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Etymology & Geography - उत्तराखंड,गढ़वाल तथा कुमाऊ की नामोत्पति,और भूगोल

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Devbhoomi,Uttarakhand:
जैसा पूर्व मैं उल्लेख किया गया है,कि हरिद्वार से मानसरोवर तक का भूभाग केदारखंड और मानस खंड उरानों के अनुसार केदारखंड और मानस खंड दो भागों मैं बांटा गया था!जिनकी सीमा पश्चिम मैं तमसा नदी से पूर्व मैं शारदा नदी तक मानी गयी है!
कालांतर मैं केदारखंड और मानसखंड के उत्तरवर्ती दो बड़े राज्यों गढ़वाल और कुमाऊं का उदय हुआ तो स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और गुरखा नरेशों के शासनकाल तक अस्तित्वमान थे,लेकिन उत्तराखंड नाम निश्चित गढ़वाल और कुमाऊं से पूर्ववर्ती है,परन्तु केदारखंड और मानसखंड से उत्तरवर्ती है!केदारखंड और मानस खंड नाम केवल महाभारत तक प्रचलित थे!
तथापि इस काल मैं केदारखंड और मानसखंड का अधिपत्य एक ही नरेश विराट के आधीन आ गया !ग्यान्त्व्य है कि वैष्णवों के समय मैं भी यह छेत्र एक प्रशासनिक ब्य्वाश्थासे संचालित रहा!जिस कारण इस छेत्र को नारायणी या देवभूमि नाम से पुकारा जाता था!
मत्स्य राज,महाराजा विराट के शासन के पश्चात् केदारखंड व मानसखंड को संयुक्त रूप से एक ही नाम उत्तराखंड से जाना जाने लगा!"उत्तराखंड सब्दमर्यादा व सम्मान का प्रतीक है" जन्हाँ विराट ने शरणागतों (अग्यान्त्वास काल मैं पांडवों) को शरण दी!जहाँ शरणागतों ने मर्यादा का कठोर पालन किया,जहाँ धर्म हमेश अधर्म पर हावी रहा,जहाँ अथीती देवता समझा गया,जहन सत्पुरुषों के लिए सव्स्वा समर्पित किया गया,जहाँ महाबली ने नारी को शतधा और सम्मान के शिखर पर पंहुचा दिया,जिस छेत्र को महान चक्रवर्ती सम्राटों द्बारा शासित नहीं किया गया अल्कि स्वाय्यत रखा गया!
धार्मिक और संसकिरती पहचान का नाम है उत्तरखंड!उत्तराखंड शब्द का प्रचलन२० वीं सदी के प्रथम दसक मैं हुआ,केदारखंड पुराण के १९११ मैं प्रकाशित द्वितीय संस्करण मैं उत्तराखंड सब्द का उलेख निम्न वत मिलता है!"भूगर्व उत्तरखंड हिमाच्छादित भू भाग का तत्व पूर्ण विस्तृत खंड"१९२३ मैं शालिग्राम वैस्नव द्बारा रचित उत्तराखंड रहस्य ,१९४६ मैं गोविन्द प्रशाद नौटियाल कि वशुधरा पुस्तक मैं उलेखनीय तीर्थ ,१९५२ मैं बाल्किर्ष्ण भट्ट द्वारा रचित,कनक्वन्स काव्य तथा १९५३ मैं हरिराम धस्माना किरत ऋग्वैदिक माता मैं उत्तराखंड हिमालय का उलेख होने पर उत्तराखंड सब्द प्रचलन मैं आ गया!सन १९६० मैं डाक्टर शिवप्रशाद डबराल ने उत्तराखंड यात्रा दर्सन,तथा कई खंडों मैं उत्तराखंड का इतिहाश लिखकर इस सब्द को लोक प्रिय बना दिया गया!

Devbhoomi,Uttarakhand:
गढ़वाल
गढ़वाल :अर्थात गढ़+वाल =गडों वाला छेत्र ,अर्थात वह छेत्र जिसमें कई गढ़ हों!गढ़ सब्द का अर्थ है पर्वतीय छेत्रों मैं पहाडियों पर कीले!उत्तराखंड के पर्वतीय छेत्रों मैं गढ़ सब्द पड़ी किलों का बोधक है!जो सुरछा की दिर्सटी से पह्दियों की चोटियों पर बनाये जाते हैं !पंडित हरिकिर्सं रतूडी के अनुसार ऐसा पर्वतीय छेत्र जिसमें कई गढ़ हों,उसे गढ़ देश गढ़वार या गढ़वालाकहा जाता है!
 धीरे धीरे गढ़वाला शब्द गढ़वाल कहलाने लगा,ये कीली पूर्वकाल के छोटे-छोटे ठ्गुरीराजाओं,सरदारों और थौक्दारों के थे तथा उन राजाओं को सरदारों के राज्य विभाग के नाम से भी बिख्यात हैं!
 गढ़वाल का पौराणिक नाम "केदारखंड" है!१६६७ के ताम्रपत्र मैं गढ़वाल संतान ले बालनाथ जोगी को संतान पते पतिशाहीदेव न्युले उलेख मिलता है!
केदारखंड का भौगोलिक छेत्र दछिन मैं गंगाद्वार (हरद्वार)से उत्तर मैं स्वेतांग पर्वत (हिमालय)श्रेणियों के अंत तक तथा पूर्व मैं बौधांचल (संभवत बघान पट्टी)से पश्चिम मैं तमशा (टौंस)तक मन जाता हैं!पौराणिक ग्रन्थ केदारखंड के इस स्लोक से यह स्पस्ट है!
 गंगाद्वार मर्यदम स्वेतांत वर वनिर्नी!
 तमसा तटत :पूर्व मार्ग्य ,बौधान्चाल्म शुवं!!

