गौरवशाली इतिहास है 17वीं गढ़वाल राइफल का
स्थापना के पच्चीस वर्ष पूरे कर चुकी 17वीं गढ़वाल राइफल का इतिहास गौरवशाली रहा है। अपने छोटे से सफर में इस बटालियन के जवानों ने देश की रक्षा के लिए वह कर दिखाया जो एक सच्चा देश भक्त करता है। कारगिल युद्ध के दौरान इस बटालियन के 19 सिपाही और दो अधिकारी जन्म भूमि के लिए शहीद हो गए।
एक मई 1982 को 17वीं गढ़वाल राइफल का गठन किया गया। इसके बाद सेना की टुकड़ी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। सेना की बटालियन ने अभी तक केवल कारगिल के युद्ध में शामिल हुई। जिसमें पाकिस्तान के कई बंकरों को पर कब्जा जमाया तथा चोटी 5285 पर कब्जा करने में सफल रही। इस लड़ाई में 19 जवानों के साथ ही एक अधिकारी व एक जेसीओ को अपनी जान गंवानी पड़ी।
इसके साथ ही इस बटालियन ने अब तक कई आपरेशन जिनमें गरम हवा वर्ष 1985, आपरेशन बजरंग वर्ष 1991, आपरेशन राइनो वर्ष 1996 और इसके बाद वर्ष 1999 में आपरेशन विजय के लिए कारगिल में कूच किया।
वीरता के लिए अब तक बटालियन को एक वीर चक्र, एक शौर्य चक्र, आठ सेना मेडल, 12 चीफ आप आर्मी स्टाफ कोमेडेशन एवं 19 जनरल आफ आफीसर्स कमांड़िग कोमेडेशन अवार्ड से नवाजा गया है। बटालियन के सूबेदार मेजर रणवीर सिंह नेगी बताता कि स्थापना के सिल्वर जुबली के अवसर पर रुद्रप्रयाग में स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। जिसमें उन वीर शहीदों को याद किया जाएगा जो अभी तक की लड़ाई में शहीद हुए हैं।
कार्यक्रम में पूर्व सैनिक भी शामिल होंगे। कारगिल में विपरीत परिस्थितियों के बाद भी सत्रहवीं गढ़वाल राइफल के जवानों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों को बंकरों से हटा कर उन पर कब्जा किया। भारतीय सेना की सत्रहवीं गढ़वाल राइफल के जवानों ने विपरीत परिस्थितियों में भी दुश्मन के बंकरों पर कब्जा जमा कर साबित किया कि भारतीय सेना किसी से कम नहीं।