Author Topic: Fairs & Festivals Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध त्यौहार एवं मेले  (Read 93644 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #30 on: October 16, 2007, 11:01:03 AM »
दशहरा महोत्सव: डेढ़ सौ साल पुरानी परंपरा

अल्मोड़ा। सांस्कृतिक विविधताओं के लिए विख्यात अल्मोड़ा नगर का दशहरा महोत्सव डेढ़ सौ साल का इतिहास अपने आंचल में समेटे है। आज यह अपनी विशिष्टताओं के कारण भारत के ही नहीं विदेशों से आने वाले सैलानियों को भी आकर्षित कर रहा है। यहां बनने वाले पुतलों की कलात्मकता शायद ही अन्यत्र देखने को मिले। हर पुतले के चरित्र के अनुसार आकार, प्रकार व रूप बनाने में कलाकारों का हस्तलाघव स्पष्ट दिखाई देता है।
   1860 में बद्रेश्वर मंदिर प्रांगण में रामलीला मंचन के साथ दशहरा पर्व के लिए रावण का पुतला बनाया गया। इस महोत्सव की नींव कुमाऊँ के प्रथम डिप्टी कलेक्टर देवी दत्त जोशी ने रखी। यह परंपरा आज फल-फूलकर चतुर्दिक खुशबू फैला रही है। लगभग डेढ़ शताब्दी से चले आ रहे इस महोत्सव की शुरूआत मात्र एक पुतले से हुई, जो बढ़कर आज दर्जन से ऊपर चली गयी है।
   रावण परिवार के मुखिया के रूप में रावण का पहला पुतला निर्माण 1860 में किया गया। पुतला इतना विशाल बनाया गया कि दहन भी उसी स्थान में करना पड़ा। दो दशक पहले तक रावण परिवार के पुतलों का दहन बद्रेश्वर मंदिर के समीप ही किया जाता रहा है। बाद के वर्षो में नगर के अन्य स्थानों में भी मेघनाद, कुंभकर्ण के पुतले बनाये जाने लगे। इन पुतलों का निर्माण हैप्पी क्लब, मल्ली बाजार, जौहरी बाजार व हुक्का क्लब द्वारा किया जाता रहा। 1975 तक यह क्रम अनवरत चलता रहा। 76 में मुरलीमनोहर पुतला समिति ने मेघनाद का पुतला बनाया। पुतलों की संख्या बढ़ने के साथ ही दशहरा महोत्सव जन मेले के रूप में विकसित हो गया।
   इसके साथ ही महोत्सव की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए और व्यवस्थित स्वरूप देने के लिए बाकायदा दशहरा महोत्सव समिति का गठन किया गया। जिसके अध्यक्ष अमरनाथ वर्मा बनाये गये। 77 में जौहरी बाजार में कुंभकर्ण का पुतला बनाया गया। इसी दौर में हुक्का क्लब ने ताड़िका का पुतला निर्माण किया। धीरे-धीरे प्रत्येक रामलीला कमेटी ही नहीं बल्कि हर मोहल्ले में यह क्रम इतना विकसित हुआ कि रावण परिवार के पुतलों की संख्या दर्जन को पार कर गई।
   इस पूरे महोत्सव की विशेषता आज भी जो बरकरार है वह यह कि इसमें धार्मिक भावनाओं से हटकर हिन्दू, मुस्लिम व अन्य समुदाय के लोगों का गंगा-जमुनी संस्कृति का सुघड़ रूप देखने को मिलता है। पुतला बनाने वालों में जहां हिन्दू समाज के लोग रहते है वहीं मुस्लिम समुदाय की भागीदारी बहुत बढ़-चढ़कर दिखाई देती है।

[Tuesday, October 16, 2007 2:17:30 AM (IST) ]

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #31 on: October 16, 2007, 12:02:40 PM »
Mehta ji aapne Kumaun ke kafi melon ke bare mein rochak jankari dee hei, please ab jara Devidhura ki Bagwal Mele ke bare mein bhi apna gyan hum logon ke sath share kijiye.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #32 on: October 16, 2007, 12:37:36 PM »
Mehta ji aapne Kumaun ke kafi melon ke bare mein rochak jankari dee hei, please ab jara Devidhura ki Bagwal Mele ke bare mein bhi apna gyan hum logon ke sath share kijiye.

