Uttarakhand > Uttarakhand at a Glance - उत्तराखण्ड : एक नजर में

Some Ideal Village of Uttarakhand - उत्तराखंड राज्य के आदर्श गाव!

<< < (3/55) > >>

Devbhoomi,Uttarakhand:

Devbhoomi,Uttarakhand:
photo of bainji ganv by subhash kandpal





Devbhoomi,Uttarakhand:


Devbhoomi,Uttarakhand:
Benji ganv uttarakhand

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


उत्तराखंड में एक ऐसा भी गाँव है जहा नही होते है पंचायत चुनाव

हिमाच्छादित गगनचुम्बी पर्वत श्रृंखलाओं से बीच चीन की सीमा से सटा भारत का एक गांव माणा आज भी अपनी पारंपरिक ओर प्राकृतिक विरासत को संजोए हुए है। समूचे देश में भले ही छोटे-छोटे चुनाव में प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर होती हो मगर यहां आज तक ग्राम पंचायत के लिए वोट नहीं डाले गए। सुनने में जरूर अटपटा लगता है कि विगत 100 साल से यहां ग्राम के मुखिया निर्विरोध चुनते आ रहे हैं।

चीन की सीमा से कुछ मील की दूरी पर बसा माणा देश का आखिरी गांव है।

हिन्दू आस्था के केन्द्र बदरीनाथ धाम से मात्र तीन किमी पैदल चलने के बाद पड़ने वाले इस गांव में नैसर्गिक सुन्दरता का अकूत खजाना है। माणा में ख्ेाती भी होती है और मंदिरों में पूजा भी। यहां का जीवन सोंधी खुशबू को समेटे है। नई बात यह है कि भोटया जनजाति के लगभग 300 परिवारों वाले इस गांव में प्रधान का चुनाव वोट डालकर नहीं होता। वर्ष 1962 के चीन युद्ध के बाद माणा को 1988 में नोटिफाईड एरिया बदरीनाथ से सम्बद्ध किया गया था। 1989 में पंचायत का दर्जा मिलने के बाद से आज तक यहां के निवासी अपने प्रधान का चयन आपसी सहमति से करते आ रहे हैं। यहां पहले प्रधान राम सिंह कंडारी से लेकर निवर्तमान ग्राम प्रधान पीताम्बर सिंह मोल्फा निर्विरोध चुने गए। यहां की आजीविका आलू की खेती,भेड़, बकरी पालन है। 1785 की जनसंख्या वाले छोटे से गांव में चंडिका देवी, काला सुन्दरी, राज-राजेश्वरी,भुवनेश्वरी देवी,नन्दा देवी,भवानी भगवती व पंचनाग देवता आदि के मन्दिरों में भोटया जनजाति की उपजातियों के लोगों का अधिकांश समय अपनी-अपनी परम्परा निभाने व धार्मिक अनुष्ठान में बीतता है। माणा में वन पंचायत भी गठित है जिसका विशाल क्षेत्रफल लगभग 90 हजार हेक्टेअर तक फैला है। यहां मौजूद भगवान बद्रीनाथ के क्षेत्रपाल घण्टाकर्ण देवता का मन्दिर अपनी अलग पहचान रखता है। कई खूबियों के बावजूद यहां भी कुछ कष्ट हैं। बद्रीनाथ के कपाट बन्द होने से कपाट खुलने तक पर यह पूरा क्षेत्र सेना के सुपुर्द रहता है। इस कारण ग्रामीणों को शीतकाल के 6 माह अपना जीवन सिंह धार, सैन्टुणा, नैग्वाड़, घिंघराण,नरौं, सिरोखुमा आदि स्थानों पर बिताना पड़ता है। दूसरी विडंबना यह है इन्टर तक के विद्यार्थी छह माह की शिक्षा माणा में लेते हैं और छह माह 100 किमी दूर गोपेश्वर के विद्यालयों में। यहां टेलिफोन, बिजली और पानी जैसी सुविधा तो हैं उपचार कराने को अस्पताल नहीं। ग्राम प्रधान पीताम्बर सिंह मोल्फा ने बताया कि देश-विदेश से बदरीनाथ पहुंचने वाले कई अति विशिष्ट व्यक्ति और मंत्रीगण माणा को देखने तो आते हैं लेकिन गांव के विकास को वादों के अलावा कुछ नहीं देते। देश विशेष पहचान रखने वाले इस गांव को अभी भी विकास का इंतजार है।

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version