Author Topic: Some Ideal Village of Uttarakhand - उत्तराखंड राज्य के आदर्श गाव!  (Read 37927 times)

Bhishma Kukreti

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  खारसी जौनसार में सुरेश चौहान के  तीन   भवनों में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी
गढ़वाल
, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाली , कोटि बनाल , खोली , मोरी    ) में  काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण, नक्कासी    -  161
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Dehradun , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    161

- (प्रिय मित्र  कैलासवासी दिनेश कंडवाल जी को समर्पित )
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 जग प्रसिद्ध पक्षी निहारक व पक्षी फोटोग्राफर दिनेश  कंडवाल ने खारसी से कुछ भवनों की सूचना भेजी है जो काष्ठ कला व काष्ठ अलंकरण दृष्टि से विशेष श्रेणी में आते हैं I प्रस्तुत विवेचना में आज खारसी (जौनसार , देहरादून) में सुरेश  चौहान के दो मुख्य भवनों व एक विशेष मचान जैसे भवन की काष्ठ कला , काष्ठ अल्नक्र्ण अंकन या नक्कासी की विवेचना की जायेगी I
- खारसी ( जौनसार ) में सुरेश चौहान के मकान संख्या 1 अथवा घोड़े वाला मकान में काष्ठ कला –
 इस मकान कण का नाम घोड़ेवाला मकान इसलिए रखा कि फोटो में मकान के तल मंजिल में घोडा बंधा है या तल मंजिल में अस्तबल है I रिवाजानुसार मकान की छत सिलेटी पत्थरों से ही मनी है I
घोड़ेवाला मकान दुखंड /दुघर से अधिक खंड का लगता है व ढाईपुर मकान हैं I तल मंजिल की सामने की दीवार मिटटी पत्थर की है बाकी मंजिलों की दीवारें  लकड़ीसे निर्मित हैं I लगता है तल मंजिल भंडार व गौशाला हेतु उपयोग होता रहा है जैसा  कि  जौनसार में रिवाज भी है I
    तल मंजिल में बरामदा है जिसके उपर लकड़ी की छत  है व पहली मंजिल का बरामदा भी है I तल मंजिल के  बरामदे के बाह्य तरफ   में छह स्तम्भों से 5 मेहराब स्थापित  हैं I काष्ठ  स्तम्भ /सिंगाड़ के  आधार में उलटे कमल फूल से कुम्भी या पथ्वड आकार निर्मित हुआ है जिसके उपर ड्यूल है , ड्यूल के उपर सीधा (उर्घ्वाकर ) कमल पुष्प सजा है जिसके उपर सिंगाड़ की मोटाई कम होती जाती  है I जहां सिंगाड़ /स्तम्भ सबसे कम मोटाई है वहां उलटे कलम फूल से  घट नुमा आकृति बने है फिर उपर ड्यूल है व फिर सीधा कमल दल है जिसके उपर  चौकी आधार (impost) है जिससे  से एक ओर उपर स्तम्भ  थांत (cricket Bat Blade type ) रूप लेकर मुरिंड (कड़ी ) से मिल जाता है I चौकी आधार /impost से दूसरी ओर मेहराब का अर्ध चाप शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिल पूर्ण मेहराब निर्माण करते हैं I मेहराब का कटान तिपत्ति रूप में है I ढाई पुर के उपर की छत से गोल  आकृति जैसे लट्ठ आकर मेहराब से मिलते हैI  ऐसी 9 लट्ठ  आकृतियाँ ढाई पुर की छत से मेहराबों से आकर मिलती हैं I
मुरिंड की कड़ी मजबूत बौळई है जिसके उपर पहली मंजिल की फर्श के आधारिक कड़ियाँ विश्रम्म करती हैं I
   पहली मंजिल के बरामदे या कमरों को लकड़ी के पटिलों /तख्तों से बनी दीवाल से ढकी है . इस दीवाल के उपर दो समानांतर कड़ियाँ एक  आयत की खुली आकृति बनाते हैं  (बड़ा आयताकार ढउड्यार)  के मध्य बीस पचीस बेलनाकार आकृतियाँ लगी हैं I ढाईपुर आंतरिक  बरामदे को पहली मंजिल की तरह ही पटिलों या तख्तों से धक दिया गया I इन दीवाल में दो तख्तों में अंडाकार छेद ( ढउड्यार ) हैं I
 तल मंजिल में बरामदे के अंदर खोली है  जिसके बाहर सिंगाडों/स्तम्भों व मुरिंड में काष्ठ कला उत्कीर्णित हुयी है I सम्भवतया यहाँ प्राकृतिक ,, प्रतीकात्मक (दिव्य आकृति ) व ज्यामितीय कला का मिश्रण ही होगा I
     ------खरासी में सुरेश चौहान का  मचान रूपी भवन (भवन संख्या 2 ) में काष्ठ कला:-
खारसी सुरेश चौहान के दो भवनों के बीच पुल/ या मचान जैसा एक छोटा मकान भी है I मचान रूपी भवन  दुपुर है व तल मंजिल पर मेहराब वाला  नुमा बरामदे के उपर पहली मंजिल टिकी है I तल मंजिल में खुबसूरत मेहराब है I पहली मंजिल में लकड़ी  के पटिलों /तख्तों से दीवार बनी हैं व मध्य सीमा के ऊपर झाँकने हेतु अंडाकार दो छेद हैं जैसे कुमाऊं की बाख्लियों में खिड़की /मोरी में होता है I बाकी सभी जगह ज्यामितीय कटान हुआ है I
     सुरेश चौहान के म सबसे   ऊंचा मकान तिपुर मकान है (तल मंजिल +2) व देखा जाय तो पहले मकान का hi स्वरूप है केवल ऊँचाई बढी है I तल मंजिल के बरामदे से बाहर 6 काष्ठ सिंगाड़/स्तम्भ है जिनमे कला वैसेही  है जैसे सुरेश चौहान के पहले मकान या आम गढवाली तिबरियों में सिंगाड़ों /स्तम्भों में होता है  (उलटे कमल , द्युल , सीधा कमल फिर कुछ ऊँचाई बाद उल्टा कमल , द्युल सीधा कमल फूल व मेहराब व मुरिंड किन्तु इस मकान में मेहराब नही है I स्तम्भ थांत बनकर सीधे मुरिंड की कड़ी से मिल जाते हैं . बरामदे की छत याने   पहली मंजिल का फर्श भी लकड़ी कड़ीयों  व तख्तों से  निर्मित हुआ है याने ज्यामिती कलाकारी हुयी है Iपहली मंजिल में एक भाग  में दीवार  में स्तम्भ हैं व एक तरफ के भाग में लकड़ी के खम्बे हैं I स्तम्भ मे वही    कलाकारी है जो तल मंजिल में है I पहली मंजिल में स्तम्भों के  दो फिट ऊँचाई में हैण्ड  रेलिंग  (जंगला ) जंगला है जो तख्तों की लघु स्तम्भ से बना है I रेलिंग  में बड़े स्तम्भ ही  पोस्ट का  काम  करते हैं I
 दूसरेमंजिल में दीवार लकड़ी के तख्तों से मनी है व  ज्यामितीय कलाकारी के अतिरिक्त कोई विशेष कला दृष्टिगोचर नही होती है I
 निष्कर्ष निकल सकता है कि जौनसार (चकराता , देहरादून ) में सुरेश चौहान के मकान की शैली जौनसारी शैली व आम परम्परागत जौनसारी की शैली के मकान हैं I   सभी म्कान्न में ज्यामितीय कला हावी है व स्तम्भों में प्राकृतिक (कमल दल अदि ) कला भी  उभर कर आई है I
सूचना व फोटो आभार :
यह लेख कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी ,. सूचनाये श्रुति माध्यम से मिलती हैं अत:  मिल्कियत  सूचना में व असलियत में अंतर हो सकता है जिसके लिए  संकलन कर्ता व  सूचनादाता  उत्तरदायी नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
देहरादून , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार, बाखली , कोटि बनाल  मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला जारी रहगी
 Traditional House Wood Carving of Dehradun Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  will be continued -
  House Wood Carving Ornamentation from Vikasnagar Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from Doiwala Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from Rishikesh  Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from  Chakrata Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from  Kalsi Dehradun ;  देहरादून में मकान में नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ,