Yes sir. Here is the information.

बगवाल : देवीधुरा मेला

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देवीधुरा में वाराही देवी मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष रक्षावन्धन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को पत्थरों की वर्षा का एक विशाल मेला जुटता है । मेले को ऐतिहासिकता कितनी प्राचीन है इस विषय में मत-मतान्तर हैं । लेकिन आम सहमति है कि नह बलि की परम्परा के अवशेष के रुप में ही बगवाल का आयोजन होता है ।

लोक मान्यता है कि किसी समय देवीधुरा के सघन बन में बावन हजार वीर और चौंसठ योगनियों के आतंक से मुक्ति देकर स्थानीय जन से प्रतिफल के रुप में नर बलि की मांग की, जिसके लिए निश्चित किया गया कि पत्थरों की मार से एक व्यक्ति के खून के बराबर निकले रक्त से देवी को तृप्त किया जायेगा, पत्थरों की मार प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा को आयोजित की जाएगी । इस प्रथा को आज भी निभाया जाता है । लोक विश्वास है कि क्रम से महर और फव्यार्ल जातियों द्वारा चंद शासन तक यहाँ श्रावणी पूर्णिमा को प्रतिवर्ष नर बलि दी जाती थी ।

इतिहासकारों का मानना है कि महाभारत में पर्वतीय क्षेत्रों में निवास कर रही एक ऐसी जाति का उल्लेख है जो अश्म युद्धमें प्रवीण थी तथा जिसने पाण्डवों की ओर से महाभारत के युद्ध में भाग लिया था । ऐसी स्थिति में पत्थरों के युद्ध की परम्परा का समय काफी प्राचीन ठहरता है । कुछ इतिहासकार इसे आठवीं-नवीं शती ई. से प्रारम्भ मानते हैं । कुछ खास जाति से भी इसे सम्बिन्धित करते हैं ।

बगवाल को इस परम्परा को वर्तमान में महर और फव्यार्ल जाति के लोग ही अधिक सजीव करते हैं । इनकी टोलियाँ ढोल, नगाड़ो के साथ किंरगाल की बनी हुई छतरी जिसे छन्तोली कहते हैं, सहित अपने-अपने गाँवों से भारी उल्लास के साथ देवी मंदिर के प्रांगण में पहुँचती हैं । सिर पर कपड़ा बाँध हाथों में लट्ठ तथा फूलों से सजा फर्रा-छन्तोली लेकर मंदिर के सामने परिक्रमा करते हैं । इसमें बच्चे, बूढ़े, जवान सभी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं । बगवाल खेलने वाले द्यौके कहे जाते हैं । वे पहले दिन से सात्विक आचार व्यवहार रखते हैं । देवी की पूजा का दायित्व विभिन्न जातियों का है । फुलारा कोट के फुलारा मंदिर में पुष्पों की व्यवस्था करते हैं । मनटांडे और ढ़ोलीगाँव के ब्राह्मण श्रावण की एकादशी के अतिरिक्त सभी पर्वों� पर पूजन करवा सकते हैं । भैंसिरगाँव के गढ़वाल राजपूत बलि के भैंसों पर पहला प्रहार करते हैं ।

