Author Topic: Kumaun Regiment & Garhwal Rifle - कुमाऊँ रेजिमेंट एवं गढ़वाल राइफल  (Read 99530 times)

हेम पन्त

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Source- www.garhwalpost.com

This chivalrous multi-dimensional force has a proud history. It was raised on 24 October, 1962. ITBP was initially raised under the CRPF Act, which parliament enacted as ITBPF Act and rules there-under were framed in 1994.

Battalions of the ITBP are deployed on the border stretching from Karakoram Pass in Ladakh to Diphu La in Arunachal Pradesh, covering 3488 kilometres of the Indo-Tibet Border, guarding border outposts at an altitude of 9000’ to 18,500’ in the western middle sector of the border.
ITBP, basically, is a mountain trained force equipped and trained for any hostile condition prevalent at the given time.

Training to constables and officers is imparted at the ITBP Training Academy, Mussoorie.
It is a sprawling campus spread over several acres where various courses for the constables and officers are conducted from time to time. ITBP personnel, exposed as they are to high velocity storms, snow blizzards, avalanches and landslides are provided tactical training for which courses are conducted at the Mussoorie Centre. According to officials at the ITBP, Mussoorie, the objective of the training centre is to impart, update and upgrade the knowledge of the personnel and prepare them for deployment in extreme conditions. The training centre also prepares ITBP men for adventure sports and mountaineering activities.
The force is also trained for any disaster in shape of natural calamity or man-made accidents occurring in the country. People in Uttarakhand have been saved many a times by the force during road accidents and other calamities.

ITBP has also conducted several mountain expeditions which include those to Everest, Trishul, Ladakh and Friendship peaks, to name a few, with great success.
Apart from guarding the country’s border, the force is also providing security to the Embassy of India in Kabul, Consulates-General of India, Jalalabad, and Kandahar in Afghanistan since November 2002.

Besides this, 2 companies of ITBP are providing security to BRO personnel for their Delaram–Zaranj road construction project in Afghanistan since July 2004.

ITBP also has an excellent record in UN peace keeping operations. The services of the force personnel have been put to the test at operations in Angola, Namibia, Cambodia, Bosnia and Herzegovina, Mozambique and Kosovo.  Presently, 1 company of the ITBP is deployed on the United Nations Mission in Congo since November, 2005.

ITBP is also providing security to pilgrims during the annual Kailash Mansarovar Yatra from 1981.  ITBP provides communication, security and medical cover to the yatris from Gunji to Lipulekh Pass and back to Gunji in  co-ordination with MEA and Kumaon Mandal Vikas Nigam. The force is also heavily engaged in fighting terrorism in the State of Jammu & Kashmir with extreme courage.

हेम पन्त

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शहीद मनोज मेरा सहपाठी रह चुका है. वह बहुत ही मृदुभाषी व विनम्र स्वभाव का था. यह खबर मैं लगभग हफ़्ता भर पहले पढ चुका था, लेकिन मुझे लगा कि यह कोई और मनोज होगा. लेकिन घर जाकर पता चला कि यह मेरा सहपाठी मनोज ही था.

प्यारे मनोज को मेरी और पूरे फोरम की और से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली

मनोज भट्ट अमर रहे


वड्डा(पिथौरागढ़): देश की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीद मनोज भट्ट को सोमवार को हजारों नम आंखों ने अंतिम विदाई दी। गगनभेदी नारों के बीच स्थानीय रामेश्वर घाट में सैन्य सम्मान के साथ शहीद की अंत्येष्टि की गयी।

जम्मू कश्मीर में तैनात जिले के सौन गांव निवासी मनोज भट्ट ने शुक्रवार को शहादत दे दी थी। नौ कुमाऊं रेजीमेंट के जवान मनोज जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे और शुक्रवार को गश्त के दौरान विस्फोट में शहीद हो गये। जवान का पार्थिव शरीर सोमवार को उनके गांव पहुंचा। इसकी जानकारी लगते ही बड़ाबे, तडे़मियां, बेलाल गांव, आठगांव शिलिंग, धारी सहित दर्जनों गांवों के हजारों लोग शहीद के घर पहुंचे और शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। गांव से शुरू हुई शहीद की अंतिम यात्रा में हजारों लोगों ने भाग लिया। शहीद के सम्मान में लोगों ने गगनभेदी नारे लगाये।

सौन गांव के रहने वाले शहीद मनोज ने राजकीय इण्टर कालेज बड़ाबे से शिक्षा हासिल की और वर्ष 1998 में सेना में भर्ती हो गये। शहीद मनोज अपने पीछे पत्‍‌नी और दो छोटे पुत्र छोड़ गये है। शहीद के पिता श्रीकृष्ण भट्ट भी पूर्व सैनिक है।

Risky Pathak

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Re: KUMOAN REGIMENT & GARWAL RIFLE - MAIN EMPLOYMENT SOURCE OF UK ?
« Reply #42 on: September 02, 2008, 05:57:44 PM »


देश के इस अमर शहीद को मेरा पहाड़ टीम की ओर से भावभीनी श्रद्धान्जली|   
शहीद मनोज मेरा सहपाठी रह चुका है. वह बहुत ही मृदुभाषी व विनम्र स्वभाव का था. यह खबर मैं लगभग हफ़्ता भर पहले पढ चुका था, लेकिन मुझे लगा कि यह कोई और मनोज होगा. लेकिन घर जाकर पता चला कि यह मेरा सहपाठी मनोज ही था.

