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Ringal & Bamboo as source Employemet- रिंगाल और बांस उद्योग में रोजगार

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dosto,

Rignal is mostly found in Uttarakhand hill areas which can be used for making handcrafts. This tree is similar to bamboo tree but smaller in size. In hill areas people make various kind of domestic equipment with Ringal which they use in carrying goods etc.

If govt promotes or supports it, this can be good source of employment.

This is a news of related to Ringal from Pithoragarh District.

पिथौरागढ़: रिंगाल और बांस पर आधारित उद्योग पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार का अच्छा माध्यम हो सकते हैं। इसके लिए युवाओं को तकनीकी रूप से दक्ष बनाये जाने की जरूरत है। ग्राम ढढखोला में रिंगाल और बांस पर आधारित उद्यमिता प्रशिक्षण के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि प्रधानाचार्य डिगर सिंह पोखरिया ने कही। उन्होंने कहा रिंगाल और बांस से कई दैनिक उपयोग की चीजें बनाई जा सकती हैं। पूर्वोत्तर के कई राज्यों की अर्थव्यवस्था में इस तरह के उद्योगों की महत्वपूर्ण योगदान है। संस्थाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बिष्ट ने कहा इस समय जिले में उद्यमिता विकास प्रशिक्षण चलाये जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य युवाओं को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कच्चे माल पर आधारित उद्योग लगाने के लिए प्रेरित करना है। उन्होंने कहा इस तरह के प्रयासों से बढ़ती बेरोजगारी को कम किया जा सकता है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए बीएस धामी ने उद्योगों की स्थापना के लिए सरकार द्वारा विभिन्न विभागों के माध्यम से दी जाने वाली सहायता की जानकारी के बारे में बताया। समापन अवसर पर विशिष्ट अतिथि पूर्व प्रधानाध्यापक दौलत सिंह भण्डारी, कमला महर आदि ने भी विचार रखे। कार्यक्रम में दर्जनों ग्रामीण और प्रशिक्षणार्थी मौजूद थे। (source - dainik jagran)

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
बांस तथा रिंगाल बनेगा काश्तकारों की आय का जरिया 
अल्मोड़ा। बांस तथा रिंगाल जिले में काश्तकारों की आय का जरिया बनेगा। उत्तराखंड बांस एवं रेशम विकास परिषद देहरादून राष्ट्रीय बांस मिशन योजना में काश्तकारों को अपनी निजी भूमि में बांस तथा रिंगाल के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करेगी। परिषद इच्छुक काश्तकारों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के साथ ही नर्सरी, पौधरोपण, बांस तथा रिंगाल की वस्तुएं बनाने के लिए भी प्रशिक्षण देगी। जिले में यह योजना उद्यान विभाग के माध्यम से इस वर्ष से शुरू हो रही है। इससे क्षेत्र के बांस तथा रिंगाल आधारित परंपरागत कुटीर उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा।
मालूम को कि जंगली जानवरों द्वारा फसल को नुकसान पहुंचाने से काश्तकार खेती से विमुख हो रहे हैं। वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में काश्तकारों के पास काफी बंजर भूमि है। ऐसे में काश्तकार बांस तथा रिंगाल की खेती कर आर्थिक आय अर्जित कर सकते हैं। योजना के तहत काश्तकार को 16 हजार रुपये में एक हेक्टेयर क्षेत्र में 400 बांस तथा रिंगाल के पौधे लगाने होंगे। जिसमें से आधी धनराशि आठ हजार रुपये काश्तकार को वहन करनी होगी, जबकि परिषद काश्तकार को आठ हजार रुपये की सहायता देगा।
परिषद के परियोजना प्रबंधक भवतोष भट्ट ने बताया कि योजना के अंतर्गत बजट की कमी नहीं है। भारत सरकार द्वारा योजना के तहत पर्याप्त बजट आवंटित किया जाता है। इच्छुक काश्तकारों को कोटद्वार तथा चमोली स्थित सामुदायिक सुविधा केंद्र के माध्यम से नर्सरी, पौधरोपण की तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने के साथ ही डलिया, सूप, टोकरी, फर्नीचर, चटाई, शोपीस बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
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लाठी, कांटा, काको बांस की प्रजाति उपयुक्त