बगवाल का एक निश्चित विधान है । मेले के पूजन अर्चन के कार्यक्रम यद्यपि आषाढि कौतिक के रुप में एक माह तक लगभग चलते हैं लेकिन विशेष रुप से श्रावण माह की शुक्लपक्ष की एकादशी से प्रारम्भ होकर भाद्रपद कष्णपक्ष की द्वितीया तिथि तक परम्परागत पूजन होता है । बगवाल के लिए सांगी पूजन एक विशिष्ट प्रक्रिया के साथ सम्पन्न किया जाता है जिसे परम्परागत रुप से पूर्व से ही सम्बन्धित चारों खाम (ग्रामवासियों का समूह) गढ़वाल चम्याल, वालिक तथा लमगडिया के द्वारा सम्पन्न किया जाता है । मंदिर में रखा देवी विग्रह एक सन्दुक में बन्द रहता है । उसी के समक्ष पूजन सम्पन्न होता है । यही का भार लमगड़िया खाम के प्रमुख को सौंपा जाता है । जिनके पूर्वजों ने पूर्व में रोहिलों के हाथ से देवी विग्रह को बचाने में अपूर्व वीरता दिखाई थी । इस बीच अठ्वार का पूजन होता है । जिसमें सात बकरे और एक भैंस का बलिदान दिया जाता है ।

पूर्णिमा को भक्तजनों की जयजयकार के बीच डोला देवी मंदिर के प्रांगण में रखा जाता है । चारों खाम के मुखिया पूजन सम्पन्न करवाते है । गढ़वाल प्रमुख श्री गुरु पद से पूजन प्रारम्भ करते है । चारों खामों के प्रधान आत्मीयता, प्रतिद्वेंदिता, शौर्य के साथ बगवाल के लिए तैयार होते हैं ।

द्यीकों के अपने-अपने घरों से महिलाये आरती उतार, आशीर्वचन और तिलक चंदन लगाकर हाथ में पत्थर देकर ढोल-नगाड़ों के साथ बगवाल के लिए भेजती हैं । इन सबका मार्ग पूर्व में ही निर्धारित होता है । मैदान में पहँचने का स्थान व दिशा हर खाम की अलग होती है । उत्तर की ओर से लमगड़ीया, दक्षिण की ओर से चम्याल, पश्चिम की ओर से वालिक और पूर्व की ओर से गहड़वाल मैदान में आते हैं । दोपहर तक चारों खाम देवी के मंदिर के उत्तरी द्वार से प्रवेश करती हुई परिक्रमा करके मंदिर के दक्षिण-पश्चिम द्वार से बाहर निकलती है । फिर वे देवी के मंदिर और बाजार के बीच के खुले मैदान में दो दलों में विभक्त होकर अपना स्थान घेरने लगते हैं ।

दोपहर में जब मैदान के चारों ओर भीड़ का समुद्र उमड़ पड़ता है तब मंदिर का पुजारी बगवाल प्रारम्भ होने की घोषणा शुरु करता है । इसके साथ ही खामों के प्रमुख की अगुवाई में पत्थरों की वर्षा दोनों ओर से प्रारम्भ होती है । ढ़ोल का स्वर ऊँचा होता जाता है, छन्तोली से रक्षा करते हुए दूसरे दल पर पत्थर फेंके जाते हैं । धीरे-धीरे बगवाली एक दूसरे पर प्रहार करते मैदान के बीचों बीच बने ओड़ (सीमा रेखा) तक पहुँचने का प्रयास करते हैं । फर्रों� की मजबूत रक्षा दीवार बनायी जाती है । जिसकी आड़ से वे प्रतिद्वन्दी दल पर पत्थरों की वर्षा करते हैं । पुजारी को जब अंत:करण से विश्वास हो जाता है कि एक मानव के रक्त के बराबर खून बह गया होगा तब वह ताँबें के छत्र और चँबर के साथ मैदान में आकर बगवाल सम्पन्न होने की घोषणा करता है ।

बगवाल का समापन शंखनाद से होता है । तब एक दूसरे के प्रति आत्मीयता दर्शित कर द्यौके धीरे-धीरे खोलीखाण दूबाचौड़ मैदान से बिदा होते हैं । मंदिर में अर्चन चलता है ।

