Author Topic: Fairs & Festivals Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध त्यौहार एवं मेले  (Read 93717 times)

पंकज सिंह महर

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मेला आज, तैयारियां पूरीजागरण संवाददाता, भवाली: नगर से आठ किमी दूर शिप्रा नदी तट पर स्थित कैंचीधाम में सोमवार को होने वाले मेले और भव्य भण्डारे की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। नीम करौली महाराज द्वारा सन् 1962 में स्थापित कैंची धाम मंदिर में 15 जून को होने वाले भंडारे व मेले का विशेष महत्व रहा है। इसी दिन 1942 में बाबा नीम करौली महाराज का कैंची में आगमन हुआ था तथा 1962 में कैंची मंदिर व ट्रस्ट की स्थापना की गई। बाबा जी द्वारा लखनऊ, दिल्ली, ऋषिकेश, वृंदावन, हनुमानगढ़ी, भूमियांधार, धारचूला, काकड़ीघाट व देश के दर्जनों शहरों व गांवों में भी 15 जून को ही मंदिरों की स्थापना की गई। इसके अलावा अमेरिका के टावर शहर में भी बाबा जी द्वारा मंदिर स्थापित किया गया। उल्लेखनीय है बाबा नीम करौली महाराज के लिए 15 जून की तिथि विशेष महत्वपूर्ण रही थी। उनके द्वारा अधिकांश मंदिर व आश्रमों की स्थापना 15 जून को ही की गई। कैंची में बाबा जी द्वारा 15 जून 74 में मां वैष्णो देवी की मूर्ति, 15 जून 73 में मां विंध्यवासिनी, 15 जून 64 को हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की गई। वर्ष 1964 से ही कैंची धाम में हर वर्ष 15 जून को भव्य भंडारे का आयोजन किया जाता है, लेकिन पिछले 15 वर्षो से कैंची धाम में आयोजित होने वाला भव्य भंडारा व मेला अत्यधिक लोकप्रिय हुआ है। पिछले वर्ष कैंची धाम के भव्य भंडारे में करीब एक लाख श्रद्धालु आए।

Devbhoomi,Uttarakhand

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धार्मिक आस्था के लिए प्रसिद्ध सरोवरनगरी के नंदा देवी महोत्सव की तैयारियां तेज हो गई है। महोत्सव को सफल बनाने के लिए आयोजक संस्था श्रीराम सेवक सभा द्वारा 25 समितियों का गठन कर दिया गया है। इस साल कदली वृक्ष फगुनियांखेत से लाया जाएगा। महोत्सव का उद्घाटन 25 अगस्त को पंचमी के दिन होगा। महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए राज्य की सांस्कृतिक विरासत की झलक देखने को मिलेगी।

शनिवार को श्रीराम सेवक सभा भवन में आयोजित प्रेस वार्ता में महोत्सव की तैयारियों की जानकारी दी गई। आयोजक संस्था के सचिव व पालिकाध्यक्ष मुकेश जोशी ने बताया कि महोत्सव को सफल बनाने के लिए व्यापक तैयारियां शुरू कर दी गई है। महोत्सव के दौरान शहर को आकर्षक ढंग से सजाया जाएगा। रात्रि में सांस्कृतिक दलों द्वारा स्थानीय लोक संस्कृति पर आधारित कार्यक्रमों से जनता को रूबरू कराया जाएगा। महोत्सव की व्यवस्थाओं के लिए जिला एवं पुलिस प्रशासन का सहयोग लिया जाएगा।

महोत्सव को सफल बनाने के लिए 25 समितियों का गठन किया गया है। शहर के सभी संगठनों व स्कूलों का भी सहयोग लिया जा रहा है। इस बार कदली वृक्ष फगुनियांखेत से लाया जाएगा। महोत्सव में लगने वाली दुकानों की नीलामी 27 अगस्त को होगी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Aupakhal Fair - GArwal
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Kandoliya Shiva temple - also known as Kandolia Devta Mandir - is located in the dense oak and pine forests of Kandolia Hill, two kilometers from Pauri. Asia's highest Stadium at Ransi is nearby.

पंकज सिंह महर

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Re: Fairs & Festivals Of Uttarakhand - Nanda Devi festival begins
« Reply #153 on: August 24, 2009, 02:32:54 PM »
साभार- BD Kasniyal, http://www.tribuneindia.com/2009/20090824/dplus.htm#2


Pitthoragarh, August 23
As Maharashtra erupts into festivity during Ganesh Chaturthi and Bengal during Durga Puja, the Kumaon region celebrates the Nanda Devi festival beginning the eigth day of waxing moon in the month of Asvina.

The idols of Nanda and Sunanda are installed amid tantrik rituals and worshiped for seven days before being immersed into water.

This year the Nanda Devi festival in Kumoan begins on August 24 when banana leaves are cut to make idols. These idols of Nanda and Sunanda are then sanctified and the worship begins. On August 30, the sedan of Nanda and Sunanda will be carried out in the town.

“During previous years, goat and buffalo sacrifices would be performed on ashtami (eighth day of the festival) but the tradition has become a thing of the past,” said Naveen Bisht, a poet in Almora.

