Author Topic: Some Ideal Village of Uttarakhand - उत्तराखंड राज्य के आदर्श गाव!  (Read 37977 times)

Bhishma Kukreti

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मंगोली (उखीमठ ) में आशाराम नौटियाल  की खोली में काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्कासी


  Traditional House wood Carving Art of   Mangoli , Rudraprayag 

 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्कासी   -  203
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती

 एक बार प्रसिद्ध विद्वान     डा डी  आर.  पुरोहित ने  रुद्रप्रयाग  में प्रचलित कहावत का उद्धरण दिया था ' उठायीं  बीबी अर भ्यूंतळ  कूड़  इकजनी  हूंदन '  . याने कि  रुद्रप्रयाग  में  केवल उबर वाले मकान व बिन खोली के मकानों की सामजिक स्तर पर कोई कीमत नहीं है मंदाकनी घाटी में।  यह मेरे अब तक के  सर्वेक्षण से भी पता चलता है  कि चमोली, रुद्रप्रयाग व कुमाऊं में कलायुक्त खोली बगैर  कूड़  नहीं सोचा जा सकता है।  पौड़ी गढ़वाल में ब्रिटिश काल के अंत या 1900  के लगभग बड़े छज्जों व बाहर से सीढ़ियों का रिवाज बढ़ा तो कलायुक्त खोलियों का रिवाज काम होता गया। 
 आज प्रस्तुत के रुद्रप्रयाग  के उखीमठ क्षेत्र  में मंगोली गाँव में आशाराम नौटियाल  के मकान की खोली  में काष्ठ कला विवेचना।   कला दरसिहति से मंगोली (उखीमठ ) में आशाराम नौटियाल  की खोली उच्च दर्जे की खोली में  अपना स्थान बनाने के सक्षम है। 
 जैसे कि   पश्चमी देहरादून उत्तरकाशी , उत्तरी गढ़वाल व कुमाऊं में खोली निर्माण शैली का प्रचलन है वैसे ही मंगोली के आशाराम नौटियाल के भवन की खोली में दोनों ओर के सिंगाड़ (स्तम्भ) बहु उप स्तम्भों के युग्म से निर्मित  हुए हैं।   मंगोली में आशाराम नौटियाल के भवन की खोली का प्रत्येक सिंगाड़ (स्तम्भ )  आठ उप स्तम्भों के युग्म (जोड़ ) से निर्मित हुआ है जो इस बात का द्योत्तक है कि काष्ठ कलाकार व नौटियाल परिवार बारीक नक्काशी में विश्वास करते थे।   आठों उप स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड की कड़ियाँ बन जाते हैं या मुरिन्ड के स्तर बन जाते हैं ।   बाहर के उप स्तम्भों को छोड़ बाकी स्तम्भों में  लता -पर्ण  (creepers  and  leaves ) का  महीन अंकन  हुआ है और महीन अंकन की प्रशंसा बोल  मुंह में आ ही जाते हैं।   बाहर के उप स्तम्भों के आधार पर उल्टा कमल अंकित है फिर ड्यूल है उसके बाद सुल्टा  कमल दल है व फिर स्तम्भ में धार -गड्ढे आकर अंकन है व स्तम्भ ऊपर की ओर  बढ़ जाते हैं ऊपर उल्टा कमल है फिर स्यूल अंकन है फिर सीधा उर्घ्वगामी कमल फूल  अंकन है व फिर स्तम्भ सीधे हो  ऊपर मुरिन्ड की बाह्य कड़ी बन जाते है।  यहां से स्तम्भों में वानस्पतिक व प्रतीकात्मक (काल्पनिक ) मिश्रित अंकन हुआ है जो मुरिन्ड की कड़ी में भी  दृष्टिगोचर होता है। 
मुरिन्ड केंद्र में  चतुर्भुज, जनेऊधारी  गणेश  (देव प्रतीक )  की मूर्ति अंकित है जो लंगोट में है व पालथी मारे बैठे  हैं  .
मुरिन्ड के ऊपर छप्परिका  आधार है व वहां तीन विशेष सूरज मुखी जैसे बड़े बड़े फूल अंकन हुआ है। 
मुरिन्ड के अगल बगल दोनों ओर  दो दो दीवालगीर (bracket ) हैं।  दोनों ब्रैकेट एक दुसरे की पूरी नकल है।  दीवालगीर  सबसे नीचे तोता अंकित है  व दोनों तोतों के मध्य नीचे पहले अष्ट  दलीय पुश अंकन है तो ऊपर मध्य में  सूरजमुखी का फूल की नक्काशी हुयी है।  तोते के सर के ऊपर  सीधा कमल फूल व उसके ऊपर उलटा कमल दल है व  तीन आधार पट्टिका हैं व सबसे ऊपर की पट्टिका में  दंत युक्त हाथी अंकित हुए हैं। 
निष्कर्ष निकलता है कि  मंगोली (उखीमठ ) में आशाराम नौटियाल  की  भव्य खोली में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय तीनों प्रकार के अलंकरण अंकित हुए है व अंकन महीन है व  अंकन में बहुत ध्यान दिया गया है।  कलाकारों की प्रशंसा वश्य्क है किन्तु अफ़सोस  इस अभिलेखीकरण सूचनाओं में में कलाकारों के बारे में सूचना नहीं मिल रही हैं   
सूचना व फोटो आभार :  प्रसिद्ध रंगकर्मी डा. राकेश भट्ट

  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020   
 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्कासी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्कासी  , खिड़कियों में नक्कासी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्कासी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्कासी ,  स्तम्भों  में नक्कासी


Bhishma Kukreti

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जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में काष्ठ कला अंकन, अलंकरण, लकड़ी नक्काशी


गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्काशी  -  205
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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गंगोलीहाट , पिथौरागढ़  से कई बाखलियों की सूचना मिली हैं।  ऐसे ही ज़ाजार से भी कुछ बाखलियों की सूचना मिलीं हैं।  आज नर  सिंह रावल की बाखली में काष्ठ कला की विवेचना की जाएगी। वास्तव में फोटो बाखली के एक ही हिज्जे की मिल पायी है।  बाखली तिपुर व दुखंड /दुघर है।  मकान का तल घर याने गोठ  शायद अब भी गौशाला रूप में  उपयोग होता है।  मकान की फोटो में  खोली नजर नहीं आ रही जिसका अर्थ है खोली दुसरे हिस्से में स्थापित होगी।
 काष्ठ कला विवेचना  दृष्टि से   जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में  छोटी खिड़की (छोटी मोरी ) व बड़ी मोरियों या छाजों (झरोखों ) में काष्ठ कला पर ध्यान देना होगा। 
  जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की तिपुर बाखली    में तल मंजिल में दो कमरे व दो खिड़कियां  ही फोटो में दृष्टिगोचर हो रहे हैं व उनमें केवल ज्यामितीय कटान के लक्षण दिख रहे हैं। 
  जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली   में पहली मंजिल में दो कमरे  व तीन  छोटी मोरियों /खिड़कियों  झरोखों में  ज्यामितीय कटान है।  पहली मजिल  तीन बड़े  झरोखों /छाजों (मोरियों ) व दूसरी मंजिल में पांच बड़े झरोखों /छज्जों  में कुमाऊंनी  पारंपरिक  काष्ठ  कला के दर्शन होते हैं जो पुरे  कुमाऊं मे सब जगह प्रचलित थे व हैं।  यह कला गर्ब्यांग (धारचूला ) में भी दिखती है तो धानाचूली क्षेत्र में भी दिखती है।    सभी आठों छाजों /झरोखों  में काष्ठ कटान , काष्ठ कला अंकन , नक्काशी सब में एक जैसी है। 
    जैसे कि  कुमाऊं की आम छाजों में प्रचलित शैली है कि छाजों के  सिंगाड़ (स्तम्भ ) जोड़े में या त्रियुग्म या चतुर्युग्म में होते हैं  वैसे ही  जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में सभी छाजों /झरोखों के सिंघाड  (स्तम्भ ) भी  दो दो  स्तम्भों  निर्मित।   आधार  में प्रत्येक उप स्तम्भ कुछ सीधा है पर कुछ ऊपर ही उल्टा कमल दल  अंकित है जिसके ऊपर ड्यूल (ring type wood plate ) है जिसके ऊपर  फूल है व    यहां से उप स्तम्भ सीधा हो ऊपर मुरिन्ड /शीर्ष या abacus   की एक परत बन जाता है।  आधे  स्तम्भ / सिंगाड़ से  अंडाकार ढुढयार (खोह )  का   है।  ढुढ्यार (खोह /छेद )  के नीचे का छेद लकड़ी के पटिले  से बंद है।  लकड़ी के तख्तों  (जो छेद बंद करते हैं )    में ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई कला नहीं दिखी। 
जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली  के पहली मंजिल के खिड़कियों या लघु छाजों /मोरियों  में कोई विशेष  कटान नहीं मिलता है।  जबकि  बाखली के दूसरी  मंजिल की  चौखट नुमा लघु खिड़कियों /छाजों /मोरियों में लकड़ी में तो ज्यामितीय कटान ही मिलता है किन्तु बाहर पत्थर /गारे के अर्द्ध मंडप /मेहराब बने हैं जो इस बात का द्योत्तक  है कि  इस भूभाग पर ब्रिटिश भवन शैली का पूरा प्रभाव पड़ा था। 
 निष्कर्ष निकलता है कि  जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली के इस हिज्जे में ज्यामितीय काष्ठ कला व प्राकृतिक (कमल  फूल ) कला अंकन ही मिलता है व मानवीय /प्रतीकात्मक हुलिया नदारद हैं। 
अब धीरे धीरे संयुक्त परिवार की बाखलियों को तोड़कर  सुविधायुक्त मकान बना रहे हैं या संयुक्त परिवार में बंटवारा संभव न हो तो नए मकान बनवाये जा रहे हैं और तिबारियां व बाखलियाँ जर्जर हो खत्म हो रही हैं।  आधुनिक घर निर्माण व्यवहारिक भी हैं व समय की मांग भी है।  ऐसे में बाखलियों , तिबारियों व निमदरियों का दस्तावेजीकरण आवश्यक हो जाता है।   
*तिपुर = तल मंजिल व 2 और मजिल
**दुखंड /दुख्र या तिभित्या = मकान में एक कमरा आगे व एक पीछे याने तीन भीत (दीवाल )
*** मोरी = खिकड़ी , छाज , झरोखा जिसमे अंडाकार ढुढयार (खोह ) होता है।  यह खोह ढका भी हो सकता है व कभी नीचे ढका हो व्  झरोखा बिन ढक्क्न के भी हो सकता है। 
सूचना व फोटो आभार: राजेंद्र रावल , जाजार
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी ;  House wood art in Pithoragarh


Bhishma Kukreti

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 बुटकोट (जौनपुर ) में गौड़ परिवार की नौखम्या तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्काशी

H
ouse wood Art, Butkot, Tehri
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्काशी  -   206
संकलन - भीष्म कुकरेती  

