Author Topic: Do You Know This About Uttarakhand? - क्या आप उत्तराखंड के बारे ये जानते है?  (Read 45219 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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164. In which of the following districts the silver is found in Uttarakhand ?

(A) Nainital
(B) Dehradun
(C) Almora
(D) Garhwal

Ans : (C)

165. Which one of the following is not the policy matter of New Industrial Policy of Uttarakhand ?

(A) No Subsidy to new industries
(B) 2% rebate of interest at the loan of 2 lac
(C) Rehabilitation of handicrafts, handloom industries etc
(D) To exempt from tax upto five years

Ans : (D)

166. Where the tertiary soil in Uttarakhand is found?

(A) Hundari Region
(B) Sub Himalayan Region
(C) Doon Valleys
(D) Above all
Ans : (C)

167. How many type of soil is found in Uttarakhand ?

(A) Four
(B) Five
(C) Six
(D) Three

Ans : (B)

168. How many new National Highways have been declared in the State?

(A) Four
(B) Three
(C) Two
(D) Five

Ans : (B)

shailesh

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क्या आप उत्तराखंड के बारे ये जानते है ?- की  बिजली की भूख निगलने लगी जंगलों को
 
उत्तराखंड की जल विद्युत परियोजनाएं हिमालय के लिए खतरा बनती जा रही हैं। उत्तरकाशी में देवदार, कैल, बांज और बुरांश के जंगल अंतिम सांसें गिन रहे हैं। लोहारीनाग-पाला और पाला-मनेरी जल विद्युत परियोजनाओं की खातिर अब तक डेढ़ लाख से अधिक हरे पेड़ों पर आरियां चला दी गई हैं। उच्च हिमालय की बर्फीली चोटियों की गोद में बसे उत्तरकाशी के ब्लाक भटवाड़ी में गंगोत्री

की वादियों में गोमुख ग्लेशियर की ओर निर्माणाधीन लोहारीनाग-पाला जल विद्युत परियोजना के लिए 140 हेक्टेयर और पाला-मनेरी के लिए 78 हेक्टेयर वन भूमि 30 सालों के लिए लीज पर ली गई है।

इस 218 हेक्टेयर वन भूमि में दुर्लभ प्रजाति के वृक्ष देवदार, कैल, बांज, बुरांश, थुनैर समेत अन्य का सघन जंगल हैं। लेकिन परियोजनाएं शुरू होने के बाद सबसे पहले हरे पेड़ों पर आरियां चलीं। परियोजना निर्माण के लिए सड़क निर्माण और अन्य कार्यो की वजह से हजारों वृक्ष भूस्खलन की चपेट में आकर जड़ उखड़ कर सड़कों पर आ गए। इसके बाद शुरू हुए भूस्खलन से तो जंगल का एक बड़ा हिस्सा समाप्त होता जा रहा है।

हर बार गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर भूस्खलन में 50 से 60 पेड़ सीमा सड़क संगठन द्वारा हटाए जाते हैं, यानी पूरे जंगल पर संकट मंडरा रहा है। आलम यह है कि भटवाड़ी से गंगोत्री की ओर करीब 20 किमी गंगा तटों पर अब एक भी पेड़ नहीं बचा है। बड़े पेड़ों के साथ ही यहां पाई जाने वाली हिसर, किनगोड़, भंमोर की झाडियां भी खत्म हो चुकी है और अब शायद ही इस प्रजाति की झाडियां कभी गंगा के तटों पर फिर से उग पाएंगी।

वन विभाग को मिले 12 करोड़

प्रभागीय वनाधिकारी सुशांत पटनायक बताते हैं कि अतीश, देवदार, सुरई, खड़ीक, अखरोट, शहतूत, बुरांश, बांज, कैल, राई, वन पीपल आदि प्रजातियों के 1169 पेड़ काटे गए हैं। उन्होंने स्वीकारा कि गिनती केवल बड़े पेड़ों की ही की गई। छोटे पौधों व छोटे पेड़ों को नहीं गिना गया है। पटनायक ने कहा कि नदियों के किनारे हुए कटान की जांच की जाएगी।

रेगिस्तान बनेगा पहाड़ : बहुगुणा

पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का कहना है कि परियोजना के लिए लोहारीनाग-पाला और पाला-मनेरी में लाखों पेड़ों का कत्ल किए जाने से पर्यावरण पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। गोमुख ग्लेशियर के निकट चल रहे इस खेल से ग्लेशियर सूख जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर पेड़ों का काटना बंद नहीं हुआ तो टिहरी से गंगोत्री तक का क्षेत्र एक दिन रेगिस्तान बन जाएगा।

