Author Topic: Flora Of Uttarakhand - उत्तराखंड के फल, फूल एव वनस्पति  (Read 292671 times)

Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  में  काला जीरा /शाही जीरा     मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Caraway  /kala jira   as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -   8                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 8                       
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --   97
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -97

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Carum carvi
सामन्य अंग्रेजी नाम - Caraway
हिंदी नाम - शिया जीरा , काला जीरा
संस्कृत नाम -कृष्णजीरिका ,कारवी
उत्तराखंडी नाम - शिया जीरा , काल जीरा , शाही जीरा , शिंगु जीरा
जन्मस्थल संबंधी सूचना - पश्चिम एशिया , उत्तरी अफ्रीका व यूरोप कला जीरे के जन्मस्थल माना जाता है।  उत्तराखंड में ऊपरी पहाड़ियों में  2700 -3600 मीटर  की ऊंचाई वाले  जंगलों में पाया जाता है और अब इस पौधे की खेती भी होती है।
काला जीरे का पौधा गाजर के पौधे जैसा ही होता है।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -
 काला जीरा पाषाण युग से ही उपयोग में आता रहा है। दवाई के रूप में 5000  सालों से काला जीरा उपयोग में है।  दक्षिण यूरोप में फोजिल्स में काला जीरा मिला है। आयुर्वेद में कार्वी  प्राथमिक काल से उपयोग होता आ रहा है।  अरब में यह शताब्दियों से दवाई व मसाले के रूप में उपयोग होता रहा है।  लोककथाओं में कहा जाता है कि यूनानी डाक्टर ने नीरो को शाही  जीरा उपयोग की सलाह दी थी।
 
 जीरा व काला जीरे में अंतर

  कला जीरा आम जीरे से कुछ छोटा होता है और काला तो होता ही है स्वाद में भी अलग होता है। आम जीरे की सुगंध तीब्र -गरम होती है।
 
  औषधि उपयोग
कला जीरा या शाही जीरा के अंगों का कई बीमारियों  जैसे हुक्क्रम कृमि , गैस , कफ , कोलेस्ट्रॉल , , दस्त , त्वचा , सांस की दुर्गंध , माहवारी के उपचार हेतु दवाई में या सीधा उपयोग होता है
काला जीरा या शाही जीरे का निकला  जाता है जो कई उद्यम में काम आता है।

    काला जीरे या शाही जीरे का मसाले रूप में उपयोग
पत्तियां व जीरा बीज पीसकर मसाले के रूप में उपयोग होता है।  बीजों को छुनका लगाने का भी काम आता है।  चूँकि  काला जीरा सौंफ का भाई है तो स्वाद उतना तीखा या कडुआ नहीं मिलता जितना आम जीरे का।




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Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  में    भंगजीरा , भंगीरा   मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Perilla    as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -  9                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  9                       
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --   98
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -98

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Perilla frutescens
सामन्य अंग्रेजी नाम -Perilla

उत्तराखंडी नाम -भंगजीरा , भंगीरा Bhangjira , Bhangira
नेपाली नाम - सिलाम
भंगजीरा /भंगीरा उत्तराखंड की पहाड़ियों में 500 -1800 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों पर खर पतवार के रूप में भी उगता  कृषि मसालों के रूप में भी उगाया जाता है।  60 -90 सेंटीमीटर ऊँचे पौधे का तना बालयुक्त वर्गाकार होता है और बहुत बार  इस पौधे को तिल  भी समझ बैठते हैं।
जन्मस्थल संबंधी सूचना -चीन या भारतीय हिमालय
   भंगीरा /भंगजीरा का मसाला उपयोग

 भंगजीरे / भंगीरे की पत्तियों को मसालों के साथ पीसकर भोजन को विशेष स्वाद दिया जाता है।
  भंगजीरे /भंगीरे की पत्तियों को नमक व मिर्च के साथ पीसकर चटनी बनाई जाती है।
   भंगीरे /भंगजीरे  के बीजों को मसाले के रूप में अन्य मसालों के साथ मिलाया जाता है।
भंगजीरे।/भंगीरे के बीजों को नमक के साथ पीसकर चटनी बनाई जाती है।
 भंगीरे /भंगजीरे के बीजों को पकोड़े बनाते समय पकोड़ों को स्वाद देने हेतु पकोड़े पीठ /पीठु  के ऊपर छिड़क देते हैं।
 भंगीरे / भंगजीरे बीजों को भूनकर चबाया भी जाता है जैसे भांग के बीज।
 भुने भंगजीरे / भंगीरे के बीजों को बुखण/चबेना  के साथ भी मिलाया जाता है।
 भंगीरे / भंगजीरे के बीजों से तेल निकाला जाता है और खली को मसाले रूप  में मवेशियों को दे दिया जाता है। 


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उत्तराखंड  में   जम्बू फरण   मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Small Alpine Onion   as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 10                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 10                       
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास -- 99
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -99

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Allium humile
सामन्य अंग्रेजी नाम - Small Alpine Onion

हिंदी नाम - हिमालयी वन प्याज
उत्तराखंडी नाम - जम्बू फरण
   यह वन प्याज अफगानिस्तान से भूटान व चीनी हिमालय में 3000 -4000  की ऊंचाई पर पाया जाता है।  इसकी पत्तियों से व्ही सुगंध आदि है जो लहसुन की पत्तियों में आती है .
 मुख्यतया यह पौधा औषधि के काम आता है
 इसके सूखे फूल छौंके में उपयोग होते है। पत्तियां या सुखी पत्तियां पीसकर साग दाल में डालकर स्वाद वर्धन हेतु उपयोग होता है .
   जम्बू जंगलों में भी होता है और खेती  भी होती है।




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उत्तराखंड  में टिमुर     मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of  Sichuan pepper, Timur    as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -  11                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 11                       
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --100 
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -100

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Xanthoxylum armatum
सामन्य अंग्रेजी नाम - Prickly Ash, Sichuan pepper or Toothache Tree
संस्कृत नाम -आयुर्वेद नाम -तेजोह्वा , तुम्बुरु:
हिंदी नाम -टिमुर , तेजबल
नेपाली नाम - टिमुर
उत्तराखंडी नाम -टिमुर
 टिमुर के की कंटीली झाड़ियां उत्तराखंड में 1000 मीटर से लेकर 2250  मीटर की ऊंचाइयों पर मिलती हैं। 
             जन्मस्थल संबंधी सूचना -
  टिमुर का जन्मस्थल हिमालय ही है .
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - उत्तराखंड का टिमुर काल में भी प्रसिद्ध था और पाणनि साहित्य में लिखा है कि उत्तराखंड से अशोक व् अन्य राजाओं हेतु टिमुर निर्यात होता था।  (डा शिव प्रसाद डबराल , उखण्ड का इतिहास -2 )
 डा कला लिखते हैं कि सदियों से भोटिया समाज टिमुर ( Xanthoxylum की चार प्रजाति ) उपयोग विनियम माध्यम (Exchange Medium )  करते हैं। 
 भावप्रकास निघण्टु (डा डी  एस पांडे संपादित व हिंदी टीका 1998  ) के 113 -115 श्लोक में टिमुर  पर प्रकाश डाला गया है। नेपाली निघण्टु में भी टिमुर पर प्रकाश डाला गया है। डा अनघा रानाडे व आचार्य सूचित करते हैं कि टिमुर का उल्लेख धनवंतरी निघण्टु (ग्यारवीं सदी के लगभग ) में भी हुआ है । मदनपाल निघण्टु  में टिमुर  उल्लेख है।
 
