Author Topic: Etymology & Geography - उत्तराखंड,गढ़वाल तथा कुमाऊ की नामोत्पति,और भूगोल  (Read 40137 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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बंदरपूंछ ग्लेशियर

यह ग्लेशियर  यमुना नदी का प्रमुख स्त्रोत है। 12 किलोमीटर लम्बा यह ग्लेशियर, बंदरपूंछ चोटी (6316मीटर) के उत्तरी भाग, बंदरपूंछ पश्चिमी (6102मीटर) एवं खतलिंग चोटी ( 6387 मीटर) के मध्य में बसा है। यह ग्लेशियर तीन कोनों से घिरा हुआ है तथा बाद में यमुना नदी से जुड जाता है।

 

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खतलिंग ग्लेशियर

यह ग्लेयिशर टिहरी जनपद की भिलंगना नदी का प्रमुख स्त्रोत है, जो कि जोगिन ग्रुप (6466 मी.) स्फटिक पृस्तवाड (6905मी.),कीर्ति स्तम्भ (6902मी) एवं मेरू पर्वत श्रृखंलाओं से घिरा हुआ है । यहां देहरादून, ऋषिकेश, मंसूरी, टिहरी से धुत्तू तक बस द्वारा पहुंचा जा सकता है निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश एवं देहरादून है।

केदारनाथ धाम के पश्चिम मैं १० किमी की दूरी पर ४८०० मी की ऊंचाई पर जोगिन (६४६५मि) स्फटिक पृष्टवार (६९०५मि) बार्त कौटर(६५७९मि )तथा कीर्ति स्तम्भ (६९०२मि ) की हिमाच्छादित छोटी से घिरा हुवा यह टिहरी जनपद की घनसाली तहसील मैं भिलंगना नदी का स्रोत है! केदार खंड  उपपुराण मैं जिस स्फटिक लिंग का उल्लेख किया गया है,

 वस्तुत यही खतलिंग है यह विश्व का विशालतम शिभ लिंग है, इस ग्लेशियर मैं तें छोटी-छोटी हिमानियाँ भी मिल जाती है !कांठा सत्लिंग तथा दूध डोडा ,ग्लेशियर ले पार्स्व मैं स्तिथ मोरेन ने ऊँची दीवारों का स्वरूप ले लिया है !

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डोकरियानी ग्लेशियर


डोकरियानी बामक (ग्लेशियर का स्थानीय नाम बामक है) पूर्ण विकसित भगीरथी का स्रोत है। यह ग्लेशियर द्रोपदी-का-डंडा (5600मीटर) के उत्तरी ढलान तथा जौंली चोटी (6000मी0) के मध्य में स्थित है यह 5 कि0मी0 लम्बा उत्तर पश्चिम की दिशा में बढता हुआ 3800 मी0 की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर कई अच्छे पूर्ण विकसित चारागाह एवं झीले स्थित हैं। जिसके कारण यहां पर पथारोहियों हेतु अच्छी कैम्पिंग साइड उपलब्ध है।

यहां तक पहुँचने के लिये उत्तरकाशी से नेताला तक मोटर मार्ग से जुडा है। मोटर मार्ग से 2 किमी0- पैदल, की दूरी पर भगीरथी नदी के दाहिने छोर पर भुक्की गांव स्थित है ।

यहां से डोकरियानी ग्लेशियर 23 किमी0 पैदल मार्ग पर अवस्थित है । भगीरथी नदी को पार करने के पश्चात केला कैम्प (2500 मीटर) तक खडी चढाई है । केला से गूजरहट 12 कि0मी0 की दूरी पर, दीनगाड धारा के किनारे पर बसा है। मार्ग में अनेक ऊंची-नीची चढाईयॉ, छोटी-बडी धाराओं तथा देवदार, बुरांश, बांझ, चीड के वनों को पार करते हुये पहुँचा जा सकता है,

जो कि पथारोहियों को प्राकृतिक आनन्द एवं शान्ति प्रदान करते हैं । गूजरहट 3500 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है, जो कि उक्त ग्लेशियर से 5 किमी0 की दूरी पर है। यह इस घाटी का प्रवेश द्वार भी है। इस घाटी में विभिन्न प्रकार की बर्फ से ढकी चोटियां व छोटे-छोटे ग्लेशियर उपलब्ध हैं । यह स्थल कैम्पिगं के लिये बहुत ही उपयुक्त है। पथारोहियों को यहां पर खाने के लिये खाद्य सामग्री, टैन्ट गरम कपडे आदि साथ में लाने होते हैं ।

