Author Topic: Etymology & Geography - उत्तराखंड,गढ़वाल तथा कुमाऊ की नामोत्पति,और भूगोल  (Read 33016 times)

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०७-चोपता
गढ़वाल जनपद मैं उखीमठ-गोपेश्वर मोटर मार्ग पर स्तिथ यह बुग्याल ३८०० मी की ऊंचाई पर है!

०८-कुश कल्याण
उत्तरकाशी जनपद मैं लगभग ४५०० मी की ऊंचाई पर उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग तह अत्यंत सुरम्य बुग्याल है!

०९-मदम्हेस्वर
कसनी खर्क के नाम से यह बुग्याल ३३०० मी की ऊंचाई पर गुप्तकाशी-कलिगढ़ मार्ग पर स्तिथ है!

१०-कल्पनाथ
यह बुग्याल २१३५ मी की ऊंचाई पर जनपद चमोली मैं बद्रीनाथ ऋषिकेश मार्ग स्तिथ है!

११-हरकीदून
उत्तरकाशी जनपद मैं ३६०० मी की ऊंचाई पर बन्दरपूँछ पर्वत के निम्न ढलानों पर स्तिथ यह बुग्या अपनी मखमली घास के लिए प्रशिध है इन बुग्यालों के अतिरिक्त पिथौरागढ़ जनपद मैं पिंडारी,नामिक,जोहार,खालिया,लंदिपान्गली,रहाली,जिम्बाबू,दर्तिधर बग्पानी तथा छिप्लाकोट उल्लेखनीय बुग्याल हैं!

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१२-हेमकुंड
ऐसा कहा जाता है कि यहां पहले एक मंदिर था जिसका निर्माण भगवान राम केअनुज लक्ष्मण ने करवाया था। सिखों के दसवें गुरू गोविंद सिंह ने यहां पूजाअर्चना की थी। बाद में इसे गुरूद्वारा धोषित कर दिया गया। इस दर्शनीयतीर्थ में चारों ओर से बर्फ की ऊँची चोटियों का प्रतिबिम्ब विशालकाय झीलमें अत्यन्त मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण लगता है। इसी झील में हाथीपर्वत और सप्त ऋषि पर्वत श्रृंखलाओं से पानी आता है।
एक छोटी जलधारा इसझील से निकलती है जिसे हिमगंगा कहते हैं। झील के किनारे स्थित लक्ष्मणमंदीर भी अत्यन्त दर्शनीय है। अत्यधिक ऊँचाई पर होने के कारण साल में लगभग7 महीने यंहा झील बर्फ में जम जाती है। फूलों की धाटी यहां का नजदीकीपर्यटन स्थल है।
हेमकुंड को स्न्रो लेक के नाम से भी जाना जाता है। यह समुद्र तल से 4329मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां बर्फ से ढके सात पर्वत हैं, जिसे हेमकुंडपर्वत के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त तार के आकार में बनागुरूद्वारा जो इस झील के समीप ही है सिख धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थानोंमें से एक है।
यहां विश्‍व के सभी स्थानों से हिन्दू और सिख भक्त काफीसंख्या में घूमने के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरू गोविन्द सिंहजी, जो सिखों के दसवें गुरू थे, यहां पर तपस्या की थी। यहां घूमने के लिएसबसे अच्छा समय जुलाई से अक्टूबर है।

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१३-काक्भुन्शुडीताल
चमोली जनपद मैं५३५० मी की ऊंचाई पर जोशीमठ  के ठीक सामने पूर्व की ओर हाथी पर्वत की घाटी मैं लहभग एक वर्ग किमी छेत्र मैं काक्भुन्शुडीताल का विस्तार है!इस ताल पर दो मार्गों द्वारा पहुंचा जा सकता है,पहला जोशीमठ से ८ किमी बद्रीनाथ की ओर फेंका गाँव,ब्र्हम्कुंद,पंचविनायक,मणिघाटी,होकर तथा दूसरा मार्ग जोशीमठ से १६ किमी गोविन्द घाट,भुन्दार गाँव,रूप्धुंगी,समर्तोली बुग्याल तथा कुन्कुंखाल दरें से होकर जाता है!
जन शुर्ती है कि-रामायण मैं उदद्रित महापंडित काक्भुशुंडी ने रामभक्त जटाऊ को इसी स्थान पर राम-महिमा सुने थी!संयोग वस् आज भी काक्भुशुंडी और जटाऊ रुपी दो पर्वतों के मध्य पुस्तक के पृष्ठों के सदिर्स्य परतदार चट्टानेताल उत्तर- पूर्वी छोर पर दृष्टि गोचर होती है!इस ताल मैं पहुँचने के दोनों मार्ग अत्यंत दुरूह और पश्त्साद्य हैं,अथ ताल का पौराणिक महत्व होते हुए भी बहुत कम पर्यटक यहाँ पहुँचने का साहस कर पाते हैं !