कहा जाता है कि पहले जो बगवाल आयोजित होती थी उसमें फर का प्रयोग नहीं किया जाता था, परन्तु सन् १९४५ के बाद फर का प्रयोग किया जाने लगा । बगवाल में आज भी निशाना बनाकर पत्थर मारना निषेध है ।

रात्रि में मंदिर जागरण होता है । श्रावणी पूर्णिमा के दूसरे दिन बक्से में रखे देवी विग्रह की डोले के रुप में शोभा यात्रा भी सम्पन्न होती है । कई लोग देवी को बकरे के अतिरिक्त अठ्वार-सात बकरे तथा एक भैंस की बलि भी अर्पित करते हैं ।

वैसे देवीधुरा का वैसर्गिक सौन्दर्य भी मोहित करने वाला है, इसीलिए भी बगवाल को देखने दूर-दूर से सैलानी देवीधुरा पहँचते हैं ।

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #33 on: October 16, 2007, 12:41:35 PM »

Some other Melas of Almora.

Kasar Devi Mela
The picturesque old part of the town of Almora is the venue for the fair held twice a year.

Shravan Mela
Jageshwar lying in the beautiful Jatganga Valley, housing one of the 12 jyotirlingas of India, is a complex of 12 temples in all.

Somnath Mela
The Somnath Fair held on Vishuwat Sankranti day is celebrated in the Shiva Temple at Masi.

Devidhura Mela:
The Devidhura Fair is held on the day of Raksha Bandhan in August, at the Varahi Devi Temple.

Ram Lila:
The festival of Dussehra is celebrated with great pomp and show all over Kumaon

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #34 on: October 22, 2007, 11:22:12 AM »
मां सुरकंडा व राजराजेश्वरी की डोलियों का स्वागतOct 21, 02:17 am

पुरोला (उत्तरकाशी)। पुरोला प्रखंड के तमाम मंदिरों व घरों में नवरात्र के समापन लोगों ने पूजा अर्चना की। इस मौके पर क्षेत्र में मां राजराजेश्वरी और सुरकंडा की डोलियों का भव्य स्वागत किया गया।

नौगांव तथा पुरोला प्रखंड में बसे टिहरी के विस्थापितों ने दशहरे के पावन पर्व पर पहली बार टिहरी से मां राजराजेश्वरी तथा सुरकंडा देवी की डोलियों को रवांई घाटी लाए। मां की डोलियों के आगमन पर ग्रामीणों ने ढोल नगाड़ों के साथ मा की डोलियों का स्वागत किया। विभिन्न गांवों के लोगों ने नवरात्र के अवसर पर देवथल पुरोला में मां राजराजेश्वरी तथा मां सुरकुंडा देवी की पूजा अर्चना की। गौरतलब है कि टिहरी बांध बनने पर टिहरी की पट्टी ओबा, भदूरा बनकुडाली सहित दर्जनों गांव के सैकडों परिवार विस्थापित हो कर रवांई घाटी के पुरोला, बसंतनगर, डेरिका,धेवरा तेगडा, गेंडा, तलडा, नौगांव, पोल, राजतर आदि गांव में बस गए हैं।


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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #35 on: October 22, 2007, 11:32:42 AM »
Kandali Festival

Kandali Festival is a festival held by the Bhotiya tribe of the Pithoragarh district of Uttarakhand state in India. This festival coincides with the blooming of the Kandali plant, which flowers once every twelve years. It is held in the Chaudas Valley between August and October. It celebrates the defeat of Zorawar Singh's army, which attacked this area from Ladakh in 1841. The women go out in procession in their traditional attire to destroy the Kandali plants, where the soldiers were hidden. The demoralised army returned along the Kali River, looting the villages on the way. The women resisted them and this is re-enacted to this day. The festival includes dancing, feasting and partaking in the local brew 'Chakti'. Kandali last bloomed in 1999 and next festival will be held in 2011

