्न शाह के भाई पराक्रम शाह ने उनका वध करा दिया। अब देहरादून की सत्ता सहसपुर के पूर्णसिंह के हाथों में आ गई, किंतु वह भी व्यवस्था में सुधार न ला सका। पराक्रम शाह ने अपने मंत्री शिवराम सकलानी को इस आशय से देहरादून भेजा गया कि वह उसके हितों की रक्षा कर सके।

शिवराम सकलानी के पूर्वज शीश राम को रोहिला युद्ध में वीरता दिखाने के कारण टिहरी रियासत ने सकलाना पट्टी में जागीर दी थी। इन सभी के शासन काल में देहरादून का गवर्नर उम्मेद सिंह ही बना रहा। वह एक चतुर राजनीतिज्ञ था इसी कारण प्रद्युम्न शाह ने अपनी एक पुत्री का विवाह उसके साथ करके उसे अपना स्थायी शासक नियुक्त कर दिया।

कहा जाता है कि 1803 में गोरखा आक्रमण के समय उम्मेद सिंह ने अवसरवादिता का परिचय इस प्रकार दिया कि युद्ध के समय वह अपने ससुर के पक्ष में खड़ा नहीं देखा गया। देहरादून को उसकी संपन्नता के कारण ही समय-समय पर लुटेरों की लूट एवं तानाशाहों की प्रवृत्ति का शिकार बनते रहना पड़ा।

सन् 1760 में गोरखों ने अल्मोड़ा को जीतने के उपरांत गढ़वाल पर धावा बोला। गढ़वाल के राजा ने गोरखों को पच्चीस सौ रुपये वार्षिक कर के रूप में देना शुरू किया, लेकिन इतना नजराना पाने के बावजूद भी 1803 में गोरखों ने गढ़वाली सेना से युद्ध छेड़ दिया। गोरखों की विजय हुई और उनका अधिकार क्षेत्र देहरादून तक बढ़ गया।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने देहरादून को गोरखों के प्रभाव से मुक्त कराने के लिए मोहन्ड और तिमली दर्रो से अंग्रेज सेना भेजी। अंग्रेजों ने बल का उपयोग करके गोरखों को खदेड़ बाहर किया और इस तरह उनका देहरादून में प्रभुत्व स्थापित हो गया। उन्होंने अपने आराम के लिए 1827-28 में लंढोर और मसूरी शहर बसाया।

कुछ समय के लिए देहरादून जिला कुमाऊँ कमिश्नरी यानी मंडल में रहा फिर इसको मेरठ में मिला दिया गया। आज यह गढ़वाल मंडल में है। 1970 के दशक में इसे गढ़वाल मंडल में शामिल किया गया। सन् 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होकर बने उत्तरांचल [अब उत्तराखंड] की अस्थाई राजधानी देहरादून को बनाया गया। राजधानी बनने के बाद इस शहर का आकार निरंतर बढ़ रहा है।




Source http://hi.wikipedia.org

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देहरादून की भौगोलिक स्तिथि


देहरादून जिला उत्तर में हिमालय से तथा दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसमें कुछ पहाड़ी नगर अत्यंत प्रसिद्ध है जैसे मसूरी, सहस्रधारा, चकराता,लाखामंडल तथा डाकपत्थर। पूर्व में गंगा नदी और पश्चिम में यमुना नदी प्राकृतिक सीमा बनाती है।



 यह जिला दो प्रमुख भागों में बंटा है जिसमें मुख्य शहर देहरादून एक खुली घाटी है जो कि शिवालिक तथा हिमालय से घिरी हुई है और दूसरे भाग में जौनसार बावर है जो हिमालय के पहाड़ी भाग में स्थित है। यह उत्तर और उत्तर पश्चिम में उत्तरकाशी जिले, पूर्व में टिहरी और पौड़ी जिले से घिरा हुआ है।

इसकी पश्चिमी सीमा पर हिमांचल प्रदेश का सिरमौर जिला तथा टोंस और यमुना नदियाँ हैं तथा दक्षिण में हरिद्वार जिले और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले इसकी सीमा बनाते हैं। यह २९ डिग्री ५८' और ३१ डिग्री २' ३०" उत्तरी अक्षांश तथा ७७ डिग्री ३४' ४५" और ७८ डिग्री १८' ३०" पूर्व देशांतर के बीच स्थित है।

 इस जिले में (देहरादून, चकराता, विकासनगर, कलसी, त्यूनी तथा ऋषिकेश) ६ तहसीलें, विज़, चकराता, कलसी, विकासनगर, सहासपुर, राजपुर और डोइवाला नाम के ६ सामुदायिक विकास खंड, १७ नगर और ७६४ गाँव हैं। इनमें से ७४६ गाँवों में लोग निवास करते हैं जबकि १८ जिले निर्जन हैं।

 जनपद में साक्षरता ७८.५ प्रतिशत है, पुरुषों की साक्षरता ८५.८७ तथा महिला साक्षरता ७१.२० प्रतिशत है। ग्रामीण क्षेत्र की जनसंख्या ६०१९६५ और नगरीय जनसंख्या मात्र ६७७११८ है।

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देहरादून की जलवायु

देहरादून जिले की जलवायु समशीतोष्ण है पर ऊँचाई के आधार पर कुछ जगहों पर काफ़ी सर्दी पड़ती है। जिले का आसपास की पहाड़ियों पर सर्दियों में काफ़ी हिमपात होता है !

पर देहरादून का तापमान आमतौर पर शून्य से नीचे नहीं जाता। गर्मियों में सामान्यतः यहाँ का तापमान २७ से ४० डिग्री सेल्सियस के बीच और सर्दियों में २ से २४ डिग्री के बीच रहता है। वर्षा ऋतु में निरंतर और अच्छी बारिश होती है।

 सर्दियों में पहाड़ियों पर मौसम सुहावना होता है पर दून घाटी गर्म होती हैं। उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी और पर्याप्त पानी के कारण जनपद में कृषि की हालत अच्छी है।[९] और पहाड़ी के ढ़लानों पर काटकर बनाए गए सीढ़ीनुमा खेतों में खेती होती है।

 

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