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Madua Bread Health Benefits - मडुआ के रोटी के फायदे

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Health benefits

 - Sugar
 - Control Blood Pressure
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Enjoy Madua kee Roti with Ghee


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
जापान में मडुआ से बना बेबी फूड लोकप्रियचम्पावत, जागरण कार्यालय : जापान में जहां बेबी फूड के रूप में मडुआ लोकप्रिय हो रहा है, वहीं पर्वतीय क्षेत्र में इसके प्रति किसानों का रुझान कम होता जा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों ने माना कि इसको बढ़ावा देने से पौष्टिक आहार तो मिलेगा ही, किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी। इधर, गेहूं की फसल कटने के साथ ही अप्रैल के अंत से इसकी बुवाई आरंभ हो जाती है, लेकिन इसको बढ़ावा देने के प्रति शासन का रवैया उदासीन बना हुआ है।विदित हो कि पर्वतीय क्षेत्र के अधिकांश गांवों में करीब दो दशक पहले तक औषधीय व पौष्टिक गुणों से भरपूर मडुआ की रोटी बड़े चाव से परोसी जाती थी। अब अधिकांश गांवों में इसका आटा भी मिलना मुश्किल हो रहा है। चम्पावत जिले में पांच वर्ष पहले तक 6772 हेक्टेयर में इसका उत्पादन होता था। जिला कृषि अधिकारी एके उपाध्याय ने बताया कि इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे है। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डा. एमपी सिंह ने माना कि इसके प्रति किसानों का रुझान कम हो रहा है। अभियान चलाकर किसानों को जागरुक किया जाएगा।विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. बृजमोहन पांडेय ने बताया कि इसकी गर्म तासीर डायबिटीज में लाभकारी है। महानगरों में इसकी रोटी व मादरे की खीर लोकप्रिय हो रही है। जापान की एक कंपनी इससे बेबी फूड बनाकर बेच रही है। अल्मोड़ा संस्थान में भी किसानों को इसके बेबी फूड बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।इधर, किल्यूड़ा के काश्तकार लक्ष्मण सिंह रावत ने बताया कि पिछले वर्ष से उनके गांव में भी किसानों ने मडुआ का उत्पादन कम कर दिया है। इसके लिए सुअरों का आतंक व अन्य कारण बताए। बहरहाल, औषधीय व पौष्टिक गुणों से युक्त मडुआ की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।  इनसेट-मडुआ की नई प्रजाति बीएल 163 विकसितचम्पावत: जिले के पर्वतीय क्षेत्र में मडुआ की बीएल 163 समेत अनेक प्रजातियां बोई जा रही हैं। गेहूं कटाने के बाद अप्रैल अंत से मई अंत तक इसकी बुवाई की जाती है। विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में इसकी नई प्रजातियों के विकास पर निरंतर कार्य हो रहा है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. बृजमोहन पांडेय ने बताया कि संस्थान ने बीएल 347 प्रजाति का विकास किया है, जो आरंभिक परीक्षण में बेहतर साबित हो रही है। यह पर्वतीय क्षेत्र में सौ दिन में तैयार हो जाती है। प्रति नाली 40 किलो उत्पादन हो सकता है। इसके शीघ्र ही रिलीज होने की आशा जताई।

http://www.jagran.com/u

हेम पन्त:
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है आपने.. अगर गम्भीर प्रयास किये जायें तो पहाड की कृषि को मडुए की खेती से रोजगारपरक बनाया जा सकता है..

joshibc007:
Dear Mehta Ji / Pant Ji / Upadhyay ji

Can anyone tell me, where / can we get the " MADUA ATTA " in Delhi or NOIDA ??

Thanks
BC JOSHI

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