20. खंडूरी/ खंडूड़ी -
सरोलाओ की बारह थोकी जातियों मैं से एक खंडूरी मूलतः गौड़ ब्रह्मण है, जिनका आगमन सम्वत 945 में वीरभूमि बंगाल से हुआ।
इनके मूल पुरुष सारन्धर एवं महेश्वर खंडूड़ी गाँव मैं बसे और खंडूड़ी जाती नाम से प्रसिद हुए।
इस जाती के अनेक वंसज गढ़वाल राज्य मैं दीवान एवं कानूनगो के पदों पर भी रहे।
बाद में राजा द्वारा इन्हें थोक्दारी दे कर गढ़वाल के विभिन्न गाँव को जागीर मैं दे दिया था।
21. सती -
गढ़वाल की सरोला जाती मैं से एक सती गुजरात से आई ब्रह्मण जाती है, जो चांदपुर गाधी के सशको के निमंत्रण पर चांदपुर और कपीरी पट्टी मैं बसी थी।
इस जाती की एक सखा नोनी/ नवानी भी है।
इस जाती नाम के ब्राहमण गढ़वाल के कई कोनो मैं फ़ले है, यहाँ तक की इस जाती के कुछ ब्राहमण कुमायु मैं भी है।
22. कंडवाल -
मूलतः सरोला जाती है जो कांडा गाँव मैं बसने से कंडवाल कहलाई है।
गढ़वाल के इतिहास मैं क्रमांक 19 से 26 तक की कुल आठ जातीय सरोला सूचि मैं सामिल की गयी है जिनमे कंडवाल जाती भी है।
कंडवाल जाती मूलतः कुमयुनी जाती है। जो कांडई नामक गाँव से यहाँ चांदपुर मैं सबसे पहले आकर बसी थी, जिनके मुल्पुरुष का नाम आग्मानंद था।
नागपुर की एक प्रसिद जाती कांडपाल भी इससे अपना सम्बन्ध बताती है। जिनके अनुसार( कांडपाल) का मूल गाँव कांडई आज भी अल्मोडा मैं है जहा के ये मूलतः कान्यकुब्ज (भारद्वाज गोत्री) कांडपाल वंसज है।
यही कुमायु से सन 1343 में श्रीकंठ नाम के विद्वान से निगमानंद और आगमानद ने कांडपाल वंश को यहाँ बसाया था, जिनमे से एक भाई चांदपुर में बस गया और राजा द्वारा इन्हें ही सरोला मान्यता प्रदान कर दी गयी और चांदपुर में ये लोग कंडवाल नाम से प्रसिद हुए।
इसी जाती के दुसरे स्कन्ध में से निगमानद ने 1400 में कांडई गाँव बसाया था, कांडई में बसने से इन्हें कंडयाल भी कहा गया, जो बाद मैं अपने मूल जाती नाम कांडपाल से प्रसिद हुआ।
23. ममगाईं -
मूलतः गौड़ ब्रह्मण है जो उज्जैन से आकर मामा के गाँव मैं बसने से ममगाईं कहलाये थे।
ये जाती मूलतः पौडी जिले की है लेकिन टिहरी और उत्तरकाशी और रुद्र्पर्याग जिले मैं भी इस जाती के गाँव बसे है।
महाराष्ट्र मूल के होने से वाह भी इस जाती के कुछ लोग रहते है। नागपुर मैं भी इस जाती के कुछ परिवार बसे है, जिनके रिश्ते नाते टिहरी और श्रीनगर के ब्राह्मणों से होते है।
24. भट्ट -
भट्ट सामन्यता एक विशेष जाती संज्ञा है जिसका आशय प्रसिदी और विद्वता से है।
सामान्यतः ये एक प्रकार की उपाधि थी जो राजाओ द्वारा प्रदत होती थी, गढ़वाल की अन्य जाती सज्ञाओ के अनुरूप ये उपाधि भी बाद में जातिनाम में बदल गयी, कुछ लोग इनका मूल भट्ट ही मानते है।
गढ़वाल मैं भट्ट जाती सबसे अधिक प्रसार वाली जाती संज्ञा है। ये सभी स्वयं को दक्षिन वंशी मानते है।
कालांतर में इनमे से अनेक ने आपने नए जाती नाम भी रखे है, भट्ट ही एक मात्र जाती है जो गढ़वाल में सरोला सूचि, गागाड़ी सूचि और नागपुरी सूची में शामिल की गयी है।
25. पन्त -
भारद्वाज गोत्रीय ब्राहमण है, जिनके मूल पुरुष जयदेव पन्त का कोकण महाराष्ट्र से 10 वी सदी में चंद राजाओ के साथ कुमाऊँ में आगमन हुआ।
इनके वंसज शर्मा श्रीनाथ नाथू एवं भावदास के नाम भी चार थोको मैं विभाजित हुए, ये ही बाद में मूल कुमाउनी ब्राह्मण जाती पन्त हुई।
बाद मैं अल्मोडा, उप्रडा, कुंलता, बरसायत, बड़ाउ, म्लेरा में बसे शर्मा पन्त, श्रीनाथ पन्त, परासरी पन्त, और हटवाल पन्त, प्रमुख फाट बने।
ये सभी कुमाउनी पन्त थे, बाद में इसी जाती के कुछ परिवार गढ़वाल के विभिन्न इलाको में बसे, विद्वान और ज्योतिष के क्षेत्र मैं उलेखनीय कार्यो ने यहाँ भी इन्हें उच्च स्तर तक पहुचा दिया।
पन्त जाती का नागपुर में प्रसिद गाँव कुणजेटी है। ये नागपुर के 24 मठ मंदिरों मैं आचार्य वरण के अधिकारी है।