Bhishma Kukreti

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बगोरी (नेलंग घाटी) में भवन संख्या 4 में काष्ठ कला 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 162
 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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बगोरी (नेलंग घाटी , उत्तरकाशी ) में भवन संख्या 4 में काष्ठ कला  , अलंकरण अंकन , नक्कासी
 जैसा कि  बगोरी  की भवन काष्ठ कला की पिछली श्रृंखलाओं में बता दिया गय है कि अब नेलंग , जाडंग व नाग घाटी भारतीय पर्यटकों के लिए खोल दी गयी है तो नेलंग घाटी के गाँवों जैसे बगोरी गाँव की सूचना मिलने लगी है व इन गाँवों में पर्यटकों हेतु भवन निर्मित हो रहे हैं या पुरने भवनों को नव अवतार रूप में पेश करने का सिलसिला भी चल पड़ा है I इसके अतिरिक्त बंद पड़े तल मंजिल के कमरे भी आबाद होने लगे दीखते हैं और तल मंजिलों में दुकानों का प्रचलन शुरू हो गय है I
  आज  बगोरी  गाँव  (नेलंग घाटी उत्तरकाशी ) के  भवन संख्या 4 की विवेचना होगी I आज  बगोरी  गाँव  (नेलंग घाटी उत्तरकाशी ) के  भवन संख्या 4  का भवन दुपुर शैली का है व तल मंजिल में अब मरोम्मत की गयी है I  व  तल मंजिल में हॉल में प्रवेश हेतु बड़ा दरवाजा है जो सपाट पटिलों /तख्तों से निर्मित हुआ है व पहली मंजिल में जाने के लिए अब सीमेंट की सीढ़ी बना दी गयी है I तात्पर्य है कि बगोरी  गाँव  (नेलंग घाटी उत्तरकाशी ) के  भवन संख्या 4  का तल मंजिल भी बगोरी के अन्य भवनों जैसे बिन किसी विशेष काष्ठ कला के ही है I
बगोरी  गाँव  (नेलंग घाटी उत्तरकाशी ) के  भवन संख्या 4 के पहली मंजिल में  दो दिशाओं में बरामदा खुला है व तल मंजिल के छज्जे के उपर  मोटी  कड़ी /बौली है .  कड़ी के उपर स्तम्भ स्थापित हैं .  छज्जे की मजबूत मोटी  कड़ी के उपर दो फिट ऊँचाई तक  दो तल में दो जंगले हैं जो एक एक कड़ी के नीचे हैं . छज्जे के उपर  दोनों तल के जंगले त्रिभुज आकार व आयताकार आकृतियों से बने हैं I
बगोरी  गाँव  (नेलंग घाटी उत्तरकाशी ) के  भवन संख्या 4 की छत  गाँव के प्रचलन अनुसार  तीखी ढलवां है I मुंडळ के मध्य एक ज्यामितीय  आकृति  है  जो शायद कोई तकनीकी प्वाइंट है I छत के  आधार नीचे दोनों ओरएक आयताकार  आकृति है जिसके नीचे वाले भाग में ज्यामितीय सुंदर नक्कासी हुयी है I इससे आयताकार लकड़ी की आकृति ऐसा लगती हैजै जैसे  आकृति  दांत हों I
   बगोरी  गाँव  (नेलंग घाटी उत्तरकाशी ) के  भवन संख्या 4 में बाकी कोई विशेष काष्ठ कला व अलंकरण अंकन नही दिखा I
सूचना व फोटो आभार : nelong valleytrek
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , भटवाडी मकान लकड़ी नक्कासी ,  रायगढी    उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , चिनियासौड़  उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी ,

Bhishma Kukreti

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गुंजी (धारचुला  ) के एक आकर्षक बाखली में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी

House Wood Art in Bakhli of village Gunji , Dharchula Pithoragarh
गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   -  163
 संकलन - भीष्म कुकरेती
 