याचिका दायर करेंगे

हिमालय पर्यावरण शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष सुरेश भाई कहते हैं कि भारत सरकार के मानकों के अनुसार एक हेक्टेयर में एक हजार पेड़ों का अस्तित्व माना गया है, जबकि लोहारीनाग-पाला और पाला मनेरी के 218 हेक्टेयर में 2 लाख 18 हजार पेड़ कटे हैं। इस पर संस्थान उच्च न्यायालय नैनीताल में याचिका दायर करेगा।

चुप हैं कार्यदायी संस्थाएं

लोहारीनाग-पाला की कार्यदायी संस्था एनटीपीसी के महाप्रबंधक सुनील गुलाटी कहते हैं कि काटे पेड़ों की एवज में पौधरोपण के लिए वन विभाग को 12 करोड़ रुपये दिए गए हैं। उनका कहना है कि एनटीपीसी ने कहीं भी अवैध कटान नहीं किया है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Do you know this ?


The Indo and Tibbat Bounary Line "MacMohan Line" is named after great Soilder Madho Singh Bhandari, who was orginally from Uttarakhand.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Do u know?

Chaubotia Ranikhet is famous for production Apple.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Do you know this ?


अल्मोड़ा में एक प्रसिद्ध नृत्य अकादमी है, डांसीउस - जहाँ बहुत से भारतीय और फ्रांसीसी नर्तकों को प्रक्षिक्षण दिया गया था। इसकी स्थापना उदय शंकर द्वारा १९३८ में की गई थी। अल्मोड़ा नृत्य अकादमी को कस्बे के बाहर रानीधर नामक स्थान पर गृहीत किया गया।

Devbhoomi,Uttarakhand

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MEHTA JI YE TO BAHUT BADIYA JAANKAARI DI HAIN ,LEKIN KYA UTTARAKHANDI DANCE BHI SUKHAYE JAATE HAIN KYA IS AKADAMI MAIN?

सत्यदेव सिंह नेगी

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                    Ati Uttam Mehta Ji Mujhe bhi dobara se chaunfla , thadiya geet, hori seekhni hai kahan jaoon bara dijiyega

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Do you know the following :

At the bank of which river is Rishikesh pilgrim centre in Uttarakhand situated?

(A) Ghaghara

(B) Ganga

(C) Sharda

(D) Yamuna

Ans : (B)

 

 Chandi Prasad the dignity of Uttarakhand, was awarded the international prize, what is that prize?

(A) Nobel prize

(B) Oskar prize

(C) Ramon Magsaysay Prize

(D) None of these.

Ans : (C)

 

 Which is the small Kashmir of Uttarakhand ?

(A) Mussoorie

(B) Nainital

(C) Almora

(D) Pithoragarh

Ans : (D)

 

 The distinguished lady of the state who has been honoured with an international recognition in 2000

(A) Mranal Pandey

(B) Shivani

(C) Kalawati Rawat

(D) Tara Pandey

Ans : (C)

 

 

 

 Where is the China peak situated?

(A) Chamoli

(B) Almora

(C) Uttar Kashi

(D) Nainital

Ans : (D)

 

 Which of the following countries, boundaries touch the Uttarakhand state?

(A) Nepal-Pakistan

(B) Tibet-Pakistan

(C) Tibet-China

(D) Tibet-Nepal

Ans : (D)

 

 Where is the agriculture universities in Uttarakhand '?

(A) Pant Nagar (Nainital)

(B) Pauri

(C) Rudra Prayag

(D) Roorkee (Haridwar)

Ans : (A)

 

 Which of the following temples is situated at Kedar Nath?

(A) Vishnu

(B) Shiva

(C) Brahma

(D) Kali

Ans : (B)

 

 Which of the following pilgrimage centres is a place of re-establishment of Hindu religion by Shankracharya ?

(A) Haridwar

(B) Badri Nath

(C) Kader Nath

(D) Rishikesh

Ans : (B)

 

 Which one of the following is known as the queen of hills of Uttarakhand?

(A) Mussoorie

(B) Ranikhet

(C) SriNagar

(D) Badri Nath

Ans : (A)

 

 When did the earthquake occur in Uttar Kashi ?

(A) In 1990

(B) In 1991

(C) In 1992

(D) In 1998

Ans : (B)

 

 The origin of Pindar river is fromâs for

(A) Milam

(B) Badri Nath

(C) Pindari glacier

(D) Kedar Nath

Ans : (C)

 

 Where is the Tiffin Top situated?