  टिहरी जनपद के जौनपुर , पल्लीगाड पट्टी  क्षेत्र से  कई भव्य  तिबारियों , निमदारियों की सूचना मिल रही हैं। आज इसी क्रम में 80  वर्ष  पहले बुटकोट (जौनपुर )  में  स्व अनंत राम गौड़ द्वारा निर्मित नौखम्या -अठख्वळ्या (नौ स्तम्भ या आठ ख्वाळ वाली ) भव्य तिबारी में काष्ठ कला अलंकरण अंकन (नक्काशी ) पर चर्चा होगी।   आज  बुटकोट के इस भव्य तिबारी   को लोक गायक मनोज गौड़ की तिबारी नाम से पहचाना जाता है।
   बुटकोट (पल्ली गाड )  के गौड़ परिवार के दुपुर , दुघर (दुखंड ) मकान के पहली मंजिल में नौ सिंगाड़ों (स्तम्भों , खामों ) वाली भव्य तिबारी स्थापित है।  नौ खम्या तिबारी का सीधा अर्थ है कम से कम  चार  कमरों से बने बरामदे पर नौ स्तम्भों  से निर्मित तिबारी  स्थापित है।  मकान में सीढ़ी बाहर से है जिसका अर्थ है खोळी   निर्मित नहीं है या बंद कर दी गयी है।
तिबारी के नौ के नौ खामों।/ सिंगाड़ों/ स्तम्भों  में कटान व कला एक जैसी है।  सभी स्तम्भ /खाम  /सिंगाड़  पत्थर के छज्जे के ऊपर स्थापित देळीदेहरी में आधारित हैं।
प्रत्येक स्तम्भ के आधार में कुछ कुछ चौकोर अधोगामी पद्म पुष्प  दल (उल्टे  कमल फूल की पंखुड़ियां ) से बना है। अधोगामी कमल फूल के ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर सीधा कमल फूल खिला है।  यहां से स्तम्भ /सिंगाड़ लौकी शक्ल ले लेता है व जहां पर स्तम्भ सबसे कम मोटा है  वहां एक उल्टा कमल फूल है जिसके ऊपर सीधा कमल फूल है व यहाँ से सिंगाड़ /स्तम्भ सीधा ऊपर थांत (Cricket bat blade type ) की शक्ल अख्तियार कर मुरिन्ड (शीर्ष ) से मिल जाता है और यहीं थांत  की जड़ से ही मेहराब का आधा भाग शुरू हटा है जो सामने के स्तम्भ के आधे भाग से मिलकर पूरा मेहराब बनता है।  मेहराब या तोरण तिपत्ति शैली (trefoil )में कटा है व इसके बाह्य त्रिभुजों में कोई कला अंकन नहीं दिखती है।
  निष्कर्ष निकलता है बल जौनपुर टिहरी के बुटकोट  में  गौड़ परिवार की नौखम्या -अठख्वळ्या तिबारी भव्य है व  भव्य तिबारी में ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण ही हुआ है।  कहीं भी मानवीय अलंकरण (Figurative ornamnetation )  के चिन्ह नहीं मिलते हैं।   
 
  सूचना व फोटो आभार: जगमोहन सिंह जयाड़ा


 यह आलेख कला संबंधित है , मिलकियत संबंधी नही है I  भागीदारों व हिस्सेदारों के नामों में त्रुटी  संभव है I
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गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी कोटि बनाल     ) काष्ठ  कला  , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  , Koti Banal )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी नक्काशी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ; House Wood carving Art from   Tehri; 


Bhishma Kukreti

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घटुडा  (दशज्यूला कांडई ) में कांडपाल परिवार की तिबारी में काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्काशी

  Traditional House wood Carving Art of Ghatuda , Dashjyula  Kandayi ,  Rudraprayag   
 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्काशी-207   - 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  रुद्रप्रयाग तिबारियों के लिए प्रसिद्ध गाँव माना जायेगा।  आज इसी क्रम में  घटुडा  (दशज्यूला कांडई ), तल्ला नागपुर (रुद्रप्रयाग ) में  ज्योतिषाचार्य स्व . अम्बा दत्त कांडपाल द्वारा निर्मित  तिबारी  में काष्ठ  कला अंकन की चर्चा की जायेगी।  मकान दुपुर , दुखंड ( दुघर /तिभित्या ) है व खोलीदार है।  चूँकि खोली की फोटो नहीं मिल सकी है अतः   पहली मंजिल में स्थापित तिबारी की ही विवेचना होगी।  तिबारी चौखम्या , तिख्वळ्या  (चार स्तम्भ /सिंगाड़ व तीन ख्वाळ ) है। मकान का  स्व  . अम्बा दत्त कांडपाल के पोते स्व सच्चिदा नंद कांडपाल ने जीर्णोद्धार कराया व पुरानी तिबारी को बिठाया .
प्रत्येक सिंगाड़ (स्तम्भ , खाम )  छज्जे के ऊपर  स्थित देळी (देहरी ) पर स्थित है।  सिंगाड़  (स्तम्भ ) के आधार की कुम्भी उल्टे कमल पंखुड़ियों से बनी है , कुम्भी के ऊपर  ड्यूल है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी (सीधा ) कमल दल है।  कमल की पंखुड़ियों के ऊपर  बेल बूटे अंकित हैं।  सीधे कमल फूल के ऊपर सिंगाड़ (स्तम्भ ) लौकी नुमा शक्ल अख्तियार करते ऊपर चलता है. इस दौरान स्तम्भ में धार -गड्ढे (fuet -flitted ) नक्कासी है व गड्ढों पर पर्ण -लता  अंकन हुआ है।  जहां सिंगाड़ (स्तम्भ ) की सबसे कम मोटाई है  वहां अलंकृत     उल्टा कमल दल है , उसके ऊपर ड्यूल हैं  उसके ऊपर सीधा  अलंकरकिट कमल दल  है ाव व   अलंकृत कमल दल के ऊपर आधार है।  इस आधार से  सिंगाड़ (स्तम्भ ) दो भागों में बंट जाता है।  एक भाग सीधा थांत (cricket bat  blade नुमा )  की शक्ल ले लेता है और सीधा मुरिन्ड (शीर्ष कड़ी ) से मिल जाता है।   घटुडा  (दशज्यूला कांडई ) में कांडपाल परिवार की तिबारी में एक विशेषता (Ecxusivity ) पायी गयी कि थांत के किनारे भी एक एक अंकनयुक्त स्तम्भ है।  थांत   के दोनों किनारों के स्तम्भ  आकार में लघु हैं किंतु  कला अंकन में दीर्घ स्तम्भों की हू बहु नकल  (true  copy  ) हैं।   जहां से थांत शुरू होता है वहीँ से  सिंगाड़ स्तम्भ  का आधा मेहराब अर्ध चाप शुरू होता है जो सामने वाले स्तम्भ के अर्धचाप से मिलकर पूरा मेहराब बनाया है। मेहराब  तिपत्ति नुमा (trefoil ) है व द्वि तलीय है।  मेहराब के ऊपर दोनों त्रिभुजों के किनारे पर एक गेंदा का फूल अंकित है व त्रिभुज में एक चिड़िया फूल को  चोंच से  छूती आकृति भी अंकित है।  चिड़िया की पूँछ मोर की पूँछ जैसे लम्बी है। 
    घटुडा  (दशज्यूला कांडई ) में कांडपाल परिवार की तिबारी  के मुरिन्ड (शीर्ष  ) की कड़ी में पर्ण -लता अलंकरण अंकन हुआ है।
 निष्कर्ष निकलता है कि  घटुडा  (दशज्यूला कांडई ) में   स्व अम्बा दत्त कांडपाल  द्वारा निर्मित तिबारी  में सभी तरह के  तीनो ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण अंकित हुए हैं।   
अब  स्व अम्बा दत्त कांडपाल के पड़पोते अनिल कांडपाल  मकान की देखरेख कर रहे हैं। 
सूचना व फोटो आभार: अनिल कांडपाल, घटुडा
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
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 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्काशी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्काशी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्काशी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्काशी  , खिड़कियों में नक्काशी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्काशी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्काशी ,  स्तम्भों  में नक्काशी