 गुंजी  पिथौरागढ़  के  धारचुला  तहसील  ा एक महत्वपूर्ण सीमावर्ती गाँव है जो  कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पड़ता  है।  यहां से  कुछ बाखलियों व भवनों की जानकारी मिली है जिनकी काष्ठ  कला समझना आवश्यक है। गुंजी   (धारचुला  ) के प्रस्तुत  बाखली  कुमाऊं की पारम्परिक बाखली रूप में ही है। 
गुंजी (धारचुला  ) की यह  बाखली  काफी लम्बी प्रतीत होती है व तिपुर ( तल + 2 मंजिल ) शैली की बाखली है I  जैसे कुमाऊं की आम बाखालियों  में सर्वेक्षण के दौरान पाया गया है वैसे हु गुंजी (धारचूला ) पिथोरागढ़ की इस बाखली में तल मंजिल  के कमरे भंडारीकरण हेतु उपयोग होते हैं I
   गुंजी (धारचुला  ) की इस  बाखली     के तल मंजिल म ेभंडार गृहों के बाहर  दरवाजों  के मुरिन्ड व मुरिन्ड ऊपर ज्यामितीय व प्राकृतिक कला अलंकरण अंकन हुआ है। 
कला दृष्टि से  गुंजी (धारचुला  ) की इस  बाखली के  तल मंजिल में बाखली का सबसे अधिक महत्वपूर्ण घटक खोली /प्रवेश द्वार या entry gate है जिस पर अंदर ऊपर  मंजिलों में जाने हेतु खडी सीढियां हैंI  खोली के दोनों सिंगाड़ /स्तम्भ   खटगट में हैं  याने छह  स्तम्भों से मिलकर एक  सिंगाड़ बना है I ये सभी सिंगाड़ ऊपर जाकर आयत में परिवर्तित होते हैं व मुरिंड , शीर्ष (abacus) के अलग अलग स्तर बन जाते हैं I  एक तरफ के  छह स्तम्भों /सिंगाड़ों में से दो दो स्तम्भों/सिंगाड़ों के आधार में नक्कासी (कलाकृत स्तम्भ ) हुयी है बाकी  चार उप स्तम्भ  सीधी  कड़ी रूप में हैं I खोली के सभी चारों  कलाकृत स्तम्भों  के आधार पर उलटे कमल फूल से बनी कुम्भी है; फिर ऊपर   ड्यूल है जिसके ऊपर  सीधा कमल पुष्प खिलने वाली आकृति है ; फिर ड्यूलहै जिसके ऊपर  पूरा खिला कमल फूल की पंखुड़ी दिख रही है I इस खिले कमल पंखुड़ियों से हरेक उप स्तम्भ ( कलाकृत उप स्तम्भ ) सीधी कड़ी रूप में परिवर्तित होकर ऊपर  मुरिंड /शीर्ष के एक कड़ी बन जाते हैं  I उप स्तम्भों में वानस्पतिक  चित्रकारी अंकित हुयी दिखती है Iमुरिंड षट  स्तरीय है I मुरिंड के मध्य  गणेश देव मूर्ति विराजमान है I
गुंजी (धारचुला  ) की इस  बाखली की  खोली  तल  मंजिल से ऊपर  आकर पहली मंजिल तक आई है I  पहली मंजिल तक पंहुच चुकी खोली के ऊपर  कड़ियाँ हैं व  शीर्ष कड़ी के ऊपर एक आयत बना है जिस पर दो आयत हैं।   दोनों आयतों के चौखट  (बाह्य कड़ी ) में प्राकृतिक नक्कासी हुयी है व  दोनों मुख्य आयत के बाहर के आयतों में  कोई  प्रतीकात्मक  अंकन हुआ है ऐसे कुल छह पर्टकों का अंकन हुआ है।   गूंजी  (धारचूला ) के इस विवेचित बाखली  में दो दो बड़े आयतों में दो दो  बहु भुजीय देव आकृति का अंकन हुआ।  इस तरह की कुल चार बहुभुजीय  आकृतियां  पायी गयी हैं  .
पहली मंजिल पर दो बड़ी बड़ी मोरियाँ भी हैं जो खोली के समांतर ही सजी हैं।   प्रत्येक मोरी में  दो झाँकने हेतु  झरोखे (ढूुढ्यार ) हैं ) और एक एक  झरोखा  या  ढूुढ्यार पट्टियों से ढक दिया गया है।  दोनों मोरी में झरोखे अंडाकार आकृति  के हैं।  इन मोरियों के स्तम्भ या सिंगाड़  शैली भी  खोली के स्तम्भों जैसी शैली  व कलाकारी  के जैसे ही हैं।   मोरियों के ढुढयार  में ऊपरी भाग में मेहराब नुमा आकृति  बनाई  गयी है। 
  गुंजी (धारचुला  ) की इस  बाखली   के पहली मंजिल की छत व दूसरी मंजिल के फर्श से बाहर कड़ी हैं व कड़ी के नीचे लकड़ी की अन्य कड़ी पर  आकर्षक ज्यामितीय कला अंकित है। 
  गुंजी (धारचुला  ) की इस  बाखली   के दूसरी  पहली मंजिल  में खोली के बिलकुल ऊपर  एक नक्कासीदार चौखट है जो  दो बंद दरवाजों का आभास देता है।  इस चौखट में दो मोरी हैं जिनमे व्ही कलाकृति अंकित हुयी है जैसे पहली मंजिल के मोरियों में (स्तम्भ आदि )   I  प्रत्येक मोरी के ऊपर एक अर्द्ध   सूर्य  जैसी आकृति  अंकित  है।  अर्द्ध  सूर्य के के केंद्र में कोई आध्यात्मिक या  प्रतीकात्मक आकृति खुदी है।  अर्द्ध सूर्य के ऊपर  तोरण  जैसे आकृतियां अंकित हुयी हैं जो सुंदरता  बृद्धिकाराक हैं। दोनों  तोरणों के संधि केंद्र में एक प्रतीकात्मक  या आधायत्मक आकृति खुदी है। 
   गुंजी (धारचुला  ) की इस  बाखली  के दूसरे  मंजिल में दो मोरियाँ है जो पहली मंजिल की दोनों मोरियों की लम्बाई चौड़ाई व कलाकारी  हिसाब से  हु बहु नकल हैं। 
   गुंजी (धारचुला  ) की इस  बाखली की पटाळ  छत के काष्ठ  आधार के नीचे एक कड़ी है जिसमे ज्यामितीय कला अंकन हुआ है।
   गुंजी (धारचुला  ) की इस  बाखली  आकर्षक है व इसमें सभी ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (प्रतीकात्मक  )  कलाओं /अलंकरणों  - का समावेश हुआ है। 
सूचना व फोटो आभार : ट्रैवेल बाई कर्मा
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी;  House wood art in Pithoragarh
 


