Author Topic: Some Ideal Village of Uttarakhand - उत्तराखंड राज्य के आदर्श गाव!  (Read 37898 times)

Bhishma Kukreti

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बजारी कठूड़ में विद्या दत्त  कुकरेती  की तिबारी की काष्ठ कला
 
बजारी कठूड़ , ढांगू गढ़वाल ,संदर्भ में   हिमालय  की तिबारियों पर काष्ठ उत्कीर्णन अंकन कला-  6
 
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  हिमालय की भवन ( तिबारी )  काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 10   
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(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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     ढांगू में क्षेत्रफल व जनसंख्या दृष्टि से  बजारी कठूड़ एक बड़ा गाँव है।  यहां की तिबारियों के मामले  में 6 तिबारियों  के बारे में  सूचनाएं व छायाचित्र सतीश कुकरेती ने भेजी हैं।  इनमे से एक तिबारी की फोटो व सूचना टंखी राम कुकरेती की तिबारी के बारे में भी मिली है  .   
 बजारी कठूड़ (मल्ला ढांगू , गढ़वाल, हिमालय ) के विद्या दत्त  की तिबारी कम भव्य तिबारी है। 
तिबारी में चार स्तम्भ हैं व ये चरों स्तम्भ तीन खोली /द्वार बनती हैं।  दो स्तम्भ दिवार से लगीं है।
   प्रत्येक काष्ठ स्तम्भ पत्थर के छज्जे पर स्थापित  हैं व आधार पर उल्टा कमल पुष्पदल दृष्टिगोचर होता है , फिर बीच में चारों ओर गोलाई लिए गुटके हैं।  गोल गुटका नुमा आकृति से स्तम्भ में फिर से ऊर्घ्वाकार (ऊपर उठता ) कमल पुष्पदल दृष्टिगोचर होते है और इस कमल पुष्प आकृति के बाद स्तंभ सीधा ऊपर चलता है व छत के नीची चौकोर पट्टियों से मिल जाते हैं।  छत की पट्टी व कमलाकृति पुष्प के मध्य काष्ठ स्तम्भ में बेल बूटा नुमा आकृतियां अंकित है।  छत के नीचे भी चार काष्ठ पट्टियां हैं जिन पर वनस्पति की आकृतियां अंकित है। छत के नीची चार समानंतर चित्रकारी वाली पट्टियां दिखती हैं। 
    विद्या दत्त  कुकरेती की काष्ठ तिबारी  की मुख्य विशेषता है कि इस तिबारी में कोई मेहराब (arch ) नहीं है जो इस तिबारी को भव्यता दे सके। 
    स्तम्भों व ऊपर पट्टियों में बारीक कला युक्त अंकन हुआ है।  किसी भी भाग में पशु , पक्षी अंकन नहीं दीखता है व कमल को छोड़ कोई   चक्राकार आकर में पुष्पदल  भी अंकित नहीं हुआ है जो अधिकतर ढांगू अन्य तिबारियों में मिलता है।     विद्या दत्त कुकरेती की तिबारी व टंखी राम कुकरेती की तिबारियों में साम्यता है
 तिबारी को काष्ठ  उत्कीर्णन कला दृष्टि से विद्या दत्त कुकरेती की तिबारी साधारण तिबारी ही कहा जायेगा। 
    अनुमान है कि ऐसी तिबारियों का निर्माण प्रचलन अधिकतर 1940 के पश्चात ही शुरू हुआ। 
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सूचना व फोटो आभार - सतीश कुकरेती (कठूड़ )
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Copyright @ Bhishma Kukreti ,26 1/  2020
House Wood Carving Art of, Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

Bhishma Kukreti

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बजारी कठूड़ में बासवा नंद कुकरेती ' पटवारी जी '  की जगलादार तिबारी में   में काष्ठ कला     
ठूड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों पर अंकन कला -5
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    उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -   9
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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    बजारी कठूड़ के बासवा नंद कुकरेती पटवारी पद पर थे व प्रसिद्ध व्यक्ति थे।  बासवा नंद कुकरेती 'पटवारी जी ' ने एक मकान बनवाया जिसमे बैठक भी थी व काष्ठ कलाकृति उत्कृणित हिन् व यह मकान जंगलेदार माकन की श्रेणी में आता है और जब कि इस मकान में मेहराब भी हैं।
     पहली मंजिल पर बैठक भी है व सीढ़ियां अंदर से ही पहली मंजिल में पंहुची हैं।  तल मंजिल में  कमरों के दरवाजों पर बेल बूटों का अंकन आज भी साफ़ साफ़ दिकता है। 
पहली मंजिल का छज्जा पत्थर के दासों (टोड़ी ) पर ठीके हैं।  पहली मंजिल के छज्जे पर जंगल है।  छज्जों के दासों से शुतु होते इस जंगल में 11 काष्ठ स्तम्भ हैं।  और ये 11 स्तम्भ 10 खोली /मोरी /द्द्वार बनाते हैं। 
 जंगला स्तम्भ का आधार जो तल मंजिल के दास (टोड़ी जो काष्ठ के हैं ) से शुरू होता है व   चौकोर  , आयताकार मोटा आधार है।  फिर जब यह आधार समाप्त होता है तो उसी में जंगलों के बेलन हैं।  जब आधार समाप्त होता है तो स्तम्भ का उल्टा कमल पुष्प दल मिलता है व फिर इस उल्टे पुष्प व ऊपर ऊर्घ्वाकार कमल दाल के मध्य गुटके वाला गोला आकर स्थापित है।  इस गुटका नुमा आकृति से ऊर्घ्वाकर कमल पुष्प दल शुरू होता और पुष्प दलान्त से स्तम्भ गोलाई में ऊपर बढ़ता है व फिर ऊर्घ्वाकर कमल पुष्प दल शुरू होता है और पुष्प दलान्त से एक तरफ स्तम्भ का सबसे ऊपरी भाग छत की निचले तल के छज्जे से मिलता है तो वहीँ कमल पुष्प दलान्त से अर्ध मंडलाकार आकृति  शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडलकार आकृति से मिल मेहराब का निर्माण करते हैं इस तरह इस मकान के ऊपरी मंजिल में कुल दस मेहराब है याने प्रत्येक खोली में एक मेहराब। 
    मेहराब की कटाई में आनंद दायक आकृतियां  हैं  . प्रत्येक मेहराब के पत्ते /पट्टी के किनारे पर  एक  चक्राकार पुष्प है व बीच में अण्डाणुमा गणेश प्रतीक आकृति अंकित है।  जहँ पर दो मंडलाकार  मिलते हैं वहां पर शुभ प्रतीक भी है।
 खोली के आधार पर जंगल हैं और कुल दस जंगलle हैं
 पहली मंजिल के कमरों के दरवाजों व खिड़कियों  पर कोई विशिष्ठ  कला आकृति नहीं मिलती है बस चौकोर स्ट्रिप गढ़े  मिलते हैं। 
   इस तरह की शैली के मकान निर्माण सन 1947 /1950  के बाद ही शुरू हुआ था व इसी तरह का जंगलेदार मकान मित्रग्राम मल्ला ढांगू  के शेखरा नंद जखमोला की भी था। 
सूचना व फोटो साभार - सतीश कुकरेती (बजरी कठूड़ )
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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
House Wood Carving Art of, Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