Bhishma Kukreti

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गटकोट (ढांगू ) में गुठ्यार सिंह रावत की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन, लकड़ी पर नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, लकड़ी  नक्काशी  -  204
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल ब्लॉक में गटकोट एक कृषि समृद्ध गांव रहा है और  गटकोट में समृद्धि प्रतीक  तिबारियों व निमदारियों   की संख्या भी अच्छी खासी है।  इसी क्रम में आज गटकोट के ठाकुर गुठ्यार सिंह रावत की अपने समय की  भव्य तिबारी  की काष्ठ कला अंकन पर चर्चा होगी। ]
गटकोट में गुठ्यार सिंह रावत का मकान दुपुर , दुखंड (दुघर ) मकान है व तिबारी पहली मंजिल में स्थापित है। 
  गटकोट में गुठ्यार सिंह रावत   की तिबारी चौ खम्या  (चार स्तम्भ ) व तिख्वळ्या (तीन ख्वाळ /द्वार )   तिबारी है।  गटकोट में गुठ्यार सिंह रावत   की तिबारी पत्थर के छज्जे के ऊपर पत्थर की देळी (देहरी )  के ऊपर स्थापित है।   तिबारी के चारों सिंगाड़ (   स्तम्भ  ) पत्थर के डौळ  के ऊपर स्थापित हैं।  तिबारी में प्रत्येक स्तम्भ के आधार में  कुम्भी या दबल आकर है जो उल्टे कमल पंखुड़ियों से बना है,  उसके ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी  (सीधा ) कमल पंखुड़ियां अंकित हैं।  यहां से सिंगाड़  (स्तम्भ)  लौकी आकार अख्तियार कर लेता है व इसमें उभर -गड्ढे  Fulet -fillet ) का अंकन शुरू हो जाता है  जहां पर सिंगाड़   (स्तम्भ) सबसे कम मोटा है वहां पर उल्टा कमल पुष्प है , इस उलटे कमल के ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर खिलता कमल पुष्प अंकित है।  खिलते कमल पुष्ट से सिंगाड़ (स्तम्भ ) दो भागों में बंट जाता है।  सिंगाड़ का एक भाग सीधा  ऊपर  जाते हुए थांत (cricket bat blade type  )  आकर धारण कर लेता है व  दूसरी ओर  से बहु परतीय मेहराब का अर्ध मंडप शुरू होता है जो सामने वाले सिंगाड़ (स्तम्भ) के अर्ध मंडप से मिलकर पूर्ण मेहराब  (तोरणम ) बनता है।  मेहराब तिपत्ति नुमा व  बहुपरतीय है।  मेहराब की परतों में लता -पर्ण (बेल बूटे ) अंकन हुआ है।  मेहराब के बाहर के  त्रिभुजों के दोनों किनारे पर बहुदलीय सूरजमुखी समान फूल है व त्रिभुजों में हाथी सूंड की आकृति भी खुदी हैं।  मुरिन्ड (शीर्ष ) बहुपरतीय कड़ियों एवं पट्टिका से निर्मित है व  कड़ियों व पट्टिका में वानस्पतिक व ज्यामितीय  अलंकरण अंकन हुआ है। 
मकान के छत आधार पट्टिका से प्रत्येक सिंगाड़  के थांत आकार के ऊपर तक दीवालगीर  (brackets ) हैं।  प्रत्येक दीवालगीर में चिड़िया की चोंच व पुष्प प्राग नाभि आकृति की नक्काशी हुयी है व सभी आकृतियां भव्य रूप में हैं। 
निष्कर्ष निकलता है कि  गटकोट में  ठाकुर गुठ्यार सिंह रावत की भव्य तिबारी में मानवीय अलंकरण कम है या  प्रतीकात्मक  रूप में है या आभासी है किन्तु ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण का भरपूर प्रयोग हुआ है व सभी अंकन आकर्षक हैं। 
सूचना व फोटो आभार: विवेका नंद जखमोला
यह लेख  भवन  कला,  नक्काशी संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:   वस्तुस्थिति में अंतर      हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली , कोटि बनाल  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्काशी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बनाल   ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्काशी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्काशी  , हिमालय की  भवन काष्ठ कला  नक्काशी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्काशी , नक्श , नक्काशी 


