Uttarakhand > Uttarakhand at a Glance - उत्तराखण्ड : एक नजर में

Etymology & Geography - उत्तराखंड,गढ़वाल तथा कुमाऊ की नामोत्पति,और भूगोल

<< < (10/11) > >>

Devbhoomi,Uttarakhand:
२-बाढ़ नियंत्रण मैं सहायक



पर्वतीय क्षेत्रों मैं वनों की कमी के कारण प्रतिवर्ष लगभग सभी नदियों मैं प्रलयंकारी बाढ़ों का आना स्वाभाविक है !वनों की अधिकता से जल अधिक मात्रा मेंभुशौसित होता है ! जिससे नदियों में जल-प्रवाह अधिक होता है !

भारी वर्षा का भूमि में प्रभाव कम होने से पर्वतीय क्षेत्र में भूस्खलन कम होते हैं !नदियों में लकड़ी मिटटी पत्थर सहित प्रचंड रूप धारण करने की प्रविर्ती कम हो जाती है ! उनके मार्गों का परिवर्तन कम होता है ! अथ वनों से बाढ़ पर नियंत्रण बना रहता है !

Devbhoomi,Uttarakhand:
३-मनुष्यों के लिए भोजन तथा पशुओं के लिए चारा


हिमालय की धरती ने भारतीय ऋषि मुनियों को वेदों,उपनिषदों तथा पूराणों की रचना करने की शक्ति व ज्ञान,अपने वनों के कंद-मूल फल  तथा जड़ी -बूटियों के माध्यम  से दिया है !वनों में मनुष्यों के भोजन के लिए कई प्रकार के पदार्थ हैं !जैसे लेकुंडा,आडू ,कपासी,ब्योडू,घिंघारू,काली हिंसर,लाल हिंसर,पिली

 हिंसर,किल्मोड़ी,अंयार,बुरांस,साकिना,क्विराल,तिमला,भेन्कुल,मेहल,आदि है ! पशुओं के चारे के लिए अनेक प्रकार की घासें वन-विर्क्ष तथा झाड़ियाँ उपलब्ध है !

Devbhoomi,Uttarakhand:
४-किर्शी उपकरण व उपज का आधार


पर्वतीय प्रदेश की किर्शी -उपज का आधार एकमात्र इन क्षेत्रों में गोबर की खाद बनाने के लिए चीड,बांज,बुरांस मोरू,सोरु,अंयार आदि विभिन्न प्रकार के विर्क्षों की सूखी व हरी दोनों प्रकार की पत्तियां प्रयोग में लाइ जाती हैं! यदि विर्क्षों से आच्छादित वन न हों तो पर्वतीय क्षेत्रों में किर्शी -उपज  के लिए उर्वरा शक्ति बनाये रखना संभव नहीं होगा !

किर्शी यंत्रों के निर्माण के लिए बांज,तिलंज,अंगू,सांदन,मेलु,साल,शीशम आदि विर्क्षों की लकड़ी उपलब्ध होती है !किर्शी उत्पादन का एकमात्र आधार चारा,पशु-शक्ति को बनाये रखने हेतु इन्हीं वनों से मिलता है !

Devbhoomi,Uttarakhand:
५-वनों से औद्यौगिक कच्चे माल की उपलब्धि


वनों से स्थानीय तथा बहारी उद्योगों को संचालित करने हेतु कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है !इन वनों से रिंगाल,चीड,बांज,बुरांस,अंगू,पापडी,साल,शीशम,तुन आदि की लकड़ी,डली,टोकरी,कंडी,चटाई,ठेकी,परोठा,परयु,आदि कई घरेलू उपयोग की वश्तुयें बनाने के काम आती है !

 भवन निर्माण तथा बार्ह उद्योग के लिए चीड,देवदार,अंगू,शीशम,पापड़ी ,हल्दू,अखरोट पांगर आदि की लकड़ी,रंग वेर्निश व टरपेनटाइन उद्योग के लिए लिसा तथा रेजिन कागज़ उद्योग के लिए रिंगाल,बांस एवं चीड तथा भारतीय रेलों की पटरियों के लिए स्लीपर आदि इन्हीं ही वनों से उपलब्ध होते हैं !

Devbhoomi,Uttarakhand:
६-जड़ी-बोटियों के भण्डार

हिमालय के वनों में आदिकाल से विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों का भण्डार है! उदाहरण के लिए कुटगी,अतीस,ब्ज्रदंती,गुल्बंफ्सा,मासी,जटामासी,चिरयता,दालचीनी,हरड,बहेडा,आंवला,मिर्त संजीवनी आदि वनौषधियाँ इन्हीं वनों से प्राप्त होती है !

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version