Author Topic: Enrich Your Knowledge On Uttarakhand - उत्तराखंड के बारे संक्षिप्त जानकारी  (Read 89937 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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पिथौरागढ़ सीमान्त जनपद है। इसलिए यहाँ के कुछ क्षेत्रों में जाने हेतु परमिट की आवलश्यकता होती है। पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी से परमिट प्राप्त कर लेने के बाद ही सीमान्त क्षेत्रों में प्रवेश किया जा सकता है।

 पर्यटक परमिट प्राप्त कर ही निषेध क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते हैं। चम्पावत तहसील के सभी क्षेत्रों में और पिथौरागढ़ के समीप वाले महत्वपूर्ण स्थलों में परमिट की आवश्यकता नहीं होती।

Devbhoomi,Uttarakhand

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पौराणिक महत्व की गुफा देखने वालों का तांता

बागेश्वर: कांडा के पंगचौड़ा गांव में ग्रामीणों द्वारा खोजी गयी पौराणिक महत्व की गुफा को देखने वालों का तांता लगा हुआ है। इधर पुरातत्व विभाग की एक टीम शीघ्र ही गांव का दौरा गुफा का सर्वे करेगी। गौरतलब है कि कांडा के पंगचौड़ा गांव में ग्रामीणों ने पौराणिक महत्व की गुफा खोजी है। गुफा के भीतर झरना, सरोवर व अन्य आकृतियां हैं। जिससे प्रतीत होता है कि गुफा पौराणिक काल की है


। कांडा के कालिका मंदिर के पुजारी अर्जुन सिंह माजिला ने बताया कि गुफा को देखने के लिए आस पास के गांवों सहित दूर दराज के लोग भी पहुंच रहे हैं। ग्रामीणों ने पंगचौड़ा गांव में मिली गुफा को पाताल भुवनेश्वर की तर्ज पर धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की मांग प्रदेश सरकार से की है। इधर पुरातत्व विभाग की टीम ने भी शीघ्र ही पंगचौड़ा गांव का भ्रमण कर गुफा का जायजा लेने की बात कही है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7592732.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वाल के मेले
मुख्य लेख : गढ़वाल के मेले
गढ़वाल में अनेकों त्यौहार मनाए जाते हैं। इन में से बहुत से त्यौहारों पर प्रसिद्ध मेले भी लगते हैं। ये मेले सांप्रदायिक सौहार्द का वातावरण बनाए रखने में भरपूर सहयोग देते हैं। इसके साथ ही यहां की संस्कृति को फलने फूलने एवं आदान प्रदान का भरपूर अवसर देते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मेले इस प्रकार से हैं:

बसंत पंचमी मेला, कोटद्वार
पूर्णागिरी मेला, टनकपुर
देवीधूरा मेला
कुंभ एवं अर्धकुंभ मेला, हरिद्वार
नैनीताल महोत्सव
गढ़वाल एंव कुमायूँ महोत्सव
पिरान कलियर उर्स

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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माघ मेला उत्तरकाशी इस जनपद का काफी पुराना धार्मिक/सांस्कृति तथा व्यावसायिक मेले के रूप में प्रसिद्ध है। इस मेले का प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन पाटा-संग्राली गांवों से कंडार देवता के साथ -साथ अन्य देवी देवताओं की डोलियों का उत्तरकाशी पहुंचने पर शुभारम्भ होता है। यह मेला 14 जनवरी मकर संक्राति से प्रारम्भ हो 21 जनवरी तक चलता है। इस मेले में जनपद के दूर दराज से धार्मिक प्रवृत्ति के लोग जहाँ गंगा स्नान के लिये आते है। वहीं सुदूर गांव के ग्रामवासी अपने-अपने क्षेत्र के ऊन एवं अन्य हस्तनिर्मित उत्पादों को बेचने के लिये भी इस मेले में आते है। इसके अतिरिक्त प्राचीन समय में यहाँ के लोग स्थानीय जडी-बूटियों को भी उपचार के लिये लाते थे किन्तु वर्तमान समय में इस पर प्रतिबन्ध लगने के कारण अब मात्र ऊन आदि के उत्पादों का ही यहाँ पर विक्रय होता है।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सेम मुखेम