Bhishma Kukreti

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सौड़ गांव के बण्वा सिंह नेगी की पारम्परिक भवन की तिबारी में काष्ठ उत्कीर्ण कला
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  Traditional House wood Carving (Tibari )  Art of Saur village , Dhangu , Garhwal, Himalaya 
सौड़  संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की पारम्परिक भवन की तिबारियों पर अंकन कला -7
Traditional House wood Carving Art on Tibari  of Dhangu , Garhwal, Himalaya -7
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  उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -   11
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari Art ) of Uttarakhand , Himalaya -   
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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सौड़ मल्ला ढांगू (द्वारीखाल ब्लॉक ) पौड़ी गढ़वाल का एक छोटा गाँव है जो  प्राचीन काल में सैकड़ों सालों से  जसपुर ग्रामसभा का हिस्सा था।  अब सौड़ जसपुर से अलग कर अलग ग्रामसभा बना दी गई है।  सौड़ में सभी परिवार नेगी हैं।  सौड़ कम से कम दो सालों से भवन  निर्माण शिल्प (ओड ) व भवन व घरेलू उपकरण काष्ठ शिल्प हेउ प्रसिद्ध रहा है।  1970 से पहले सौड़ में प्रत्येक परिवार भवन निर्माण शिल्प से जुड़ा था।  अब सौड़ के नेगी परिवार भवन निर्माण तो नहीं करते किन्तु भवन निर्माण ठेकेदारी करते हैं।  सौड़ गांव सदा से ही उपजाऊ जमीन व भरपूर फसल हेतु जाना  जाता  रहा है।  कर्मठता हेतु भी सौड़ का बड़ा नाम रहा है।  सौड़ जसपुर के पश्चिम में जसपुर व गोदेश्वर पर्वत की घाटी में चौरस स्थान का गांव है और सौड़ क्र पश्चिम में इसी घाटी में छतिंड गाँव है। 
   सौड़ में बण्वा  सिंह नेगी व शेर सिंह नेगी की दो तिबारियां अभी तक सही सलामत है किन्तु   बण्वा  सिंह नेगी  की तिबारी खप सी रही है क्योंकि  बण्वा सिंह नेगी ने  1960  के लगभग नया मकान बना लिया था।  दोनों तिबारी काष्ठ  कला दृष्टि से भव्य या उच्च मानी जाती है। 
  बण्वा  सिंह नेगी की   तिबारी (Tibari ) में   पक्षी व पशु अलंकरण  (Figurative ) अंकन है,  प्राकृतिक अलकंरण  व ज्यामितीय चारों  प्रकार के अलंकरण  चित्रित या उतकीर्त हैं।   बण्वा  सिंह नेगी की तिबारी में मानव अलंकरण नहीं मिलते है न ही कोई नजर न लगे वाला महामानव का अलंकरण मिलता है। 
     बण्वा  सिंह नेगी  की तिबारी (Tibari ) वास्तव में    बण्वा  सिंह नेगी  के पिता ने निर्मित करवाई थी।
    बण्वा  सिंह नेगी की तिबारी (पहली मंजिल का खुला बरामदा ) भी ढांगू की अन्य तिबारियों की तरह ऊपरी पहली मंजिल पर ही स्थापित है याने नीचे दो दो दुभित्या कमरे हैं व ऊपरी मंजिल पर बाहर के दो कमरों  के ऊपर बरामदा है और बरामदा के द्वार पर  चार स्तम्भ / सिंगाड़ है जो तीन मोरी / द्वार बनाते हैं।   दो किनारे के काष्ठ स्तम्भ  अन्य काष्ठ कड़ी के जरिये दीवार से जुड़े होते हैं। तिबारी के कोने वाले स्तम्भ को जोड़ने वाले स्तम्भ या शाफ्ट पर भी कला कृतियां उत्त्कीर्णित हैं (carved ) .  दिवार व स्तम्भ को जोड़ने वाली कड़ी /शाफ़्ट पर  प्राकृतिक  अलंकरण दोनों अंकित है।  दिवार -स्तम्भ जोड़ कड़ी  या खम्भे पर  बेल  बूटे दृष्टिगोचर होते हैं। इस तिबारी स्तम्भ -दीवार जोड़ खम्भे पर पशु -पक्षी या मानवीय अलंकरण बिलकुल नहीं है।
    सौड़ गांव के इस तिबारी में भी निम्न तकनीक प्रयोग हुयी हैं
उभरी या उभारी गयी नक्कासी (Relief Carving Technique )
अधः काट नक्कासी तकनीक (Under Cutting Carving   Technique )
तेज धार /छेनी से कटाई तकनीक /खड्डा करती विधि  (Incised Carving Technique )
मूर्ति सदृष्य सदृश्य /मूर्तिवत नक्कासी ( Sculpturesque Carving   Technique)
वेधित करती नक्कासी तकनीक  (Pierced Carving  Technique)   
इसके अतिरक्त -
 दरवाजों पर छीलने वाली तकनीक (Chips Carving )
  बण्वा  सिंह नेगी की  तिबारी के चारों  मुख्य  स्तम्भ ज्यामितीय कला, अलंकरण कला दृष्टि व  नाप दृष्टि से एक जैसे ही है.  प्रत्येक तिबारी  स्तम्भ कुम्भाकार आधार पर पत्थर के छज्जे पर टिका है।  कुम्भकार आधार  वास्तव में अधोगामी पदम् पुष्प दल कृति है।  अधोगामी पदम् पुष्प दल  के आधार पर उपधानी /गोलगुटका नुमा व गड्ढा से नीचे आते है व इसी उपधानी से ऊर्घ्वाकार पदम् पुष्प दल शुरू होते हैं व कुछ ऊपर  खिल जाते हैं।  जब खिलता कलम समाप्त होने होता है वहां से खम्भा  /शाफ़्ट पर ज्यामितीय अलंकरण है।  गड्ढे वाली  रेखा व उभरी खड़े रेखाएं। 
 स्तम्भ /column से जब मेहराब  शरू होने वाली होती है तो उससे पहले उपधानी से नीचे अधोगामी कमल पुष्प दल उभर कर आते है और कमल पुष्प जड़ से उपधानी के ऊपर की ओर प्रकृति जन्य अंकन ( पत्ती  जैसे फर्न की पत्ती  हो ) उभर कर आते है। यहीं से मेहराब का अर्ध मंडल (arch ) शुरू होता है जो ऊपर दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर मेहराब बनता है।  मेहराब के दोनों मंडलों में किनारे पर शुभ प्रतीक चंद्राकार पुष्प दल हैं व पुष्प के मध्य में गणेश  चिन्ह (अर्ध अंडाकार ) स्थापित है। जहां पर दोनों स्तम्भ के अर्ध मंडल मिलते हैं वहां एक शुभ संकेत प्रतीक है।   
मेहराब की पत्ती पर बेल बूटों का अंकन   बड़ा आनंद दायी है। 
  तिबारी स्तम्भ में जहां से मेहराब के अर्ध मंडल शुरू होते हैं वहीँ से स्तम्भ पर ऊपर छत की और एक बड़ी प्लेट (थांत ) शुरू होता है जो मेहराब के शीर्ष /सर से मिलता है।  इस थांत के ऊपर मोर नुमा चिड़िया का गला व चोंच उभर कर आते हैं  (अभिवार या bracket ) ये मोर भी नयनाभिराम छवि देते हैं और कुल चार मयूर पक्षी उभारे गए हैं। 
  अब तो तिबारी के मेहराब के ऊपर मेहराब शीर्ष  की लकड़ी समाप्ति पर ही है किन्यु  जिन्होंने देखा है वे बताते हैं छत के नीचे प्लेट्स /पट्टियों पर हाथी भी अंकित थे।  मेहराब शीर्ष से ऊपर  की पट्टियों में बेल बूटे अंकित हैन व छत की पट्टी से शंकुनुमा आकृतियां लटकी हैं। 
  सौड़ ढांगू के बण्वा  सिंह नेगी की  तिबारी   तिबारी कला का एक उम्दा उदाहरण है जिसमे सभी प्रकार की कलाएं - प्राकृतिक , ज्यामितीय , प्रतीकत्मक , व मानवीय (Figurative ornamentation ) अलंकरण हुआ है। व भारत में उपलब्ध सभी उत्कीर्ण अंकन  तकनीक का प्रत्योग हुआ है (
  बण्वा  सिंह नेगी की  तिबारी  में गढ़वाल ,की अन्य तिबारी   जैसे साम्यता  ही नहीं अपितु गुजरात के   कई काष्ठ  तिबारियों  से भी मेल खाती  है गुजरात में तिबारी अधिकतर तल मंजिल पर थीं बाद में ब्रिटिश काल में काष्ठ स्तम्भ व लकड़ी ब्रैकेट /अभिवार पत्थर के बनने लगे ( देखें ----जय ठक्कर  , 2004 , नक्श , स्कूल ऑफ इंटीरियर डिजायन , पृष्ठ 6 , 7 , 11 व इंट्रोडक्शन अध्याय, व वी   . ऐस  . परमार , 2001 द वुड कार्विंग ऑफ़ गुजरात ,  सूचना विभाग प्रकाशन , पृष्ठ प्रवेश अध्याय व प्लेट अध्यन  )
  बण्वा  सिंह नेगी की  तिबारी के निर्माण समय व तिबारी कलाकारों के बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। 
   कभी यह तिबारी भी शेर सिंह नेगी की तिबारी जैसे ही शान शौकत वाली तिबारी थी किन्तु अब संरक्षण की प्रतीक्षा में है।  राज्य सरकार को क्षेत्र के कॉलेज छात्रों की सहायता से क्षेत्र में तिबारियों का सर्वेक्षण करवाना चाहिए व तिबारियों के स्थान पर तिबारी मालिकों को वैकल्पिक जगह देकर तिबारी तोड़न बंद करवाना चाहिए व तिबारियों का संरक्षण रोमा शहर मुताबिक करना चाहिए । 
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सूचना व फोटो आभार - आलम सिंह नेगी,  कीर्ति  सिंह नेगी , व दीनू  नेगी  (सौड़ )
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House Wood Carving Art of, Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला Glossary Tibari a House  wood Art of Himalaya ;  Tibari a House  wood Carving Art of Garhwal

