Author Topic: It Happens Only In Uttarakhand - यह केवल उत्तराखंड में होता है ?  (Read 43343 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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IT HAPPENS ONLY IN UTTARAKHAND : यह केवल उत्तराखंड में होता है ?

Dosto,

Uttarakhand known as abode of God and Goddess. There are various kind of cultural and other religious practices are followed in Uttarakhand which are unique in nature compared to the culture of other parts of the country.

We would provide here the information on various on various cultural, religious etc which is unique. That is why we have named this thread as “It Happens only in Uttarkahand”.

You would enjoy some exclusive information here.

Regards,

M  S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पंचगाई (पुरोला), उत्तरकाशी - जहाँ आज भी होती है, सामूहिक बडुआ बोवाई
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पुरोला, उत्तरकाशी, मोरी प्रखंड की पंचाई पट्टी में आज भी क्षेत्र के ईष्ट सोमेश्वर देवता की आज्ञा से खेतो की बुवाई की परम्परा कायम है ! बारी बारी से हर गाव में होने वाली बुवाई में सस्भी गावो की भागीदारी किसी पर्व या मेले से कम नहीं है ! इस दिन विधालयो में अवकाश भी रखा जाता है !

पंचाई पट्टी, के १४ गावो में क्षेत्र के ईष्ट देवता सोमेश्वर महादेव की अनुमति के मदुवे की सामूहिक बुवाई की जाती है ! देवता द्वारा घोषित तिथि पर बारी बारी के गर गाव में बुवाई की जाती है और इसमें सभी गावो के लोग सहयोग करते है ! कहा जाता है की पहले लोग बेड बकरियों को दौडाया करते थे जिससे की खेतो में खाद की आपूर्ति एव समतलीकरण हो जाता था!

एक गाव की सभी खेतो में एक साथ बुवाई के लिए अलग -२ टोलिया बनाई जाती है और अन्य गावो के लोग भी बैलो को सजाकर यहाँ पचुहते है ! खेतो में जैसे मेले जैसा माहौल के बीच सब लोग एक साथ भोजन भी करते है !

साभार : जनम भूमि उत्तराखंड पत्रिका, मुंबई

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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रूपकुण्ड का अंतिम गाव = लाटू देवता के मंदिर में पुजारी आखो में पट्टी बाँध कर मंदिर में दिया जलाता है
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विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल रूपकुण्ड और बैदनी बुग्याल के पर्यटक बाण गाव के होकर गुजरते है !  यह रूप कुण्ड का अंतिम गाव है ! यहाँ सिद्धि पीठ लाटू देवता का प्राचीन मंदिर है ! मंदिर की प्रमुख विशेषता की मंदिर के अन्दर कोई पूजा अर्चना करने नहीं जा सकता है! मंदिर के पुजारी आखो में पट्टी बाँध कर मंदिर के अन्दर प्रवेश कर दिया जलाते है ! बाण गाव में लाटू के देवता के पीछे कई पौराणिक कहानिया जुडी हुयी है ! १२ सालो में आयोजित नंदा राज जात की अगुवाई लाटू देवता करते है ! राज जात में पर्व पर यहाँ पर हजर्रो क्षर्धालू पूजा करते है ! इस मंदिर में पांच मीटर तक की दूरी तक बिना ढोली पहने हुए कोई प्रवेश नहीं कर सकता है ! मंदिर में महिलाओं को प्रवेश वर्जित है !

यहाँ पर जो सच्चे मन से आता है उसकी मनोतिया पूर्ण होती है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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NANDA RAJ-JAT, WORLD'S LONGEST RELIGIOUS JOURNEY, HELD AFTER EVER 12 YRS.
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FOR MORE DETAILS, YOU CAN SEE THIS THREAD OF OURS..

http://www.merapahad.com/forum/religious-places-of-uttarakhand/nanda-raaj-jaat-ki-kahani/

However, brief information on Nanda Rat-Jaat

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Nanda Dev Raj Jat is a Hindu pilgrimage stretching 280 km through the Central Himalayas. Held in the months of August/September every 12 years, it starts in the middle Himalayas and traverses alpine meadows finally ending in the Himalayan Tundra region.^-~

The pilgrimage is described as a powerful spiritual experience by the participants. Dating back to the 9th century AD, this pilgrimage is symbolic of seeing off Goddess Nanda to her consort Lord Shiva's abode in higher Himalayas after her stay at her parent's place in the lower Himalayas. Nanda as a maternal figure is intricately intertwined into the socio-cultural fabric of Uttarakhand.

The pilgrimage is led by a four horned ram on its 19 day schedule from Nauti till Homkund. The ram is said to be born every 12 years in Chandpurpatti region of Karnaprayag.The ram is called KHADU in local language.

Recent research has indicated that the human skeletons at Roopkund may be the remains of devotees participating in the Nanda procession who got caught in an avalanche or a blizzard.

The pilgramage is hazardous because of sudden weather changes in the himalayas. It can be clear one moment and foggy the next. Due to westerly disturbances in winter months it rains heavily. Hailstorms are very common. People can be killed by hail because there is no place to shelter.

Other notable Nanda processions are held in the cities of Almora and Nainital every year.Next RAJ JAT will be held in 2012.