Bhishma Kukreti

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श्रीकोट   (पौड़ी गढ़वाल ) के थपलियाल परिवार के  भव्य मकान संख्या 1  में काष्ठ कला, अलंकरण  अंकन , लकड़ी की नक्कासी

House Wood carving Art from Pokhrikhet (Khatsyun )
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   -  167
 (कला व अलंकरण केंद्रित )
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   श्रीकोट   गांव पौड़ी के निकट खातस्यूं पट्टी  का एक महत्वपूर्ण गाँव है।  संस्कृति प्रेमी किशोर रावत  ने श्रीकोट   से दो भव्य मकानों  की सूचना व फोटो भेजी हैं जिनमे काष्ठ कला  का प्रदर्शन  आकर्षक, मनमोहक व  भव्य तरीके से हुआ है। 
शैलीगत रूप में श्रीकोट   के थपलियाल परिवार  के मकान   आधुनिकता व पारम्परिक शैली  का मिश्रण है।    श्रीकोट   के थपलियाल परिवार का  मकान  चरपुर /चारपुर याने  तल मंजिल +३   मंजिल)  का है।  जिला  पौड़ी गढ़वाल में  चारपुर  मकान बिरले ही मिलते थे व आज भी गांवों में नहीं निर्मित होते हैं । 
  श्रीकोट   के थपलियाल परिवार  के मकान   में  काष्ठ  कला व काष्ठ अलंकरण उत्कीर्णन विवेचना हेतु  चारों मंजिलों का अध्ययन आवश्यक है।
  श्रीकोट   के मकान संख्या 1   के तल मंजिल में पाषाण  कला  अलंकरण भव्य है और  स्तम्भ /पिलर्स  व मेहराब पर सुंदर  नक्कासी हुआ है।   बरामदा पिलर्स के अंदरूनी भाग  में  है और हो सकता है अंदर कमरों के दरवाजों या खोली में कोई काष्ठ   नक्कासी हुयी हो। 
  श्रीकोट   के थपलियाल परिवार के    मकान संख्या 1   में किसी भी  मंजिल में कोई छज्जा नहीं है जो  आम तौर  पर पौड़ी गढ़वाल के मकानों की विशेषता है।    श्रीकोट   के मकान संख्या 1   के पहली मंजिल  में तीन बड़े पाषाण स्तम्भ स्तम्भों से बने दो ख्वाळ /द्वार   व दो शानदार मेहराब  हैं।    में   आकर्षक पाषाण अंकन मिलता है।  ख्वाळों/ द्वारों   के अंदर कमरे हैं व उन  कमरों के दरवाजों पर ज्यामितीय कला के दर्शन होते हैं।  पहली मंजिल  की चौखट खिड़की  के चौखट व दरवाजों पर ज्यामितीय काष्ठ कटान हुआ है।  कहा जा सकता है कि श्रीकोट   के थपलियाल परिवार के मकान   के पहली मंजिल में  लकड़ी  ज्यामितीय अलंकरण ही हुआ है व प्राकृतिक (बेल -बूटे ) व मानवीय अलंकरण नहीं हुआ है।
  श्रीकोट   के थपलियाल परिवार के मकान  के दुसरे मंजिल काष्ठ कला अंकन  अध्ययन हेतु के लिए महत्वपूर्ण  । 
पहली मंजिल में  भी छज्जा नही है व मध्य में तिबारी / baramada   है जिसके   बाहर   चार लकड़ी के सिंगाड़ / स्तम्भ हैं  जो तीन ख्वाळ /द्वार /खोली निर्माण करते हैं।   दीवार  को सिंगाड़ों   से  जोड़ने वाली कड़ियों में लताकार आकृति अंकित है। 
प्रत्येक स्तम्भ के आधार पर उलटे कमल दल से बनी कुम्भी या पथ्व ड़  है जिसके ऊपर ड्यूल है फिर कमलाकृति व फिर  मोटा ड्युल , छोटा ड्यूल  व फिर सुल्टा /उर्घ्वगामी कमल दल है जहां से सिंगाड़  लौकी की शक्ल ले  लेता है जहाँ पर सिंगाड़  की सबसे कम गोलाई है वहां  उलटे कमल पंखिडियों की बारीक नक्कासी हुयी है व तब ऊपर तीन ड्यूल उत्कीर्ण /खुदे हैं।   यहां से सिंगाड़  थांत  की शहकल ले ऊपर  मुरिंद abacus  से मिल जाता है व यहीं से मेहराब का एक अर्ध चाप भी सिंगाड़  से निकलता है जो सामने के सिंगाड़  के अर्ध चाप से मिलकर पूरा अर्धमंडलाकार  आकृति बनाते हैं।  मेहराब के बाहर त्रिभुजों में कोई अंकन दिखाई नहीं देता है जो सामन्य तौर पर पौड़ी के मेहराबों में   अंकन होता ही है।  ऊपर दो कड़ियों का मुरिन्ड /शीर्षफलक /गिनतारा  बना है।  मुरिन्ड  के सबसे  ऊपरी कड़ी  में मेहराब के  कोन कोण के ठीक ऊपर   लकड़ी के  गोल आकृतियां हैं।  मुरिन्ड /शीर्षफलक के  लकड़ी की बड़ी कड़ी है जो तीसरी मंजिल का भाग है। 
दूसरे  मंजिल  में  दो खिड़कियां हैं जिन पर ज्यामितीय कटान हुआ है।
  काष्ठ  अलकंरण  दृष्टि  से तीसरी मंजिल  भी महत्वपूर्ण है।   तीसरी मंजिल में  कुल पांच खड़कियाँ  (गढ़वाली शब्द मोरी ) हैं।  निम्न तल के चार मोरियाँ चौखट हैं व उन मोरियों /खड़िकियों में केवल ज्यामितीय कटान हुआ है व उच्च स्तर का कटान हुआ है।
  श्रीकोट   के थपलियाल परिवार के मकान    के  तीसरे  मंजिल में   सबसे ऊपर  मोरी /खिड़की में काष्ठ कला का उम्दा प्रदर्शन हुआ है।  मोरी में तीन स्तम्भ /सिंगाड़  हैं व उन पर नक्कासी वैसे ही हुयी है जैसे दूसरे  मंजिल के सिंगाड़ों  में हुयी है।   ये तीनों सिंगाड़  ऊपर ु एक लकड़ी के कड़ी से मिलते हैं  . इस कड़ी के मध्य से अर्ध मडल चाप निकलते हैं जो दो अर्धमंडलाकार  (मेहराब ) आकृति बनाते हैं।  दोनों मेहराब के ऊपर एक ुर मेहराब बना है।
  श्रीकोट   के थपलियाल परिवार के मकान   की छत  सिलेटी पटाळों  से बनी हैं व नीचे छत  आधार में किनारे लकड़ी की कड़ियाँ  दिखती हैं। 
निष्कर्ष निकला है कि    कला व शैली  दृष्टि से  श्रीकोट   के मकान संख्या 1   उच्च स्तर का है व जिसमे लकड़ी में ज्यामितीय , प्राकृतिक  अलंकरण हुआ है व मानवीय अलंकरण अंकन देखने को नहीं मिला।   श्रीकोट   के मकान संख्या 1  कई मामलो में शैली व अलंकरण व कला दृष्टि से पौड़ी गढ़वाल के मकान से कुछ हटकर है।   
भवन के  मिल्कियत  , मकान निर्माण काल व शिल्पकारों का विवरण  प्रतीक्षित है .
सूचना व फोटो आभार : किशोर रावत

