Author Topic: Fairs & Festivals Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध त्यौहार एवं मेले  (Read 93723 times)

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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यह भी एक तरह भगवान जी की पुजा पाट जैसी ही है. जो विना बली के होती है.
वैसे तो विना बली के कई पवॅ होते है पर सायद उनकी अवधी इतने जायदा दिनो तक नही होती।

harishchandra_s

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हरीश जी आपका कहना बिल्कुल उचित है कि ऐसे आयोजनों में शामिल होकर हमें अपने परिवार और रिश्तेदारों से मिलने का महत्वपूर्ण मौका मिलता है. कृपया यह भी बतायें कि यह पर्व उत्तराखण्ड के किस हिस्से में मनाया जाता है.

और भी फोटो का इन्तजार रहेगा...


ये पर्व ग्राम  सिरकोट जिला बगेशवर में साल 2006 मे  मनया गया था।  जो गवलदम से कुछ हि किलोमिटर पहले पडता है। हमारा इलका गडवाल और कुमाउ के सीमा के पास है। 

कया में इसी थ्रैड  मि सारे फोटो अपलोड करु या कोइ और थ्रैड है?


हेम पन्त

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जानकारी के लिये धन्यवाद...पूजा से सम्बन्धित फोटोज क एक टापिक ये भी है.. कृपया इन्हीं फोटोज को यहां भी लगा दें..

http://www.merapahad.com/forum/photos-and-videos-of-uttarakhand/re-photo-gallery-of-pahad/

हेम पन्त

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पिथौरागढ़: जिले भर में गुरुवार को आंठू पर्व की धूम मची रही। गौरा- महेश की पूजा अर्चना के साथ खेल आयोजित किये गये।

जिले में आंठू पर्व का आयोजन बुधवार से शुरू हुआ। पहले रोज गौरा-महेश की प्रतिमायें बनाई गयीं। विधि-विधान से इन प्रतिमाओं की पूजा अर्चना की गयी। महिलाओं ने सुहाग की रक्षा के लिए व्रत धारण किये। गुरुवार को महिलाओं ने दुर्वाष्टमी के व्रत रखे। आज ही गौरा-महेश का विवाह भी सम्पन्न कराया गया। नगर सहित आसपास के गांव कुमौड़, खड़कोट, दौला, लिन्ठयुड़ा, चैंसर आदि गांवों में गुरुवार को दिन भर आंठू पर्व के कार्यक्रम चलते रहे। गावों में खेल लगाये गये। जिसमें ग्रामीणों ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की। कई गांवों में आंठू पर्व का गुरुवार को समापन हो गया। जबकि कुछ गांवों में सप्ताह भर तक आंठू पर्व के आयोजन चलते रहेगे। पर्व की समाप्ति पर गौरा महेश की प्रतिमाओं का विसर्जन होगा। उल्लेखनीय है कि पिथौरागढ़ जिले में आंठू पर्व विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।

hem

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अनेक प्रवासी पर्वतीय भी इस त्यौहार को अपने स्तर पर मनाते हैं. मेरे घर पर भी प्रति वर्ष पड़ोस की पर्वतीय महिलायें एकत्रित हो कर सप्तमी और अष्टमी की पूजा करते हैं और डोर दुबडा बांधते हैं.

Devbhoomi,Uttarakhand

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ऐतिहासिक लछैर मेला संपन्न

पिथौरागढ़ जिले के खर्कदेश का प्रसिद्ध लछैर मेला शुक्रवार को धूमधाम से सम्पन्न हुआ। मेलार्थियों ने मेले में उठे मां काली के अर्चना कर क्षेत्र के कल्याण की कामना की। जिला पंचायत सदस्य मनोज सामंत ने मेले का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा लछैर मेला पिथौरागढ़ जिले की ऐतिहासिक विरासत है, इस विरासत को समृद्ध करने के लिए जिला पंचायत कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
 उद्घाटन अवसर पर प्रसिद्ध लोक गायक प्रकाश रावत एण्ड पार्टी ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। अपराह्न एक बजे मां काली का डोला उठा। मेलार्थियों ने काली मां की अर्चना कर क्षेत्र के कल्याण की कामना की। मेले में भाग लेने के लिए खर्कदेश के अंतर्गत आने वाले दर्जनों गांवों के साथ ही जिला मुख्यालय से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे।