Source of information : http://en.wikipedia.org/wiki/Nanda_Devi_Raj_Jat

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Say Om Naham Shiv, Water Bubble start coming from Kund
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There is a Kund (well) in famous Kedarnath Temple of Uttarkahand. It is said when people sound “ Om Namah Shiv”, the water bubble starts forming in the water kund.   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जब तक बकरा अपना शरीर नहीं हिलाता उसकी बलि नहीं
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उत्तराखंड की देवी भूमि जहाँ लोगो की देवी देवताओ पर अटूट धार्मिक आस्था है ! वैसे बलि प्रथा का सारे हिंदुस्तान पर समय समय पर विरोध होता रहा है ! लेकिन हर जगह पर आज भी बलि प्रथा जारी है !

उत्तराखंड में बलि प्रथा से जुडी यह भी प्रथा है कि बकरे कि बलि से पहले उस पर पानी और चावल, फूल आदि छिड़का जाता है और जब तक बकरा अपना पूरा बदन नहीं हिलाता, उसकी बलि नहीं दी जाती ! जिसे स्थानीय भाषा मे कहते है " बकरा बरकाना " !  लोगो की मान्यता है जब बकरा अपनी शरीर हो हिलाता है इसका मतलब ही कि भगवान् को उनकी पूजा स्वीकार है और तभी उसकी बलि दी जाती है अन्यथा नहीं !

Rawat_72

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जब तक बकरा अपना शरीर नहीं हिलाता उसकी बलि नहीं
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उत्तराखंड की देवी भूमि जहाँ लोगो की देवी देवताओ पर अटूट धार्मिक आस्था है ! वैसे बलि प्रथा का सारे हिंदुस्तान पर समय समय पर विरोध होता रहा है ! लेकिन हर जगह पर आज भी बलि प्रथा जारी है !

उत्तराखंड में बलि प्रथा से जुडी यह भी प्रथा है कि बकरे कि बलि से पहले उस पर पानी और चावल, फूल आदि छिड़का जाता है और जब तक बकरा अपना पूरा बदन नहीं हिलाता, उसकी बलि नहीं दी जाती ! जिसे स्थानीय भाषा मे कहते है " बकरा बरकाना " !  लोगो की मान्यता है जब बकरा अपनी शरीर हो हिलाता है इसका मतलब ही कि भगवान् को उनकी पूजा स्वीकार है और तभी उसकी बलि दी जाती है अन्यथा नहीं !



Mehta ji Janwar ke sar par paani daloge toh wo use jhadega hee…
lekin log andh vishwash mein itne jakade hue hai unhe itne chooti se baat samajh nahi aati.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Information Provided by our Member : Rajen Ji

पिथोरागढ़ जिले में "हिलजात्रा" महोत्सव:

पूरे बिश्व में मेले और त्यौहार सामाजिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण अंग हैं.  यह सभी जगह अलग-अलग ढंग से मनाये जाते हैं.  इन परंपरागत मेलों और त्योहारों का सम्बन्ध धार्मिक विश्वासों, लोकमतों, स्थानीय रीति रिवाजों, बदलते मौसमों, फसलों आदि से है.  हमारे देश में अनेक धर्म और उनसे जुड़े केवल बिभिन्न उत्सव ही नहीं हैं बल्कि अपनी विविध साँस्कृतिक परम्परों के कारण उन्हें अलग-अलग ढंग से मनाया भी जाता है.  इससे प्रकार कुमाओं, पिथोरागढ़ जनपद में कुछ उत्सव समारोह पूर्वक मनाये जाते हैं, हिल्जात्रा उनमें से एक है.
जनपद पिथोरागढ़ में "कुमौड़" गाँव में गौर-महेश्वर पर्व के आठ दिन बाद प्रतिवर्ष हिलजात्रा का आयोजन होता है.  यह उत्सव भादो माह में मनाया जाता है.  मुखौटा नृत्य-नाटिका के रूप में मनाये जाने वाले इस महोत्सव का कुख्य पात्र लाखिया भूत, महादेव शिव का सबसे प्रिय गण, बीरभद्र मन जाता है.  प्रतिवर्ष इस तिथि पर लाखिया भूत के आर्शीवाद को मंगल और खुशहाली का प्रतीक मन जाता है.  हिलजात्रा उत्सव पूरी तरह कृषि से सम्बन्धित माना गया है. 



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सामेश्वर या दुर्योधन पूजा
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टौन्स, यमुना, भागीरथी, बलंगाना एवं भीलंगान की ऊपरी घाटियों में दुर्योधन की पूजा की जाती है।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड के श्रीनगर के उफल्डा गांव में नागराजा देवता मंदिर में हर तीन साल बाद एक मेला लगता है, जिसमें इस गांव के देश-विदेश में बसे ग्रामवासी भी भाग लेते हैं। इस अवसर पर ४० किलो गेहूं के आटे को बड़े-बड़े मुगदरों से गूंथा जाता है और इस आटे की एक ही रोटी बनाकर इसे धूनी में ३ घंटे के लिये रख दिया जाता है। उसके बाद इस रोटी से ही भगवान को भोग लगाया जाता है और इसी को प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है।

 

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