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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #36 on: October 23, 2007, 09:59:05 AM »
सिंघाली क्षेत्र का प्रसिद्ध धनलेख मेला धूमधाम से सम्पन्नOct 23, 02:24 am

अस्कोट(पिथौरागढ़)। सिंघाली क्षेत्र का प्रसिद्ध धनलेख मेला धूमधाम से सम्पन्न हो गया। क्षेत्र के आधा दर्जन से अधिक ग्रामसभाओं के ग्रामीणों द्वारा हर वर्ष की तरह ढोल-नगाड़ों के साथ आकर्षक जात निकाली गई। मेले में आये हजारों दर्शनाथियों ने धनलेख में स्थित छुरमल देवता और कालछिन देवता के मंदिरों में पूजा अर्चना की। मेले में सैकड़ों की संख्या में व्यापारिक प्रतिष्ठान भी सजे थे।

हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आयोजित होने वाले इस मेले में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी। सिंघाली क्षेत्र के गनाई, सूनाकोट, बस्तड़ी, बाराकोट, उड़मा, पथरौली और दिगरा गांवों से ढोल -नगाड़ों के साथ जातें निकाली गई। यह जात विभिन्न स्थानों पर घूमते हुए मंदिर परिसर पहुंची। मंदिर परिसर में अवतरित डंगरियों ने दर्शनार्थियों को आर्शिवाद दिया।

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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #37 on: October 30, 2007, 11:30:55 AM »
मेहता जी,
मुझे अपने भीमताल का हरेले का मेला याद आ रहा है
जो पहले तालाब के किनारे हर्याले खेतों में लगता था (मैंने नही देखा).
अब वहाँ रामलीला मैदान में लगता है पर मैं बहुत समय से उसमे जा नही पाया
और पास में रानीबाग में उत्तरयानी का मेला भी प्रसिद्द है.
जिस अवसर पर अब हल्द्वानी में भी कार्यक्रम होते हैं. 
हेम पन्त जी, अनुभव और संजू आप सभी को काफी encourage करते हो पर
आप लोगों से  मेरी request है की आप भी कुछ जानकारिया शेयर करें.

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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #38 on: October 30, 2007, 11:35:45 AM »

Sir Ji,.

Bachpan ji yaade taaji kar dee aapne. One of my friends, who spent a lot yrs in Bheemtal told me that the best time of this life so far were at Bheemtal.

मेहता जी,
मुझे अपने भीमताल का हरेले का मेला याद आ रहा है
जो पहले तालाब के किनारे हर्याले खेतों में लगता था (मैंने नही देखा).
अब वहाँ रामलीला मैदान में लगता है पर मैं बहुत समय से उसमे जा नही पाया
और पास में रानीबाग में उत्तरयानी का मेला भी प्रसिद्द है.
जिस अवसर पर अब हल्द्वानी में भी कार्यक्रम होते हैं. 
हेम पन्त जी, अनुभव और संजू आप सभी को काफी encourage करते हो पर
आप लोगों से  मेरी request है की आप भी कुछ जानकारिया शेयर करें.


Uttaranchali Nauni

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Re: FAMOUS FESTIVALS & MELAS OF UTTARAKHAND !!
« Reply #39 on: October 30, 2007, 12:00:06 PM »

Meine to ek bhi mela attend nahi kiya hain  :'(  :'(

Some other Melas of Almora.

Kasar Devi Mela
The picturesque old part of the town of Almora is the venue for the fair held twice a year.

Shravan Mela
Jageshwar lying in the beautiful Jatganga Valley, housing one of the 12 jyotirlingas of India, is a complex of 12 temples in all.

Somnath Mela
The Somnath Fair held on Vishuwat Sankranti day is celebrated in the Shiva Temple at Masi.

Devidhura Mela:
The Devidhura Fair is held on the day of Raksha Bandhan in August, at the Varahi Devi Temple.

Ram Lila:
The festival of Dussehra is celebrated with great pomp and show all over Kumaon

 

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