   धार्मिक उपयोग
 नरसिंग आदि ली सोटी , यज्ञोपवीत में आवश्यक लाठी के रूप में प्रयोग होता है। साधू टिमुर की लाठी को पवित्र मानते हैं
   दांतुन
 टिमुर से दांतुन किया जाता है। चार धामों में अभी भी भोटिया टिमुर के दांतुन बेचते हैं (डा सी पी काला )

    औषधीय उपयोग
टिमुर के विभिन्न भाग पेट दर्द , एसिडिटी , अल्सर , आंत की कृमि , त्वचा रोग , दांत दर्द निवारण हेतु प्रयोग करते हैं।  जाड़ों में भोटिया समाज बीजों को भूनकर चबाते हैं जिससे ठंड का असर न पड़े। आयुर्वेद में कफ व वात निर्मूल हेतु उपयोग होता है।

  मसाले व भोजन में उपयोग

  टिमुर का सबसे अधिक उपयोग भोटिया समाज करता आया है।  भोटिया टिमुर को सूप में उपयोग तो करते ही हैं साथ ही बीजों व बीजों के भूसे का मसाले में उपयोग होता है। भोटिया डुंगचा नामक चटनी बनाने हेतु भी टिमुर का यपयोग करते हैं।




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उत्तराखंड  में  दालचीनी /तेजपात     मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of  Cinnamon, Indian cassia  as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 12                                             
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 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  102
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -101

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Cinamomum tamala
सामन्य अंग्रेजी नाम -Cinnamon, Indian cassia , Tejpat
संस्कृत नाम - दारुसिता , वरांगा
हिंदी नाम - दालचीनी
उत्तराखंडी नाम - दालचीनी , तेजपात

जन्मस्थल संबंधी सूचना - Cinamomum genus  की करीब 250 स्पेसीज हैं  तेजपत्ता प्राचीनतम मसालों में से एक है।  बाइबल , अरबी साहित्य में तेजपात का जिक्र मिलता है।
Cinamomum tamala का जन्म हिमालय माना जाता है क्योंकि यह पेड़ पश्चिम हिमालय व पूर्वी हिमालय में 900 -2500 मीटर ऊँचे स्थानों में पाया जाता है।  उत्तराखंड में दालचीनी का उपयोग गरम् मसाले व चाय के साथ होता है। केरल में ब्रिटिश व श्रीलंका में हॉलैंड वासियों ने बागवानी शुरू की।  उत्तराखंड में चाय बगान की असफलता से ब्रिटिश या यूरोपीय लोगों ने उत्तराखंड  नहीं दिया।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - चूँकि दालचीनी के कई औषधीय उपयोग होते हैं तो धन्वन्तरी निघण्टु (52 ); कै.  निघण्टु  (1337 , 38 ) ;शै . निघण्टु (287 ); भाव् प्र निघण्टु (56 )  निघण्टु ( 172 ) में मिलता है।
  मसाला उपयोग
  दालचीनी के अंदरूनी खाल के मसाले में उपयोग होता है व तेल से कई दवाइयां बनती हैं।
उत्तराखंड में दालचीनी का वार्षिक मार्किट 1470 टन का बताया जाता है ( हेमा लोहानी व अन्य ,जॉर्नल ऑफ केमिकल ऐंड फार्मेस्युटिकल रिसर्च , 2015 )


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उत्तराखंड  में  कड़ी पत्ता मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Curry Tree  as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 13                                               
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  13                     
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  102 
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -102

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
-
वनस्पति शास्त्रीय नाम -Murraya koenigii
सामन्य अंग्रेजी नाम - Curry tree
संस्कृत नाम -गिरीनिम्ब
हिंदी नाम -कड़ी पत्ता

उत्तराखंडी नाम - नजदीकी पौधा गंद्यल , कड़ी पत्ता
कड़ी पत्ते का पेड़ 4  से 6 मीटर तक ऊँचा पेड़ या झाडी होता है जो भाभर व कम ऊंचाई वाले पहाड़ियों जगहों पर पाया जाता है। 
जन्मस्थल संबंधी सूचना -
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -सुश्रुता संहिता , राज निघण्टु , आदर्श निघण्टु में कड़ी पत्ते से बनने वाली औषधियों  उल्लेख है (अंजलि मोहन राजीव गाँधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ केयर बंगलौर में थीसिस 2012 -13 )
    कड़ी पत्ता का औषधि उपयोग
 पत्तों से बनी औषधि का दस्त , पेट दर्द ,उलटी रोकने हेतु काम आता है। छाल - पेस्ट त्वचा रोग रोकने हेतु उपयोग होता है। जड़ों से गुर्दे की बीमारी में औषधि बनाई जाती है।
    कड़ी पत्ते का मसाले में उपयोग
 कड़ी पत्ता वास्तव में केवल छौंका लगाने के  है और इसकी सुगंध भोजन में स्वाद वर्धन करती है। यद्यपि कड़ी पत्ते के फल मीठे होते हैं किन्तु इसे फल रूप में नहीं खाया जाता।  पहाड़ी समाज कुछ ही सालों से कड़ी पत्ते को छौंका लगाने हेतु उपयोग कर रहा है।



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Notes on History of Culinary, Gastronomy, Spices  in Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy , Spices in Pithoragarh Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy,  Spices in Doti Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy ,  Spices in Dwarhat, Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy,  Spices in Pithoragarh Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Champawat Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Nainital Uttarakhand;History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Almora, Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy in Bageshwar Uttarakhand; History  Culinary,Gastronomy ,  Spices in Udham Singh Nagar Uttarakhand; History  Culinary,Gastronomy in Chamoli Garhwal Uttarakhand; History  Culinary,Gastronomy, Spices  in Rudraprayag, Garhwal Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Pauri Garhwal, Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy in Dehradun Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices   in Tehri Garhwal  Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy,  Spices in Uttarakhand Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Haridwar Uttarakhand;

 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


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उत्तराखंड  में  हींग का   मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Asafoetida  , Hing ,Heeng as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 14                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  14                     
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --   103
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -103