Says Rajandra Bora, a Kumoani poet and theatre artiste:“ Nanda was the daughter of one of the Kumoan kings and had adopted a bull.

She was married to a prince. But the bull also wanted to marry her. “When Nanda refused to do so, it ran after her to kill her. To save herself, Nanda hid behind a banana tree. But when the leaves of the tree were eaten by a goat, she was spotted by the bull who killed her.

“To commemorate the incident, a bull and a goat are sacrificed every year while worshipping Nanda.”

But historians have a different tale to tell. Says BD Pandey, author of “History of Kumaon”, Kumaoni king Baj Bahadur Chand (1638 to 1678 ) attacked a Garhwal king and wrested from him the fort of Badhan Garhi and Juna Garhi.

He brought with him the idol of Nanda Devi, clan goddess of the Katuri kings, and installed it at Malla Mahal in Almora. Since than Nanda Devi is also worshiped as clan godess of Kumaoni kings.

In Garhwal, Nanda is considered the daughter of the region married to Lord Shiva.

When Nanda goes to her in-laws house every year, the entire Garhwal sees her off her.The occasion is celebrated every year as Nanda Devi Jat.

As many as 22 villages en route gather to see off Nanda. Nanda being the clan goddess has a high emotional appeal among the people of Uttarakhand, having been worshipped for centuries in the region.

“In Almora where Nanda has been worshipped since the last 400 years, in Nainital Nanda festivities began only 100 years ago,” says BL Shah, the octogenarian who holds Nanda festival in Nainital.

The worship of Nanda begins from the fifth day of waxing moon and continues till Asthami. The day after, the Nanda idol is immersed at Dobanaula in Dobhal Khet in Almora.

“The Nanda Devi festivity is the only cultural festival which unites Garhwal and Kumaon into a cultural unit. The tradition also represents the feudal past of the region,” says Dr Ram Singh, an eminent social historian.

“This legend has undergone a sea change with cultural songs sung by villagers like Jhora, Chappili and Chanchari having disappeared,” says Bisht. — OC

पंकज सिंह महर

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Fairs & Festivals Of Uttarakhand -Aatho festival: आठों पर्व
« Reply #154 on: August 26, 2009, 12:10:53 PM »
आठों पर्व

उत्तराखण्ड अपनी पुरातन आद्य संस्कृति के लिये हमेषा से जाना जाता है। यहां के सामान्य जन जीवन में पषु, पक्षी, खेत-खलिहान और मानव समाज की जरूरत की सभी आम वस्तुओं को यहां के लोगों ने अपने सामाजिक जीवन में अहम स्थान हमेषा ही दिया है। इसी प्रकार से देवी-देवताओं को भी यहां के लोग अपना मानते हैं, अपने परिवार में उन्हें विषिश्ट स्थान देते हैं। यहंा पर देवी-देवता अलौकिक होते हुये भी आम आदमी के अपने नाते रिष्तेदार होते हैं। इसी परम्परा में उत्तराखण्ड के लोग मां पार्वती को अपनी बहन-बेटी गौरा और महादेव को अपना दामाद-जीजा मानते हैं।

ऐसा माना जाता है कि गौरा भाद्रपद मास की सप्तमी को अपने मायके आती है और उसके दूसरे दिन अश्टमी को महादेव भी अपनी ससुराल आते हैं। इसी का प्रतीक रूप है, आठों पर्व, भाद्रपद मास की पंचमी को पांच प्रकार के अनाजों को पीतल के भगोने में भिगाया जाता है और सातों (सप्तमी) के दिन उसे गांव के पीने के पानी के स्रोत पर ले जाकर धोया जाता है और वहीं पर स्थानीय फसल के तिनकों से गौरा का प्रतीक रूप में एक पुतला बनाया जाता है। उसे पवित्र कर सजा-धजा कर गांव में लाया जाता है और सारा गांव गमरा दीदी के आगमन पर खुषियां बनाता है। षाम को बिरूड़ों से सभी परिवारीजनों का सर पूजा जाता है और इसे मां पार्वती का प्रसाद मानकर खाया भी जाता है। इस अवसर पर माल्टा, नारंगी, अमृतफल आदि स्थानीय फलों को एक चादर में रखकर आसमान की तरफ उछाला जाता है। जिस कुंवारी लड़की के हाथ में यह फल आता है, माना जाता है कि अगली आठों से पहले उसका विवाह हो जायेगा।

षाम को जिस घर में गमरा रखी जाती है, उसके प्रांगण में सारा गांव इकठ्ठा होता है और सामूहिक नृत्य और लोक गीत गाये जाते हैं। जिसमें गौरा से गांव की खुषहाली की कामना की जाती है। इसके बाद अश्टमी को इसी तरह से एक पुरूशाकृति का पुतला बनाकर लाया जाता है, जिसे महादेव का प्रतीक माना जाता है और महेषर नाम से पुकारा जाता है। उस पुतले को भी लाकर गौरा के पुतले के बगल में रखा जाता है। पूरा गांव अपने दामाद या जीजा के आगमन पर प्रफ्फुलित होकर नाचता गाता है। इस अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को खेल कहा जाता है। चार-पांच दिन तक प्रतिदिन सायं के देर रात्रि ते यह क्रम निरन्तर चलता रहता है।