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्कासी   - 

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी , भवन नक्कासी  नक्कासी, नक्श , House wood Art, Pokhrikhet ;


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बगोरी (नेलंग घाटी , उत्तरकाशी ) भवन संख्या 6 की  निमदारी में काष्ठ कला अंकन , नक्कासी -170
  बगोरी (नेलंग घाटी , उत्तरकाशी ) में भवन काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी श्रृंखला -  7 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   -
 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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बगोरी (नेलंग घाटी , उत्तरकाशी ) भवन संख्या 6 की  निमदारी में काष्ठ कला अंकन , नक्कासी
बगोरी (नेलंग घाटी , उत्तरकाशी ) में भवन काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी श्रृंखला -7
बगोरी (नेलंग घाटी , उत्तरकाशी ) से भवन संख्या 6  की ऐसी फोटो व सूचना  मिली है जो गढवाल के अन्य क्षेत्रों के हिसाब से एक क्वाठा भितर ( हवेली  जैसे )  ही है , अथवा शहरों में कालोनी होती हैं इस आहते में सम्भवतया एक ही मुन्डीत के परिवार रहते होंगे . इस आहते में बाहर से अंदर जाने का   प्रवेश द्वार है जैसे गढवाल के अन्य क्षेत्रोंमे क्वाठा भितर के बाहर र होता है जैसे ग्वील (ढांगू )  में क्वाठा भितर कके अंदर जाने के लिए प्रवेश द्वार  है I 
बगोरी (नेलंग घाटी , उत्तरकाशी ) से भवन संख्या 6   को श्रृंखला  में अन्तर्हित करने का एक ही उद्येश है कि  बगोरी i व नेलंग  घाटी में विभिन्न प्रकार की निमदारियों को समझना है I प्रस्तुत भवन में  बगारी के इस दुपुर भवन में  बगोरी  में प्रचलन अनुसार तल मंजिल  का म्ह्वत्व भंडार व गौशाला के लिए है I निमदारी याने जंगला पहली मंजिल में लगा है I बरामदा बहुत छोटा  है केवल दो कमरे के बहर बरामदा है I बरामदे में तीन ही स्तम्भ है व ख्वाळ पर जंगला  आयताकार आकर के अंदर क्रौस (X)  की नक्कासी हुयी है . बाकी भवन में कोई विशेष काष्ठ कला दृष्टिगोचर नही हो रहा है I
भवन में सामन्य किस्म का जंगला है व बाकी कोई विशेष लकड़ी की नक्कासी नही मिली  I
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , भटवाडी मकान लकड़ी नक्कासी ,  रायगढी    उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , चिनियासौड़  उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी   श्रृंखला जारी रहेगी

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  लख्वाड़  (कालसी, देहरादून  )  में  राजेन्द्र  चौहान के भव्य मकान में  भवन काष्ठ कला, काष्ठ  अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्कासी 

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाली , कोटि बनाल , खोली , मोरी    ) में  काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण, नक्कासी    - 176 

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Lakhwar , Kalsi  Dehradun , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    176

(कला व अलंकरण केंद्रित ) -

 संकलन - भीष्म कुकरेती 

  लख्वार (कालसी , देहरादून )  महासू मंदिर व अन्य भव्य मकानों हेतु प्रसिद्द है।  अब डैम  हेतु भी प्रसिद्ध हो रहा है।

  किशोर रावत ने लख्वाड़ से  राजेन्द्र   चौहान  का मकान    तिपुर  , जौनसारी -रवाईं शैली में  निर्मित हुआ है।  जौनसारी शैली में निर्मित     राजेन्द्र  चौहान का तिपुर मकान प्रसिद्ध महासू मंदिर से सटा मकान है।  लखवाड़  के  राजेन्द्र  चौहान के तिपुर मकान में काष्ठ कला व काष्ठ अंकन , नक्कासी जानने के लिए तीनों तलों पर ध्यान देना आवश्यक  है।

 तल मंजिल में  कला व अंकन दृष्टि से  दो तागतवर स्तम्भों व कमरों के दरवाजों पर ध्यान दिया जाय तो पाया जाता है कि  खम्बों में केवल ज्यामितीय कटान हुआ है व कमरों  के दरवाजों में भी ज्यामितीय कला ही सृष्टीगोचर हो रही है।

तल मंजिल के स्तम्भ में आधार पर चौकोर डौळ है फिर ड्यूल है फिर चौकोर आकार में स्तम्भ ऊपर बढ़ता है फिर ड्यूल है फिर स्तम्भ प्याले नुमा या चौकोर सजला नुमा आकृति लेकर  ऊपर की  कड़ी से  मिल जाता है दोनों स्तम्भों में   कटान कला एक जैसे  ही है। 

