यमुना
यमुना - भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना की गणना गंगा के साथ की जाती है। यमुना और गंगा के दो आब की पुण्यभूमि में ही आर्यों की पुरातन संस्कृतिका गौरवशाली रुप बन सका था। ब्रजमंडल की तो यमुना एक मात्र महत्वपूर्ण नदी है। जहां तक ब्रज संस्कृति का संबध है, यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्ध कालीन परम्परा की प्रेरक और यहा की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है।
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पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार यह देव स्वरुप है। भुवनभास्कर सूर्य इसके पिता, मृत्यु के देवता यम इसके भाई और भगवान श्री कृष्ण इसके परि स्वीकार्य किये गये हैं। जहां भगवान् श्री कृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक कहे जाते है, वहां यमुना इसकी जननी मानी जाती है। इस प्रकार यह सच्चे अर्थों में ब्रजवासियों की माता है। अतः ब्रज में इसे यमुना मैया कहना सर्वथा सार्थक है। ब्रम्ह पुराण में यमुना के आध्यात्मिक स्वरुप का स्पष्टीकरण करते हुए विवरण प्रस्तुत किया है - "जो सृष्टि का आधार है और जिसे लक्ष्णों से सच्चिदनंद स्वरुप कहा जाता है, उपनिषदों ने जिसका व्रम्ह रुप से गायन किया है, वही परमतत्व साक्षात् यमुना है। १" गौड़िय विद्वान श्री रुप गोस्वामी ने यमुना को साक्षात् चिदानंदमयी वतलाया है। २ गर्गसंहिता में यमुना के पचांग - १.पटल, २. पद्धति, ३. कवय, ४. स्तोत्र और ५. सहस्त्र नाम का उल्लेख है। 'यमुना सहस्त्र नाम' में यमुना जी के एक हजार नामों से उसकी पशस्ति का गायन किया गया है। ३ यमुना के परमभक्त इसका दैनिक रुप से प्रति दिन पाठ करते हैं। इस सहस्त्र नाम के आरम्भिक और अन्तिम अंश इस प्रकार हैं -
आरम्भ - ओम् कालिन्दी यमुना कृष्णरुपा सनातनी।
कृष्ण वामांश संभूता परमानन्द रुपिणी।। ४ ।।
गोलोक वासिनी श्यामा वृंदाबन विनोदनी।
राधासखी रासलीला रासमंडल मंडनी।। ५ ।।
अंत - वर्किद्धनी तत्रेसां साक्षाद् गर्भ वासिनि कृंतनी।
गोलेक धाम धामिनी निकुंज निज मंजरी।। २८।।
सर्वोत्तम मास सर्वपु सर्व सौन्दर्य श्रंखला।
सर्वतीर्थोपिरिगता सर्वतीर्थाधिदेवता ।। २९ ।।
ब्रजभाषा के भक्त कवियों और विशेषतया वल्लभ सम्प्रदायी कवियों ने गिरिराज गोवर्धन की भाँति यमुना के प्रति भी अतिशय श्रद्धा व्यक्त की है। इस सम्प्रदाय का सायद ही कोई कवि हो, जिसने अपनी यमुना के प्रति अपनी काव्य - श्रद्धांजलि अर्पित न की हो। उनका यमुना स्तुति संबंधी साहित्य ब्रजभाषा भक्ति काव्य का एक उल्लेखनीय अंग है, यहां कुछ प्रमुख कवियों के यमुना संबंधी पदों की केवल एक-एक पंक्ति उदधृत की जाती हैं -
भक्त को सुगम श्री यमुने, अगम औरें। (सुरदास)
श्री यमुने पर तन-मन-धन-प्राण वारौं। (कुंभनदास)
जो जमुना कौ दरसन पवै अरु जमुना-जल पान करै। (परमानंद दास)
श्री यमुना के नाम अध दूर भाजें। (कृष्णदास)
चित्त में यमुना निसि-दिन जो राखों। (छीत स्वामी)
भक्त पर करी कृपा, श्री यमुने जो ऐसी। (नंददास)
रास-रास सागर श्री यमुने जुजानी। (गंगाबाई)
नैन भरि देखि अब, भानुतनया। (हरिराय)
१. रमोयः परमाधारः सच्चिदानंद लक्षणः।ब्रम्हेत्युपनिषद गति: एव यमुना स्वयं।। (पदम पुराण, पाताल खंड, मरीच सर्ग)
२. चिदानंदमयी साक्षात् यमुना यम भीतिनता (मथुरा महात्मय)
३. गर्गसंहिता (माधुर्यखंड, अध्याय १९)