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Ferula asafoetida
सामन्य अंग्रेजी नाम - Asafoetida
संस्कृत /आयुर्वेद नाम - हिंगू
हिंदी नाम -हींग
उत्तराखंडी नाम - हींग
          जन्मस्थल संबंधी सूचना -
डा राजेंद्र डोभाल अनुसार हींग की 170  प्रजातियां हैं और 60 प्रजातियां एशिया में मिलती हैं।  हींग एक पौधे की जड़ों के दूध (latex ) को सुखाकर मिलता है।  उत्तराखंड में डेढ़ मीटर ऊँचा पौधा 2200  मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों में मिलता है।  उत्तराखंड के लोग हींग की सीमित खेती करते हैं।  उत्तराखंड में मिलने वाली प्रजाति का जन्म स्थान मध्य एशिया याने पूर्वी  ईरान व अफगानिस्तान के मध्य माना जाता है।
     -हींग , हिंगु का औषधि  उपयोग संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -
 हिंगू का उल्लेख चरक संहिता कई औषधि निर्माण  हेतु हुआ है। सुश्रुता संहिता में हिंगू का कई प्रकार की औषधि निर्माण उल्लेख हुआ है। छटी सदी के  बागभट  रचित अस्टांग  संग्रह , सातवीं सदी के अष्टांग हृदय संहिता ; ग्यारवीं सदी के चक्रदत्त चिकित्सा ग्रन्थ , बारहवीं -तेरहवीं सदी के कश्यप संहिता/वृद्ध जीविका तंत्र ,  भेल संहिता , बारहवीं सदी के गदा संग्रह , सारंगधर संहिता , हरिहर संहिता , अठारवीं सदी के भेषज रत्नावली , सिद्ध भेषज संग्रह ( 1953  ) , आयुर्वेद चिंतामणि (1959 ). पांचवी सदी के अमरकोश , धन्वंतरि निघण्टु , राज निघण्टु , मंडपाल निघण्टु , राजा निघण्टु (15 वीं सदी ) , कैयदेव निघण्टु , भाव प्रकाश निघण्टु ,अभिनव निघण्टु , आदर्श निघण्टु , शंकर निघण्टु , नेपाली निघण्टु ,मैकडोनाल्ड इनसाक्लोपीडिया लंदन , इंडियन मेडिकल प्लांट्स ,
 अतः  सिद्ध है कि हींग का कई औषधीय उपयोग होता है।  दादी माँ की दवाइयों में हींग का उपयोग दांत दर्द कम करने , बच्चों के कृमि नाश , पेट दर्द आदि हैं।
     हींग का छौंका
 हींग को विभिन्न सब्जियों , दालों में सीधा मिलाकर या छौंका लगाकर उपयोग होता है।


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 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


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उत्तराखंड  में  जख्या  का  मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Asian Spider, Cleome Jakhya    as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 15                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 15                     
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  104
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -104

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Cleome viscosa
सामन्य अंग्रेजी नाम - Asian Spider Flower , Wild mustard
संस्कृत नाम -अजगन्धा
हिंदी नाम - बगड़ा
नेपाली नाम -हुर्रे , हुर्रे , बन तोरी
उत्तराखंडी नाम -जख्या
एक मीटर ऊँचा , पीले फूल व लम्बी फली वाला जख्या बंजर खेतों में बरसात उगता है।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - संभवतया जख्या का जन्म एशिया में हुआ है।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -अजगन्धा जिसकी पहचान Cleome gyanendra आदि  में होती है का उल्लेख कैवय देव   निघण्टु , धन्वंतरि निघण्टु ,राज निघण्टु , में हुआ है।
   औषधीय उपयोग
जख्या पत्तियों  अल्सर की दवाइयां   जाती हैं। बुखार , सरदर्द , कान की बीमारियों की औषधि हेतु उपयोग होता है 

  जख्या का मसाला उपयोग
  उत्तराखंड का कोई ऐसा घर न होगा जो जख्या का छौंका न लगाता  हो।  जख्या केवल छौंके के लिए ही प्रयोग होता है।  उत्तराखंड के प्रवासी भी उत्तराखंड से अपने साथ जख्या ले जाते हैं।

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 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )
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 पांगर , पांगरू वृक्ष वनीकरण से मेडिकल टूरिज्म  विकास

Indian  Horse Chestnut Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -25
Medicinal Plant Community Forestation -25
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति 127
Medical Tourism Development Strategies -127
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 230
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -२३०

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम - Aesculus  indica
संस्कृत /आयुर्वेद नाम -
सामान्य   नाम -कनोर बंखोर , पांगर , कीशिंग , कारु , घोड़ा पांगरू ,
आर्थिक उपयोग
चारा
लकड़ी
आटा गेंहू के आटे के साथ मिलाया जाता है
औषधि उपयोग

 पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं
पत्तियां
बीज
छाल
तेल

रोग निदान उपयोग
त्वचा रोग अल्सर
त्वचा जलन
माहवारी दर्द
जोड़ों के दर्द
सूजन


बाजार में उपलब्ध औषधि

पादप वर्णन
आकर्षक व अब मैदानों में बगीचों में उगाया जाता है
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई - 800  से 3000  मीटर

वांछित जलवायु वर्णन - धुपेली , दुम्मट मिट्टी , अति गर्म व अति जलभराव नहीं
वृक्ष ऊंचाई मीटर - 22 तक , छाया हेतु उत्तम
तना गोलाई मीटर -1
छाल -मोटी
टहनी - फूल लगते हैं ,
पत्तियां
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm 20 , 10 x 6 , 2 और विशेषता -नाव आकार आकर्षक , पतझड़ में झड़ जाते हैं
फूल आकार व विशेषता - गुच्छों में एक टहनी पर 300 फूल
फूल रंग -सफेद
फल रंग - काष्ठ फल , मटमैला , भूरे
फल आकार व विशेषता गोल , काष्ठ फल से  बीज फूटते हैं , झीसदार
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग -भूरे , लाल
फूल आने का समय जून जुलाई
फल पकने का समय - अक्टूबर
बीज निकालने का समय -अक्टूबर ,
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं - शीघ्र बोये जाने चाहिए , बीज सूखने नहीं चाहिए


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि -लगभग सुखी , बलुई सभी तरह की मिटटी में उग जाते ह
वांछित तापमान विवरण - दक्षिण उत्तराखंड की पहाड़ियां
बीज बोन का समय - जब बीज या काष्ठफल गिरें तभी , काष्ठफल भी बोये जा सकते हैं
 मिट्टी  तैयार होनी चाहिए जैसे गेंहू आदि की बुवाई होती है
मिटटी में  बीज कितने गहरे डालने चाहिए - काष्ठफल से तीन गुना गहराई
नरसरी में अंकुर रोपण अंतर-  10  मीटर
बीज बोन के बाद सिचाई क्रम - 7 दिन या जलवायु अनुसार
अंकुरण समय -    10
रोपण हेतु गड्ढे मीटर     बड़े , गड्ढे बड़े हों और रोपण से पहले पानी भर दीजिये
 रोपण बाद सिचाई - आवश्यक
नरसरी स्थान छायादार या धुपेली -  धुपेली , नम किन्तु जल भराव नहीं
क्या कलम से वृक्ष लग सकते हैं ? हाँ
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ? हाँ और सरल है , अंकुरण प्रतिशत अधिक है।
वयस्कता समय वर्ष  3 -5 वर्ष
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें

कृपया इस लेख का प्रिंट आउट ग्राम प्रधान व पंचायत को अवश्य दें


Copyright@ Bhishma Kukreti , 2018 , kukretibhishma@gmail.com
 सिरीस वृक्ष वनीकरण से चिकित्सा पर्यटन विकास

Lebbeck Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -26
Medicinal Plant Community Forestation -26
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -128
Medical Tourism Development Strategies -128
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 231
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -231

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम -Albizia lebbeck
संस्कृत /आयुर्वेद नाम - शुकप्रिया
सामान्य   नाम - सिरीस
आर्थिक उपयोग
लकड़ी
रंग
गोंद
चारकोल निर्माण
चारा
मधु मक्खी पालन हेतु उत्तम फूल

औषधि उपयोग
 
 पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं
जड़
पत्तियां
तना ,
टहनी
बीज
फूल
फल

रोग  व निदान उपयोग
जलोदर
कीड़ों , सर्प -बिच्छू दंश
बबासीर
रक्तशोधक
सुजाक
अतिसार व दस्त
कफ
स्वास अस्थमा
कर्ण  पीड़ा रोग
अश्रु रोग
उन्माद
यकृत संबंधी समस्याएं
मूत्र रोग -बार बार मूत्र जाना
कृमि नाशक
जलन दूर करने में सक्क्षम
कई अन्य पादपों के साथ उपयोग




बाजार में उपलब्ध औषधि

पादप वर्णन
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई - 1600 मीटर तक , हिमालयी पर्वत श्रेणी
तापमान डिग्री सेल्सियस -19 -35
वांछित जलवायु वर्णन -
वृक्ष ऊंचाई मीटर -18-30
तना गोलाई मीटर -50cm - 1M
छाल - खूब

पत्तियां - लम्बी
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता -7.5-15 cm long,
फूल आकार व विशेषता
फूल रंग -पीला -सफेद स्टेमिना दीखते हैं
फली , टांटी फल रंग - कम पीला
फल आकार व विशेषता - टांटी
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग - टांटी  के अंदर 6 -12  बीज
फूल पतझड़ के बाद आने लगते हैं
बीज निकालने का समय - जब टांटी कड़कड़ी, भूरी  याने बीज पक जायँ
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि -pH 9 , कम अम्लीय व क्षार सहनशील , दुम्मट , रगड़ , गदन  किनारे , अधिक चिकनी मिट्टी -नापसंद , लहभग सभी मिट्टी।  चरान  व आग सह लेता है
बाछित औसत वर्षा - 600-2500mm
वांछित तापमान विवरण - 20 -35 डिग्री सेल्सियस
बीज बोन का समय - बीज कुछ साल तक भी प्रजनन योग्य रहते हैं।  किन्तु एक साल समय भण्डारीकरण सही समय। 
मानसून में बीजों को बंजर व रगड़ वाले वनों में छिड़क दिए जाने चाहिए।  खेतों के किनारे हवा रोकने (wind breaker ) या नाइट्रोजन प्राप्ति हेतु भी छिड़क देना लाभकर है। जलभराव में कलियाँ नहीं पनपती है।  भू संरक्षण हेतु उत्तम वृक्ष
वयस्कता समय वर्ष -
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें

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 सुबबूल ल्युसिना वृक्ष वनीकरण से चिकित्सा पर्यटन विकास

Leucaena White lead Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण - 27
Medicinal Plant Community Forestation -27
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -129
Medical Tourism Development Strategies -129
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 232
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -232

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम -Leucaena leucocephla
संस्कृत /आयुर्वेद नाम - यह पादप दक्षिण /लैटिन अमेरिका का पेड़ है अतः  आयुर्वेद में इसका उपयोग उल्लेख नहीं है
सामान्य   नाम - सुबबूल
आर्थिक उपयोग
लकड़ी
खाद
जहां नाइट्रोज की कमी हो उस भूमि हेतु सर्वोत्तम
बायोमास हेतु सर्वोत्तम
प्लाईवुड व काकज हेतु
भूकटान रोकथाम
चारा -ल्युसिना एक उत्तम चारा वृक्ष है. प्रोटीन की अधिकता के कारण चारे हेतु उत्तम है किन्तु अधिक मात्रा में देने से गौर बमै  (बुखार ) जाते हैं।  मिमोसाइन होने से घोड़े व गधों के बाल झड़ जाते हैं।  दूधवर्धक होने के कारण भाभर में 30 % ल्युसिन्ना पत्तियां व 70 % अन्य चारा के साथ मिलाया जाता है। 

औषधि उपयोग
 
 पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं
बर्मा में पत्तियों के  पेस्ट को विषैले कीड़ों के कटने पर उपयोग
मलेसिया में पेस्ट  पेस्ट को गले मपर  लगाकर कफ दवाई
मलेसिया में पत्तियों को पानी में उबालकर पादप स्नान
इंडोनेसिया में बीज कृमि नाशक रूप में
फिलिपाइन्स में बीज माहवारी वृद्धि हेतु
बीज कॉफी विकल्प रूप में


पादप वर्णन
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई - 3000 फ़ीट या अधिक
तापमान -
वांछित जलवायु वर्णन - उष्ण कटबंधीय जलवायु , जलभरान बिलकुल नहीं
वांछित वर्षा mm
वृक्ष ऊंचाई मीटर -5
तना गोलाई मीटर - अधिकतम 30 cm
छाल -सामन्य

पत्तियां - जटिल व जोड़े में
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता - बबूल जैसे , 5 से 10 cm  लम्बे
फूल आकार व विशेषता - गुच्छों में सफेद
फूल रंग -गुलाबी सफेद
फल रंग -तांती हरी से भूरी
टांटी /फलियां  आती हैं
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग - भूरे
फूल आने का समय - सारे वर्ष
फल पकने का समय सारे वर्ष
बीज निकालने का समय -सारे वर्ष
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं शीघ्र


यह पादप कहीं   भी किन्ही भी परिस्थिति में उग आता है व प्रजनन प्रतिशत अधिक होता है।  अतः  मानसून के समय बीजों को बंजर , कम उपजाऊ जंगलों में छिड़क दिए जाने चाहिए , आग व चरान  को भी सह लेने की क्षमता वाले वृक्ष अपने आप जंगल बनांने में अति सक्षम।  राय - खेतों के किनारे नहीं  लगाया जाता है क्योंकि यह खर पतवार जैसे बढ़ सकता है व पत्तियां गिरती रहती हैं
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें

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 बुरांस वृक्ष वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Burans /Rhododendron Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -28
Medicinal Plant Community Forestation -28
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -130
Medical Tourism Development Strategies -130
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 233
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -233

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम -Rhododendron arboreum
संस्कृत /आयुर्वेद नाम -
सामान्य   नाम - बुरांस , रोहितिका
आर्थिक उपयोग
लकड़ी
चारा
कटान रोकू पेड़

औषधि उपयोग
बुरांस रस
फेफड़ा कैंसर औषधि  हेतु अवयव
किडनी
पाचन शक्ति
माहवारी
शक़्कर रोग में
कई नयूट्रीएंट्स हेतु