पहली मंजिल में भव्य निमदारी या जंगला स्थापित है।  निमदारी में एक ओर सात  स्तम्भ हैं व दुसरे कोण  की ओर 9 के लगभग स्तम्भ हैं।  किनारे में बड़ा स्तम्भ दोनों कोणों का प्रतिनिधित्व करता है।  दोनों कोणों  के मिलन स्थान का स्तम्भ कुछ मोटा है व इसके  आधार   पर कुम्भी या डौळ  है फिर ऊपर ड्यूल है फिर स्तम्भ षट तल (6 dimensions  ) का होकर ऊपर चला जाता है जहाँ फिर एक ड्यूल बना है व ड्यूल है जिसके ऊपर चौकोर नुमा आकृति है जिसके ऊपर एक चौकोर सजला नुमा आकृति है जो दूसरी मंजिल के फर्श की कड़ी से मिल जाता है।  लगभग दूसरे  छोटे स्तम्भों में कला इसी तरहअंकित  है।  स्तम्भों में कमल फूल  आदि का  अंकन अनुपस्थित है। इन स्तम्भों के आधार पर दो  रेलिंग हैं   दोनों रेलिंग के मध्य एक फ़ीट का अंतर् होगा व मध्य में हुक्के की नै  जैसे नक्कासी वाले छोटे स्तम्भ फिट हैं।  स्तम्भ मध्य हरेक जंगले  में चार चार लघु स्तम्भ फिट हैं।

  इस जंगले  व स्तम्भों के मध्य  के नीचे ज्यामितीय कटान से बहुत सुंदर आयताकार अंकन व कटान हुआ है जो ज्यामितीय कला का उमदा  उदाहरण है। 

तीसरे मंजिल में ज्यामिति कला से  काष्ठ कला उभर कर आयी है  . बिभिन्न  आकार में षटकोणीय आकृतियों का अंकन दूसरी मंजिल में सुंदरता वृद्धि कारक हैं।  दूसरे  मंजिल में लकड़ी पर काम ज्यामितीय कटान से ही हुआ है और मकान को भव्यता प्रदान लड़ने में सफल हुए हैं। 

 मकानमें  सिलेटी रंग के पत्थर  की ढलवां छत है व जिसका  आधार लकड़ी की है। 
मकान की तख्ते पर निर्माण साल सम्बत १९२२ अंकित है

लखवाड़ (कलसी , देहरादून ) में  राजेन्द्र  चौहान के भव्य मकान में ज्यामितीय कटान  से ही कला उभर कर आयी है व इसमें कोई  अतिशयोक्ति  न होगी कि  लकड़ी  पर ज्यामितीय कटान ने ही पूरे मकान  को सुंदरता प्रदान की है व  भवन के डिजायनर व शिल्पकारों की प्रशंसा  तो  भरपूर होनी  ही चाहिए । 

सूचना व फोटो आभार : किशोर रावत

यह लेख कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी ,. सूचनाये श्रुति माध्यम से मिलती हैं अत:  मिल्कियत  सूचना में व असलियत में अंतर हो सकता है जिसके लिए  संकलन कर्ता व  सूचनादाता  उत्तरदायी नही हैं .

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Traditional House wood Art and Ornamentation in the house of Bamdev Dabral of Timli (Pauri Garhwal)
 
Traditional House (Tibari, Nimdari, Bakhali, Nimdari, Mori , Koti Banal ) Wood Art of Garhwal, Kumaon , Uttarakhand – 177
 Compiler –Bhishma Kukreti

This is the 177 episode of Traditional House  (Tibari, Nimdari, Bakhali, Nimdari , Mori , Koti Banal ) Wood Art of Garhwal, Kumaon , Uttarakhand where it will be discussed the traditional house wood carving art of Tibari fitted in the  house of  Bamdev Dabral of village Timli, (Dabralsyun , Pauri Garhwal) Uttarakhand.  Sukhdaev Dabral the grandson of late Bamdev Dabral is the priest   of Banseshwar Shiva temple   Timli.
    Tibari means a wooden structure fitted outside of the opened Baramdah that is made  by combining two rooms. Usually Tibari is made of four columns and three Khwal or Kholi. The space between two columns is called   ‘Khwal’ or ‘Kholi or Dwar.   Usually, Tibari is fitted on the first floor but in many cases there are Tibari fitted on the ground floor too. Usually, the columns are made by the Tuna tree and in case of the Jaunsar and High altitude region, Tibari columns are made by Deodar wood. Both woods have longer life and even Deodar wood  can sustain up to 1000 years.
  Now, it is time to discuss wood art applied in Tibari of Bamdev Dabral of Timli, Dabralsyun of Pauri Garhwal district.  The wooden Tibari in the  one storied (ground +first floor) house of late Bamdev Dabral is fitted on the first floor. There are four wood columns of Tibari and those are fitted on a long stone slab (Chhajja or balcony). The stone slab (Chhajja) is fitted on the floor and is 1and 1 ½ feet wide and the length of Chhajja is as of the house.
The corner column hat is along the side of the wall is joined by a wood column or shaft and the wood shaft is decorated or carved by spiral leaves or tendril.
 The base of the wood column is on the stone base or elephant type stone structure (Daul) the dado. The wood column base or (Dabal or Kumbhi shape) is made because of descending lotus petals and above the ‘Kumbhi or Dabal’, there is a ‘Dyule ‘or ring type wood plate. Above the ring type wood plate or Dyule, there are ascending lotus petals above that lotus flower , the column width starts downing and it takes the  shape of a  bottle guard (that is the round base is wider than top ) . When there is least width of the shaft or column, there is a small descending lotus and above descending lotus, there is a wooden ring (Dyul) . above Dyule, there is an ascending lotus and from here, the column takes the new shape of a cricket bat base and reaches to the  lower layer of capital(Murind) .. From here, the half arch of arch also starts and by meeting with half arch of another column , it makes full arch. The arch of Tibari is trefoil shaped.  The top centre of the arch is touching the lower layer of Murind.
 There is a multi-petal flower carved on each corner of the outside triangle of Arch. That way, there are three arches and six multi-petal flowers (looks like sunflowers) on the outside triangle of arches.  At the bottom corner of each triangle outside of the arch, there is a carving of three petal lotus flowers. It means that there are six three petal lotus flowers on three 
The readers should make a note that there is natural carving on lotus petals of both types of lotuses of column.
There is fluting and fillet geometrical design carved on the shaft of the main column. 
On the wood plate structure of the cricket bat blade of each column, there is a decorated bracket on each blade or wood plate that touches the wood structure above abacus.  The bracket is carved as a flower pollen stem as well as the neck and beak of a bird. There a small bird touching its beak to break of  the bigger bird. There is another bird carved on the neck or wing of a bigger bird (bracket) .The panache of big bird (on Bracket) is lotus flower shaped.  There is natural ornamentation carving on the neck of bigger bird.
 There is one auspicious round metal plate or ‘Beej Yantra’ fitted on one bracket of Tibari.
There is natural carving on the abacus or Murind shaft.
  Surprisingly, there is no any religious symbolic structure carved here on a Tibari (for avoiding bad eyes).
  Tibari of late Bamdev Dabral of Timli would have been built around 1930. The builder of the house would be from local area (Dabralsyun) but wood carpenters might have been invited from north Garhwal (Uttarkashi or Tehri or Chamoli).
Conclusively, it could be stated that the Tibari come sunder splendid calls and Tibari witnessed glorious youth. The carving on Tibari shows that there are natural, figurative and geometrical motifs on Tibari.
**Photo and Information Curtsy: Ashis Dabral, Timli 
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देवप्रयाग मंडल   (टिहरी ) के  श्रीकोट क्षेत्र एक भव्य सातखंबा तिबारी में काष्ठ  कला , अलंकरण अंकन