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उरेगी  (पौड़ी ) के एक भव्य निमदारी में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी- 208 

 संकलन - भीष्म कुकरेती
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पौड़ी तहसील के पैडळस्यूं पट्टी  के उरेगी गांव से एक  भव्य किस्म की निमदारी की  सूचना व फोटो मिली है जिस पर आज चर्चा होगी।   पंदरा खम्या  निमदारी  ढैपुर, दुखंड /दुघर  मकान के पहली मंजिल में स्थापित है।  निमदारी लम्बी व भव्य है। लम्बाई से ही नहीं  अपितु निमदारी  के स्तम्भों में कला भी भव्य है।  मकान का छज्जा चौड़ा है व छज्जे के बाहर  निमदारी निर्माण हेतु 1 5  या अधिक स्तम्भ जड़े गए हैं।  प्रत्येक स्तम्भ का  आधार  चौकोर व मोटा है व दोनों ओर एक पट्टिका  भी लगाई गयी है।  चौकोर आधार के ऊपर एक उल्टा  कमल दल आकर में एक कुम्भी है जिसके ऊपर ड्यूल  है व उसके ऊपर सीधा कमल दल है व यहाँ से खाम /स्तम्भ षटकार आकर  में  ऊपर बढ़ता है व फिर कुछ ऊपर उल्टा कमल दल है जिसके ऊपर ड्यूल व  फिर सीधा मकल दल है। यहां से स्तम्भ वही आकर ले लेता है जो आधार पर है।   स्तम्भ एक लम्बी कड़ी से मिल जाते हैं।  कड़ी ठोस है व शीर्ष /मथिण्ड कड़ी में केवल ज्यामितीय कटान हुआ है। 
    निमदारी के आधार पे एक डेढ़ फिट में एक जंगला बंधा है जिसके  तीनों रेलिंग बड़े ठोस हैं व तीनो रेलिंग के मध्य दो दो  मध्य लघु स्तम्भ  (baluster ) हैं जो  ओरिजिनल  निमदारी में हुक्का की नै की आकृति लिए हुए थे ।  अब  कहीं कहीं  निमदारी में  बदलाव  किया गया  है तो baluster /लघु स्तम्भों में भी  बदलाव किया गया  है। 
   पौड़ी गढ़वाल जनपद में उरेगी (पैडळस्यूं , पौड़ी तहसील ) की यह भव्य निमदारी ढैपुर  मकान , कलायुक्त बड़े व छोटे स्तम्भों के कारण भव्य बन पडी है। 
सूचना व फोटो आभार:पंकज गुसाईं
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में  अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखल जारी रहेगी   - 
 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श

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 रडुवा (चमोली ) में बर्तवाल परिवार की निमदारी में काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी


गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी  - 209

(अलंकरण व कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 चमोली गढ़वाल  के पोखरी  क्षेत्र में  रडुवा गाँव से कुछ तिबारियों व निमदारियों  की सूचना मिली हैं। 
आज रडुवा में बर्तवाल  परिवार की निमदारी में काष्ठ  कला पर चर्चा होगी।   बर्तवाल परिवार की निमदारी  ढैपुर , दुघर मकान की पहली मंजिल में स्थापित हुयी है।  रडुवा के  बर्तवाल परिवार की निमदारी कम लम्बाई की है किंतु  दर्शनीय है।  निमदारी छैखम्या   (चार स्तम्भ  सामने व दो अगल बगल में ) की है।  स्तम्भ का आधार मोटा है।  स्तम्भ के ऊपर दो स्थलों में ज्यामितीय कटान हुए हैं जो आकर्षक हैं।
 बर्तवाल  परिवार की निमदारी   आधार के डेढ़ -दो फिट में दो रेलिंग हैं जिनके XI X I  आकृति अंकन हुआ है।  बाकी मकान में कोई विशेष कला प्रदर्शन नहीं हुआ है।
सूचना व फोटो आभार : राजेंद्र सिंह कुंवर फरियादी
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्काशी श्रंखला जारी   
   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला,नक्काशी ;  नीति,   घाटी में भवन काष्ठ  कला, नक्काशी  ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्काशी , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्काशी श्रृंखला जारी  रहेगी


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कांडे  (कुमाऊं ) में भवानी दत्त कांडपाल की बाखली में  काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी 