यह जगह समुद्र तल से 2903 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर नाग राज का है। यह मंदिर पर्वत के सबसे ऊपरी भाग में स्थित है। मुखेम गांव से इस मंदिर की दूरी दो किलोमी.है। माना जाता है कि मुखेम गांव की स्थापना पंड़ावों द्वारा की गई थी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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केदार ताल
यह ताल समुद्र तल से 15000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। थाल्‍यासागर चोटी का इसमें स्‍पष्‍ट प्रतिबिंब नजर आता है। केदार ताल जाने के रास्‍ते में कोई सुविधा नहीं मिलती है। इसलिए यहां पूरी तैयारी के साथ जाना चाहिए।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sri Nagar Garhwal
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Hindu ke पौराणिक लेखों में इसे श्री क्षेत्र कहा गया है जो भगवान शिव की पसंद है। किंवदन्ती है कि महाराज सत्यसंग को गहरी तपस्या के बाद श्री विद्या का वरदान मिला जिसके बाद उन्होंने कोलासुर राक्षस का वध किया। एक यज्ञ का आयोजन कर वैदिक परंपरानुसार शहर की पुनर्स्थापना की। श्री विद्या की प्राप्ति ने इसे तत्कालीन नाम श्रीपुर दिया। प्राचीन भारत में यह सामान्य था कि शहरों के नामों के पहले श्री शब्द लगाये जांय क्योंकि यह लक्ष्मी का परिचायक है, जो धन की देवी है।

lalit.pilakhwal

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उत्तराखण्ड या उत्तरांचल, भारत के उत्तर में स्थित एक राज्य है। २००० और २००६ के बीच यह उत्तरांचल के रूप में जाना जाता था। ९ नवंबर २००० को उत्तराखण्ड भारत गणराज्य के २७ वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। राज्य का निर्माण कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात हुआ। इस प्रान्त में वैदिक संस्कृति के कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं।
उत्तराखण्ड की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से मिलती हैं तथा पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश (अपने गठन से पहले यानि कि सन २००० से पहले यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था) इसके पडो़सी हैं। पारंपरिक हिन्दू ग्रंथों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है।
जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुये राज्य का नाम आधिकारिक तौर पर उत्तरांचल से बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। देहरादून, उत्तराखण्ड की अंतरिम राजधानी होने के साथ इस क्षेत्र में सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुये भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है।
राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य मे कुछ विवादास्पद बड़ी बांध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में अक्सर आलोचना की जाती है, जैसे कि भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अंततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आंदोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है।
स्कन्द पुराण में हिमालय को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है:-

एक शिलाशिल्प जिसमें महाराज भगीरथ को अपने ६०,००० पूर्वजों की मुक्ति के लिए पश्चाताप करते दिखाया गया है।
पौराणिक ग्रन्थों में कुर्मांचल क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। पौराणिक ग्रन्थों में उत्तरी हिमालय में सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर बताया गया हैं। कुबेर की राजधानी अलकापुरी (बद्रीनाथ से ऊपर) बताई जाती है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि-मुनि तप व साधना करते थे।
अंग्रेज़ इतिहासकारों के अनुसार हुण, सकास, नाग खश आदि जातियां भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। किन्तु पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है। इस क्षेत्र को देव-भूमि व तपोभूमि माना गया है।
मानस खण्ड का कुर्मांचल व कुमाऊँ नाम चन्द राजाओं के शासन काल में प्रचलित हुआ। कुर्मांचल पर चन्द राजाओं का शासन कत्यूरियों के बाद प्रारम्भ होकर सन १७९० तक रहा। सन १७९० में नेपाल की गोरखा सेना ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर कुमाऊँ राज्य को अपने आधीन कर दिया। गोरखाओं का कुमाऊँ पर सन १७९० से १८१५ तक शासन रहा। सन १८१५ में अंग्रजो से अन्तिम बार परास्त होने के उपरान्त गोरखा सेना नेपाल वापिस चली गई किन्तु अंग्रजों ने कुमाऊँ का शासन चन्द राजाओं को न देकर कुमाऊँ को ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन कर किया। इस प्रकार कुमाऊँ पर अंग्रेजो का शासन १८१५ से आरम्भ हुआ।