Bhishma Kukreti

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सौड़ (dhangu) के शेर सिंह नेगी की आलिशान तिबारी

सौड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों पर अलंकरण कला -8
   Traditional House wood Carving  Ornamentation Art of Saur, Dhangu , Garhwal, Himalaya   8
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  उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी ) काष्ठ अलंकरण अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  12
Traditional House Wood Carving Ornamentation Art (Tibari) of Uttarakhand , Himalaya -  12
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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जैसे कि पिछले अध्यायों में सौड़ के बारे में  कई सूचनाएं दी गयीं  हैं कि सौड़ छोटा गाँव होते भी ओडगिरि (भवन निर्माण ) व बढ़ईगिरी हेतु प्रसिद्ध रहा है।  मकान निर्माण में सौड़ के  ओडों के   जसीले हाथ की छवि भी रही  है।
   सौड़ में दो ही तिबारियां थीं और दोनों उच्च  स्तरीय तिबारी कहलायी जातीं थीं. बण्वा सिंह नेगी की तिबारी बारे में पहले ही सूचना दे दी गयी है।  दूसरी चक्षु प्रिय तिबारी शेर सिंह नेगी की है जो अभी भी गर्व से खड़ी है और 1900 -1915 के आसपास भवन निर्माण शैली की कहानी कहती रहती है। 
   शेर सिंह नेगी कि तिबारी भी ढांगू की अन्य तिबारियों जैसे ही पहली मंजिल पर है व ऊपरी मंजिल जाने हेतु तल मंजिल (उबर ) पर ही प्रवेश है। यह तिबारी शेर सिंह नेगी के पिता ने ही निमृत कराई होगी। 
  सौड़ के शेर सिंह नेगी की तिबारी में प्राकृतिक , ज्यामितीय , मानवीय (पशु ,मनुष्य या पक्षी आकृति ) प्रकार के अलंकरण दिर्ष्टि गोचर होते हैं। 
 काष्ठ उत्कीर्ण में उभारी गयी तकनीक,अधःकाट  तकनीक, तेज धार से कटाई , मूर्ति सदृश्य तकनीक , बेधित करती तकनीक व छीलने वाली तकनीक से  नक्कासी की गए है। 
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 प्रवेश द्वार स्तम्भ , मेहराब व मुरिन्ड पर काष्ठ नक्कासी
    शेर सिंह नेगी की तिबारी का प्रवेश भी भव्य था।  ऊपरी मंजिल (तिबारी ) में जान हेतु तल मंजिल पर प्रवेश द्वार था।  प्रवेश द्वार के दो स्तम्भ हैं , दोनों स्तम्भ अलंकृत है।  आधार कुम्भी आकृति का है व फिर तिबारी के स्तम्भ जैसा ही अलंकरण है।  स्तम्भ (सिंगाड़ ) के शीर्ष में अलंकृत मुरिन्ड (शीर्ष। सर  ) है।  मुरिन्ड के केंद्र में शगुन प्रतीक गणेशनुमा एक उभरी आकृति है व किनारे पर  चक्राकार फूल दल हैं।  स्तम्भ के तीन  चौथाई भाग से अलंकृत   मेहराब  के अर्ध मंडल भाग शरू होते हैं. ।   प्रवेश काष्ठ स्तम्भ व मुरिन्ड (स्तम्भ शीर्ष ) उत्कीर्णित नक्कासी सभी शगुन प्रतीक है। प्रवेश द्वार के स्तम्भों से निकला  मेहराब अर्धगोलाकार है।  मेहराब पर भी प्राकृतिक कलाकृतियां हैं. कुमाऊं व हिमाचल व उत्तरकाशी में उन्नीसवीं व बीसवीं सदी प्रथम भगा में निर्मित ऐसे कई प्रवेश द्वार मिलते हैं। 
 स्तम्भ /सिंगाड़ में काष्ठ कलाकृति ( Wood Carving Art in Columns )
 पहली मंजिल की तिबारी (बरामदा ) पर चार स्तम्भ हैं।  चार स्तम्भों से तीन मोरी /द्वार /खोली बनी हैं।  प्रत्येक सम्भ पत्थर के छज्जे पर हाथी पाँव आकृति पर टिके (कुम्भ आधार ,) हैं जहां से अधोगामी पदम् पुष्प दल शुरू होता है और यह पदम् पुष्प  काष्ठ गुटका ( wooden round plate ) से शुरू होता है व स्तम्भ का शाफ़्ट यहां पर कम छुड़ा है।  इस गुटके से फिर स्तम्भ सॉफ्ट पर उर्घ्वाकार पदम् पुष्प दल शुरू होते हैं व ऊपर जाकर कमलाकृति प्रदान करते हैं।  फिर सॉफ्ट ऊपर की और जाता है जहां से अधोगामी पुष्प दल  आकृतियां हैं जैसे दल नीचे  लटके हों।  यहां से गुटकों में गोल प्लाट है।  फिर इस नक्कासीदार गोल गुटके से पुष्प  छवि देता आकृति है जहां से मेहराब का अर्ध मंडल शुरू होता है और स्तम्भ के थांत शुरू होता है।  प्रत्येक मेहराब के अर्ध मडल दूसे स्तम्भ के अर्ध मंडल  से मिलकर गोलाकार मेहराब बनाते हैं।  मेहराब पर बेल बूटों की नयनाभिरामी नक्कासी है व  मेहराब कुछ कुछ (थोड़ा बहुत ) रोमन आर्क शैली की याद दिलाता है या गुजरात में बने arc की याद  दिलाते हैं ( देखें , जय ठक्कर , नक्श:, द आर्ट ऑफ वुड कार्विंग इन ट्रेडीसनल हाउसेज ऑफ गुजरात अ फॉक्स ऑन ऑर्नमेंटेसन ,स्कूल ऑफ़ इंटीरियर डिजायन  पृष्ठ 24 ) ।  मेहराब का अंदर भाग छोटे छोटे धनुषाकार आकृतियों से सजी है। 