 
 पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं
फूल
छाल



बाजार में उपलब्ध औषधि
बुरांस  ज्यूस

पादप वर्णन
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई - 800  से  2000 तक
तापमान -
वांछित जलवायु वर्णन -उत्तरी ढलान , नमीयुक्त , कम सूर्य या कम धूप  प्रेमी , शीत बर्दास्त के जबरदस्त सहनशीलता, गर्मियों में बारिश पसंद
वांछित वर्षा mm- न कम न अधिक
वृक्ष ऊंचाई मीटर -Rhododendron की 1000 प्रजातियां 100 cm से 30 मीटर
तना गोलाई मीटर - वृक्ष अनुसार

पत्तियां -मंदार , कटींली जैसी
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता - 1 cm  से 50 cm तक
फूल आकार व विशेषता - घंटाकार , गुच्छों में
फूल रंग -चटक लाल , आकर्षक
फल रंग -
फल आकार व विशेषता
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग -
फूल आने का समय - वसंत से गर्मियों तक
फल पकने का समय - गर्मियों में
बीज निकालने का समय - गर्मियों में
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि -अम्लीय , pH 4. 5 -6
वांछित तापमान विवरण - कम
बीज बोन का समय = बरसात , छाया में , किन्तु प्रकाश भी आवश्यक
नरसरी में बोते समय बीज अंतर -  cm  6 -10
मिटटी में  बीज कितने गहरे डालने चाहिए - गहराई - 1 -2 इंच , मिट्टी खादयुक्त आवश्यक , नम व खाद युक्त बालू में सही
नरसरी में अंकुर रोपण अंतर- 5 से 10  फ़ीट
बीज बोन के बाद सिचाई क्रम - लगभग प्रतिदिन
अंकुरण समय -   10 -21 दिन
रोपण हेतु गड्ढे मीटर   1 फ़ीट x  2  या जड़ से दुगनी गहराई
 रोपण बाद सिचाई - नियमित
नरसरी स्थान छायादार या धुपेली - दोनों

क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ? यदि नम बांज क्षेत्र हो तो बीज बोये जा सकते हैं
वयस्कता समय वर्ष - प्रजाति अनुसार
इस लेख की राय है कि  देहरादून , उधम सिंह नगर, हरिद्वार  में व्यक्तिगत बगीचों में बुरांस उगाये जाने चाहिए
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें

कृपया इस लेख का प्रिंट आउट ग्राम प्रधान व पंचायत को अवश्य दें


 भीमल /भ्यूंळ वृक्ष वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Bihul/Bhimal  Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -29
Medicinal Plant Community Forestation -29
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति 131
Medical Tourism Development Strategies -131
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 234
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -234

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम - Grewia Optiva
संस्कृत /आयुर्वेद नाम -धनवन:
सामान्य   नाम - भीमल ,
आर्थिक उपयोग -
प्रोटीन युक्त चारा , दुग्ध वृद्धि कारक , जाड़ों में जब पतझड़ के कारण चारे व प्रोटीनयुक्त चाहे की कमी होती है तो भीमल चारा उत्तम चारा , टेनिन न होने से उत्तम
फल
लकड़ी - छिल्ल, औजार आदि निर्माण में , कील
जलने पर अजीब गंध आती है
रेशे - उत्तम किस्म के रेशे , हेस्को ने इसे फैशन हेतु उपयोग किया है
नहाने हेतु , शैम्पू व साबुन का सर्वोत्तम विकल्प
कटान रोकू पेड़
बीजों से साबुन अदि हेतु तेल की संभावना बहुत है
औषधि उपयोग
कैयदेव निघण्टु में वर्णन
त्वचा रोग में रक्तशोधक , रक्तस्राव रोकू
जोड़ो में ताकत हेतु
जानवरों की त्वचा कटने /फटने पर उपयोगी
त्वचा फटने /नासूर में उपयोगी
कफ रोधक
अल्सर रोकू
डाइबिटीज प्रतिरोधी
बच्चे जन्म समय चिकनाई हेतु
जूं /कृमि नाशक
पत्तियों को आँख शल्य क्रिया -पोतळ  गाडण में उपयोग किया जाता था
 
 पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं
पत्तियां
छाल


बाजार में उपलब्ध औषधि - अभी तक शायद कोई नहीं

पादप वर्णन
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई - 7000  फ़ीट तक
तापमान - 2 से 38 डिग्री सेल्सियस
वांछित जलवायु वर्णन - ुप्प उष्ण कटबंधीय
वांछित वर्षा mm- कम वर्षा में भी जीवित रह सकता है
वृक्ष ऊंचाई मीटर - 9 -12
तना गोलाई मीटर - 1 तक जा सकता है कभी कभी
छाल - निकल जाती है
टहनी - पत्तियां टहनियों में और फूल भी
पत्तियां
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता -अंडाकार 5 -13 x 3 -6 , पीछे झीस
फूल आकार व विशेषता - 1 -8  साथ साथ
फूल रंग -पीत से लाल
फल रंग - हरा पककर भूरा -काला
फल आकार व विशेषता गूदेदार खाया जाता है
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग - कुछ कुछ मटमैले , सफेद छोटे
फूल आने का समय -नई पत्तियां आने के बाद , अप्रैल मई
फल पकने का समय - सितंबर से दिसंबर
बीज निकालने का समय - फल पकने के बाद
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं - एक वर्ष तक , फलों को हाथ से कुचलकर , पानी में धोकर बीज निकाले जाते है , कम धुप में सुखाकर सुरक्षित रखे जाते हैं


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि - लगभग सभी प्रकार की मिट्टी किन्तु दुम्मट मिट्टी , हवादार मिट्टी पसंद , उजाला/धुपेली जगह पसंद वृक्ष
वांछित तापमान विवरण - 2 -38 डिग्री सेल्सियस
बीज बोन का समय - नरसरी में अप्रैल मई
नरसरी में बोते समय बीज अंतर -  6 cm
मिटटी में  बीज कितने गहरे डालने चाहिए - cm गहराई कम से कम 2 . 5
नरसरी में अंकुर रोपण गड्ढों में अंतर-  3 x 3 x मीटर
बीज बोन के बाद सिचाई क्रम - गर्मियों में हफ्ते अंदर
अंकुरण समय -   अधिक समय

 रोपण बाद सिचाई  आवश्यक
नरसरी स्थान छायादार या धुपेली - धुपेली

क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ?  अक्टूबर  -दिसंबर तक बीज एकत्रित किये जायँ व मानसून में बीज छिड़के जायँ
वयस्कता समय वर्ष - तीन चार वर्ष
बर्फ , पाले से बचाव आवश्यक
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें

कृपया इस लेख का प्रिंट आउट ग्राम प्रधान व पंचायत को अवश्य दें


रुद्राक्ष वृक्ष वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Rudraksha Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -30
Medicinal Plant Community Forestation -30
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति 132
Medical Tourism Development Strategies -132
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 235
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -235

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम -Elaeocarpus spharicus
संस्कृत /आयुर्वेद नाम - भूतनाशम
सामान्य   नाम - रुद्राक्ष