(A) Nainital

(B) Bhimtal

(C) Haldwani

(D) Ranikhet

Ans : (A)

 

 Last king of Uttarakhand is known as

(A) Bamshah

(B) Pradhuman Shah

(C) Harsh Dev Joshi

(D) Manvendra Shah

Ans : (B)

Compiled by :  anita negi <anita_negi85@yahoo.com>

विनोद सिंह गढ़िया

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चाय की खेती के लिए चीनियों को उत्तराखंड लाए थे अंग्रेज

कभी थे चीनी पर अब हैं पूरी तरह हिंदुस्तानी

गरुड़। भारत में चाय की खेती करने के लिए उत्तराखंड लाए गए चीनी मूल के लोग अब पूरी तरह उत्तराखंड की संस्कृति में रच-बस गए हैं। इन लोगों ने यहां न केवल अपना रहन-सहन एवं खान-पान ही नहीं बदला है, अपितु स्थानीय देवी- देवताओं में विश्वास जताते हुए उनकी पूजा भी करने लगे हैं। उत्तराखंड लाए गए चीनी लोग अब 94 परिवारों का समूह बन गया है, जो राज्य के कई हिस्सों में रह रहा है।चाय की खेती करने में महारथ लिए चायना मूल के लोगों को करीब ढाई सौ साल पहले ब्रिटिश शासनकाल के दौरान अंग्रेज चाय की खेती करने के लिए उत्तराखंड के ऊंचाई वाले स्थानों पर लाए थे। आजादी के बाद अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया और तभी इस समुदाय ने चाय की खेती से हाथ खींच लिए। ये लोग फिर धान, गेहूं आदि की खेती करने लगे। ये परिवार मुख्यतया: कौसानी के डुंगलोट, अल्मोड़ा के चौना, गरुड़ के नौघर, पचना, रीठा, देवनाई, टीट अमस्यारी तथा पिथौरागढ़ जिले के चौकोड़ी और ऊधम सिंह नगर इलाके में भी बसे है। इनका कद छोटा, आंख उभरी तथा नाक चपटी है। मकान भी आमतौर पर काफी कम ऊंचाई वाले हैं। विकास खंड गरुड़ के नौघर गांव निवासी किमसेन (88) बताते हैं कि उनके पूर्वजों को चीन में चाय की खेती करने में महारथ हासिल थी। उनकी इसी खूबी के कारण अंग्रेज चाय की खेती करने के लिए उन्हें उत्तराखंड लाए। रीठा मनाखेत के जयचंद तो तहसीलदार के पद से रिटायर हुए। जय चंद ने बताया उनके पिता एलके सेन बताते थे कि अंग्रेजों ने जब भारत से अपना कारोबार समेटा तो वे उन्हें यहां जमीन का पट्टा भी दे गए। कुछ लोग सरकारी सेवा में भी कार्यरत है। उन्होंने बताया अब वे गोलू, नर सिंह, कालिका आदि देवताओं को मानते है और स्थानीय त्योहारों को कुमाऊं के लोगों की तरह धूमधाम से मनाते हैं ।

नाम भारतीय, जाति चीन की



गरुड़ । भारत में रहने वाले चीन मूल के लोगों के नाम भारतीय, मगर जाति चीनी की है। इलाके में उन्हें चायना नाम से जाना जाता है। अधिकांश लोगों ने हिंदू धर्म अपना लिया है। कुछ गिने चुने लोग ही बौद्ध धर्म को मानते हैं। पंचायतों के अभिलेखों में इनका धर्म हिंदू अंकित है। विकास खंड के गरुड़ पचना गांव निवासी पुंग तैत सैैन की विधवा हीरा सेन ने बताया कि भारत में निवास कर रहे चीनी समुदाय के लोगों ने चायनीज खाने के बजाए स्थानीय लोगों की भांति दाल, चावल तथा रोटी खाते हैं। उन्होंने बताया मुक्तेश्वर आदि जगह के कुछ चीनी लोग आज भी बौद्ध धर्म को मानते है, लेकिन अधिकांश परिवार स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। पचना गांव के कुशाल राम ने बताया पुंग तैत एकदम चायनीज शक्ल के लगते थे। उनकी लंबाई साढ़े चार फिट की थी, जिस कारण उन्हें भौसेन नाम से भी जाना जाता था। पचना गांव में जंग तैत सेन का जो मकान है, उसकी ऊंचाई भी काफी कम है।क्या कहते हैं चायना समुदाय के लोगः नौघर गांव निवासी सिंचाई विभाग से सेवानिवृत्त गोविंद सेन उर्फ चायना (63) बताते हैं भारत में चीनी समुदाय के लोग अल्पसंख्यक है।सरकार की ओर से उन्हें कोई सहायता तथा सरकारी नौकरियों में आरक्षण नहीं दिया जाता है। इसी गांव के विनोद सेन उर्फ चायना बताते हैं उनका चीन के लोगों से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है। उनके पूर्वजों ने बताया था कि अंग्रेज उन्हें भारत में चाय की खेती करने लाये। अब वह चाय की खेती न कर अनाज उत्पादन करते है। पचना गांव के कैलाश सेन बताते हैं पहले पूर्वजों का अंतिम संस्कार दफनाकर किया जाता था, लेकिन अब अधिकांश लोग दाह संस्कार ही करते हैं। चीनी मूल के महेश सेन, राजेंद्र सेन, रीता सेन ने बताया कि उनके समुदाय के लोग सरकारी नौकरी तथा कृषि कार्य करते है। भारत में अल्पसंख्यक होने के कारण कुछ लोगों ने अनुसूचित जाति के लोग से संबंध बना लिए है, जबकि कुछ लोगों के सामान्य जाति के साथ संबंध हैं।
भारत में प्रवास कर रहे चायना के मूल परिवारः -
• डुंगलोट कौसानी में पंद्रह
• नौघर में पांच
• पचना में छह
• टीट अमस्यारी में सात
• रीठा में ग्यारह
• चौना में तेरह
• देवनाई छह
• चौकोड़ी में सात
• मुक्तेश्वर में पांच
• हरिपुरा हरसान बाजपुर में पंद्रह
• रामगढ़ में चार
कुल 94 परिवार हैं।