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        स्तम्भ थांत पर पशु पक्षी  की कलाकृतियां (Figurative Ornamentation on Head of Column )
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   स्तम्भ के सॉफ्ट से जहां से मेहराब का अर्ध मंडल शुरू होता है वहीं से स्तम्भ का थांत भी प्रारम्भ होता है। थांत उभरी आकृति है जिस पर चिड़िया का खूबसूरत गला व चोंच है व शरीर का भाग चक्र है जो इस आकृति को गरिमा प्रदान करता है।  चिड़िया उत्कीर्ण आकृति के ऊपर शंकुनुमा आकृतियां है व  किनारे के  दो स्तम्भों पर इन आकर्कित्तयों के ऊपर हाथी  की आकृति खुदी है , हाथी शौर्य, बल  व स्थाईत्व  एवं द्वारपाल या क्षेत्रपाल का प्रतीक है।  हाथी की सूंड बलशाली हाथी की   है।  बीच के दो स्तम्भों के थांत में हाथी के स्थान पर दो चिड़ियां खुदी आकृतियां हैं।  (figurative ornamentation ) .
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      स्तम्भ व मेहराब शीर्ष की  समांतर पट्टियों में कालकृति
मेहराब शीर्ष के ऊपर छत तक छह  प्रकार की पट्टियां साफ़ दिखती हैं।  इन छह  पट्टियों में ऊपर की पट्टी सबसे अधिक चौड़ी पट्टी है। पर्यटक पट्टी में अलग अलग प्राकृतिक अलंकरण खुदी है।  अलंकरण नक्कासी चक्षु आनंद दायी हैं। ऊपरी चौड़ी पट्टी में चक्राकार चक्र पर पुष्प दल उभरे हैं व चक्र केंद्र में गणेश प्रतीक है जो उभरा नहीं किन्तु गहरा है।  शेर सिंह नेगी के तिबारी के महराब शीर्ष ऊपर इन पट्टियों में figurative ornamentation (मानवीय =पशु पक्षी आकृति अलंकरण  ) नहीं  हैं केवल प्राकृतिक (प्रकृति वनस्पति , लटपर्ण लंकार )  अलकंरण ही मिलते हैं। 
   दास (टोढ़ी ) में बतख गला व चोंच आकृति
 छत से पट्टियों की ओर लटकते शंकुनुमा आकृतियां हैं , छत लकड़ी  पट्टी व दास (टोड़ी ) पर टिकी  हैं।  दास (टोड़ी ) बतख की चोंच व गला नुमा आकृति (अलंकरण )  से बने हैं  हैं व बतख के ऊपर कुछ कुछ चिड़िया छवि उभरती है। 
   तिबारी के आंतरिक भाग में भी काष्ठ उत्कीरण हुआ है।
   इस तरह हम पाते हैं कि शेर सिंह नेगी की तिबारी (ऊपरी पहली मंजिल की बैठक ) पर  ज्यामितीय , मानवीय (यहां पशु हाथी व पक्षियां ) , लतापरं व पुष्प अलंकरण हुआ है जो रक्षा , शान्ति , बल , शौर्य , मांगल्य के प्रतीक हैं व दार्शनिक छवि भी प्रदान करते हैं। 
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    श्रीनगर से आये  काष्ठ कलाकार
सौड़ में शेर सिंह नेगी की तिबारी वास्तव में शेर सिंह नेगी द्वारा निर्मित कराई गयी थी जो प्रसिद्ध ओड थे।  सौड़ के लुंगाड़ी सिंह की पहली पत्नी ने सूचना देते बताया कि तिबारी हेतु काष्ठ उत्कीर्ण कलाकार श्रीनगर से आये थे व वे सटे गाँव छतिंड में निवास करते थे जहां काष्ठ कला उत्कीर्ण का कार्य चला था।  निर्मित कालकृति सौड़ लायी जाती थी और तिबारी पर लगये जाते थे।  कहते है कि तिबारी हेतु काष्ठ उत्कीर्ण कार्य पर दो साल लगे।  तिबारी निर्माण काल  भी 1895 -1900 -1915  के मध्य या लगभग होना चाहिए। 
   सूचना व फोटो आभार - आलम सिंह नेगी,  कीर्ति  सिंह नेगी , व दीनू  नेगी  (सौड़ ) 
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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
Traditional House Wood Carving Art of, Dhangu, Himalaya; Traditional House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला . House Wood Carving Art in Saur Dhangoo, Garhwal 

Bhishma Kukreti

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गटकोट के महेशा  नंद व भवानी दत्त  जखमोला की तिबारी की काष्ठ उत्कीर्ण कला

गटकोट की तिबारियों में काष्ठ उत्कीर्ण कला - 1
Tibari Art  (House Wood carving ) of village Gatkot , Dhangu, garhwal Uttarakhand , Himalaya
गटकोट संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों पर अंकन कला -9
  Traditional House wood Carving Art of Dhangu , Garhwal, Himalaya   -9
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  उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  13
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Uttarakhand , Himalaya - 13
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