संयुक्त प्रांत का भाग उत्तराखण्ड, १९०३
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदार खण्ड कई गढ़ों (किले) में विभक्त था। इन गढ़ों के अलग राजा थे और राजाओं का अपने-अपने आधिपत्य वाले क्षेत्र पर साम्राज्य था। इतिहासकारों के अनुसार पंवार वंश के राजा ने इन गढ़ों को अपने अधीनकर एकीकृत गढ़वाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया। केदार खण्ड का गढवाल नाम तभी प्रचलित हुआ। सन १८०३ में नेपाल की गोरखा सेना ने गढ़वाल राज्य पर आक्रमण कर गढ़वाल राज्य को अपने अधीन कर लिया। महाराजा गढ़वाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रजो से सहायता मांगी। अंग्रेज़ सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन १८१५ में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया । किन्तु गढवाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण अंग्रजो ने सम्पूर्ण गढ़वाल राज्य गढ़वाल को न सौप कर अलकनन्दा मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में सम्मिलित कर गढ़वाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले (वर्तमान उत्तरकाशी सहित) का भू-भाग वापिस किया। गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने २८ दिसंबर १८१५ को टिहरी नाम के स्थान पर जो भागीरथी और मिलंगना के संगम पर छोटा सा गॉव था, अपनी राजधानी स्थापित की। कुछ वर्षों के उपरान्त उनके उत्तराधिकारी महाराजा नरेन्द्र शाह ने ओड़ाथली नामक स्थान पर नरेन्द्र नगर नाम से दूसरी राजधानी स्थापित की। सन १८१५ से देहरादून व पौड़ी गढ़वाल (वर्तमान चमोली जिलो व रूद्र प्रयाग जिले की अगस्तमुनि व ऊखीमठ विकास खण्ड सहित) अंग्रेजो के अधीन व टिहरी गढवाल महाराजा टिहरी के अधीन हुआ।
भारतीय गणतंत्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त १९४९ में हुआ और टिहरी को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त का एक जिला घोषित किया गया। १९६२ के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठ भूमि में सीमान्त क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से सन १९६० में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का गठन किया गया ।
एक नये राज्य के रुप में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के फलस्वरुप (उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०००) उत्तराखण्ड की स्थापना दि० ९ नवंबर २००० को हुई।
सन १९६९ तक देहरादून को छोड़कर उत्तराखण्ड के सभी जिले कुमाऊँ कमिश्नरी के अधीन थे। सन १९६९ में गढवाल कमिश्नरी की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय पौडी बनाया गया । सन १९७५ में देहरादून जिले को जो मेरठ कमिश्नरी में शामिल था, गढवाल मण्डल में सम्मिलित करने के उपरान्त गढवाल मण्डल में जिलों की संख्या पॉच हो गयी थी जबकि कुमाऊं मण्डल में नैनीताल, अल्मोडा, पिथौरागढ, तीन जिले सम्मिलित थे। सन १९९४ में उधमसिह नगर और सन १९९७ में रूद्रप्रयाग , चम्पावत व बागेश्वर जिलों का गठन होने पर उत्तराखण्ड राज्य गठन से पूर्व गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डलों में क्रमश छः-छः जिले सम्मिलित थे। उत्तराखण्ड राज्य में हरिद्वार जनपद के सम्मिलित किये जाने पर राज्य के गठन उपरान्त गढवाल मण्ढल में सात और कुमाऊँ मण्डल में छः जिले सम्मिलित हैं। दिनांक १ जनवरी २००७ से राज्य का नाम उत्तरांचल से बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया है। राज्‍य का स्‍थापना दिवस ९ नवम्‍बर को मनाया जाता है।