http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दूल्हा बनना है तो पहले भावी ससुर जी के खेत जोतो

उत्तराखंड के बुक्सा समाज की अनूठी परंपरा

  उन्हें कोई लड़की पसंद आ जाए तो भावी ससुर जी के खेतों को जोतना पह़ता है, झोपड़ी बनानी होती है। ससुर जी को भावी दामाद का काम पसंद आ जाए तभी ढोल बज पाता है।
  यह अनुठा रिवाज है उत्तराखंड के बुक्सा समाज का। जो तराई क्षेत्र में बसा है। जो कभी तराई क्षेत्र की जमीन के मालिक थे, लेकिन आज जमीन दूसरों ने हड़प ली है, बुक्सा आज दयनीय हालत में हैं। उत्तराखंड में मान्यता है कि बुक्सा लोग तंत्र-मंत्र विद्या में माहिर थे और रुप बदलकर बाघ बन जाते थे। इसी बुक्सा समाज में शादी के लिए विचित्र व्यवस्था कायम है। उनकी बोक्स्याड़ी विद्या अब खत्म हो चुकी है।  पौड़ी जिले के कोटद्वार भाबर में रहने वाले बोक्सा जनजाति के युवाओं को गृहस्थ आश्रम में प्रवेश के लिए भी कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। हालांकि यह चुनौती अफ्रीका के हैमर आदिवासियों जैसी दुष्कर नहीं, लेकिन इतनी आसान भी नहीं है। हैमर आदिवासियों में विवाह योग्य युवक को एक पंक्ति में खड़े लगभग दर्जन भर साडों के ऊपर से दौड़कर कम से कम दो मर्तबा पार उतरना होता है। जबकि बोक्साओं में वर को विवाह से पहले कन्या के घर में हल जोतने और लकड़ी काटने से लेकर झोपड़ी तक बनानी होती है। कई बार इस प्रक्रिया में छह माह तक लग जाते हैं। परीक्षा में पास हुए तो गले में वरमाला वरना..। उत्तराखंड के जनजाति समुदाय में बोक्सा प्रमुख हैं। यह नाम इन्हें कैसे मिला, इस पर मतभेद हैं। बताया जाता है भाबर के जंगलों को पहले पहल इन्होंने आबाद किया। तब जीवनयापन के लिए समुदाय के लोग वन में मिलने वाले पौधे बुकरा की जड़ें खाते थे। इसी आधार पर उन्हें बोक्सा कहा गया। बदलते वक्त में भी ये अपनी परंपराओं को सहेजे हुए हैं।  बोक्साओं की विवाह परंपरा अनूठी है। पीपल की 'घुम्या' देवता के रूप में पूजा करने के बाद सगाई की रस्म निभाई जाती है। तब शुरू होती है वर की परीक्षा। इसके तहत वर को कुछ समय के लिए कन्या के घर में रहना पड़ता है। इस दौरान कन्या पक्ष उससे खेतों में हल लगवाता है। इसके बाद उसे कुल्हाड़ी से लकड़ियां काटनी होती हैं। दोनों परीक्षाओं में पास होने के बाद वर से झोपड़ी बनवाई जाती है। जब तय हो जाता है कि लड़का सुयोग्य है तब, पंचायत में विवाह की तिथि घोषित की जाती है। विवाह के दौरान वर पक्ष की ओर से वधू पक्ष को शगुन दिया जाता है। शगुन स्वीकारने पर ही वधू पक्ष भविष्य में वर पक्ष के घर का रूख करता है। वर की दुश्वारियां अब समाप्त नहीं होती। घर पहुंचने पर जब वधू पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाती है तब वर को उसकी भाभियां छड़ियों से मारती हैं।

 

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