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 गटकोट लोक कला अध्याय में कहा गया कि गटकोट गाँव ढांगू का एक महत्वपूर्ण गाँव है।   गटकोट का एक अर्थ गढ़ कोट  या गढ़ी में किला भी बताया जाता है।  इस लेखक को गटकोट में भूतकाल में पांच छह  तिबारियां होने की सूचना मिली है।  आज केवल  एक तिबारी -गुठ्यार सिंह रावत की ही तिबारी सुरक्षित है बाकी तिबारियां ध्वस्त होने के बिलकुल निकट हैं।
एक तिबारी जो  महेशा नंद व भवानी दत्त जखमोला भाइयों की तिबारी के नाम से जानी जाती थी भी भग्नावस्था में है।  देख भाल की बाट जोह रही यह तिबारी संभवतया एक दो साल में पूर्ण त्या ध्वस्त हो जाएगी फिर  कोई इस तिबारी के पत्थर ले जायेगा व कोई लकड़ियां ले जाएगा और तब ऐसी तिबारियों का इतिहास पूरी तरह गर्त हो जायेगा।
  महेशा नंद जखमोला व भवानी दत्त की तिबारी भी ढांगू की अन्य तिबारियों  जैसे ही प्र्त्थम मंजिल में है।  नीची तल मंजिल में एक कमरा आगे व पीछे एक कमरा  जिन्हे दुभित्या भितर कहा जाता है।  दो दुभित्या कमरे तल मंजिल में तीन दुभित्या कमरे हैं किन्तु ऊपरी पहली मंजिल में आगे के दो कमरों के मध्य दीवाल  नहीं है व बरामदा है जिसके आगे काष्ठ कलकृति से तिबारी बनी है।   
  मकान ब्रिटिश काल में प्रचलित  शैली याने मिट्टी पत्थर से बना है।  तिबारी में चार बलशाली काष्ठ स्तम्भ हैं व किनारे के दो स्तम्भ काष्ठ कड़ी (शाफ्ट व बळी ) की सहायता से   दीवाल से जुड़े हैं। चारों स्तम्भों से तीन मोरी , द्वार बनते हैं।   स्तम्भ व दीवार को जोड़ने वाली काष्ठ कड़ी पर भी प्राकृतिक वानस्पतिक आकृतियां (natural carving art ) उभर कर सामनेआयी हैं। 
प्रत्येक स्तम्भ (column ) आकर व कलाकृति व उत्कीर्ण  अनुसार बिलकुल समान हैं।  पहली मंजिल के छज्जे के ऊपर उप छज्जा भी पत्थरों से निर्मित है व इस उप छज्जे के ऊपर स्तम्भ आधार एक पाषाण आधार है. स्तम्भ का काष्ठ आधार हाथीपद व जैसे छवि देता है। वास्तव में यह आधार अधोगामी कमल पुष्प दल की आकृतियों के कारण हाथीपद जैसे छवि प्रदान करता है। अधोगामी पदम् पुष्प दल जहां से शरू होते हैं वहा गुटका नुमा (wooden plate ) गोलाई लिए आकर में है व गड्ढे व उभार कला शैली से बना है।  स्तम्भ के गोलाई में गुटका नुमा इस आकार के बाद ऊपर की ओर उर्घ्वगामी पदम् पुष्प दल शुरू होते हैं जो कुछ अंतराल उपरान्त कमलाकृति छवि प्रदान करने में सफल है।  कमलाकृति  समाप्ति के बाद स्तम्भ का shaft या कड़ी है जिस पर ऊपर जाने के बाद फिर से दो गुटकानुमा आकृति उभरती है।  कड़ी में ज्यामितीय व प्रकृति जन्य कला उत्कीर्ण है। दोनों गुटकों में प्रकृति कलाकृति खुदी हैं।   गुटका के ऊपर पुनः खड़ा दबल , पथ्वड़ या कुम्भ नुमा छवि उबरती है जिस पर प्राकृतिक कलाकृति उत्कीर्ण हैं।  इस भाग पर पत्ती कलाकृति उभर कर आयी है।  अधिकतर तिबारियों में स्तम्भ छड़ी/कड़ी  (shaft ) के इस भाग में ऊर्घ्वाकर कमलाकृति मिलती है अपवाद दाबड़ आदि छोड़कर , किन्तु  महेशा नंद -भवानी ड्डत की तिबारी में इस भाग में पत्ती आकृति उत्कीर्ण है। इस आकृति के बाद स्तम्भ से मेहराब का अर्धगोलाकार मंडल शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से जुड़कर arch मेहराब बनता है।  स्तम्भ के shaft /छड़ी के जिस  स्थान  (Impost ) से गोलकार मंडल (springer )शुरू होता है  उसी स्थान (impost ) से स्तम्भ का थांत  (बहुत बड़ा बैट  नुमा आकृति ) शुरू होता है इस थांत पर भी प्रकति जन्य कलाकृति उत्कीर्ण /खुदे हैं। 
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   मेहराव में कलाकृति
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मेहराब या arch trefoil या तिपतिया नुमा मेहराब है। अंत वक्र (intrados )  के दो वक्र तो तिपतिया या trefoil नुमा ही है किन्तु अन्तवक्र के ऊपर का वक्र या Extrados  कुछ कुछ Tudor आकृति का खुदा है।  तिपतिया या trefoil शीर्ष में मंडल या arch कुछ कुछ नुकीला सा होता है जैसे ogee arch हो किन्तु यह मेहराब मुख्यतया trefoil नुमा ही है। 
   मेहराब में ऊपर  के स्थान (keystone ) में किनारे पर दो पुष्प दल  (शगुन प्रतीक ) उभर कर आये हैं जो चक्राकार हैं व केंद्र में गणेश प्रतीक (अंडकार आकृति जैसे पूजन के वक्त गोबर का गणेश बनाया जाता है ) . दो मंडल जहाँ पर मिलते हैं याने मेहराब का बिलकुल शीर्षमें प्रतीकत्मक शगुन /भाग्यशाली आकृत उभर कर आयी है ।  मेहराब के  शीर्ष के बाह्य भाग में ज्यामितीय व प्रकृति कला साफ़ खुदी मिलती हैं। 
मेहराब के बाहर एक चौकोर आकृति उभरी है जिस पर प्राकृतिक कलाकृति उभर  कर आयी है (बेल बूटे) ।     
  मेहराब का ऊपरी भाग छत के दास पर स्थित भाग से मिल  जाता है। 
 चरों स्तम्भ व तीनों मेहराब सभी दृष्टि (ज्यामितीय व कलाकृति दृष्टिकोण से )  से एक समान हैं।
  स्तम्भ  आधार , स्तम्भ छड़ी /कड़ी व मेहराब व मेहराब के बाह्य भाग ऊपर व दोनों ओर  कहीं भी मानवीय (figurative   आकृति याने पशु , पक्षी , मानव ) आकृति देखने को नहीं मिली है।
 इसमें संदेह नहीं कि  महेशा  नंद व भवानी दत्त की तिबारी अपने शुरुवाती काल में भव्य तिबारियों में गिनी  जाती होगी।  इस तिबारी में कोई figurative आकृति )पशु , पक्षी , मानव ) नहीं है।  मेहराब शुरू होने से नीचे भाग ( impost के नीचे ) में ऊर्घ्वाकार कमलाकृति न होना व  पत्ती आकृति होना भी इस तिबारी की अपनी विशेषता है
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सूचना व फोटो आभार - कमल जखमोला व विवेका नंद जखमोला , गटकोट
Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
Traditional House Wood Carving Art of, Dhangu, Himalaya; Traditional House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

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मित्रग्राम में शेखरा नंद जखमोला  का जंगलादार मकान या निमदारी पर काष्ठ कला

मित्रग्राम में भवन  काष्ठ कला भाग -2
Tibari /Nimdari  Art  (House Wood carving ) of village Mitragram  , Dhangu, garhwal Uttarakhand , Himalaya -2
 मित्रग्राम  संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों /निंदारियों पर अंकन कला -10
  Traditional House wood Carving Art of Dhangu , Garhwal, Himalaya   -10-
  उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी /निमदारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  14
Traditional House Wood Carving Art (Tibari/Nimdari  of Uttarakhand , Himalaya - 14
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   