भूगोल

नंदा देवी पर्वत, भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी
उत्तराखण्ड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल ५३,५६६ वर्ग किमी है, जिसमें से ९३% पर्वतीय है और ६४% भूभाग वन अच्छादित है। राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग वृहद्तर हिमालय रेंज का भाग है, जो ऊँची हिमालयी चोटियों और हिमनदियों से ढका हुआ है, जबकि निम्न तलहटीयाँ सघन वनों से ढकी हुई हैं जिनका पहले अंग्रेज़ लकड़ी व्यापारियों और स्वतन्त्रता के बाद वन अनुबन्धकों द्वारा दोहन किया गया। हाल ही के वनीकरण के प्रयासों के कारण स्थिति प्रत्यावर्तन करने में सफलता मिली है। हिमालय के विशिष्ठ पारिस्थितिक तंत्र बड़ी संख्या में पशुओं (जैसे भड़ल, हिम तेंदुआ, तेंदुआ, और बाघ), पौंधो, और दुर्लभ जड़ी-बूटियों का घर है। भारत की दो सबसे महान नदियाँ गंगा और यमुना इसी राज्य में जन्म लेतीं हैं, और मैदानी क्षेत्रों तक पहुँचते-२ मार्ग में बहुत से तालाबों, झीलों, हिमनदियों की पिघली बर्फ से जल ग्रहण करती हैं।

फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
उत्तराखण्ड, हिमालयी रेंज की दक्षिणी ढलान पर स्थित है, और यहाँ मौसम और वनस्पति में उठान के साथ-२ बहुत परिवर्तन होता है, जहाँ सबसे ऊँचाई पर हिमनद से लेकर निचले स्थानों पर उपोष्णकटिबंधीय वन हैं। सबसे ऊँचे उठान हिम और पत्थरों से ढके हुए हैं। उनसे नीचे, ५,००० से ३,००० मीटर तक घासभूमि और झाड़ीभूमि है। समशीतोष्ण शंकुधर वन, पश्चिम हिमालयी उपअल्पाइन शंकुधर वन, वृक्षरेखा से कुछ नीचे उगते हैं। ३,००० से २,६०० मीटर के उठान पर समशीतोष्ण पश्चिम हिमालयी चौड़ी पत्तियों वाले वन हैं जो २,६०० से १,५०० मीटर के उठान पर हैं। १,५०० मीटर से नीचे हिमालयी उपोष्णकटिबंधीय पाइन वन हैं। उचले गंगा के मैदानों में नम पतझड़ी वन हैं और सुखाने वाले तराई-दुआर सवाना और घासभूमि उत्तर प्रदेश से लगती हुई निचली भूमि को ढके हुए है। इसे स्थानीय क्षेत्रों में भाभर के नाम से जाना जाता है। ये अधिकांश निचली भूमियाँ खेती के लिए साफ कर दी गईं है लेकिन अभी भी कुछ शेष हैं।
भारत के निम्नलिखित राष्ट्रीय उद्यान इस राज्य में हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान) रामनगर, नैनीताल जिले में, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान, चमोली जिले में हैं और दोनो मिलकर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, राजाजी राष्ट्रीय अभ्यारण्य हरिद्वार जिले में, और गोविंद पशु विहार और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान उत्तरकाशी जिले में हैं।

 उत्तराखण्ड की नदियाँ

ऋषिकेश में गंगा नदी
इस प्रदेश की नदियाँ भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उत्तराखण्ड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। इन नदियों के किनारे अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हैं। हिन्दुओं की अत्यन्त पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल मुख्य हिमालय की दक्षिणी श्रेणियाँ हैं। गंगा का प्रारम्भ अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। गंगा नदी, भागीरथी के रुप में गौमुख स्थान से २५ कि.मी. लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रुप में पहचानी जाती है। यमुना नदी का उद्गम क्षेत्र बन्दरपूँछ के पश्चिमी यमनोत्री हिमनद से है। इस नदी में होन्स, गिरी व आसन मुख्य सहायक हैं। राम गंगा का उद्गम स्थल तकलाकोट के उत्तर पश्चिम में माकचा चुंग हिमनद में मिल जाती है। सोंग नदी देहरादून के दक्षिण पूर्वी भाग में बहती हुई वीरभद्र के पास गंगा नदी में मिल जाती है।

 सरकार और राजनीति

उत्तराखण्ड सरकार के वर्तमान मुख्यमन्त्री हैं डा. रमेश पोखरियाल। उन्हें २७ जून, २००९ को उत्तराखण्ड के राज्यपाल बी. एल. जोशी द्वारा राज्य का पाँचवा मुख्यमन्त्री नियुक्त किया गया था। याज्य में अन्तिम चुनाव २१ फ़रवरी, २००७ को हुए थे। उन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ७०-सदस्यीय उत्तराखण्ड विधानसभा में ३४ सीटों से साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। बहुमत से एक सीट की कमी को पूरा करने के लिए भाजपा को उत्तराखण्ड क्रान्ति दल और तीन निर्दलियों का समर्थन लेना पड़ा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आधिकारिक विपक्षी दल है, जिसके पास २१ सीटे हैं।

