Author Topic: Kafal, Hisalu, Kirmoli, Ghigharu, Bedu Fruits Photographs- पहाड़ी फलो के फोटो  (Read 193504 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कोटद्वार: कोटद्वार में 'अन्ना', चौंकिए नहीं यहां बात समाजसेवी 'अन्ना' की नहीं, बल्कि इजराइल की 'अन्ना' प्रजाति के सेब की हो रही है। इसकी कोटद्वार में अच्छी पैदावार है। उद्यान विभाग की ओर से 'अन्ना' प्रजाति के सेब की पौध को काश्तकारों में बांटा जा रहा है, ताकि उनकी आर्थिकी मजबूत हो।

 दरअसल, स्थानीय बीईएल इकाई में कार्यरत आरपी सिंह ने करीब आठ साल पहले सनेह क्षेत्र के कुंभीचौड़ स्थित बगीचे में 'अन्ना' के कुछ पौधे लगाए थे। इस साल यह पेड़ लकदक हैं। अब अन्ना की पैदावार को देख जहां बागवानी करने वाले अन्ना की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वहीं उद्यान विभाग भी अन्ना को काश्तकारों तक पहुंचाने के लिए योजना बना रहा है।
 सब्सिडी में बंटेगा अन्ना
 'अन्ना' की प्रगति देख उद्यान विभाग की भी आस जगी है। विभाग ने जहां शुरुआती तौर पर 'अन्ना' की पौध मंगाकर लोगों को बांटनी शुरू कर दी है। अब तक विभाग लोगों को करीब पांच हजार पौंधे बांट चुका है। विभाग अब सब्सिडी पर 'अन्ना' के पौधे देने की तैयारी में है। 
 यह है 'अन्ना' की खासियत
 'अन्ना' आम तौर पर ठंडे क्षेत्रों में होने वाले सेब की प्रजातियों से एकदम अलग है। इसकी खासियत यह है कि जहां आम प्रजातियों कि लिए कम से कम 15 सौ से 16 सौ घंटे पांच से सात डिग्री के तापमान में रहना जरूरी है। वहीं 'अन्ना' को फूल आने से पहले मात्र चार सौ से सात सौ घंटे ही पांच से सात डिग्री तापमान की जरूरत होती है।
 क्षेत्र में 'अन्ना' की पैदावर उत्साहजनक है। कोटद्वार की जलवायु अन्ना के लिए मुफीद है। काश्तकारों को 'अन्ना' प्रजाति की पौध देने के लिए योजना बनाई जा रही है। 
 डॉ. एसके सिंह, उद्यान विशेषज्ञ, उद्यान विभाग कोटद्वार

हेम पन्त

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विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]किल्मोड़ा उत्तराखंड के1400 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाला एक औषधीय प्रजाति है। इसका बॉटनिकल नाम ‘बरबरिस अरिस्टाटा’ है। यह प्रजाति दारुहल्दी या दारु हरिद्रा के नाम से भी जानी जाती है। इसका पौधा दो से तीन मीटर ऊंचा होता है। मार्च-अप्रैल के समय इसमें फूल खिलने शुरू होते हैं। इसके फलों  का स्वाद खट्टा-मीठा होता है। किल्मोड़ा की जड़, तना, पत्ती से लेकर फल तक का इस्तेमाल होता है। मधुमेह में किल्मोड़ा की जड़ बेहद कारगर होती है। इसके अलावा बुखार, पीलिया, शुगर, नेत्र आदि रोगों के इलाज में भी ये फायदेमंद है। होम्योपैथी में बरबरिस नाम से दवा बनाई जाती है।  दारू हल्दी की जड़ से अल्कोहल ड्रिंक बनता है। इसके अलावा कपड़ों के रंगने में इसका इस्तेमाल होता है। यह प्रजाति नेपाल के अलावा श्रीलंका में भी पाई जाती है। उत्तराखण्ड में इसे किल्मोड़ा, किल्मोड़ी और किन्गोड़ के नाम से जानते हैं।


विनोद सिंह गढ़िया

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हिसालू - उत्तराखण्ड की धरती पर फलने वाला एक जंगली रसदार फल। इसे कुछ स्थानों पर हिंसर या हिंसरु के नाम से भी जाना जाता है।



Hisalu

विनोद सिंह गढ़िया

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घिंघारू - पहाड़ का छोटा सेब।

Pyracantha Crenulata


 

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