कहा जाता है कि चंद राजाओं ने जब चम्पावत में अपनी राजधानी स्थापित की तो इसके शीर्ष भाग में नगर की रक्षा के लिए नाथ संप्रदाय के एक महंत ने अपना डेरा जमाया। जिसे राजा ने अपना गुरु मानते हुए उनसे आशीर्वाद लिया और यह स्थान नागनाथ के रूप में जाना जाने लगा। इस मंदिर में नागनाथ की धूनी के साथ ही कालभैरव का भी मंदिर है। कहते हैं यहां पूजा अर्चना करने से संतान सुख की प्राप्ति तो होती ही है, वहीं शत्रुओं का नाश होता है। सुबह व सायं आरती के समय यहां आज भी नौमत लगती है। तूरी जाति के लोग नगाडे़ के साथ ही तुरही बजाते हैं। वैसे तो यहां हर समय भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन बसंत और शारदीय नवरात्र के मौके पर तो यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। जिले ही नहीं बल्कि कुमाऊं के अन्य हिस्सों से भी लोग यहां आकर अपनी मुरादें पूरी करते हैं। इस मंदिर के पुजारी रावल लोग हैं, जो नियमित रूप से पूजा अर्चना करवाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के तीसरे रोज यहां हर वर्ष फूलडोल मेले का भी आयोजन होता है।