 मुख्यमंत्री

राज्य की स्थापना से अब तक यहाँ पाँच मुख्यमन्त्री हुए है:
नित्यानन्द स्वामी
भगल सिंह कोश्यारी
नारायण दत्त तिवारी
भुवन चन्द्र खण्डूरी
रमेश पोखरियाल निशंक
खण्डाः पञ्च हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ ।
केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः ।।
अर्थात हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल , केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश) और सुरम्य काश्मीर पॉच खण्ड है।

उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड में १३ जिले हैं जो दो मण्डलों में समूहित हैं: कुमाऊँ मण्डल और गढ़वाल मण्डल।
कुमाऊँ मण्डल के छः जिले हैं:
अल्मोड़ा जिला
उधमसिंहनगर जिला
चम्पावत जिला
नैनीताल जिला
पिथौरागढ़ जिला
बागेश्वर जिला
गढ़वाल मण्डल के सात जिले हैं:
उत्तरकाशी जिला
चमोली जिला
टिहरी जिला
देहरादून जिला
पौड़ी जिला
रूद्रप्रयाग जिला
हरिद्वार जिला

प्रमुख नगर



देहरादून

हरिद्वार
         #   नगर   जिला   जनसंख्या   #   
   देहरादून   देहरादून जिला          ४,४७,८०८      
        अल्मोड़ा   अल्मोड़ा जिला              ३०,६१३
   हरिद्वार   हरिद्वार जिला           १,७५,०१०   
        किच्छा   उधमसिंहनगर जिला      ३०,५१७
   हल्द्वानी   नैनीताल जिला           १,२९,१४०      
         मसूरी   देहरादून जिला              २६,०६९
    रुड़की   हरिद्वार जिला              ९७,०६४      
         कोटद्वार   पौड़ी जिला                     २५,४००
   काशीपुर   उधमसिंहनगर जिला     ९२,९७८      
          पौड़ी   पौड़ी जिला                     २४,७४२
    रुद्रपुर   उधमसिंहनगर जिला     ८८,७२०      
        श्रीनगर   पौड़ी जिला                     १९,८६१
   ऋषिकेश   देहरादून जिला             ५९,६७१      
       गोपेश्वर   चमोली जिला             १९,८५५
       रामनगर   नैनीताल जिला             ४७,०९९      
       रानीखेत   अल्मोड़ा जिला             १९,०४९९   
       पिथौरागढ़   पिथौरागढ़ जिला             ४१,१५७      
       खटीमा   उधमसिंहनगर जिला     १४,३७८
       जसपुर   उधमसिंहनगर जिला     ३९,०४८      
       जोशीमठ   चमोली जिला             १३,२०२
   नैनीताल   नैनीताल जिला             ३८,५५९      
      बागेश्वर   बागेश्वर जिला               ७,८०३
जनसंख्या २००१ की जनगणना के आधार पर

जनसांख्यिकी

यह भी पढ़े: कुमाऊँनी लोग, गढ़वाली लोग
जनसंख्या वृद्धि
२००१ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या ८४ लाख ८ हज़ार है। २०११ की जनगणना तक जनसंख्या क १ करोड़ तक हो जाने का अनुमान है। उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को कुमाँऊनी या गढ़वाली कहा जाता है जो प्रदेश के दो मण्डलों कुमाँऊ और गढ़वाल में रहते हैं। एक अन्य श्रेणी हैं गुज्जर, जो एक प्रकार के चरवाहे हैं और दक्षिणपश्चिमी तराई क्षेत्र में रहते हैं।
मध्य पहाड़ी की दो बोलियाँ कुमाँऊनी और गढ़वाली, क्रमशः कुमाँऊ और गढ़वाल में बोली जाती हैं। जौनसारी और भोटिया दो अन्य बोलियाँ, जनजाति समुदायों द्वारा क्रमशः पश्चिम और उत्तर में बोली जाती हैं। लेकिन हिन्दी पूरे प्रदेश में बोली और समझी जाती है और नगरीय जनसंख्या अधिकतर हिन्दी ही बोलती है।
उत्तराखण्ड में धार्मिक समूह
धार्मिक समूह   