 कुमाऊँ , गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी - 208
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 द्वारहाट (अल्मोड़ा , कुमाऊं ) से कई बाखलियों व पुराने शैली के भवनों की सूचना मिली हैं जो गवाह हैं कि  द्वारहाट कुमाऊं संस्कृति का संवाहक रहा है।  आज द्वारहाट क्षेत्र के कांडे गाँव में भवानी दत्त कांडपाल की बाखली में काष्ठ कला पर चर्चा की जाएगी।
  कांडे  (कुमाऊं ) में भवानी दत्त कांडपाल की बाखली  दुपुर , दुघर मकान ही हाँ।   कांडे  (कुमाऊं ) में भवानी दत्त कांडपाल की बाखली  में काष्ठ कला विवेचना हेतु  बड़े छाजों (झरोखों )  , खोली, छोटे मोरियों /खिड़कियों या छाजों /झरोखों  व कमरों के  स्तम्भ व दरवाजों पर टक्क लगानी पड़ेगी।
  कांडे  (कुमाऊं ) में भवानी दत्त कांडपाल की बाखली की खोली तल मंजिल से ऊपर पहली मंजिल  तक पंहुची है।  खोली के दोनों सिंगाड़ /स्तम्भ उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से निर्मित हैं।  लघु स्तम्भ के आधार पर  उलटा कमल दल आकार में कुम्भी है फिर ड्यूल है व फिर सीधा कमल दल है इसके बाद स्तम्भ कलायुक्त सीधा हो ऊपर खोली के मुरिन्ड के एक तह बन जाते हैं।  सभी  लघु स्तम्भों में एक ही जैसे संरचना मिलती है।  खोली के मुरिन्ड या शीर्ष में देव आकृति स्थापित है।   खली भव्य है।  मुरिन्ड के ऊपर छप्परिका  से  शंकु  आकृतियां लटक रहे हैं।
 पहली मंजिल में खोली के ऊपरी भाग  के डॉन ओर  आजु -बाजू बड़े बड़े छाज /झरोखे स्थापित हैं और इन छाजों /झरोखों की काष्ठ कला प्रसंशसनीय है।   छाजों के दोनों ओर के सिंगाड़  तीन तीन उप स्तम्भों के जोड़ से बने हैं।  कला दृष्टि से छाज का  प्रत्येक लघु स्तम्भ बिलकुल खोली के लघु स्तम्भों की नकल ही है।  प्रत्येक लघु स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड।/शीर्ष की एक एक तह layer  बनाते हैं। चाजों के मुरिन्ड चौखट हैं व  कुछ तहों की कड़ियों  में पर्ण -लता आकृति अंकन हुआ है।  छज्जों /झरोखों के दरवाजों पर ज्याकीतीय कटान हुआ है। 
  कांडे  (कुमाऊं ) में भवानी दत्त कांडपाल की बाखली  के बाकी हिज्जे याने तल मंजिल के कमरों में ज्यामितीय कटान छोड़ विशेष  अंकन नहीं हुआ है।  छोटी छाजों  की  सूचना उपलब्ध नहीं है।
निष्कर्ष निकलता है कि   कांडे  (कुमाऊं ) में भवानी दत्त कांडपाल की बाखली  भव्य है व  बाखली में तीनों तरह के  ज्यामितीय , प्राकृतिक व माविय अलंकरण युक्त अंकन हुआ है
आज भवन की देखरेख दिनेश कांडपाल कर रहे हैं व उनके अनुसार भवन 1910  के लगभग निर्मित हुआ व स्थानीय शिल्पकारों ने ही निर्माण किया था। 
सूचना व फोटो आभार: दिनेश कांडपाल
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली, कोटि  बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्काशी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला  , पिथोरागढ़  में  बाखली   काष्ठ कला ; चम्पावत में  बाखली    काष्ठ कला ; उधम सिंह नगर में  बाखली नक्काशी  ;     काष्ठ कला ;; नैनीताल  में  बाखली  नक्काशी   ;
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of Garhwal , Kumaun , Uttarakhand , Himalaya  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Almora Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Nainital   Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Pithoragarh Kumaon , Uttarakhand ;  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Udham Singh  Nagar Kumaon , Uttarakhand ;    कुमाऊं  में बाखली में नक्काशी  ,  ,  मोरी में नक्काशी  , मकानों में नक्काशी   ; कुमाऊं की बाखलियों में लकड़ी नक्काशी  ,  कुमाऊं की बाखली में काष्ठ कला व   अलंकरण , कुमाओं की मोरियों में नक्काशी   श्रृंखला जारी  रहेगी   ...


Bhishma Kukreti

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बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल  की भव्य तिबारी व खोळी में लोक कला