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल    ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्कासी  )     -173

संकलन - भीष्म कुकरेती

पर्यावरण मित्र  बिलेश्वर झल्डियाल   ने देवप्रयाग मंडल से  विशेषत: श्रीकोट से  कई  तिबारियों  की सूचना व फोटो भेजी हैं।  प्रस्तुत तिबारी  अति बिशेष तिबारियों के श्रेणी में आती है क्योंकि  श्रीकोट (टिहरी गढ़वाल ) क्षेत्र की  यह तिबारी सतखम्बी व खटख्वळि  /छह खवाळ  वाली तिबारी है।  तिबारी में काष्ठ  कला विवेचना हेतु तीन बिंदुओं पर ध्यान देना होगा।  मकान दुपुर, दुघर /दुखंड /तिभित्या है।  मकान का छज्जा चौड़ा है व पत्तरः वाली छत  वाला है। तल मंजिल से पहली मंजिल हेतु सीढ़ियां बाहर से हैं। 
  सतखम्बी व खटख्वळि  /छह  ख्वाळ    वाली तिबारी के तल मंजिल  में काष्ठ कला आकलन
पहली मंजिल में तिबारी में लकड़ी पर नक्कासी
 तिबारी के ऊपर मुरिन्ड  में काष्ठ कला  व अलंकरण अंकन
 मकान के तल मंजिल में दो बड़ी  चौखट खोली हैं जिनमे लकड़ी का तोरण /मेहराब स्थापित है।
पहली मंजिल में बाहर के तीन कमरों को खुला छोड़ बरामदा बना है जिस में  सात  सिंगाड़ /स्तम्भ  व स्तम्भों से निर्मित छह  ख्वाळ /खोली हैं।  कोटि क्षेत्र की इस तिबारी के सातों स्तम्भ   गढ़वाल की अन्य  तिबारियों स्तम्भों जैसे ही हैं किन्तु स्तम्भों के ऊपरी  शिरा  में अलग विशेष प्रकार की काष्ठ   कला अंकन देखने को मिला।
स्तम्भ  की आधारिक  कुम्भी अधोगामी कमल से बनी है, फिर
 ड्यूल है , , फिर उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल है और यहां से स्तम्भ लौकी आकर लेता है।   गढ़वाल  की अन्य तिबारियों में सामन्यतया स्तम्भ की सबसे कम गोलई से थांत  (cricket bat blade type ) की शक्ल ले लेता ही किन्तु श्रीकोट क्षेत्र की इस तिबारी में स्तम्भ थांत  के आकृति में न होकर  स्तम्भ चौकोर मुंगुर /गदा नुमा  (club ) आकृति  अख्तियार कर लेता है।  इस मुंगर नुमा आकृति में युग्म लघु स्तम्भ भी अंकित हैं जो इस तिबारी  की विशेष विशेषता  (Exclusive  charcterstic )  प्रदान करता है।  युग्म लघु स्तम्भ युक्त  मुंगर /गदा आकृति सीधे ऊपर सिंगाड़  की कड़ी से जुड़ जाते हैं। 
छत के आधार व सिंगाड़ कड़ी के मध्य पट्टी में अंकन हुआ है। 
  आज  मकान जीर्ण शीर्ण अवस्था से गुजर रहा है किन्तु साफ़ पता चलता है कि कभी इमारत बुलंद थी व  चहल पहला वाला घर था।
  घट , गांव व घर मालिक की सूचना अभी नहीं आयी है तो शिल्पकार कहाँ के थे की सूचना भी प्रतेक्षारत है किन्तु मकान चिनने  वाले ओडों  व काठ कलाकारों के शिल्प की  प्रशंसा तो होनी ही चाहिए। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि श्रीकोट क्षेत्र की यह तिबारी गढ़वाल के तिबारियों में विशेष तिबारियों में गिनी जायेगी .

  सूचना व फोटो आभार : बिलेश्वर झल्डियाल पर्यावरण मित्र

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गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी कोटि बनाल     ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  , Koti Banal )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी नक्कासी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ; House Wood carving Art from   Tehri;           