अल्मोड़ा। उत्तराखंड के लिए लाठी बांस, कांटा बांस, डेंट्रोकेलेमस हेमलटोनाई (काको बांस) की प्रजाति उपयुक्त है। परियोजना प्रबंधक भवतोष भट्ट ने बताया कि लाठी बांस तथा कांटा बास एक हजार मीटर की उंचाई पर होता है। यह दोनों प्रजातियां घाटी वाले क्षेत्रों के लिए अधिक उपयुक्त हैं। जबकि काको बांस तथा रिंगाल अधिक ऊंचाई में होता है।
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शो रूम तथा नर्सरी के लिए भी मिलेगी सब्सिडी

राष्ट्रीय बांस बोर्ड बांस की नर्सरी के लिए भी सब्सिडी देता है। योजना के तहत 2.73 लाख रुपये की लागत में 50 हजार पौध की नर्सरी तैयार करनी होगी। जिसमें काश्तकार को 68 हजार की सब्सिडी मिलेगी। उत्पादित माल के विपणन के लिए शो रूम खोलने के लिए मिशन के तहत सहायता मिलेगी। 40 लाख रुपये के शोरूम खोलने पर 10 लाख की सब्सिडी मिलती।

बांस तथा रिंगाल उत्पादन की दी जानकारी

अल्मोड़ा। उत्तराखंड बांस एवं रेशा विकास परिषद के तत्वावधान में जिला पंचायत सभागार में हुई कार्यशाला में काश्तकारों, सरपंचों तथा उद्यान विभाग के कार्मिकों को राष्ट्रीय बांस मिशन की योजनाओं की जानकारी दी गई। कार्यशाला में परिषद के परियोजना प्रबंधक भवतोष भट्ट ने काश्तकारों को राष्ट्रीय बांस मिशन की योजनाओं, बांस तथा रिंगाल की उपयोगिता, बांस नर्सरी तथा पौध रोपण के बारे में बताया। प्रबंधक विमल कुमार धीमान ने रोपण तथा बांस की उपयोगिता के बारे में बताया। जिला उद्यान अधिकारी दयालु राम ने काश्तकारों से राष्ट्रीय बांस मिशन की योजनाओं का लाभ उठाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इच्छुक काश्तकार योजना के तहत आवेदन करें। कार्यशाला में काश्तकारों, वन पंचायत सरपंच, उद्यान विभाग के सहायक विकास अधिकारी तथा पर्यवेक्षक उपस्थित थे।

Date - 23 Jan 2013 (source amar ujala)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


Basket and other day-today equipment made of ringal in my village. I took this pic in 2013.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
प्राकृतिक आपदा रोकने में कारगर होगा रिंगाल

बागेश्वर। फिल्म उद्योग से जुड़ी बेला नेगी ने यहां पत्रकार वार्ता में कहा कि राज्य में गत दिनों आपदा से कई लोग जान गंवा बैठे और कई लोगों ने अपने आशियाना खो दिए। उन्होंने भूस्खलन रोकने के लिए रिंगाल के रोपण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि रिंगाल प्राकृतिक आपदा रोकने में कारगर होगा। यह अभियान कपकोट और चमोली क्षेत्र में शुरू किया जा रहा है।
मूल रूप से बागेश्वर जिले के सिमलगांव निवासी बेला नेगी मुंबई में फिल्म उद्योग से जुड़ी हैं। तहसील सभागार में बेला ने बताया कि आपदा के बाद दोबारा संवरना समाज, राज्य और देश के लिए कड़ी चुनौती होता है। इसके लिए जन सहयोग की जरूरत होती है। जन सहयोग के जरिए आपदा प्रभावितों के जख्मों पर मरहम लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि आपदा प्रभावित गांवों का दौरा कर लोगों को वाटर प्रूफ टैंट भी दिए। उन्होंने गत दिनों कपकोट विकास समिति के सहयोग से सुडिंग में 15 हजार रिंगाल के पौधे रोपे। अब चमोली जिले में 10 हजार पौधे रोपे जाएंगे। यदि यह अभियान सफल रहा तो इन्हें पूरे आपदा प्रभावित क्षेत्र में रोपा जाएगा। रिंगाल पानी को संरक्षण देने के अलावा जमीन को भी बांधकर रखता है। इससे पूर्व जिला बार एसोसिशएन ने उनकी टीम का स्वागत किया। टीम में नीमा थापा, सिने अभिनेत्री शिल्पा शुक्ला, मोहन भट्ट, सुधीर, शरद और नारायण सिंह को फूल माला पहनाकर स्वागत किया। इस अवसर पर एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह भंडारी, गोविद बल्लभ उपाध्याय, जीएस कालाकोटी आदि मौजूद थे। संचालन जगदीश प्रसाद ने किया।

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