औषधि उपयोग
 
 पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं
बीज
फल , गुठली

रोग निदान उपयोग
मनोरोग
उच्च रक्तचाप
निम्न रतक्चाप अश्वगधा के साथ
पिम्पल्स त्वचा
चेचक
कभी कभी बंशलोचन के साथ क्षय रोग
कफ
श्वासरोग
अपाचन
हृदय रोग
विस्मृति
बाल झड़ने
पीलिया
कैंसर
गठिया
शरीर दर्द
आलसपन
शरीर में जलन
बच्चों स्वास रोग
रक्त कमी


बाजार में उपलब्ध औषधि -कई तरह की

पादप वर्णन
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई - गंगा यमुना घाटी , नेपाल
तापमान -
वांछित जलवायु वर्णन -
वांछित वर्षा mm- उत्तराखंड की सामन्य वर्सा
वृक्ष ऊंचाई मीटर - 15
तना गोलाई मीटर - गोल , सिलिंडर जैसे ,जलवायु पर निर्भर
छाल - परत वाली सिलेटी , कुछ कुछ भूरी
टहनी - सामन्य
पत्तियां
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता - 10 -15 x 2 -5 ; ऊपर चमकदार नीचे मटमैले ,अण्डाणुमा , पुरानी पत्तियां लाल होती जाती हैं
फूल आकार व विशेषता - पत्तियों के केंद्र से निकलते हैं
फूल रंग - सफेद ,
फल रंग  अनेक
फल आकार व विशेषता - गुठली और कोने के हिसाब  से  एक मुखी -21 मुखी तक , दिसंबर जनवरी में पकते हैं
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग -अनेक , दिसंबर जनवरी में पकते हैं
फूल आने का समय -मई जून
फल पकने का समय - दिसंबर जनवरी
बीज निकालने का समय -दिसंबर जनवरी , फलों को पानी में कई दिनों तक भिगोने रखा  जाता है व गूदे  से बीज निकाले जाते हैं
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं - साल भर


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि - दुम्मट , उप उष्ण कटिबंध , नमी  पसंद
वांछित तापमान विवरण - दक्षिण  उत्तराखंड का
बीज बोन का समय-मांस्सों , गुठली /बीज को डाइल्यूट सल्फ्यूरिक ऐसिड में 15 रखकर फिर मंतत पानी से धोकर मंतत पानी में 24 घंटे रखे जाते हैं और तब बोये जाने चाहिए
नरसरी में बोते समय बीज अंतर -  cm   आधा मीटर
मिटटी में  बीज कितने गहरे डालने चाहिए - cm गहराई -  5 -10
नरसरी में अंकुर रोपण अंतर-  5  मीटर
बीज बोन के बाद सिचाई क्रम - सामान्य
अंकुरण समय -   दिन
रोपण हेतु गड्ढे मीटर    आधा x  आधा x आधा
 रोपण बाद सिचाई - एक वर्ष तक जलवायु अनुसार अवश्य
नरसरी स्थान छायादार या धुपेली -धुपेली , खर पतवार से दूर रखें
क्या कलम से वृक्ष लग सकते हैं ? अधिक कामगार सिद्ध हुआ है
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ? बीजों को ऐसिड में रखकर , 24 घंटे पानी में भिगोकर छिड़कने से भी।  वस्तुतः वनों में रुद्राक्ष बीज फैलकर ही जमते है
वयस्कता समय वर्ष - 5 वर्ष
इमली वृक्ष वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Tamarind Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -31
Medicinal Plant Community Forestation -31
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -133
Medical Tourism Development Strategies -133
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 236
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management - 236

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम -Tamarindus  indica
संस्कृत /आयुर्वेद नाम - चिंच , चिंचिका
सामान्य   नाम - इमली
आर्थिक उपयोग
चटनी , साम्भर , सूंटिया  आदि  भोज्य पदार्थ
लकड़ी - ताकतवर , फंगस प्रतिरोधक
चारा किन्तु  लौंफ कर नहीं काटा जाता फूल प्रजनन पर प्रभाव पड़  जाता है
टेनिन रंग
बीज तेल
-----औषधि उपयोग ---
 
 पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं
फल
बीज
तेल



रोग निदान उपयोग
कफ, गले की खरास
जोड़ों का दर्द व सूजन निवारक
पत्ती  भष्म जले व घावों में उपयोग
दस्त
बुखार
स्कर्वी , विटामिन सी युक्त
बाजार में उपलब्ध औषधि
पंचमाला थाइलम
शंख बटी
गार्सिनिया
पादप वर्णन
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई - 0 -1500 मीटर , अल्पाइन छोड़कर  उष्ण कटबंधीय के सभी क्षेत्रों में  उग सकता है, बर्फ व ओस संवेदंनशील
तापमान -सभी तरह के किन्तु शीत  सहन नहीं कर सकता , 20 -33 C
वांछित जलवायु वर्णन -
वांछित वर्षा mm  - 350 -2700
वृक्ष ऊंचाई मीटर -12 से  30 , , 300 वर्ष तक जिन्दा रह सकता है
तना गोलाई मीटर - 1 -2 करीब वृक्ष पर निर्भर
छाल - पतली , पर खुरदरी भूरा सफेद सिलेटी
टहनी - आम लेग्यूम वृक्षों जैसी , वृक्ष ऊपर छटा जैसा घना
पत्तियां
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई mcm और विशेषता - जटिल ,, 10 -18  जोड़े अलटरनेटली , 32 x 10 x 3
फूल - छोटी घंटी
फूल रंग - पीत -गुलाबी आकर्षक
टांटी /फली फल रंग - हरे किन्तु पकने पर भूरा
आकार व विशेषता -  लम्बा , 10 cm से लम्बा , अंदर गुदा
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग - टांटी  के  अंदर  -6 -12   बीज
फूल आने का समय - पत्ती झड़ने उपरान्त
फल पकने का समय - जब टांटी सूखने लगे
बीज निकालने का समय - कभी भी , बीज कई महीने अंकुरण  लायक रहते हैं , बीज भूरे कुछ चपटे , कड़क छाल युक्त
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं - कई महीनों तक


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि -लगभग सभी प्रकार की मिट्टी , दलदल नापसंद , pH 4 5  -9 तक
वांछित तापमान विवरण - 20 -33 सेल्सियस
बीज बोन का समय -  बीजों को मंतत जल में दो 24 घंटे  तक रखा जाता है जब तक छल कमजोर न पड़    जाय
नरसरी में बोते समय बीज अंतर -  12 -13 मीटर , कॉमर्शियल 5 -10 मीटर
मिटटी में  बीज कितने गहरे डालने चाहिए - 5 /10 cm गहराई
नरसरी में अंकुर रोपण अंतर-  12 -13 मीटर या 5 -10 मीटर
बीज बोन के बाद सिचाई क्रम - सपताह में कम से कम एक बार जलवायु अनुसार शुरुवात में पौधा बनने के बाद कम
अंकुरण समय -   7 -15 दिन
रोपण हेतु गड्ढे मीटर    x  x  जड़ों की लम्बाई से तीन गुना गहरा व चौड़ा
 रोपण बाद सिचाई - जलवायु अनुसार , शुरवात में काला गोबर
नरसरी स्थान छायादार या धुपेली - धुपेली
क्या कलम से वृक्ष लग सकते हैं ? हाँ , कलम एयर लेयरिंग अधिक कारगर व व्यस्क्ता शीघ्र प्राप्त करते हैं
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ?- भिगोये बीजों को छिड़का जा सकता है , उष्ण कटबंधीय वनों में
वयस्कता समय वर्ष -7
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें

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जामुन वृक्ष वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Java Plum Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -32
Medicinal Plant Community Forestation -32
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -134
Medical Tourism Development Strategies -134
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 238
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -238

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम - Syzygium cumini
संस्कृत /आयुर्वेद नाम -जम्बू:
सामान्य   नाम -फळिंड , जमिण , जामुन
आर्थिक उपयोग -
छाया
लकड़ी जलाने हेतु ,
धार्मिक उद्देशयुक्त लकड़ी

-----औषधि उपयोग ---
 
 पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं
छाल
फूल
फल
बीज

रोग निदान उपयोग
ऊर्जादायक फल
डाइबिटीज
लौह वृद्धिकारक व रक्तशोधक
आँख व त्वचा हेतु विटामिन A व C दाता
शरीर को मलेरिया व अन्य सूक्ष्म जीवाणु से लड़ने की क्षमता दाता
कफ , स्वास , फेफड़े की बीमारियों में उपयोग
पेट दर्द
प्रसूत रोग में
थकावट , मनोदशा सुधार उपयोग
दांतों व मसूड़ों की ताकत वृद्धि हेतु
मुख फोड़े दूर करने हेतु
कफ , खरास दूर करता है
भार /स्थूलता कम करता है

बाजार में उपलब्ध औषधि
मधुमेहांतक
स्थूलयांतक


पादप वर्णन
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई - सब जगह उष्ण कटबंधीय व उप उष्ण कटबंधीय स्थाओं पर
तापमान - उष्ण कटबंधीय
वांछित जलवायु वर्णन - लगभग सभी जगह , अधिक ओस वाले  व बर्फीले स्थानों को छोड़कर
वांछित वर्षा mm - आम जैसे जलवायु
वृक्ष ऊंचाई मीटर - 30 तक सीधा , 100  वर्ष तक जीवित रह सकता है
तना गोलाई मीटर - 1 मीटर तक जा सकता है
छाल - खुरदरी सिलेटी
टहनी - बहुत कच्ची , चढ़ते समय टूटने का भय
पत्तियां - आयु अनुसार रंग बदलती हैं
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता - चमकदार , टरपेंटाइन की सुगंध
फूल आकार व विशेषता - छोटे सफेद , सुगंधित
फूल रंग - सफेद , . 5 cm
फल रंग -काले
फल आकार व विशेषता - अंडाकार , गूदेदार
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग - गोल जामुनी जुड़े से रंगीन
फूल आने का समय - मार अप्रैल
फल पकने का समय - जून जुलाई
बीज निकालने का समय - तभी
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं - तीन महीने के अंदर बोन चाहिए


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि - लगभग सभी भूमि किन्तु दुम्मट सही
वांछित तापमान विवरण - धुपेली  जगह
बीज बोन का समय - फल से  बीज  निकालकर  10  दिन के अंदर तुरंत मानसून में ही
नरसरी में बोते समय बीजों में अंतर -  10 cm
मिटटी में  बीज कितने गहरे डालने चाहिए -  5 से 10 cm गहराई यदि रोपण नहीं करनी तो 45 cm
अंकुरित रोपण  के मध्य अंतर-  10 x 10 x 10 मीटर
बीज बोन के बाद सिचाई क्रम - जलवायु अनुसार , दलदल नहीं
अंकुरण समय -   दिन
रोपण हेतु गड्ढे मीटर   1  x 1   x 1
 रोपण बाद सिचाई - जलवायु अनुसार
नरसरी स्थान छायादार या धुपेली -
क्या कलम से वृक्ष लग सकते हैं ? कलम , ग्राफ्टिंग  अधिक लाभदायी
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ? हाँ ,   वनों में जाजे बीज छिड़क दिए जायँ
वयस्कता समय वर्ष -9
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें

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Copyright@ Bhishma Kukreti , 2018 , kukretibhishma@gmail.com

ढाक /पलाश वृक्ष वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

* Teak , Palasha Dhak Teak Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -34
Medicinal Plant Community Forestation -34
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति 136
Medical Tourism Development Strategies -136
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 240
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -240

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम - Butea monosperma
संस्कृत /आयुर्वेद नाम -पलास
सामान्य   नाम - ढाक , पलाश
आर्थिक उपयोग
धार्मिक
रंग
लकड़ी
गोंद
पत्तल


-----औषधि उपयोग ---
 
 रोग व पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं

जड़ें
जड़ छाल -श्लीपद

छाल
छाल रस -रक्तपित
त्वचा भष्म -गुल्म प्लीहा

फूल
फूल रस -रक्ताभिष्यन्द उपचार
पुष्प रस -रतौंधी उपचार

फल
गूदा -अतिसार

बीज
क्वाथ - कृमिरोग
बीज आरक -बृश्चिक दंश उपचार
त्वचा रोग उपचार आदि
कई औषधियों हेतु अवयव
बाजार में उपलब्ध औषधि
कमरकश गोंद

पादप वर्णन
धीरे धीरे बढ़ने वाला वृक्ष , सूखा सहनशील
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई - तकरीबन भारत में हर जगह 1500 मीटर तक
तापमान - 4 -49 डिग्री c
वांछित जलवायु वर्णन -
वांछित वर्षा mm- 450 -4500
वृक्ष ऊंचाई मीटर -15 , छाया दाता
तना गोलाई -20 -40 cm
छाल -राख रंग
टहनी
पत्तियां - तीन समूह
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता - 7  5 x 20
फूल आकार व विशेषता - टहनी के ऊपर
फूल रंग -लाल अति आकर्षक
फल रंग - हरा से भूरा पकने पर , टांटी /फली
फल आकार व विशेषता - फली , 4 से 6 cm
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग - फली के अंदर चपटे अंडाकार  3 cm लम्बे
फूल आने का समय - वसंत
फल पकने का समय -ग्रीष्म
बीज निकालने का समय - पत्तियां आने से पहले
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं - २ साल