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उत्तराखंड की प्रमुख नदियाँ और जलपर्वाह
१-भागीरथी अलकनंदा जलप्रवाह तंत्र -

इस प्रवाह छेत्र के अर्न्तगत उत्तरकाशी जनपद के पश्चिमी भाग को छोड़कर गढ़वाल,रुद्रप्रयाग, चमोली,तथा अल्मोडा जनपद के पश्चिमी छेत्र सम्मिलित हैं!
भागीरथी और अलकनंदा महाहिमालय के चौखम्बा शिखर के विपरीत ढालों से उद्गाम्मित है,अलकनंदा भागीरथी की प्रमुख सहायक नदी है,तथा भागीरथी से लम्बा प्रवाह बनाती है!अलकनंदा अलकापुरी बांक ग्लेशियर (६०७६मि)से निकलती है,वशुधर पर्पात भी इसी नदी पर है,शास्त्रोक्त छीर सागर भी बद्रीनाथ से २५ किमी दूर अलकनंदा नदी पर है,बद्रीनाथ धाम से ४ किम दूर अंतिम भारतीय सीमान्त गाँव माणा के पास देवताल से निश्त्रित सरस्वती ,केशव प्रयाग मैं अलकनंदा नदी से संगम बनाती है!
रिशिगंगा तथ अलकनंदा के संगम पर ही बद्रीनाथपुरी स्तिथ है,धोलिगंगा,निति छत्र से धोलागिरी पर्वत के कनुलुक श्रेणी से निकलकर विशनी प्रयाग मैं अलकनंदा नदी मैं मिल जाती है,पहले बाल्खिला की नदी तुंगनाथ-रुद्रनाथ की श्रेणियों से निकलकर अलकनंदा मैं समा जाती थी!आगे चलकर बिहारिगंगा,पातालगंगा ,व गरुड़गंगा अलकनंदा मैं सम्मिलित ही जाती है!नंदाकिनी त्रिशूल पर्वत से निकलकर नंदप्रयाग मैं अलकनंदा से संगम बनाती है!पिन्दार नदी बागेश्वर से निकलकर पिंडारी ग्लेशियर से निकलकर,करणप्रयाग मैं अलकनंदा नदी मैं मिल जाती है,
भारत की सर्व्श्रेस्थ व पवित्रतम नदी गंगा का आदि उद्गम स्थान ,गंगोत्री से लगभग २० किम उत्तरपूर्व की ओर गोमुख है! पौराणिक आधार पर राजा भागीरथ के अथक प्रयास से गंगा पिर्थ्वी के कल्याण हेतु स्वर्ग से आवृत हुई है! अपने उद्गम स्थान से देवप्रयाग तक गंगा नदी राजा भागीरथ के नाम से भागीरथी कही जाती है!
भिलंगना नदी जो टिहरी के निर्माण से पूर्व तक भागीरथी सहायक नदी थी!गंगोत्री हिमनद से दक्षिणी पश्चिमी ढाल से नकलती है,इन दोनों नदियों का सगम स्थल गणेश प्रयाग टिहरी के के निकट था!इन दोनों स्थानों का अस्तित्वा टिहरी बाँध पैयोजना पूरण होने के साथ ही समाप्त हो गया है!
देवप्रयाग  से आगे चलकर गढ़वाल जनपद की प्रमुख नदी न्यार नदी दो जल धाराओं, पूर्वी न्यार तथ पश्चिमी न्यार नदियों की संयुक्त धारा है!