Devbhoomi,Uttarakhand

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साल्दे बिखोती का मेला :

 'ओ भीना कसिकै जानू दोरहाटा' के गीत लगभग सभी ने सुना है। साल्दे (बिखोती) का मेला द्वाराहाट (अल्मोड़ा) में प्रतिवर्ष वैशाख दो गते को मनाया जाता हैं मेले की तैयारी चैत्र 1 गते फूल संक्रान्ति से होने लगती है।

पूरे चैत्र मास में द्वाराहाट क्षेत्र के लोग रात को झोड़ा गाते हैं। वैशाख 2 गते को लगभग 40-50 गांवों के लोग मेले में भागीदारी करते हैं। लगभग 20 गांवों के लोग नगाड़े, दमाऊ, रणसिंग, भेरी व छोलिया नृत्य सहित मेले में भागीदारी करते हैं। हुड़के की थाप पर स्थान-स्थान पर झोड़े गाते हैं।

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आढू मेला :
यह मेला चैत्र की अष्टमी को चौखुटिया (अल्मोड़ा) में लगता है। इस दिन पूरे इलाके के लोग जमा होते हैं। इस मेले में पशु बलि की परम्परा है। कुछ लोग इस मेले का रूप परिवर्तित करने का प्रयास कर रहे हैं।

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गेंदी का खकोटी मेला

 इस मेले की परम्परा पाण्डवों से जुड़ी है। मानना है कि महाभारत काल में राजा पाण्डु श्राद्ध तर्पण हेतु यज्ञ करवाता था। विधान के अनुसार गेंदी (मादा गेंडा) की खकोटी (खाल) खीचने का प्रावधान है। गेंदी को पाने के लिए पाण्डवों को कई दिन नागमल से युद्ध करना पड़ा था । बाद में अर्जुन गेंदी पर अपने धनुष के प्रहार कर मारने में सफल हो जाता है।

 इसी में पाण्डु के श्राद्ध तर्पण का विधिवत्‌ समापन होता है। इसी परम्परा को पौड़ी के समीप सते गांव के लोग आज भी बनाए रखे हैं। मेले में पांच युवक पाण्डव बनते हैं, एक युवक नागमल और एक युवती नागमती की भूमिका अदा करती है। मेले के आयोजन से 3 दिन पूर्व रात को देवी-देवताओं को अवतारित कराया जाता है।

ढोल दमाऊ की ताल पर लोग रात भर चौपुला व झुमैलो नृत्य करते है। इस उत्सव के अन्तिम दिन वैशाखी को दिन भर घर-घर जाकर पारम्परिक गीत गाए जाते हैं। पारम्परिक ढोल नगाड़ों के साथ नृत्य करते हुए कलाकार गांव के देवी मन्दिर में जमा होते है। काफी देर तक नृत्य के माध्यम से युद्ध की भंगिमाएँ अदा करते हैं।

 नागमती बनी युवती के गोद में गेंदी का प्रतीक होता है, जिसे कद्दू या लौकी से बनाया जाता है। नागमती गेंदी को पांचों पाण्डवों से बचाने का प्रयास करती है और पाण्डव अस्त्रों से प्रहार का अभिनय करते हैं। पाण्डवों के प्रहार के साथ ही नृत्योत्सव का समापन होता है। यह उत्सव बसन्त पंचमी से वैशाखी तक चलता है।

Devbhoomi,Uttarakhand

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किसान मेला पन्तनगर




यह मेला पन्तनगर के कृषि व प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (ऊधम सिंह नगर) में मार्च एवं अक्टूबर माह में लगता है जिसमें कृषि से सम्बन्धित नये निवेशों व उपादानों की प्रदर्शनी की जाती है।

 

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