Devbhoomi,Uttarakhand:
गढ़वाल छेत्र मैं जातियों के नाम के आगे अकारांत शब्दों मैं वाल जैसे सेमवाल,डंगवाल तथा इकारांत शब्दों मैं याल जैसे थपलियाल ,नौतिय्यल लगता है!वाल या वार शब्द की उत्पति वारि (जल)से भी संभव है!संसकिरत मैं रलयोमेंडअर्थात र और ल मैं कोई अंतर नहीं मन गया है! अतःयह भी संभव है कि गढ़वाल शब्द कि उत्पति गढ़वार से हुयी हो!पातीराम ने अपनी पुस्तक (गढ़वाल अन्सिएन्त एंड माडर्न )मैं उलेख किया है कि गढ़पाल से गढ़वाल नाम पड़ा है,क्योंकि गढ़वाल मैं संकल्प पूजा -पाठ मैं गढ़पाल शब्द का बार-बार प्रयोग हुआ है!

Rajen:
इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए "देवभूमि" की जय हो.

Devbhoomi,Uttarakhand:
कुमाऊं
उत्तराखंड के पूर्वी भाग कुमाऊं को कुमूँ अथवा कुर्माचल भी कहा जाता है,जिसे स्कन्दपुराण के अनुसार मानसखंड कहा गया है!
कुमूँ प्राचीन नाम है,इस नाम की उत्पति कूर्म (कछुवा)शब्द से हुयी है,मानसखंड पुराण के अनुसार कूर्मावतार स्थल ही कर्म शिला है जो जनपद चम्पावत मैं स्तिथ है!
दछिन पर्ण पत्राया:पुण्य कर्मचालो गिरी:!
कूर्म पाधालीकत शब्दों:यक्छ गन्धर्व सोवित!!
कुछ विद्वानों के अनुसार पश्चिमी एसिया के इस भू भाग मैं प्र्वाश करने वाली खस जाति ने अपने प्राचीन निवाश छेत्र कुमूँ के आधार पर इस छेत्र का नाम कुम्मु रख दिया जो कलांतर मैं कुमूँ  मैं परिवर्तन हो गया!
कूर्माचल का शाब्दिक अर्थ है कूर्म की भाँती आँचल वाला !निश्न्देह कुमाऊं प्रभाग की पर्वत श्रेणियों की सामान्य रचना कर्मपिर्स्थ(कछुवे की उन्न्तोतर पीठ) की भाँती शाधार्ण ढालों वाली है! महाहिमालय के इस भाग मैं पंचाचूली (६९०४मि) के अतिरिक्त कोई भी उलेखनीय पर्वत शिखर नहीं है!इसके अतिरिक्त मध्यकाल मैं कानदेव पर्वत के निकट कुर्म्शीला  मैं कूर्मावतार
होने का प्र्संघ भी मिलता है,जैसा उलेख किया गया है,कि मानसखंड कुरान मैं कूर्मावतार प्रकरण और देव-दानव युध्स्थल का भी विवरण मिला है!वस्तुत्वा मानसखंड के अनुसार विष्णु का कूर्मावतार चम्पावत जनपद मैं कूर्म पर्वत(कांडाकानदेव) पर हुआ था!जिससे कूर्माचल नाम प्रचलन मैं आ गया है!
सकती संगम तंत्र (८/१२/१३)के अनुसार भी कुमाऊं को कूर्म्प्रस्थ कहा गया  है!कुमाऊं से मानसरोवर जाने का सुगमतम मार्ग बताया जाता है!अतः इस छेत्र का दूसरा नाम मानसखंड है इस परिकल्पना कि देर्ष्टि से मानसखंड पुराण के इस पद से होती है,
धन्वातरी को दत्तात्रेय  ने काशी से कैलाश मानसरोवर जाने और वहाँ से लोटने का मार्ग बतलाया है!इस प्रकार सम्पूर्ण कुमाऊं मंडल को कूर्मपिरस्थ कूर्माचल ,कूर्म्प्रस्थ ,मानसखंड कुमाऊं तथा कुमाऊं नामों से संबोधित किया गया है!ये सभी नाम समान्र्थी तथा एक ही छेत्र के बोधक हैं!

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