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Etymology & Geography - उत्तराखंड,गढ़वाल तथा कुमाऊ की नामोत्पति,और भूगोल

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Devbhoomi,Uttarakhand:
उत्तराखंड की संरचना और धरातल
 हिमालय की २५०० किलोमीटर लम्बी तथा २५०मीतर से ४००किलोमीतर चौडी ५ लाख वर्ग किलोमीटर की अर्धचन्द्राकार श्रेंख्ला भारत भूमि के १५%तथा जनसँख्या का ३.५ %भाग आत्म सात किये हुए हैं!संरच्नादिर्स्ती से देखें तो दछिन से उत्तर की ओर हिमालय समग्र रूप से सात पेटियों तथा तराई भाभर,दूं शिवालिक,लघु हिमालय, विरहत हिमालय तथा ट्रांस हिमालय मैं विभक्त है!भुगार्विय दिर्स्ति से अत्यंत कमजोर तथ संवेदनशील है!मध्य हिमालय उत्तरखंड है!

स्तिथि अवं विस्तार
उत्तराखंड,२८ डिग्री४३ से ३१दिग्रि ३७ अछंसों व ७७ डिग्री३४ से ८१डिग्री ०२ पूर्वी देशान्तरों के मध्य लगभग ५३,४८४ वर्ग की मी छेत्र मैं विस्तृत है!इसके अर्न्तगत गढ़वाल व कुमाऊं मंडल सम्मिलित है,गढ़वाल मंडल मैं सात जिले हैं,हरिद्वार,देहरादून,टिहरी गढ़वाल,पोडी गढ़वाल,उत्तरकाशी,ओर चमोली हैं!कुमाऊं मंडल मैं छ जिले हैं-नैनीताल,अल्मोडा,पिथौराग ढ़,बागेश्वर,चम्पावत,और उधमसिंह नगर हैं!
भू-आकृति दिसती से उत्तराखंड के पश्चिम मैं हिमांचल परदेश,पूर्व मैं नेपाल,उत्तर मैं चीन,तिबत्त अवं दछिन मैं गंगा-यमुना के मैदान सम्लित हैं!उत्तरखंड की पूर्वी अंतराष्टीय सीमा टौंस नदी एवं उतारी सीमा महाहिमालय मैं स्तिथ भारत-चीन अंतरास्ट्रीय सीमा रेखा द्वारा बनती है!

Risky Pathak:
Bahot Badiya Jaankaari Hai Devbhoomi Jee..

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Devbhoomi,Uttarakhand:

उत्तराखंड की भूगार्वीय रचना

उत्तराखंड के उत्तरी भाग मैं हिमालय विशाल मोडदार श्रेंख्लायें हैं!जिनका निर्माण तिर्तीय कल्प या टरशिय्री मैं उत्तरी म्हाद्वीप खंड,अन्गारालैंडएवं धछिनी महाद्वीपीय खंड गौंडवाना लैंड के मध्य स्थित टेथिश सागर मैं लाखों वर्षों से पूरा एवं मध्य कल्पों मैं एकत्र होने वाले पदार्थ के फलस्वरूप हुवा!मध्य कल्प के उत्तरार्ध मैं भूगार्विक हलचलों के कारण संचित मलवा धीरे-धीरे ऊपर उधने लगा!भूसंचित मैं संचित लगभग २०,००० फीट मोटी तलछट को उत्तर की ओर आने वाली शक्ति से प्रभावित किया! किन्तु दछिन मुखी शक्ति,टेथिश अव्शाद को गौंडवानालैंड की ओर अगर्सर करने मैं असमर्थ रही,क्योंकि गौंडवाना  भू-भाग स्थिर एवं कठोर भूखंड था!
उत्तर की ओर से अव्शाद पर निरंतर दबाव पड़ने के कारण उसमें मोड़ पद गए!अव्शाद का उठान तीन अवस्थाओं मैं हुआ,इयोसीन युग के अंतिम चरण मैं टेथिश सागर के ताल से ऊपर उठाने से मुख्य हिमालय का भाग ऊपर उठा!जिसके अर्न्तगत प्राचीन परतदार व रवेदार शैलें मिलती हैं!जिनमें ग्रेनाईट व शैले प्रमुख हैं!किन्तु इनमें जीवंस नहीं मिलते हैं इन शैलों पर ताप एवं दबाव पड़ने के कारण पर्याप्त रूपांतरण  हुवा है!कालांतर मैं मायोसीन युग मैं मुख्य हिमालय के दछिन मैं जीवंस वाली परतदार चट्टानें मिलती हैं,जिन पर लहरों के चिह्न स्पस्ट रूप से अंकित है!श्रेणियों  के निर्माण की तिर्तीय एवं अंतिम प्रकिर्या प्लायोसीन युग के अंतिम तथा प्लिस्तौन युग के प्रथम चरण मैं हेई !प्रव्तीय छेत्र के दछिन मैं जहाँ पहाडियां समाप्त होती हैं,एवं मैदान प्रारम्भ होते है,उस तलहटी वाले भूभाग मैं भाभर की तंग पट्टी मिलती है! मुख्य तः भाभर की पट्टी नैनीताल जिले मैं हैं!भाभर छेत्र मैं धरातलीय नदियाँ एवं नाले अदिर्स्य हो जाते हैं,तथा जलधाराएँ धरातल के नीचे प्रभावित होती हैं,क्योंकि कंकड़ एवं पत्थरों के नीचे जल आसानी से लुप्त हो जाता है!

Devbhoomi,Uttarakhand:

प्रकिर्तिक प्रदेश

भूरचना धरातलीय ऊंचाई एवं वर्षा की मात्रा मैं भिभिनता होने के कारण राज्य को पांच प्रकिर्तिक प्रदेशों मैं विभाजित किया गया है!हिमालयी भूगोल की वर्तमान विचार धरा के अनुसार हिमालय के पार के उत्तराखंड की ओर उन्मुख पनढाल भी प्राकिर्तिक प्रदेशों मैं समिलित है!

Devbhoomi,Uttarakhand:
०१-ट्रांस हिमालय छेत्र (६०००मि से ऊपर)

ट्रांस का अर्थ है दूसरी ओर बिर्टिस सर्वेछाकों ने हिमालय की रचना के गहन अध्ययन से ग्यांत किया किकहीं न कहीं उत्तरी सीमा पर पनढाल बनाती ऊँची शैल्मालाओं के उस पार भी उत्तराखंड कि प्राकिर्तिक सीमाए उत्तर तक पहोंची हुयीहैं !यह पनढल हिमाचल प्रदेश के बुशहर तहशील मैं,कुमाऊं के ऊंटाधुरा मैं तथा गढ़वाल के पैनखंडा मैं हिमालय के पार,उत्तराखंड व तिब्बत को पिर्थक करने वाली जैन्सकर पर्वत श्रेणी के अंतर्गत है,जिसकी चौडाई २०-३५ किमी है!

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