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2-यमुना टोंस जल्प्रह तंत्र

पश्चिमी हिमालय से निकल कर उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा की सीमा के सहारे सहारे 95 मील का सफर कर उत्तरी सहारनपुर (मैदानी इलाका) पहुंचती है । फिर यह दिल्ली, आगरा से होती हुई इलाहाबाद में गंगा नदी में मिल जाती है ।

भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना की गणना गंगा के साथ की जाती है। यमुना और गंगा के दो आब की पुण्यभूमि में ही आर्यों की पुरातन संस्कृतिका गौरवशाली रुप बन सका था। ब्रजमंडल की तो यमुना एक मात्र महत्वपूर्ण नदी है। जहां तक ब्रज संस्कृति का संबध है, यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्ध कालीन परम्परा की प्रेरक और यहा की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है।

पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार यह देव स्वरुप है। भुवनभास्कर सूर्य इसके पिता, मृत्यु के देवता यम इसके भाई और भगवान श्री कृष्ण इसके परि स्वीकार्य किये गये हैं।
जहां भगवान् श्री कृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक कहे जाते है, वहां यमुना इसकी जननी मानी जाती है। इस प्रकार यह सच्चे अर्थों में ब्रजवासियों की माता है। अतः ब्रज में इसे यमुना मैया कहना सर्वथा सार्थक है। ब्रम्ह पुराण में यमुना के आध्यात्मिक स्वरुप का स्पष्टीकरण करते हुए विवरण प्रस्तुत किया है -

 "जो सृष्टि का आधार है और जिसे लक्ष्णों से सच्चिदनंद स्वरुप कहा जाता है, उपनिषदों ने जिसका व्रम्ह रुप से गायन किया है, वही परमतत्व साक्षात् यमुना है। १" गौड़िय विद्वान श्री रुप गोस्वामी ने यमुना को साक्षात् चिदानंदमयी वतलाया है। २ गर्गसंहिता में यमुना के पचांग - १.पटल, २. पद्धति, ३. कवय, ४. स्तोत्र और ५. सहस्त्र नाम का उल्लेख है। 'यमुना सहस्त्र नाम' में यमुना जी के एक हजार नामों से उसकी पशस्ति का गायन किया गया है। ३ यमुना के परमभक्त इसका दैनिक रुप से प्रति दिन पाठ करते हैं।

ब्रजभाषा के भक्त कवियों और विशेषतया वल्लभ सम्प्रदायी कवियों ने गिरिराज गोवर्धन की भाँति यमुना के प्रति भी अतिशय श्रद्धा व्यक्त की है। इस सम्प्रदाय का सायद ही कोई कवि हो, जिसने अपनी यमुना के प्रति अपनी काव्य - श्रद्धांजलि अर्पित न की हो। उनका यमुना स्तुति संबंधी साहित्य ब्रजभाषा भक्ति काव्य का एक उल्लेखनीय अंग है।

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मैदान में जहा इस समय यमुना का प्रवाह है, वहा वह सदा से प्रवाहित नहीं होती रही है। पौराणिक अनुश्रुतियों और ऐतिहासिक उल्लेखों से ज्ञात होता है, यद्यपि यमुना पिछले हजारों वर्षो से विधमान है, तथापि इसका प्रवाह समय समय पर परिवर्तित होता रहा है। अपने सुधीर्ध जीवन काल में इसने जितने स्थान वदले है, उनमें से बहुत कम की ही जानकारी हो सकी है।

प्रागऐतिहासिक काल में यमुना मधुबन के समी बहती थी, जहां उसके तट पर सत्रुध्न जी सर्वप्रथम मथुरा नगरी की स्थापना की थी वाल्मीकि रामायण और विष्णु पुराण में इसका विवरण प्राप्त होता है। १ कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा केशव देव के निकट था ।