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि - 6 -7 , बलुई -दुम्मट
वांछित तापमान विवरण - धुपेली
बीज बोन का समय - अप्रैल
नरसरी में बोते समय बीज अंतर -  20 -30 cm  और पँक्ति 3 -5 मीटर के अंतर् में
मिटटी में  बीज कितने गहरे डालने चाहिए - cm गहराई , बीजों को 24 घंटे भिगोये जाते हैं
नरसरी में अंकुर रोपण अंतर-  अंकुरण के पांच छह सप्ताह बाद
बीज बोन के बाद सिचाई क्रम -
अंकुरण समय -   10 -12 दिन  का चार सप्ताह में पूरा ,
सामन्यतः अंकुरण प्रतिशत -63
रोपण हेतु गड्ढे मीटर   1  x 1  x 1 , गड्ढों की दूरी 3 -5 मीटर
 रोपण बाद सिचाई - सामन्य
नरसरी स्थान छायादार या धुपेली -
क्या कलम से वृक्ष लग सकते हैं ? हाँ
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ? हाँ , भिगोये बीजों को  हयूमस युक्त वनों में फेंका जा सकता है , किन्तु चरान व चिड़ियों से बचाना आवश्यक
वयस्कता समय वर्ष -
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें

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 डैंकण : एक उपेक्षित महत्वपूर्ण औषधि पादप
-
डैंकण  वृक्ष वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Pride of India , Bakayan Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -36
Medicinal Plant Community Forestation -36
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -138
Medical Tourism Development Strategies -138
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 242
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -242

आलेख : भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

लैटिन नाम -Melia azedarach
संस्कृत /आयुर्वेद नाम -महा निम्ब:
सामान्य   नाम - डैंकण , बकैन
आर्थिक उपयोग
लकड़ी
साधुओं की माला
-----औषधि उपयोग ---
 
 रोग व पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं

जड़ छाल
सियाटिका निवारण
छाल उपयोग
कृमि नाशक
स्वास रोग
भ्रम /भ्रान्ति नाश
मलेरिया विषम ज्वर
बबासीर
कुष्ठ व अन्य त्वचा रोग
गुल्म /ट्यूमर
मूत्र रोग
उल्टियां
मुंह सफाई व अल्सर नाशक

पत्ती
बाल न झड़ने
हड्डी दर्द , गठिया नाशक
दर्द निवारक
त्वचा रोग एक्जाइमा नाश, कटी फ़टी त्वचा हेतु
बबासीर
पशुओं की कृमि नाशक

फूल
जूं , लीख नाशक
गर्भधान स्थिरीकरण या गर्भपात रोकू
स्त्रियों के मूत्र रोग में उपयोगी

बीज  - न खाएं विषैले


बाजार में उपलब्ध औषधि

पादप वर्णन
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई -० से 1800 तक
तापमान -23 -27 डिग्री सेल्सियस औसत
वांछित जलवायु वर्णन - लगभग सभी जगह
वांछित वर्षा mm - ३५० से २००० mm तक
वृक्ष ऊंचाई मीटर - 45 तक
तना गोलाई सेंटी मीटर - 30 -60
छाल - युवावस्था में चिकनी व हरी , फिर सिलेटी व फ़टी
टहनी
पत्तियां
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता - २० से ४० cm लम्बी नीम जैसी ही
फूल आकार व विशेषता
फूल रंग -सफेद
फल रंग -हरे फिर पीले व सफेद
फल आकार व विशेषता - गूदेदार गुठली
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग -
फूल आने का समय - मार्च मई
फल पकने का समय - मई के बाद
बीज निकालने का समय -जून
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि - बलुई ,जलभराव पसंद नहीं
वांछित तापमान विवरण - उपरोक्त २३ से २७ डिग्री c , धुपेली जगह
बीज बोन का समय - मानसून , भिगोये सही , 85 प्रतिशत अंकुरण प्रतिशत , नए बीज ही पयुक्त हों
नरसरी में बोते समय बीज अंतर -  ३० cm
मिटटी में  बीज कितने गहरे डालने चाहिए - १० cm गहराई
नरसरी में अंकुर रोपण अंतर-   कम से कम  एक मीटर
बीज बोन के बाद सिचाई क्रम - जलवायु अनुसार
अंकुरण समय -  60  दिन

नरसरी स्थान छायादार या धुपेली - धुप पसंद
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़

Bhishma Kukreti

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ब्लैक लोकुस्ट   वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Black Locust Tree Plantation for Medical Tourism Development

औषधि पादप वनीकरण -53
Medicinal Plant Community Forestation -53

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -157
Medical Tourism Development Strategies -157
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 260
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -260

आलेख : विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

लैटिन नाम - Robima pseodoacacia

सामान्य   नाम -ब्लैक लोकुस्ट या व्हाइट लोकुस्ट , भरत का पेड़ नहीं यह अमेरिका से आया है
आर्थिक उपयोग ---
लकड़ी बहुत ही उपयुक्त
बगीचों में आकर्षक पेड़
बीजों का तेल
भोज्य पदार्थ , फल
कागज उद्यम में
नाइट्रोजन फिक्सेशन
-----औषधि उपयोग ---
 
 रोग व पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं

जड़ें

छाल

फूल



बीज
रोग जिनके निदान में पादप उपयोगी है
अश्रु रोग
दांत रोग
उलटी
निर्बलता दूर करता है
वाइरस निरोधक
बाजार में उपलब्ध औषधि

पादप वर्णन

समुद्र तल से भूमि ऊंचाई मीटर  - सामन्यतया तकरीबन सब जगह
तापमान अंश सेल्सियस -
वांछित जलवायु वर्णन -
वांछित वर्षा mm
वृक्ष ऊंचाई मीटर -12 से 30 यहां तक 52 मीटर के पेड़ भी मिलते हैं
तना गोलाई मीटर -  एक- तक जा सकता है
छाल - लाल काला
टहनी -कांटेदार
पत्तियां -जटिल /compound
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता -15 -36 , हरा किन्तु ऊपर भूरे
फूल आकार व विशेषता - गुच्छों में , आकर्षक ,
फूल रंग -सफेद, बैंगनी , गुलाबी

फल आकार व विशेषता
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग - टांटी , बीज , नारंगी व गोल चपटे
फूल आने का समय - मई जून
फल पकने का समय - सात  दिन में किन्तु
बीज निकालने का समय -शीत  ऋतू तक पकते  हैं
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं -


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि -अभी प्रकार की मिट्टी
वांछित तापमान विवरण - धूप पसंद
बीज बोन का समय - शीत
बीजों को गुनगुने गर्म पानी में 48 घंटे रखना सही , यी बीजों को खुरच दिया जाय
नरसरी में बोते समय बीज अंतर -  cm   यदि सीधा बोना हो तो दो मीटर

आरम्भ में सिंचाई आवश्यक

क्या कलम से वृक्ष लग सकते हैं ? जड़ों की कलम लाभदायी
ब्लॉक रोबिना खर पतवार जैसे अपने आप भी बढ़ जाता है , जड़ों से वयं कलम निकलकर फ़ैल जाता है
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ? हाँ नम बीजों को गोबर गोले बनाकर अधिक  उत्पादक हो सकते हैं /अथवा  कटे-पके फलों व बीजों को नदी या गदनों में बहा देना श्रेयकर
वयस्कता समय वर्ष -
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें

कृपया इस लेख का प्रिंट आउट ग्राम प्रधान व पंचायत को अवश्य दें


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