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चोरबाडी ग्लेशियर

यह गढवाल हिमालय का प्रमुख ग्लेशियर है, जो कि जनपद उत्तरकाशी में अवस्थित है । यह ग्लेशियर चौखम्बा चोटी के उत्तर दिशा में स्थित है ।

यह एक ही घाटी का ग्लेशियर नहीं है बल्कि अनेक अन्य ग्लेशियरों के एक-दूसरे से जुडने से बना है। भृगुपंथ (6772 मीटर) कीर्ति स्तम्भ (6285 मीटर) सुमेरूपर्वत (6380 मीटर) तथा रतवन, चतुरंगी स्वच्छद वामक जो श्री कैलाश के उत्तर-पूर्वी छोर में स्थित है, इसके चारों ओर अवस्थित है ।

 यह लगभग 28 किमी0 लम्बा ग्लेशियर है जो कि गोमुख (4000 मीटर) तक फैला है । यहां तक पहुंचने के लिये मोटर मार्ग से गंगोत्री मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां से 17 किमी0- पैदल भगीरथी नदी के दाहिनी ओर गोमुख की तरफ चलने से इस ग्लेशियर तक पहुंचा जा सकता है ।


रुद्र प्रयाग से ७८ किमी गोरीकुंड पहुंचकर केदारनाथ मंदिर तक पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है !  निकट ही ग्लेशियर के दर्वित जल से निर्मित गांधी सरोवर है !

यहीं पर महात्मा गाँधी की अस्थियों का विसर्जन किया गया था ,चौरा वाड़ी ग्लेशियर के आसपास केदार नाथ मंदिर से मात्र २ किमी दूर बर्फीली झीलें हैं !आयतन मैं विरधी होने से छमता से अधिक जलराशि बढ़ने से फटने की आशंका है !

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सतोपन्थ ग्लेशियर

बद्रीनाथ धाम से 25 कि0मी0 पैदल की दूरी पर 4402 मीटर की ऊंचाई पर यह तिकोनी झील एवं ग्लेशियर अवस्थित है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार इसके तीनों कोनों पर बह्मा, विष्णु एवं महेश का वास है ।

 इन्हीं के नाम पर इसका सतोपन्थ नाम दिया गया है । यह एक अत्यन्त ही दुर्गम एवं जटिल ट्रैकिंग मार्ग है इसलिये स्थानीय गाइड की सेवायें ली जानी अत्यन्त आवश्यक है ।

इस मार्ग पर कहीं पर भी ठहरने के लिये गुफाओं के अतिरिक्त कोई उचित व्यवस्था नहीं हैं । खाद्य सामाग्री आदि समस्त चीजें बद्रीनाथ से स्वयं ले जानी होती है ।
जोशीमठ से बद्रीनाथ- माणासड़क मार्ग से होकर माणा से आगे अलकनंदा के प्रवाह पथ के साथ-साथ बसुधारा नामक जलप्रपात पहुंचकर ५ किमी आगे दोनों हिमानियों के स्नाउट मिलते हैं !
ग्रीष्म ऋतू मैं इन हिमानियों तक पंहुचा जा सकता है

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तिप्राबामक ग्लेशियर     

जनपद चमोली के जोशीमठ तहसील, गोविन्दघाट से भ्यूंडार वैली में भ्यूंडार गंगा का मुख्य स्रोत तिप्राबामक ग्लेशियर है । इस ग्लेशियर के पास ही 16 अन्य विभिन्न आकार एवं प्रकार के ग्लेशियर उपलब्ध हैं, जिनमें से केवल तिप्राबामक व रतवन ग्लेशियर ही प्रसिद्ध है ।

 यहां तक पहुंचने के लिये जोशीमठ-बद्रीनाथ मार्ग पर गोविन्द घाट तक बस द्वारा पहुंचा जा सकता है तत्पश्चात गोविन्दघाट से घांघरिया 14 किमी0 ट्रैक तथा घांघरिया से तिप्राबामक ग्लेशियर 6 किमी0 पैदल पहुंचा जा सकता है ।

आवास हेतु घांघरिया में पर्यटक आवास गृह, गुरूद्वारा एवं अन्य निजी आवासीय व्यवस्था उपलब्ध है । सीजन- मध्य जून से मध्य अक्टूबर |