 सत्रहवीं शताबदी में भारत आने वाले यूरोपीय विद्वान टेवर्नियर ने कटरा के समीप की भूमि को देख कर यह अनुमानित किया था कि वहां किसी समय यमुना की धारा थी। इस संदर्भ में ग्राउज का मत है कि ऐतिहासिक काल में कटरा के समीप यमुना के प्रवाहित होने की संभावना कम है, किन्तु अत्यन्त प्राचीन काल में वहाँ यमुना अवश्य थी। २ इससे भी यह सिद्ध होता है कि कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा के समीप ही था।

कनिधंम का अनुमान है, यननानी लेखकों के समय में यमुना की प्रधान धारा या उसकी एक बड़ी शाखा कटरा केशव देव की पूर्वी दीवाल के नीचे बहती होगी। ३ जव मथुरा में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार गो गया और यहाँ यमुना के दोंनों ओर अनेक संधारम बनाये गये, तव यमुना की मुख्य धारा कटरा से हटकर प्रायः उसी स्थान पर बहती होगी, जहाँ वह अब है, किन्तु उसकी कोई शाखा अथवा सहायक नही कटरा के निकट भी विधमान थी।

ऐसा अनुमान है, यमुना की वह शाखा बौद्ध काल के बहुत बाद तक संभवतः सोलहवीं शताब्दी तक केशव देव मन्दिर के नीचे बहती रही थी। पहिले दो वरसाती नदियाँ 'सरस्वती' और 'कृष्ण गंगा' मथुरा के पश्चिमी भाग में प्रवाहित होकर यमुना में गिरती थीं, जिनकी स्मृति में यमुना के सरस्वती संगम और कृष्ण गंगा नामक धाट हैं। संभव है यमुना की उन सहायक नादियों में से ही कोई कटरा के पास बहती रही हो।

    * पुराणों से ज्ञात होता है, प्राचीन वृन्दाबन में यमुना गोबर्धन के निकट प्रवाहित होती थी। ४ जवकि वर्तमान में वह गोबर्धन से लगभग मील दूर हो गई है। गोवर्धन के निकटवर्ती दो छोटे ग्राम 'जमुनावती' और परसौली है। वहाँ किसी काल में यमुना के प्रवाहित होने उल्लेख मिलते हैं।

बल्लभ सम्प्रदाय के वार्ता साहित्य से ज्ञात होता है कि सारस्वत कल्प में यमुना नदी जमुनावती ग्राम के समीप बहती थी। उस काल में यमुना नदी की दो धाराऐं थी, एक धारा नंदगाँव, वरसाना, संकेत के निकट वहती हुई गोबर्धन में जमुनावती पर आती थी और दूसरी धारा पीरधाट से होती हुई गोकुल की ओर चली जाती थी। आगे दानों धाराएँ एक होकर वर्तमान आगरा की ओर बढ़ जाती थी। ५

परासौली में यमुना को धारा प्रवाहित होने का प्रमाण स. १७१७ तक मिलता है। यद्यपि इस पर विश्वास होना कठिन है। श्री गंगाप्रसाद कमठान ने ब्रजभाषा के एक मुसलमान भक्तकवि कारबेग उपमान कारे का वृतांत प्रकाशित किया है। काबेग के कथनानुसार जमुना के तटवर्ती परासौली गाँव का निवासी था और उसने अपनी रचना सं १७१७ में स्त्रजित की थी।



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3-काली गंगा जल्प्राह



काली नदी का उद्गम स्थान वृहद्तर हिमालय में ३,६०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित कालापानी नामक स्थान पर है, जो भारत के उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में है। इस नदी का नाम काली माता के नाम पर पड़ा जिनका मंदिर कालापानी में लिपु-लीख दर्रे के निकट भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित है। अपने उपरी मार्ग पर यह नदी नेपाल के साथ भारत की निरंतर पूर्वी सीमा बनाती है। यह नदी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में पहुँचने पर शारदा नदी के नाम से भी जानी जाती है।

काली नदी जौल्जिबि नामक स्थान पर गोरी नदी से मिलती है। यह स्थान एक वार्षिक उत्सव के लिए जाना जाता है। आगे चलकर यह नदी, कर्नाली नदी से मिलती है और बहराइच जिले में पहुँचने पर इसे एक नया नाम मिलता है, सरयु और आगे चलकर यह गंगा नदी में मिल जाती है। पंचेश्वर के आसपास के क्षेत्र को 'काली कुमाँऊ' कहा जाता है। काली पहाड़ो से नीचे मैदानो पर उतरती है और इसे शारदा के नाम से जाना जाता है।