 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्काशी- 209  - 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 कई बार कहा जा चुका है कि रुद्रप्रयाग तिबारियों व खोलियों हेतु भाग्यशाली जिला है।  इसी क्रम में  आज रुद्रप्रयाग के दशज्यूला क्षेत्र के  स्व प्रेम पति कांडपाल द्वारा सन 1945 में निर्मित  कलायुक्त -भव्य तिबारी , खोली व छज्जे  के नीचे अंकित की कलाओं के बारे में चर्चा करेंगे।  आज यह मकान उमा दत्त कांडपाल का मकान के नाम   से जाना जाता है। मकान क्वीली के शिल्पकारों द्वारा निर्मित हुआ है। 
   बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल  के भव्य मकान में लोक कला अध्ययन व विवेचना हेतु  छज्जे के दासों (ओढ़ी /सीरा ) के मध्य विभिन्न प्रकारों की आकृति अंकन , खोली में कलायुक्त अंकन , खोली के ऊपरी भाग के अगल -बगल में कलायुक्त  अंकन और तिबारी में काष्ठ कला अंकन व अलंकरण का अध्ययन  आवश्यक है। 
   1 - बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल  के मकान में तल मंजिल में  छज्जे के दासों के मध्य कला अंकन :-
      बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल  के मकान में  तल मंजिल में छज्जे के नीचे आधार देने वाले  दास (ओढ़ी /सीरा ) भी कला युक्त हैं व चिड़िया चोंच व पुष्प केशर नाभि (केला के  फूल का आभास ) आकर के हैं।  इन कलायुक्त प्रत्येक दो  दासों (ओढ़ी /सीरा ) के मध्य चौखट  आकृति में मानवीय वा प्राकृतिक आकृतियां अंकित हैं।  इन आकृतियों में दो जगह प्रतीकात्मक आकृतियां पूजन समय चौकी  की ग्रह  आकृतियां , स्वास्तिक , दो जगहों में गाय  व तीर के पश्च भाग में  पत्ती  आकृति वा एक  चौखट में देव आकृति   अंकन हुआ है।  इस तरह की  दासों के मध्य चौखट में इस प्रकार भव्य कला  अंकन अब तक के भवनों में लोक कला  सर्वेक्षण में पहली बार मिला है।
  २ --- बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल के मकान में खोली में कला अंकन , अलंकरण व  नक्काशी :-
  बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल   के मकान की खोली में  उत्तम श्रेणी की कला अंकन , अलंकरण व नक्काशी  हुयी है।  खोळी   (पहली मंजिल में जान हेतु आंतरिक प्रवेश द्वार )  के दोनों ओर दीवार की चौखट कलायुक्त है।  खोळी  का प्रत्येक  सिंगाड़ /स्तम्भ  तीन उप सिंगाड़ों /स्तम्भों के युग्म से निर्मित हुआ है।  दीवार से सटे किनारे के दोनों उपस्तम्भों में आधार पर  उल्टा कमल , ड्यूल , सीधा कमल फिर ड्यूल व फिर सीधा कमल है व यहां से उप स्तम्भ लम्बोतर व धार -गड्ढे की आकृति में ऊपर चलता है व फिर उल्टा कमल अंकन मिलता है , उल्टे कमल के ऊपर ड्यूल है।  फिर ऊपर सीधे कमल से दबल /घट  आकृति लिए है जिसके ऊपर लम्बोतर सीधा  कमल  फूल है , फिर उल्टा कमल फूल है व ड्यूल है जिसके ऊपर सीधा कमल फूल है व यहां से दोनों उप स्तम्भ  सीधी ऊपर जाकर मुरिन्ड (शीर्ष कड़ी ) की एक तह (layer ) बन जाते हैं।   दरवाजे की और के अंदर के दोनों उपस्तम्भ भी एक सामान हैं।  दरवाजों की और अंदर के उप स्तम्भ का आधार वैसे ही है जैसे दीवार से स्टे उप स्तम्भ हैं।  दरवाजे से  सटे उप स्तम्भ में बदलाव यह है कि सीधे कमल  के फूल के बाद उप स्तम्भ सीधा ऊपर जाता है व मुरिन्ड की दो तह (layer ) बनाता है इस दौरान स्तम्भ कड़ी में पर्ण -लता अंकन हुआ है।  इन दो उप स्तम्भों के बीच एक उप स्तम्भ और है जो आधार में उल्टे कमल फूल के ऊपर ड्यूल से ही सीधा कड़ी बनकर  ऊपर जाकर  मुरिन्ड की कई तहों (layers ) में परिवर्तित हो जाता है। 
 ३-  बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल   के मकान की खोळी के मुरिन्ड में पालथी मारे चतुर्भुज  गणेश आकृति स्थापित है व गणेश के हाथ में कमल फूल व हथियार दीखते हैं।
  ४ -- बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल   के मकान की खोली के अगल -बगल  में कला अंकन , अलंकरण :-
  बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल   के मकान की खोळी  के ऊपरी हिस्से में  दोनों ओर चौखट हैं व प्रत्येक चौखट के बाहरी ओर  दो दो दास हैं जिनके ऊपर  हाथी आकृति स्थापित है।  इन  दासों के मध्य चौखट है जिनके चरों ओर के फ्रेम में वानस्पतिक याने बेल बूटों का अंकन हुआ है।  फ्रेम के अंदर  मेहराब /तोरण /arch  अंकन है व तोरण के अंदर कमल पुष्प लिए मुकुटधारी , साड़ी में लक्ष्मी आकृति अंकन हुआ है।  बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल  खोळी  के ऊपर छज्जा आधार से शंकु लटके हैं जी गाय या भैंस के स्तन जैसे आकृति के हैं। 
  ५ बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल   के मकान के तल मंजिल के कमरों  के मुरिन्ड  में  बहु दलीय  पुष्पों का अंकन हुआ है। 
 ६  -बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल   के मकान की तिबारी में कला अंकन , अलंकरण , नक्काशी :-
  बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल  के मकान की तिबारी भी विशेष तिबारी की श्रेणी में आएगी।  तिबारी चौखम्या व तीन ख्वळ्या    (चार स्तम्भ /सिंगाड  व तीन ख्वाल ) है।  तिबारी में मेहराब है व ऊपर प्रत्येक त्रिभुज  में एक चिड़िया , दो अष्ट दलीय पुष्प व बेल बूटों  का अंकन हुआ है।
     तिबारी के प्रत्येक सिंगाड /स्तम्भ  चार चार उप स्तम्भों के जोड़ से बने हैं इस तरह तिबारी में कुल सोलह उप स्तम्भ हैं।  प्रत्येक उप स्तम्भ छज्जे ऊपर  देहरी में स्थापित डौळ  के ऊपर स्थित हैं।  उप स्तम्भ के आधार में उल्टा कमल से घट /दबल  आकृति बनती है व उल्टे कमल दल के ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर बड़ा लम्बा सीधा कमल फूल आकृति अंकित है व यहां से स्तम्भ लौकी आकर ले लेता है।   इसआकृति में  में स्तम्भ में धार -गड्ढे (fuet -flitted  ) का कटान हुआ है।  जहां पर स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है वहां    उल्टा  कमल फूल ुंभर कर आया है जिसके ऊपर ड्यूल है व उसके ऊपर  कुछ कुछ साहूकार रूपी सीधा कमल दल है।  चरों सीधे कमल दलों  के ऊपर एक  चौकोर आसान स्थापित है जहां से मेहराब निकलते हैं व स्तम्भ का आकर दो थांत  (Cricket bat blade ) का आकर धारण कर ऊपर मुरिन्ड से मिल मुरिन्ड की कड़ी बन जाते हैं , मुरिन्ड की कड़ी व उसके ऊपर की कड़ी में बेल बूटों की नक्काशी हुयी है। 
मुरिन्ड के ऊपर छत के काष्ठ आधार से कई शंकु लटके हैं व ाँकि आकृति गे -भैंस के स्तन  /दुदल जैसे हैं। 
   निष्कर्ष निकलता है कि बैंजी कांडई (रुद्रप्रयाग ) में उमा दत्त कांडपाल  के मकान की खोळी , खोळी  के अगल बगल , दासों (ओढ़ियों। सीरा )  के अगल बगल के चौखट में , व तिबारी में उच्च श्रेणी की ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय कला अलंकरण  अंकन हुआ है।   मकान  शानदार नक्काशी का उम्दा  नमूना है   
सूचना व फोटो आभार: किशोर कांडपाल
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020   
 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्काशी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्काशी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्काशी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ लोक कला अंकन, नक्काशी  , खिड़कियों में नक्काशी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्काशी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्काशी ,  स्तम्भों  में नक्काशी