बिरूड़ पंचमी के दिन ही सुहागन महिलायें अपनी बांह में एक पवित्र धागा भी धारण करती हैं और मां गौरा से यह कामना करती हैं कि उनका सुहाग अखण्ड रहे। इस पर्व पर पूरे गांव में उत्सव का माहौल रहता है, परिवार के सभी सदस्यों के लिये इस अवसर पर नये वस्त्र खरीदना जरूरी होता है।

चार-पांच दिन या हफ्ते भर बाद गमरा और महेषर के पुतलों को गाजे-बाजे के साथ ग्राम के मंदिर में ले जाया जाता है और उन पुतलों को ग्रामवासी नम आंखों के साथ मंदिर में छोड़ आते हैं, जिसे गमरा सिलाना कहा जाता है। कुछ बुजुर्ग महिलायें तो इस अवसर पर
रोने भी लगती हैं। ग्रामवासी गमरा दीदी और महेषर भीना से गांव में सुख-समृद्धि देने और अगले साल जल्दी आने की प्रार्थना कर भारी मन से गांव लौट आते हैं।

भगवान और मानव के बीच इतना आत्मीय संबंध सिर्फ उत्तराखण्ड में ही देखने को मिलता है, षायद इसीलिये इसे देवभूमि कहा जाता है।

हेम पन्त

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अष्टमी के दिन महिलाओं द्वारा एक व्रत भी रखा जाता है, जिसमें अग्निपाक (आग पर पकी हुई वस्तु) खाना वर्जित है.. जब तक जीजा रूपी महेश्वर और दीदी पुत्री रूपी गौरा गांव में रहती है, उस दौरान हर शाम को पारंपरिक सामुहिक नृत्य ’खेल’ या ’झोड़े’ गाकर खुशियां मनाई जाती हैं.

महिलाओं और बच्चों के द्वारा निर्मित घास के गौरा-महेशर

harishchandra_s

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दोस्त्तो,

में इस मंच का नया सदस्य हूँ और ज्यादातर मुँबई में रहने के कारण मेरा ज्ञान  इस विषय में बहुत कम है। इसलिये गलती के लिये क्षमा चाहता हूँ।


शेओपाति पर्व,

आठो का दूसरा मिलता जुलता रूप है पर इसमे बलि कि प्रथा नही है।

यह पर्व सात दिनो तक चलता है। इस पर्व को मनने के लिये सभी बिरादरी और गांव वालों का सम्मिलित होना जरूरी है। इसलिये यह पर्व 3-5 साल के अन्तर में मनाया जाता है

आप लोग तो जानते है कि हमारी ज्यादातर आबादी शहरो में बसी है इसलिए इसका मानना बहुत कठिन होता है।


लेकिन इस पर्व का दूसरा पहलु ये है कि आपको अपने लगभग सभी बिरादरी वालों से मिलने का मौका दोसत्तोत्तवपूण है, जिनके बारे में आपने कभी सुना भी नही होगा, या सुना होगा पर मिले नही होंगे। आपको अपने कुटुँब के बारे में जानने का मौका मिलता है।


मैने इस पर्व के बारे में पहली बार लगभग छह साल पहले सुना था जब मरे माता पिता इसको फिर से मनाने के बारे में सोच रहे थे।


आज हम लोग धीरे धीरे 'असामाजिक' होते जा। अनेक परिवारों में बंटते जा रहे है ऐसे समय में ये पर्व और भी महत्तवपूर्ण हो गये है।
 
साल 2006 को में पहली बार मैं इस पूजा में सम्मिलित हुअ। मेरे पास इस पर्व की और फोटो एवम  विडिओ है जो में आप लोगो से शयेर कर सकता हूँ।

मेहता जी अगर मुझे मार्गदर्शन दे तो में इसे फ़ोरम मे अपलोड करुगा।

कुछ फोटो इस प्रकार  है:

1) a kind of aavahan starting shewpaati ceremony



2) Actual ceremony1



3) Actual ceremony2



4) Actual ceremony 3



5) Actual ceremony 4


harishchandra_s

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I will appreciate if someone can highlight more specific differences between Aatho and Sheopaati.

खीमसिंह रावत

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हरिश जी अति सुन्दर इन फोटो के लिए धन्यवाद /

ये  फोरम को शायद इसी विचार से शुरू किया गया होगा की हम विखरे है एक डोर में बांध कर जुड़ जायं /

आपके सुन्दर काम के साथ आपका स्वागत है



दोस्त्तो,
कुछ फोटो इस पृकार  है:


हेम पन्त

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हरीश जी आपका कहना बिल्कुल उचित है कि ऐसे आयोजनों में शामिल होकर हमें अपने परिवार और रिश्तेदारों से मिलने का महत्वपूर्ण मौका मिलता है. कृपया यह भी बतायें कि यह पर्व उत्तराखण्ड के किस हिस्से में मनाया जाता है.

और भी फोटो का इन्तजार रहेगा...

 

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