सिंचाई और पन-विद्युत ऊर्जा के लिए बनाया जा रहा पंचेश्वर बांध, जो नेपाल के साथ एक संयुक्त उद्यम है, शीघ्र ही सरयू या काली नदी पर बनाया जाएगा। टनकपुर पनविद्युत परियोजना (१२० मेवॉ) अप्रैल १९९३ में उत्तराखंड सिंचाई विभाग द्वारा साधिकृत की गई थी, जिसके अंतर्गत चमोली के टनकपुर कस्बे से बहने वाली शारदा नदी पर बैराज बनाया गया।

काली नदी गंगा नदी प्रणाली का एक भाग है।

२००७ में काली नदी, गूँच मछ्लीयों के हमलो के कारण समाचारों में भी छाई।

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विष्णुगंगा नदी का समायोजन अलकनंदा नदी में विष्णुप्रयाग में हुआ है।

भ्युन्दर नदी (ध्वल गंगा) जो अलकनंदा की सहायक नदी है, कामत हिमशिखर के पूर्व से निकली है।

पिंडर नदी पिंडारी हिमखण्ड से निकलती है तथा कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी में मिलती है।

धौलीगंगा नदी, जो अलकनंदा की सहायक नदी है, गढ़वाल और तिब्बत के बीच नीति दर्रे से निकली है। इसमें कई अन्य छोटी नदियॉं मिलती है जैसे - पर्ला, कामत, जैन्ती, अमृतगंगा तथा गिर्थी नदियॉ।

अमृतगंगा नदी कागभुसंड शिखर के बनकुण्ड हिमखण्ड से निकली है।

दूधगंगा नदी कालापानी हिमखण्ड से निकली है।

मंदाकिनी नदी केदारनाथ क्षेत्र में 3800 मी0 ऊँचाई पर सतोपंथ तथा खरक हिम खण्डों से निकली है, तथा बाद में रूद्रप्रयाग के पास अलकनंदा नदी में मिल जाती है।केदारनाथ में मंदाकिनीकेदारनाथ में मंदाकिनी भण्डाल नदी एक वर्षा पर आधारित नदी है तथा देहरादून घाटी में सोंग नदी में मिल जाती है।

बिन्दाल नदी प्राकृतिक स्रोतों से बनी है तथा मसूरी के आधार से निकलती है।

देवप्रयाग में भगीरथी तथा अलकनन्दा के संगम से गंगा नदी बनती है।

यमुना नदी हिमालय की बन्दरपूछॅ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकली है।

टोंस नदी हर-की-दून घाटी से निकलती है तथा कालसी में यमुना नदी में मिलती है।

सोंग नदी दून घाटी के मध्यपूर्वी भाग के पानी को लेकर बनी है तथा ऋषिकेश व हरिद्वार के बीच गंगा में मिलती है।

काली नदी या कालीगंगा का जलागम पूर्वी कुमाऊँ व पश्चिमी नेपाल क्षेत्र है। इसकी सहायक नदियॉं है धोलीगंगा (पूर्वोत्तर कुमाऊँ गोरी गंगा (उत्तर-मध्य कुमाऊँ), सरजू तथा लधिया नदियॉं है।

धौलीगंगा नदी पिथौरागढ़ में काली नदी की सहायक नदी है।

गोला नदी प्राकृतिक स्रोतों द्वारा बनी कुमाऊँ की तलहटी में एक छोटी नदी है, जिसका जलागम शिवालिक पर्वतों पर हल्द्वानी शहर का पूर्वी भाग है।

रामगंगा नदी का जलागम क्षेत्र दक्षिण-पश्चिमी कुमाऊँ है। यह नदी मैदानी क्षेत्र में कालागढ़ पहुँचती है तथा बाद में कन्नौज के पास गंगा नदी में मिलती है।