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  रांसी (रुद्रप्रयाग ) में एक निमदारी में काष्ठ कला , अलंकारण , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ अंकन , नक्कासी   -  172 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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रांसी रुद्रप्रयाग का एक गाँव है जहाँ से  तिबारी  व निमदारियों  होने  की सूचना मिली है I इस कड़ी में रांसी गाँव में एक तिपुर मकान में निमदारी या जंगलों में काष्ठ कला , अलंकरण, नक्कासी पर चर्चा की जायेगी I
 यह मकान तिपुर (तल +2 मंजिल )  दुघर , दुखंड   है I दुखंड , दुघर या तिभित्या का अर्थ है  एक कमरा बहर व एक कमरा अन्दर व इन दो कमरों के मध्य एक भीत (दीवाल ) I इस दो मंजिलों की निमदारी   वाले मकान में तीन हिस्सों में काठ की नक्कासी  पर ध्यान देना होगा – तल मंजिल में  खोली में काष्ठ कला –अलंकरण ,  पहली व दूसरी मंजिल में निमदारी के स्तम्भों व जंगलों में काष्ठ कला , नक्कासी व कहीं एनी स्थलों जैसे कमरों , खिडकियों के सिंगाड़ , मुरिंड आदि में काठ पर नक्कासी का जायजा लेना I
  तल मंजिल में दो बड़े द्वार /ख्वाळ/खोह हैं एक ख्वाळ को तख्तों से बंद कर दिया गया है दूसरे ख्वाळ में सथार्ण दरवाजा है .
 तल मंजिल से उपरी मंजिलों में जाने के लिए अंदरूनी  सीढ़ियों हेतु मुख्य प्रवेश द्वार या खोली  है I खोली के सिंगाड़ /स्तम्भ वास्तव में  नक्कासी युक्त तीन उप  त्रिगट सिंगाड़ो  व  मध्य में बिन नक्कासी के सीधे उप सिंगाड़ों /स्तम्भ से  मिलकर बने हैं व दोनों ओर नक्कासी युक्त  त्रिगट व सपाट त्रिगट  सिंगाड़ खड़े हैं I नक्कासी वाले उप सिंगाड़ /स्तम्भ  आधार  में  मोटा आयात   आकार  , फिर दो तीन कुम्भी आकार जिनके बीच कमल दल रु आभासी   आकृतियाँ है व फिर सभी उप स्तम्भ सीधे हो  पड़े  (भू समांतर ) रूप में आकर उपर मुरिंड का निर्माण  करते हैं I उपर मुरिंड में कुल 6 तल  हैं I मुरिंड के मध्य में गणेश मूर्ति थरपी /स्थापित ) गयी है याने प्रतीकात्मक मानवीय अलंकरण का उदाहरण मुरिंड में उपस्थित है Iदरवाजे पर सपाट कटान आयत आकृति बनाते के अतिरिक्त  दो अष्ट दलीय फूल खुदे हैं I अस्तु कहा जा सकता है मुरिंड  में ज्यामितीय , वानस्पतिक व प्रतीकात्मक मानवीय अलंकरण अंकित हैं I
   पहली व दूसरी मंजिल की निमदारी में  काष्ठ स्तम्भों /खम्बों से निमदारी निर्मित हुयी हैI प्रत्येक मंजिल में  9 स्तम्भ /खम्बे हैं अत: भवन में ऐसे कुल 18 स्तम्भ हैं I प्रत्येक गोल स्तम्भ के आधार में  दो फिट ऊँचाई तक  दोनों ओर पट्टिका  फिट की गयीं है व बाद में  कुछ उपर जाने के बाद  ड्यूल है उसके उपर बड़ा मोटा बड़े आयत का ड्यूल है फिर ड्यूल है व उसके उपर से  स्तम्भ लौकी आकार अख्तियार कर लेता है व जब लौकी आकार र समाप्त होता है तो तीनों ड्यूल के वाही आकृतियाँ निम्रित है जो इची आधार के बाद ऊपर हैं I इन अंतिम ड्यूल के बाद  स्तम्भ थांत (Cricket Bat Blade form ) आकृति अख्तियार रता है व  थांत रूप में ही मुरिंड (शीर्ष ) की कड़ी से मिल जाता है I
  स्तम्भ में आधार के  पौण फिट , डेढ़ फिट व ढाई फिट  ऊँचाई पर एक एक कड़ी  (भूतल से समानंतर) मिलकर  तीन रेलिंग निर्माण करते हैं I जो  ख़ूबसूरत दिखते हैं I
बाकी जगह भवन में विशेष काष्ठ कला अंकित नही हुयी है I
 मकान की छत टिन की है अत: मकान 1940 के बाद ही निर्मित हुआ ह्होगा I
 निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि रांसी गाँव के  इस खूबसूरत भवन में प्राकृतिक , ज्यामितीय व मानवीय (प्रतीक गणेश  मूर्ती ) अलंकरण हुआ हैI
सूचना व फोटो आभार :
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020   
 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्कासी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्कासी  , खिड़कियों में नक्कासी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्कासी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्कासी ,  स्तम्भों  में नक्कासी


Bhishma Kukreti

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  गटकोट   (ढांगू ) में जखमोला परिवार की निमदारी में काष्ठ कला , अलंकरण  अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्कासी  -  171
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल ब्लॉक में गटकोट एक प्राचीन  गाँव है व एक समय यह गढ़ी थी व यहाँ एक कोट  (छोटा किला  भी था।  यहाँ की  कई तिबारियों व निमदारियों  पर पहले चर्चा हो चुकी है।  अभी कुछ तिबारियों पर चर्चा हनी बाकी है. इसी  क्रम में आज  गटकोट   में नारयण दत्त जखमोला व मुनिराम  जखमोला की निम दारी में काष्ठ कला की चर्चा होगी।  कभी  गटकोट  की यह निमदारी में खूब चहल फल   रहती थी  अब उजाड़ पड़ी है। 
  गटकोट में नारायण दत्त , मुनिराम जखमोला की निमदारी   ढांगू   की अन्य निमदारियों जैसी ही है व कला दृष्टि से कोई विशेष अंतर् इस निमदारी में नहीं पाया गया।  दुपुर , दुखंड मकान में निमदारी पहली मंजिल के पत्थर के छज्जे पर लगी है।  निम दारी में आठ  सादे स्तम्भ हैं जो  छज्जे से सीधे मुरिन्ड की कड़ी से मिल जाते हैं।  स्तम्भों पर कोई नक्कासी नहीं हुई है।  एक दरवाजों में  ज्यामितीय कटान हुआ है व पैनल , मूलियन  देखकर  लगता है कि दरवाजा बाद में जोड़ा गया है। 
भवन में कोई विशेष  काष्ठ कला नहीं दिखती है। 
 
सूचना व फोटो आभार : विवेका नंद जखमोला , गटकोट 

यह लेख  भवन  कला,  नक्कासी संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:   वस्तुस्थिति में अंतर      हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली , कोटि बनाल  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्कासी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बनाल   ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्कासी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्कासी  , हिमालय की  भवन काष्ठ कला  नक्कासी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी , नक्स , नक्कासी 

 

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