बुग्याल तथा गिरिद्वार (दरें)
महा-हिमालय अपने उतुंग शिर्न्गों,विस्तृत हिमानियों और हिमानी झीलों के लिए जितना प्रशिध है उतनी ही अपनी चर-भोमियों के लिए भी है!वर्षाऋतू मैं अर्ध-यायावर पशुपालक अपने पशुओं के साथ यहाँ दिखाई देते हैं,हिम रेखा से निचे ३५०० मी से ६००० मी की ऊंचाई के मध्य,कोमल घास की ढलाने उत्तराखंड मैं बुग्याल कहलाती हैं!ये बुग्याल बुगी ममला आदि मिर्दु घासों की पोष्टिक चर भोमियां है, और ब्रहमकमल, शाल्म्पंजा,सोम,निर्विषी,रुद ्रवंती,विशंकडआर आदि असंख्य प्रकार के पुष्पों के सागर है,ये गुग्गल,बिल,जटामासी जैसी धुप बूटियां एवं कूट ममिरी,रतन्ज्योति,जैसी ओसधियों के भण्डार हैं!
पशु चारण के लिए बुग्याल इतने लोक प्रिय हैं,कि इन्हें पशुपालकों का स्वर्ग कहा जाता है!इन्हें कश्मीर मैं मर्ग तःथा कुल्लू मैं थच कहते हैं!पशुचार्क अन्नुवाल,पालसी,चल्घुम्तु,गु जर,या गदि कहलाते है! कुमाओं मंडल के पिथौरागढ़ जनपद मैं भेड़पालन आर्थिक सम्पन्नता का प्रतीक है,अनेक बुग्याल छेत्र मैं राज्राम्भा,नागलिंग,बुर्फू,च ोटी,लातुधरा,तिर्शूली,हर्देव ल,स्वियितिला,बम्बधुरा,नन्दग ों तथा छोटा कैलाश भेड बाहुल्य स्थान है!