प्रतिशत[४]   
हिन्दू   
  
85.00%
मुसलमान   
  
11.92%
सिख   
  
2.49%
ईसाई   
0.32%
बौद्ध   
0.15%
जैन   
0.11%
अन्य   
0.01%

शेष भारत के समान ही उत्तराखण्ड में हिन्दू बहुमत में हैं और कुल जनसंख्या का ८५% हैं, इसके बाद मुसलमान १२%, सिख २.५%, और अन्य धर्मावलम्बी ०.५% हैं। यहाँ लिंगानुपात प्रति १००० पुरुषों पर ९६४, और साक्षरता दर ७२% है। राज्य के बड़े नगर हैं देहरादून (५,३०,२६३), हरिद्वार (२,२०,७६७), हल्द्वानी (१,५८,८९६), रुड़की (१,१५,२७८), और रुद्रपुर (८८,७२०)। राज्य सरकार द्वारा १५,६२० ग्रामों और ८१ नगरीय क्षेत्रों की पहचान की गई है।
कुमाँऊ और गढ़वाल के इतिहासकारों का कहना है की आरम्भ में यहाँ केवल तीन जातियाँ थी राजपूत, ब्राह्मण, और शिल्पकार। राजपूतों का मुख्य व्यवसाय ज़मीदारी और कानून-व्यस्था बनाए रखना था। ब्राह्मणों का मुख्य व्यवसाय था मन्दिरों और धार्मिक अवसरों पर धार्मिक अनुष्ठानों को कराना। शिल्प्कारों मुख्यतः राजपूतों के लिए काम किया करते थे और हथशिल्पी में दक्ष थे। राजपूतों द्वारा दो उपनामों रावत और नेगी का उपयोग किया जाता है।

अर्थव्यस्था

उत्तराखण्ड का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष २००४ के लिए वर्तमान मूल्यों के आधार पर अनुमानित २८०.३२ अरब रुपए (६ अरब डॉलर) था। उत्तर प्रदेश से अलग होकर बना यह राज्य, पुराने उत्तर प्रदेश के कुल उत्पादन का ८% उत्पन्न करता है।
२००३ की औद्योगिक नीति के कारण, जिसमें यहा निवेश करने वाले निवेशकों को कर राहत दी गई है, यहाँ पूँजी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सिडकुल, उताराखण्ड औद्योगिक विकास निगम, ने राज्य के दक्षिणी छोर पर सात औद्योगिक भूसंपत्तियों की स्थापना की है, जबकि ऊचले स्थानों पर दर्जनों पनबिजली बाँधों का निर्माण चल रहा है। फिर भी, पहाड़ी क्षेत्रों का विकास अभी भी एक चुनौती बना हुआ है क्योंकि लोगों का पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन जारी है।

परिवहन

उत्तराखण्ड रेल, वायु, और सड़क मार्गों से अच्छे से जुड़ा हुआ है।

हवाई अड्डे
राज्य के कुछ हवाई क्षेत्र हैं:


जॉलीग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून
जॉलीग्रांट हवाई अड्डा (देहरादून)
पंतनगर हवाई अड्डा (नैनी सैनी, पंतनगर)
उत्तरकाशी
गोचर (चमोली)
अगस्त्यमुनि (हेलिपोर्ट) (रुद्रप्रयाग)
पिथौरागढ़

रेलवे स्टेशन


हरिद्वार रेलवे स्टेशन का प्रवेश
राज्य के रेलवे स्टेशन हैं:
देहरादून
हरिद्वार
हल्द्वानी-काठगोदाम
रुड़की
रामनगर

बस अड्डे


देहरादून का आईएसबीटी
राज्य के प्रमुख बस अड्डे हैं:
देहरादून
हरिद्वार
हल्द्वानी
रुड़की
रामनगर