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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 मित्रग्राम की लोक कला अध्याय वा तिबारी  प्रकरण में पहले ही लिखा जा चुका है कि मित्रग्राम मल्ला ढांगू के एक जाना पहचाना नाम है।  इस गाँव में जखमोला जाति के ही लोग निवास करते थे  (थपलियाल व शिल्पकार का एक एक परिवार था ) .
   कभी मित्रग्राम में पांच  से अधिक तिबारियां थीं (पहली मंजिल पर नक्कासी  लिए बरामदा ) . मित्रग्राम में एक निमदारी याने शेखरानन्द जखमोला का जंगलेदार मकान भी है।  अभी भी देखरेख होने के कारण मकान सही सलामत है।  संभवतया यह मकान शेखरा नंद जखमोला ने सन 1960 से पहले निर्मित किया था।
तल मंजिल पर कमरों के दरवाजों को छोड़कर कोई काम लकड़ी का नहीं है।  लकड़ी कार्य भी आम सामन्य ढंग का ही है।
  ऊपरी मंजिल पर तीन कमरे हैं  . सामने व एक पहलू में सभी कमरे काष्ठ स्तम्भों से घिरे हैं।  सामने की ओर दस स्तम्भ हैं व साइड में चार स्तम्भ हैं।  सभी स्तम्भ लकड़ी के छज्जों पर टिके  हैं।  तल मंजिल व ऊपरी मंजिल में दो छज्जे लगते हैं याने सानान्तर दो पट्टियां हैं।   ऊपरी मंजिल के स्तम्भ सीधी सपाट  हैं व जिन पर किसी भी प्रकार का विशेष नक्कासी नहीं दिखती हैं। स्तम्भ आधार पर दो एक फुट तक काष्ठ  तख्ती/पट्टी /प्लेट  चिपकायी हई हैं जो स्तम्भ को एक नया आकर देने में सफल है।  दो स्तम्भों को जोड़ने हेतु गोल रेलिंग है।  सामने की दिशा में स्तंभों की रेलिंग पर जंगले  हैं।  इस  लेखक ने इस मकान को बचपन में देखा था।  तब मकान भव्य व मॉडर्न जंगलेदार मकान कहा जाता था।
मकान के दो ओर पहली मंजिल पर छज्जे है जो दास व स्तम्भों से घिरे हैं। 
 इस निमदारी  में ज्यामतीय काष्ठ कला ही उजागर होता है। कहीं भी प्रकृति , मानवीय या भौगोलिक कलाकृति के दर्शन नहीं होते हैं।   
ढांगू में सन 1950 के पश्चात इस तरह की निमदारियों व अन्य प्रकार के बंद तिबारियों का प्रचलन शुरू हुआ था। 
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सूचना व फोटो आशीष जखमोला , मित्रग्राम
Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
Traditional House Wood Carving Art of, Dhangu, Himalaya; Traditional House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

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 गटकोट के पधानुं की आलीशान  तिबारी में काष्ठ कलाकृति   गटकोट के पधानुं की आलीशान तिबारी में काष्ठ कलाकृति


गटकोट (ढांगू ) की तिबारियों की काष्ठ कला भाग --2
गटकोट संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों /निंदारियों पर अंकन कला -11
Traditional House wood Carving Art of Dhangu , Garhwal, Himalaya -11-
उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी /निमदारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 15
Traditional House Wood Carving Art (Tibari/Nimdari of Uttarakhand , Himalaya - 15
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )
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संकलन - भीष्म कुकरेती

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गटकोट ढांगू क्षेत्र का एक ऐतिहासिक गाँव है। गोरखा काल में गोरखाओं की चौकी भी गटकोट निकट ही थी व गोर्ला रावत ढांगू , डबराल स्यूं व कुछ भाग उदयपुर पट्टियों के थोकदार भी थे। डा शिव प्रसाद डबराल ने थोकदार विष्णु सिंह गोर्ला रावत के रिकॉर्ड्स से गोरखा अकालीन इतिहास हेतु कई नई सूचनाएँ जुटायीं थीं।
जैसे कि गटकोट तिबारी काष्ठ कला भाग 1 में सूचना दे दी गयी है कि गटकोट में पांच -छह तिबारियां थीं किन्तु अब कई तिबारियां या तो ढह गयीं हैं या ढहने के कगार पर हैं। पधानुं की तिबारी भी लगभग ढहने के कगार पर ही है।
पधानुं की तिबारी भी पहली मंजिल पर ही है याने दुभित्या मकान है व पहली मंजिल पर दो कमरों के मध्य दीवार न हो पूरा बरामदा है और इस बरामदे के खोलियाँ /द्वार /मोरियाँ हैं याने बाहर काष्ठ कला सज्जित तिबारी है।
पधानुं की तिबारी में ढांगू डबराल स्यूं - उदयपुर , लंगूर , अजमेर क्षेत्र की अन्य तिबारियों की भाँती ही चार स्तम्भ /columns हैं। चार स्तम्भ तीन मोरी /द्वार /खोलियाँ बनाते हैं। किनारे के दो स्तम्भ दिवार से एक एक खड़ी कड़ी की सहायता से से जुड़े हैं। दिवार व स्तम्भ जोड़ कड़ी पर सुंदर प्राकृतिक कलालकृति उत्कीर्णित है। वास्तव में जोड़ कड़ी भी स्तम्भ जैसे जोड़ती तो है ही व तीन वर्टिकल अधोलंब भाग साफ़ साफ़ दिखाई देते हैं , दीवार की तरफ वाली कड़ी में प्राकृतिक व ज्यामितीय कला खुदाई का सुंदर नमूना मिलता है।
तल मंजिल के ऊपर पत्थर का छज्जा है जो पाषाण दासों (टोड़ीओं ) पर टिका है कुछ टोड़ी काष्ठ दास दिख रहे हैं। मुख्य छज्जे के ऊपर पाषाण उप छज्जा है जिस पर पत्थर के ही चार हाथीपांव जैसे पाषाण आधार है जिस पर तिबारी के काष्ठ स्तम्भों के आधार हैं (base ) स्तम्भ आधार वास्तव में अधोगामी पदम् पुष्प दल ( descending Lotus petals ) कलाकृति है जो हाथपांव /कुम्भ /पथ्वड़ का अंदेशा भी देता है और हाथी पाँव कलाकृति छवि प्रतीक भी है कि हम ताकतवर हैं। कमल पुष्प दल जहां से शुरू होता है स्तम्भ पर गोलाई में चारों ओर गुटका नुमा आकृति है (wood plates ) . इस गुटके नुमा आकृति के ऊपर ऊर्घ्वाकार कमल पुष्प दल ऊपर की ओर खिलता है व नयनाभिराम आनंद देता है। कमल पुष्प दल के बाद स्तम्भ की छड़ी (shaft ) ऊपर की ओर जाती है और shaft की मोटाई कम होती जाती है जहां पर स्तम्भ shaft की मोटाई सबसे कम होती है वहीँ से फिर गुटका नुमा आकृति उभरती है व फिर गुटका नुमा आकृति के बाद ऊर्घ्वाकार पदम् पुष्प दल ऊपर की ओर खिलते नजर आते हैं। इन दलों के ऊपर आयतकार लकड़ी का गुटका impost है (ज्यामितीय कला )
इस आयाताकार आकृति याने impost के ऊपर दो भाग हैं एक भाग दांय -बांय भुजा की ओर मेहराब (arch ) का अर्ध मंडल शुरू होता है दूसरा भाग सीधा ऊपर जाता है जिसे थांत कह सकते है। एक स्तम्भ का अर्ध मंडल दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर मेहराब का पूरा चाप बनाते हैं। मंडल arch के अंतश्चाप intrados पहले तिपत्ती trefoil नुमा है किंतु मध्य में ऊपर नुकीली चाप ogee arch नुमा हो जाता है। मेहराब के voussoir या डाट या मध्यश्चाप व बाह्यश्चाप में कलाकृति उभर कर आयी हैं। मेहराब की प्लेट्स के दोनों किनारों पर चक्राकार पुष्प व मध्य गणेश पटरटेक पुष्प दल है। स्तम्भ की ओर से चाप की कीस्टोन के ओर एक आकृति उभरती है जो हाथी की सूंड की छवि जैसे लगती है यानि छवि प्रदान करती है । मेहराब पट्टी पर अन्य प्राकृतिक काष्ठ कलाकृति भी उभर कर आयी है।
मेहराब के keystone के ऊपर की चौड़ी पट्टी छत के नीचे की पट्टी से मिलती है। इस चौड़ी पट्टिका पर कुछ कुछ देव प्रतीकात्मक कृति दिखाई पड़ रही हैं
स्तम्भ के थांत पर ब्रैकेट है जिस पर दो पक्षियों का गला व चोंच आकृति उभरी है। पक्षी नुमा आकृति प् रकयी तरह की कलाकृति भी उत्कीर्ण हुयी है।
सभी स्तम्भ में आकृति व आयात एक समान ही है याने आठ पक्षी चोंच व गला , आठ चकराकर पुष्प है।
थांत व चाप के ऊपर की पट्टी छत की आधार पट्टी से मिलती है , छत की आधार पट्टी से शंकुनुमा काष्ठ आकृतियां लटकी मिलती हैं। तिबारी की बाकी छत पट्टी पाषाण दासों )टोड़ीयों ) पर टिकी हैं।
तिबारी काष्ठ कला में
ज्यामितीय ,
प्राकृतिक
व मानवीय (figurative ) याने गटकोट के पधानुं तिबारी में कलाकृति तीनों प्रकार की कला उभर कर आयी हैं।
पक्षी गला , चोंच व पक्षी गला के नीचे कुछ कल्पनातीत आकृति भी मानवीय कलाकृति का उम्दा उदाहरण है। स्तम्भ थांत में उभरे bracket में पक्षी गला , चोंच व कल्पनातीत आकृतियां इस तिबारी की अपनी विशेषता है। जो अभी तक विश्लेषित ढांगू की तिबारियों में नहीं मिली हैं।
गटकोट के पधानुं तिबारी काष्ठ कला विश्लेषण से साफ़ पता चलता है कि काष्ट कलाकारों ने निम्न तकनीक अपनायी है -