Bhishma Kukreti

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    सुकई  ( पौड़ी गढ़वाल ) में रावत सूबेदारुं तिबारियों व खोळी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी

 बंगारस्यूं (पौड़ी गढ़वाल ) में काष्ठबंगार कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी भाग --- 3 
गढ़वाल, कुमाऊँ, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी -  211
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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बंगारस्यूं (पौड़ी गढ़वाल ) में सुकई  गाँव थोकदारों व सैनिकों  के लिए  प्रसिद्ध गाँव है।  सुकई गाँव से कई तिबारियों व खोलियों की जानकारी मिली है।   आज   सुकई के रावत सूबेदारुं तिबारी  व खोळी में काष्ठ  कला  व अलंकरण पर चर्चा होगी।  सुकई के रावत सूबेदारुं मकान दुपुर , दुघर मकान है।  इस मकान में दो तिबारियां व उनके मध्य खोळी स्थापित है। सुकई के रावत सूबेदारुं तिबारी  व खोळी  दोनों भव्य हैं। 
     खोळी  (आंतरिक प्रवेश द्वार ) तल मंजिल से   पहली मंजिल तक है।   खोळी के दोनों ओर  सिंगाड़ /स्तम्भ हैं व प्रत्येक सिंगाड़ /स्तम्भ चार  उप स्तम्भों के युग्म (जोड़ ) से बी बना है।  चार उप स्तम्भों में से दो   सीधे तलसे ऊपर मुरिन्ड के तह /layer बनाते हैं व इन उप स्तम्भों में  बेल बूटों का अंकन हुआ है।  बाकी दो स्तम्भ आम तिबारियों के स्तम्भ जैसे हैं कि तल में आधार में उल्टे कमल फूल से कुम्भी , कुम्भी के ऊपर ड्यूल व फिर सीधा खिला कमल फूल यहां से उप स्तम्भ लौकी शक्ल ले ऊपर चलते हैं व जहां  सबसे कम मोटाई है वहां उल्टा कमल फूल है फिर ड्यूल है उसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल है।  वहां से उप स्तम्भ  सीधा हो ऊपर मुरिन्ड की तह बनाते हैं। 
खोळी के मुरिन्ड बहुस्तरीय है व सब कड़ियों में प्राकृतिक अलंकरण हुआ है।  मुरिन्ड में एक चौखट है जिसमे तोरण बना है व तोरण  के अंदर गणपति की मूर्ति स्थापित है। तोरण  से बाहर के त्रिभुजों में एक एक बहुदलीय फूल   अंकित हैं चौखट एम् खाली जगह में जालीदार आकृतियां अंकित हैं।
मुरिन्ड के अगल बगल में छप्परिका  के आधार से लग क्र नीचे मुरिन्ड तक  तीन तीन दीवारगीर (bracket )  हैं।  प्रत्येक दीवारगीर में सात गट्टे स्थापित हैं व ऊपर आसन है जिसमे एक एक हाथी मूर्ति  स्थापित है।  इस तरह कुल छह हाथियों की मूर्तियां स्थापित हैं। 
 छप्परिका  आधार से  शंकु नुमा  40 -50  काष्ठ आकृतियां  दो पंक्तियों में लटकी  हैं।
  सुकई के रावत सूबेदारुं के भव्य मकान में पहली मंजिल  पर  खोळी  के दोनों ओर एक एक तिबारी स्थापित है।  दोनों तिबारियां आकार व कला अलंकरण दृष्टि से इकजनि हैं।  दोनों भव्य तिबारियां चौखम्या  व तिख्वळ्या (चार स्तम्भ व तीन ख्वाळ ) हैं। 
प्रत्येक स्तम्भ पाषाण छज्जे पर स्थित  देहरी पर चौकोर पाषाण डौळ  के ऊपर स्थापित हैं।  सिंगाड़ /स्तम्भ के  आधार पर  चौकोर कुम्भी है जो उल्टे कमल फूल से बना है , कुम्भी के ऊपर ड्यूल है , ड्यूल के ऊपर सीधा खिला कमल फूल आकृति अंकित है व यहां से स्तम्भ लौकी रूप धारण कर ऊपर बढ़ता है।  जहां पर स्तम्भ की सबसे कम मोटाई है वहां पर  कमल जैसा ड्यूल आकृति अंकित है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी कमल पुष्प अंकित है।  यहाँ पर कमल फूल से स्तम्भ सीधा  चौकोर थांत आकृति धारण कर  ऊपर मुरिन्ड की कड़ी से मिल जाता है।
जहां से थांत आकृति  शुरू होती है  वहां  से स्तम्भ से मेहराब का आधा चाप शुरू होता है जो सामने के स्तम्भ के आधे चाप से मिल पूरा मेहराब बनाते हैं। मेहराब  तिपत्ति  (trefoil ) रूपी हैं।  प्रत्येक मेहराब के बाहरी त्रिभुजों में बेल बूटे व  प्रत्येक त्रिभुज के किनारे एक एक बहुदलीय फूल अंकित हैं। 
  मुरिन्ड  अलंकृत कई स्तर की कड़ियों से निर्मित है। दोनों तिबारियों के   मुरिन्ड के किनारे एक एक हाथी आकृति अंकित है।
  निष्कर्ष निकलता है कि पौड़ी गढ़वाल के बीरों खाल के बंगार स्यूं  पट्टी  में  सुकई गाँव में रावत सूबेदारुं के भव्य मकान की  दो तिबारियों  व भव्य खोळी में   ज्यामितीय कटान , प्राकृतिक व माविय कला अलंकरण अंकन हुआ है व नक़्काशु उम्दा किस्म की नक्काशी हुयी है। 
   सूचना अनुसार वर्तमान में जितेंद्र रावत मकान के मालिक हैं।

सूचना व फोटो आभार: संतन सिंह रावत
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी   - 
 

 

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