क्या जानते हैं...............?
गोरी नदी पर शीत काल या वर्षाकाल कोहरा नहीं लगता है।
भारत -तिब्बत सीमा पर स्थित विश्व प्रसिद्ध मिलम ग्लेशियर से निकलने वाली गोरी को काली नदी की सहायक नदी कहा जाता है। मल्ला जोहार के उच्च हिमालयी ग्लेशियरों का पानी इसमें समाहित होता है। गंधक के पहाड़ों के बीच से गुजरने गुजरने वाली इस नदी के किनारे कई स्थानों पर गर्म जलकुंड भी हैं। इस नदी के बीच में अक्सर फूटने वाले गंधक (सल्फर) के स्रोत पर्यटकों को काफी लुभाते हैं। यही नहीं इसके आसपास ग्लेशियरों से फूटने वाले झरने नदी के प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस नदी का जल गंगा नदी की तरह ही पवित्र है। इसमें लंबे अंतराल के बाद भी कीड़े नहीं पड़ते हैं। इससे क्षेत्रीय लोग धार्मिक लिहाज से भी इसके जल को पवित्र मानते हैं। नदी का जल पूजा पाठ के साथ ही सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठानों ने श्रद्धा के साथ प्रयुक्त किया जाता है। नदी का नाम भी हिंदू देवी गौरी का अपभ्रंश गोरी है, इसका हल्का सा वर्णन मानसखंड में भी किया गया है। इस नदी की सबसे बड़ी विशेषता नदी के जल में कोहरा नहीं लगना है। अमूमन पर्वतीय क्षेत्र की नदियों में शीतकाल में सुबह से ही कोहरा लग जाता है। गोरी नदी पर शीत काल या वर्षाकाल कोहरा नहीं आने की अब तक जांच नहीं हो सकी है।