उभरी या उभारी गयी नक्कासी (Relief Carving Technique ) भ
अधः काट नक्कासी तकनीक (Under Cutting Carving Technique )
तेज धार /छेनी से कटाई तकनीक /खड्डा करती विधि (Incised Carving Technique )
मूर्ति सदृष्य सदृश्य /मूर्तिवत नक्कासी ( Sculpturesque Carving Technique)
वेधित करती नक्कासी तकनीक (Pierced Carving Technique)
उपरोक्त विश्लेषण से कहा जा सकता है कि गटकोट के पधानुं तिबारी काष्ठ कला में अपने समय में शानदार तिबारी कहलायी गयी होगी।
तिबारी निर्माण संभवतया सन 1900 के पश्चात का ही समय होगा। तिबारी काष्ट कलाकारों की कोई जानकारी अभी तक नहीं मिल पायी है।
सूचना व फोटो आभार - कमल जखमोला व विवेकानंद जखमोला , गटकोट
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गटकोट  (ढांगू ) की तिबारियों की काष्ठ कला भाग --2
गटकोट  संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों /निंदारियों पर अंकन कला -11
  Traditional House wood Carving Art of Dhangu , Garhwal, Himalaya   -11-
  उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी /निमदारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  15
Traditional House Wood Carving Art (Tibari/Nimdari  of Uttarakhand , Himalaya - 15
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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गटकोट ढांगू क्षेत्र का एक ऐतिहासिक गाँव है।  गोरखा काल में गोरखाओं की चौकी भी गटकोट निकट ही थी व गोर्ला रावत ढांगू , डबराल स्यूं व कुछ भाग उदयपुर पट्टियों के थोकदार भी थे।  डा शिव प्रसाद डबराल ने थोकदार विष्णु सिंह गोर्ला रावत के रिकॉर्ड्स से गोरखा अकालीन इतिहास हेतु कई नई सूचनाएँ जुटायीं थीं। 
  जैसे कि गटकोट तिबारी काष्ठ कला भाग 1 में सूचना दे दी गयी है कि गटकोट में  पांच -छह तिबारियां थीं किन्तु अब कई तिबारियां या तो ढह गयीं हैं या ढहने के कगार पर हैं।  पधानुं  की तिबारी भी लगभग ढहने के कगार पर ही है। 
 पधानुं की तिबारी भी पहली मंजिल पर ही है याने दुभित्या  मकान है व पहली मंजिल पर दो कमरों के मध्य दीवार न हो पूरा बरामदा है और इस बरामदे के खोलियाँ /द्वार /मोरियाँ हैं याने बाहर काष्ठ कला सज्जित तिबारी है। 
 पधानुं की तिबारी में ढांगू डबराल स्यूं - उदयपुर , लंगूर , अजमेर क्षेत्र की अन्य तिबारियों की भाँती ही चार स्तम्भ /columns  हैं।  चार स्तम्भ तीन मोरी /द्वार /खोलियाँ बनाते हैं।  किनारे के दो स्तम्भ दिवार से एक एक खड़ी कड़ी की सहायता से से जुड़े हैं।  दिवार व स्तम्भ जोड़ कड़ी पर सुंदर प्राकृतिक कलालकृति  उत्कीर्णित है। वास्तव में जोड़ कड़ी भी स्तम्भ जैसे जोड़ती तो है  ही व तीन वर्टिकल अधोलंब भाग साफ़ साफ़ दिखाई देते हैं , दीवार की तरफ वाली कड़ी में प्राकृतिक व ज्यामितीय कला खुदाई का सुंदर नमूना मिलता है।
 तल मंजिल के ऊपर पत्थर का छज्जा है जो पाषाण दासों (टोड़ीओं ) पर टिका है कुछ टोड़ी काष्ठ दास दिख रहे हैं।  मुख्य छज्जे के ऊपर पाषाण उप छज्जा है जिस पर पत्थर के ही चार हाथीपांव जैसे पाषाण आधार है जिस पर तिबारी के काष्ठ स्तम्भों के आधार हैं (base ) स्तम्भ आधार वास्तव में अधोगामी पदम् पुष्प दल ( descending Lotus petals ) कलाकृति है जो हाथपांव /कुम्भ /पथ्वड़  का अंदेशा भी देता है और हाथी  पाँव  कलाकृति छवि प्रतीक भी है  कि हम ताकतवर हैं।  कमल पुष्प दल जहां से शुरू होता है स्तम्भ पर गोलाई में चारों  ओर गुटका नुमा आकृति है (wood plates ) . इस गुटके नुमा आकृति के ऊपर ऊर्घ्वाकार कमल पुष्प दल  ऊपर की ओर खिलता है व नयनाभिराम आनंद देता है।  कमल पुष्प दल के बाद  स्तम्भ की छड़ी (shaft ) ऊपर की ओर जाती है और shaft की  मोटाई कम  होती जाती है जहां पर स्तम्भ shaft की मोटाई सबसे कम होती है वहीँ से फिर गुटका नुमा आकृति उभरती है व फिर गुटका नुमा आकृति के बाद ऊर्घ्वाकार पदम् पुष्प दल ऊपर की ओर खिलते नजर आते हैं।  इन दलों के ऊपर आयतकार लकड़ी का गुटका impost है (ज्यामितीय कला  )
इस आयाताकार आकृति याने impost के ऊपर दो भाग हैं एक भाग दांय  -बांय भुजा की ओर मेहराब (arch ) का अर्ध मंडल शुरू होता है दूसरा भाग सीधा ऊपर जाता है जिसे थांत कह सकते है। एक स्तम्भ का अर्ध मंडल दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर मेहराब का पूरा चाप बनाते हैं।  मंडल arch के अंतश्चाप intrados  पहले तिपत्ती trefoil नुमा है किंतु मध्य में ऊपर नुकीली चाप ogee arch नुमा हो जाता है।  मेहराब के voussoir या डाट या मध्यश्चाप व बाह्यश्चाप में कलाकृति उभर कर आयी हैं। मेहराब की प्लेट्स के  दोनों किनारों पर चक्राकार पुष्प व मध्य गणेश पटरटेक पुष्प दल है।  स्तम्भ की ओर से चाप की कीस्टोन के ओर एक आकृति उभरती है जो हाथी की सूंड की छवि जैसे लगती है यानि छवि प्रदान करती है । मेहराब पट्टी  पर अन्य प्राकृतिक काष्ठ कलाकृति भी उभर कर आयी है।
मेहराब के keystone के ऊपर की चौड़ी पट्टी छत के नीचे की पट्टी से मिलती है।  इस चौड़ी पट्टिका पर कुछ कुछ देव प्रतीकात्मक कृति दिखाई पड़  रही हैं
स्तम्भ के थांत पर ब्रैकेट है जिस पर दो पक्षियों का गला व चोंच आकृति उभरी है।  पक्षी नुमा आकृति प् रकयी तरह की कलाकृति भी उत्कीर्ण हुयी है। 
सभी स्तम्भ में आकृति व आयात एक समान ही है याने आठ पक्षी चोंच व गला , आठ चकराकर पुष्प है।
  थांत व चाप के ऊपर की पट्टी छत की आधार पट्टी से मिलती है , छत की आधार पट्टी से शंकुनुमा काष्ठ आकृतियां लटकी मिलती हैं। तिबारी की बाकी छत पट्टी पाषाण दासों )टोड़ीयों ) पर टिकी  हैं। 
 तिबारी काष्ठ कला में
ज्यामितीय ,
प्राकृतिक
 व मानवीय (figurative ) याने गटकोट के पधानुं  तिबारी में कलाकृति तीनों प्रकार की कला उभर कर आयी हैं।
 पक्षी गला , चोंच व पक्षी गला के नीचे कुछ कल्पनातीत आकृति  भी मानवीय कलाकृति का उम्दा उदाहरण है। स्तम्भ थांत में उभरे  bracket में पक्षी गला , चोंच व कल्पनातीत आकृतियां इस तिबारी की अपनी विशेषता है।  जो अभी तक विश्लेषित ढांगू की  तिबारियों में नहीं मिली हैं। 
      गटकोट के पधानुं तिबारी काष्ठ कला विश्लेषण से साफ़ पता चलता है कि काष्ट कलाकारों ने निम्न तकनीक अपनायी है -