प्यारे मनोज को मेरी और पूरे फोरम की और से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली

मनोज भट्ट अमर रहे


वड्डा(पिथौरागढ़): देश की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीद मनोज भट्ट को सोमवार को हजारों नम आंखों ने अंतिम विदाई दी। गगनभेदी नारों के बीच स्थानीय रामेश्वर घाट में सैन्य सम्मान के साथ शहीद की अंत्येष्टि की गयी।

जम्मू कश्मीर में तैनात जिले के सौन गांव निवासी मनोज भट्ट ने शुक्रवार को शहादत दे दी थी। नौ कुमाऊं रेजीमेंट के जवान मनोज जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे और शुक्रवार को गश्त के दौरान विस्फोट में शहीद हो गये। जवान का पार्थिव शरीर सोमवार को उनके गांव पहुंचा। इसकी जानकारी लगते ही बड़ाबे, तडे़मियां, बेलाल गांव, आठगांव शिलिंग, धारी सहित दर्जनों गांवों के हजारों लोग शहीद के घर पहुंचे और शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। गांव से शुरू हुई शहीद की अंतिम यात्रा में हजारों लोगों ने भाग लिया। शहीद के सम्मान में लोगों ने गगनभेदी नारे लगाये।

सौन गांव के रहने वाले शहीद मनोज ने राजकीय इण्टर कालेज बड़ाबे से शिक्षा हासिल की और वर्ष 1998 में सेना में भर्ती हो गये। शहीद मनोज अपने पीछे पत्‍‌नी और दो छोटे पुत्र छोड़ गये है। शहीद के पिता श्रीकृष्ण भट्ट भी पूर्व सैनिक है।


Rajen

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Re: KUMOAN REGIMENT & GARWAL RIFLE - MAIN EMPLOYMENT SOURCE OF UK ?
« Reply #43 on: September 02, 2008, 06:34:16 PM »
अमर शहीद मनोज भट्ट को मेरा पहाड़ टीम की ओर से भावभीनी श्रद्धान्जली|

Devbhoomi,Uttarakhand

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गढ़वाल राइफल्स के कीर्तिस्तम्भ एवं बहादुर सेनानी— वी.सी. दरबान सिंह नेगी


भारत का इतिहास उत्तराखंड के वीरों के अनुपम शौर्य एवं गौरवशाली सैनिक परम्पराओं तथा बलिदान की गाथाओं से भरा पड़ा है। विपरीत परिस्तिथियों में संघर्ष करने की शक्ति गढ़वालियों की विशेषता रही है। इन बहादुर सैनिकों में भी श्री दरबान सिंह नेगी ने संघर्ष करते हुए प्रथम पंक्ति में ख्याति अर्जित की है। इन्हें प्रथम विश्व युद्ध में अपनी अभूतपूर्व बहादुरी एवं शौर्य प्रदर्शित करने के उपलक्ष्य में ‘विक्टोरिया क्रास’पदक से सम्मानित एवं अलंकृत किया गया था।

जिला चमोली गढ़वाल के कड़ाकोट(नारायण बगड़ क्षेत्र) के अंतर्गत ग्राम कफारतीर में दिसम्बर १८८१ में पिता कमल सिंह के घर जन्मे दरबान सिंह नेगी बहुत कम शिक्षा प्राप्त कर मार्च १९०२ में लगभग २१ वर्ष की आयु में लैन्सडाउन जाकर फौज में भर्ती हो गये। प्रथम विश्व युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व १९११ में लैंसनायक तथा १९१४ में नायक बनाये गये। इसके बाद दरबान सिंह अपनी १@३९वीं गढ़वाल राइफल्स बटालियन के साथ शीघ्र फ्रांस की रणभूमि में पंहुच गये।

प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस के फोस्टवर्ट के समीप खाइयों के भीतर २५ दिन तक लगातार कठिन परिश्रम के पश्चात २३ नवम्बर १९१४ को आपकी टोली छुट्टी मिलने पर आराम करने के लिये अपने शिविर लौट रही थी कि वे फिर बुलाये गये। जर्मनी की पल्टन ने अंग्रेजों की एक महत्वपूर्ण खाई के कुछ भाग पर दखल कर दिया था और उन्हें खदेड़ने की चेष्टा व्यर्थ हो गयी। तत्काल नायक दरबान सिंह की दोनों टोलियां पुन: बुलाई गयी।

पहली टोली ने धावा किया और दूसरी टोली सहायता के लिये पीछे रही। धावा के समय संगीनों की मार मारते हुए आप व आपके साथी टेढ़ी–मेढ़ी खाइयों के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में‚ दूसरे से तीसरे में‚ तीसरे से चौथे में‚ इसी भांति अन्त तक आगे बढ़ते गये और साथ ही शत्रुओं की लाशें भी जमीन पर बिछाते चले गये।

वे जर्मनी के बम के गोलों की बौछार में आगे बढ़ते रहे‚ घायल होकर भी नहीं रुके। अर्द्धरात्रि के बाद प्रात: चार बजते–बजते ३०० गज लम्बी खाई जर्मनों के चंगुल से निकाल ली गई। न मालूम उस वक्त कितने जर्मन मारे गये। १०५ जर्मन कैद किये गये। तीन तोपें‚ बहुत सी बन्दूकें और सामग्री भी हाथ लगी।

यह सब इस वीर गढ़वाली बहादुर एवं साहसी सेनानी दरबान सिंह के पराक्रम का परिणाम था। यदि वीर दरबान सिंह इतनी निर्भयता एवं आत्मविश्वास से अपनी टोली के आगे नहीं रहते तो इनके पक्ष की बहुत क्षति होती और वह खाई भी शत्रुओं के हाथ से नहीं छीनी जा सकती थी।

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darbaan singh negi smaarak lensidawon


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