पर्यटन

छोटा चारधाम

केदारनाथ • बद्रीनाथ
गंगोत्री • यमुनोत्री

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फुरसती, साहसिक, और धार्मिक पर्यटन उत्तराखण्ड की अर्थव्यस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और बाघ संरक्षण-क्षेत्र और नैनीताल, अल्मोड़ा, कसौनी, भीमताल, रानीखेत, और मसूरी जैसे निकट के पहाड़ी पर्यटन स्थल जो भारत के सर्वाधिक पधारे जाने वाले पर्यटन स्थलों में हैं। पर्वतारोहियों के लिए राज्य में कई चोटियाँ हैं, जिनमें से नंदा देवी, सबसे ऊँचा है और १९८२ से अबाध है है। अन्य राष्टीय आश्चर्य हैं फुउलों की घाटी, जो नंदा देवी के साथ मिलकर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
उत्तराखण्ड में, जिसे "देवभूमि" भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के कुछ सबसे पवित्र तीर्थस्थान है, और हज़ार वर्षों से भी अधिक समय से तीर्थयात्री यहा मोक्ष और पाप शुद्धिकरण की खोज में यहाँ आ रहे हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री, को क्रमशः गंगा और यमुना नदियों के उदग्म स्थल हैं, केदारनाथ (भगवान शिव को समर्पित) और बद्रीनाथ (भगवान विष्णु को समर्पित) के साथ मिलकर उत्तराखण्ड के छोटा चार धाम बनाते हैं, जो हिन्दू धर्म के पवित्रतम परिपथ में से एक है। हरिद्वार के निकट स्थित ऋषिकेश भारत में योग क एक प्रमुख स्थल है, और जो हरिद्वार के साथ मिलकर एक पवित्र हिन्दू तीर्थ स्थल है।


हरिद्वार में संध्या आरती के समय हर की पौड़ी का एक दृश्य।
हरिद्वार में प्रति बारह वर्षों में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें देश-विदेश से आए करोड़ो श्रद्धालू भाग लेते हैं।राज्य में मंदिरों और तीर्थस्थानों की बहुतायत है, जो स्थानीय देवताओं या शिवजी या दुर्गाजी के अवतारों को समर्पित हैं, और जिनक संदर्भ हिन्दू धर्मग्रंथों और गाथाओं में मिलता है। इन मन्दिरों का वास्तुशिल्प स्थानीय प्रतीकात्मक है और शेष भअरत से थोड़ा भिन्न है। जागेश्वर मे स्थित प्रचीन मन्दिर (देवदार वृक्षों से घिरा हुआ १२४ मन्दिरों का प्राणंग) एतिहासिक रूप से अपनी वास्तुशिल्प विशिष्टता के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। तथापि, उत्तराखण्ड केवल हिन्दुओं के लिए ही तीर्थाटन स्थल नहीं है। हिमालय की गोद में स्थित हेमकुण्ड साहिब, सिखों का तीर्थ स्थल है। मिंद्रोलिंग मठ और उसके बौद्ध स्तूप से यहाँ तिब्बती बौद्ध धर्म की भी उपस्थिति है।