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                 उत्तराखंड मैं पाई जाने वाली मिटटी
१-पर्वतीय मिटटी
 यह मिटटी शुष्क एवं कंकड़ -पत्थरयुक् होती है तथा उच्चस्थ हिमानी छेत्रों मैं पाई जाती है यहाँ वनस्पति प्राय नगण्य होती हैं!वनस्पति विहीनता मिटटी की सघनता मैं वधक है अथ इन छेत्रों मैं चट्टानें नगन रू मैं पाई जाती हैं


२-एल्पाइन चारागाह (पास्चर्स ) मिटटी 
यह मिटटी उच्चस्थ छेत्रों मैं घास के विस्तृत मैदानों मैं पायी जाती है, जिन्हें बुग्याल कहतें हैं !यह शुष्क एवं कम उपजाऊ होती है!परन्तु इसमें कार्बन तत्व की प्रचुरता पाई जाती है !


३-उप-पर्वतीय मिटटी
 प्रदेश मैं देवदार स्प्रूस आदि के वनीय छेत्रों मैं उच्च पर्वतीय ढालों पर इस प्रकार की मिटटी पाई जाती है !जिसका रंग लाल -भूरा अथवा पीला होता है इन छेत्रों मैं वर्षा अधिक होती है!इस मिटटी मैं हुमस की प्रधानता रहती है!

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उत्तराखंड की भूमि में खेती के योग्य मिटटी

४- पर्वतीय छिचली मिटटी -यह मिटटी शिस्क एवं कंकड़-पत्थर युक्त होती है तह उच्च हिमानी छत्रों में पाई जाती है !
जहाँ वनस्पति प्राय नगण्य होती हैं !वनस्पति विहीनता मिटटी की सघनता में बाधक है !

 ५-चारागाह मिटटी -यह मिटटी उच्चस्थ छेत्रों में घास के मैदानों में पाई जाती है !जन्हें बुग्याल कहते हैं

६-भूरी लाल-पिली मिटटी -इस प्रकार मिटटी का संगठन बलुआ पत्थर,शेल तथा अभ्रक युक्त स्लेटी बलुआ पत्थर से निर्मिती होती है! धरातलीय चट्टानों एवं वानस्पतिक अवशेषों के कारण यह कई रंगों में पाई जाई है !इस प्रकार के मिटटी वाले छेत्रों में पाए जाने वाली वनस्पतियों में चीड सबसे ज्याद हैं !

७-त्र्शियारी मिटटी -समस्त हिमालय के पाद प्रदेशों तथ शिवालिक पहाडियों में हलकी बलुई छिद्रमय मिटटी पाई जाती है इसका विस्तार तराई भाभर तथा प्रदेश के मैदानी भागों उधमसिंह नगर तथा हरिद्वार जनपदों में है !

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उत्तराखंड में वनों का वितरण -प्रारूप


परदेश में जलवायु की विवधता के कारन वनस्पति भी भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं अथ वन संपदा को जलवायु तथा भू-आकिर्ति के सम्मलित प्रभाव के कारण निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता सकता है !


१-उषण कटिबंधीय पर्णपाती वन

इन वनों का विस्तार सिन्धु तल से ३०० से ६०० मीटर के मध्य तराई-भाभर तथा शिवालिक श्रेणियों में है जिसमें प्रतिवर्ष पतझड़ होता है!
इसमें मूल्यवान प्रजाति के विर्क्ष जैसे साल,शीशम,सैन,सागौन,सेमल,हल्दू,धौडी ,बहेडा,जामुन,रोहणी,तुन,शहतूत आदि पाए जाते हैं !

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२-हिमालयी उपोषण चीड के वन

चीड के विर्क्षों की प्रधानता वाले इन वनों का विस्तार मुख्यत समुद्र तल से ७००श्र १४०० मीटर की ऊंचाई वाले पहाडी ढालों में होते हैं !

चीड नुकीली पत्ती वाले विर्क्ष है जो २० से ३० मीटर की ऊंचाई का होता है इसकी लकडी लाल भूरी होती है इस विर्क्ष से मूल्यवान लीसा प्राप्त होता है !

राज्य के गढ़वाल और कुमाऊँ दोनों मंडलों में इस वन-प्रजाति का सबसे अधिक विस्तार देखने को मिलता है आर्थिक दिर्ष्टि से इन वनों से सबसे अधिक लाभांस प्राप्त होता है !

 

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