कोसी नदी प्राकृतिक जल स्रोतों से बनी है तथा अल्मोड़ा के पास से निकलती है।

जाह्नवी नदी उत्तरकाशी के पास भगीरथी नदी में मिलती है।

नन्दाकिनी नदी नन्द प्रयाग के पास अलकनन्दा नदी में मिलती है।

रामगंगा (सरजू) नदी सरजू नदी की एक सहायक नदी है जो काली नदी में मिल जाती है। यह नदी गढ़वाल व कुमाऊँ के मध्य दक्षिण-पूर्वी ढाल पर छोटे से हिमखण्ड से निकली है।

भगीरथी , अलकनन्दा एवं गंगा की मुख्य सहायक नदियॉं

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  हिमानियाँ ग्लेशियर

जल स्तर के पारित होने के बाधित होने के नाते को रिको शाखा वृद्धि शुरू होता है, यह निरंतर दबाव और बर्फ के पानी के तापमान के अंतर की अनुमति, इसे कमजोर शुरू होता है, पल जब बर्फ अंततः झूलना शुरू होता है, एक सुरंग बनाने तक बर्फ, जो दो झील के एक खाते देता है क्षण भर के अलग घाटियों. जल निकासी की दर (झील के स्तर में फर्क के कारण होता है) अपनी अंतिम विनाश तक सुरंग बढ़ाया.[/color

बढ़ते तापमान का भारतीय ग्लेशियरों पर बुरा असर पड़ रहा है और अगर ग्लेशियरों के पिघलने की यही रफ्तार रही तो हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक गायब हो जाएंगे। अध्ययन में पाया गया है कि हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बहुत तेज है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कश्मीर में कोल्हाई ग्लेशियर पिछले साल 20 मीटर से अधिक पिघल गया है जबकि दूसरा छोटा ग्लेशियर पूरी तरह से लुप्त हो गया है। हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान के मुनीर अहमद का कहना है कि ग्लेशियरों के इस कदर तेजी से पिघलने की वजह ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ ब्राउन क्लाउड है।

दरअसल, ब्राउन क्लाउड प्रदूषण युक्त वाष्प की मोटी परत होती है और ये परत तीन किलोमीटर तक मोटी हो सकती है। इस परत का वातावरण पर विपरीत असर होता है और ये जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभाती है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की तलहटी में भी काले धूल के कण हैं और इनका घनत्व प्रदूषण वाले शहरों की तरह है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि क्योंकि काली-घनी सतह ज्यादा प्रकाश और ऊष्मा सोखती है, लिहाजा ग्लेशियरों के पिघलने की ये भी एक वजह हो सकती है। अगर ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार अंदाज़े के मुताबिक ही रही तो इसके गंभीर नतीजे होंगे। दक्षिण एशिया में ग्लेशियर गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र जैसी अधिकांश नदियों का मुख्य स्रोत हैं। ग्लेशियर के अभाव में ये नदियां बारहमासी न रहकर बरसाती रह जाएंगी और कहने की ज़रूरत नहीं कि इससे लाखों, करोड़ों लोगों का जीवन सूखे और बाढ़ के बीच झूलता रहेगा।

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उत्तराखंड हिमालय के दोनों मंडलों ,गढ़वाल तथा कुमाऊँ मैं निम्नवत ग्लेशियर उल्लेखनीय है

गढ़वाल हिमालय                                                 कुमाऊँ हिमालय

१-डोक्रियानी ग्लेशियर                                          १-पिंडारी ग्लेशियर

२-बंदरपूंछ ग्लेशियर                                             २-कफनी ग्लेशियर

३-खतलिंग ग्लेशियर                                            ३-मैकटोली ग्लेशियर

४-चौरा वाडी ग्लेशियर                                          ४-सुन्दर ढुंगा ग्लेशियर

५-दूनागिरी ग्लेशियर                                            ५-मिलम ग्लेशियर

६-हिपराबमक ग्लेशियर                                         ६-रालम ग्लेशियर

७-संतोपंथ ग्लेशियर                                              ७-नामिक ग्लेशियर

८-नंदादेवी ग्लेशियर                                              ८-पोंटिंग ग्लेशियर

९-गंगोत्री,गोमुख ग्लेशियर     

 

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