शिक्षा



लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी
उत्तराखण्ड के शैक्षणिक संस्थान भारत और विश्वभर के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये एशिया के सबसे कुछ सबसे पुराने अभियांत्रिकी संस्थानों का घर है, जैसे रुड़की का भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (पहले रुड़की विश्वविद्यालय) और पंतनगर का गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय। विशेष महत्व के अन्य संस्थान हैं, देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी, इक्फ़ाई विश्वविद्यालय, भारतीय वानिकी संस्थान; पौड़ी स्थित गोविन्द बल्लभ पंत अभियांत्रिकी महाविद्यालय, और द्वाराहाट स्थित कुमाऊँ अभियांत्रिकी महाविद्यालय।
उत्तराखण्ड में बहुत से निजी संस्थान भी हैं, जैसे ग्राफ़िक एरा संस्थान, देहरादून प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय एयर हॉस्टेस अकादमी इत्यादि।
उत्तराखण्ड बहुत से जाने-माने दिनी और बोर्डिंग विद्यालयों का घर भी है जैसे दून विद्यालय (देहरादून) सेण्ट जोसफ़ कॉलेज (नैनीताल), वेल्हम गर्ल्स स्कूल (देहरादून), वेल्हम बॉयस स्कूल (देहरादून), सेण्ट थॉमस कॉलेज (देहरादून), सेण्ट जोसफ़ अकादमी (देहरादून), वुडस्टॉक स्कूल (मसूरी), बिरला विद्या निकेतन (नैनीताल), भोवाली के निकट सैनिक स्कूल घोड़ाखाल, राष्ट्रीय भारतीय सैन्य महाविद्यालय (देहरादून), द एशियन स्कूल (देहरादून), द हेरिटैज स्कूल (देहरादून), जी डी बिरला मैमोरियल स्कूल (रानीखेत), सेलाकुइ वर्ल्ड स्कूल (देहरादून), वेदारंभ मॉण्टेसरी स्कूल (देहरादून), और शेरवुड कॉलेज (नैनीताल)। बहुत से विदुषकों ने इन विद्यालयों से शिक्षा ग्रहण की जिनमें बहुत से भूतपूर्व प्रधानमन्त्री और अभिनेता इत्यादि भी हैं।
हाल ही के वर्षों में बहुत से निजी संस्थान भी यहाँ खुले हैं जिनके कारण उत्तराखण्ड तकनीकी, प्रबन्धन, और अध्यापन-शिक्षा के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में उभरा है। कुछ उल्लेखनीय संस्थान हैं देहरादून प्रौद्योगिकी संस्थान (देहरादून), अम्रपाली अभियांत्रिकी एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (हल्द्वानी), सरस्वती प्रबन्धन एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (रुद्रपुर), और पाल प्रबन्धन एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (हल्द्वानी)।
एतिहासिक रूप से यह माना जाता है की उत्तराखण्ड वह भूमि है जहाँ पर शास्त्रों और वेदों की रचना की गई थी और महाकाव्य, महाभारत लिखा गया था। ऋषिकेश को व्यापक रूप से विश्व की योग राजधानी माना जाता है।
[संपादित करें] विश्वविद्यालय
क्षेत्रीय भावनाओं को ध्यान में रखते हुए जो बाद में उत्तराखण्ड राज्य के रूप में परिणित हुआ, गढ़वाल और कुमाऊँ विश्वविद्यालय १९७३ में स्थापित किए गए थे। उत्तराखण्ड के सर्वाधिक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हैं:
नाम   प्रकार   स्थिति
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की   केन्द्रीय विश्वविद्यालय   रुड़की
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान २०१२ से   केन्द्रीय विश्वविद्यालय   ऋषिकेश
भारतीय प्रबंधन संस्थान २०१२ से   केन्द्रीय विश्वविद्यालय   काशीपुर
गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय   राज्य विश्वविद्यालय   पंतनगर
हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय   केन्द्रीय विश्वविद्यालय   श्रीनगर व पौड़ी
कुमाऊँ विश्वविद्यालय   राज्य विश्वविद्यालय   नैनीताल और अल्मोड़ा
उत्तराखण्ड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय   राज्य विश्वविद्यालय   देहरादून
दून विश्वविद्यालय   राज्य विश्वविद्यालय   देहरादून
पेट्रोलियम और ऊर्जा शिक्षा विश्वविद्यालय   निजि विश्वविद्यालय   देहरादून
हिमगिरि नभ विश्वविद्यालय   निजि विश्वविद्यालय   देहरादून
भारतीय चार्टर्ड वित्तीय विश्लेषक संस्थान (आईसीएफ़एआई)   निजि विश्वविद्यालय   देहरादून
भारतीय वानिकी संस्थान   डीम्ड विश्वविद्यालय   देहरादून
हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ़ हॉस्पिटल ट्रस्ट   डीम्ड विश्वविद्यालय   देहरादून
ग्राफ़िक एरा विश्वविद्यालय   डीम्ड विश्वविद्यालय   देहरादून
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय   डीम्ड विश्वविद्यालय   हरिद्वार
पतंजली योगपीठ विश्वविद्यालय   निजि विश्वविद्यालय   हरिद्वार
देव संस्कृत विश्वविद्यालय   निजि विश्वविद्यालय   हरिद्वार
उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय   राज्य विश्वविद्यालय   हल्द्वानी
































Rajen

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उत्तराखण्ड की पूरी जानकारी एक पृष्ट पर. 
Great job.  Keep it up.  Thanks Lalit ji. +1 Karma to U.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराचंल की प्रमुख झीलें (ताल)

गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नंदीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीताल, भीमताल, सात ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल (कुंमाऊँ क्षेत्र) इत्यादि।

 

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