उभरी या उभारी गयी नक्कासी (Relief Carving Technique )
अधः काट नक्कासी तकनीक (Under Cutting Carving   Technique )
तेज धार /छेनी से कटाई तकनीक /खड्डा करती विधि  (Incised Carving Technique )
मूर्ति सदृष्य सदृश्य /मूर्तिवत नक्कासी ( Sculpturesque Carving   Technique)
वेधित करती नक्कासी तकनीक  (Pierced Carving  Technique)   
   उपरोक्त विश्लेषण से  कहा जा सकता है कि गटकोट के पधानुं  तिबारी काष्ठ कला में अपने समय में शानदार तिबारी कहलायी गयी होगी।
  तिबारी निर्माण संभवतया सन 1900 के पश्चात का ही समय होगा।  तिबारी काष्ट कलाकारों की कोई जानकारी अभी तक नहीं मिल पायी है।
   
     
सूचना व फोटो आभार - कमल जखमोला व विवेकानंद जखमोला , गटकोट 
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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
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साइकलवाड़ी ( उदयपुर ) में दिनेश कंडवाल बंधुओं  की तिबारी में  काष्ठ कला

साइकलवाड़ी संदर्भ में उदयपुर  गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों पर अंकन कला -12
  Traditional House wood Carving Art of Udayapur  , Garhwal, Himalaya   12
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  उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी , निमदारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  16
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari ) of Uttarakhand , Himalaya -  16
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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साइकलवाड़ी गांव वास्तव में किमसार (उदयपुर पट्टी ) का ही एक भाग  है।  किमसार  स्थान खस नामावली का द्योतक है अतः यह  स्थान 2000 साल पहले भी  चिन्हांकित हो  चुका  होगा।  किमसार मुख्यतया कण्डवालों का प्रसिद्ध गाँव है।  किमसार की प्रसिद्धि ढांगू , डबरालस्यूं व लंगूर , अजमेर में भी है।  किमसार वास्तव में पंडिताई व वैदकी हेतु अधिक प्रसिद्ध था ।  जसपुर -ग्वील में प्रसिद्ध है कि किमसार  के कंडवाल वैदकी व पंडिताई के लिए इतने प्रसिद्ध थे कि जसपुर -ग्वील वालों ने एक कंडवाल परिवार को अपनी सीमा ठंठोली (ढांगू ) में इसीलिए बसाया कि क्षेत्र में वैदकी व  पंडिताई की कमी दूर हो जाय।  ठंठोली के कंडवाल भी वैदकी व पंडिताई के लिए प्रसिद्ध हुए हैं।
    साइकलवाड़ी में दिनेश कंडवाल  बंधुओं की तिबारी कलाकृति के अनुसार सामन्य तिबारी है।  जैसाकि आम तिबारियों में होता है मकान दुभित्या कमरों का मकान है जिसमे तल मंजिल में तीन कमरे अंदर व तीन कमरे बाहर हैं व ऊपरी पहली मंजिल पर दो कमरों के मध्य दीवाल न हो बरामदा है जिस पर काष्ठ स्तम्भों के कारण मोरी /खोली /द्वार बना है।
       दिनेश कंडवाल की तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ हैं।  ये चार स्तम्भ तीन खोली / मोरी / द्वार बनाते हैं।  पाषाण छज्जे के ऊपर उप छज्जा है जिस पर स्तम्भ आधारित हैं ।  स्तम्भों के आधार पर पर कुछ कलाकृति उभरी अवश्य गयी थी किन्तु अब वह कलाकृति दृष्टिगोचर नहीं होती है। स्तम्भ के आधार में अवश्य कलाकृति दिखती है।  बाकि सभी स्तम्भों के ऊपरी भाग में में कोई विशेष कलाकृति नहीं दिखती है या कह सकते हैं कि चरों स्तम्भ सपाट हैं। चारों स्तम्भ सीधे छत के नीचे दासों (टोडियों _ के नीचे एक समांतर कड़ी से मिलते हैं , स्तम्भों के शीर्ष पर स्थित इस काष्ठ कड़ी (shaft ) पर कुछ कलाकृति रही होगी और लगता है प्रतीकत्मक चक्राकार पुष्प खुदे थे। 
   दासों व अन्य काष्ठ कृतियों पर भी कोई कला नहीं दिखती हैं या अंदाज नहीं लगता कि कोई विशेष उल्लेखनीय कलाकृति खुदी होंगी।
कहा जा सकता है कि दिनेश कंडवाल बंधुओं की तिबारी में ज्यामितीय कला उभर कर आयी है अन्य कला पक्ष गौण ही है
संभवतया यह तिबारी सन 1950 के लगभग ही निर्मित हुयी होगी व स्थानीय कलाकरों द्वारा ही निर्मित हुयी होगी
   दक्षिण गढ़वाल में ढांगू , उदयपुर , अजमेर , डबराल स्यूं व लंगूर में इस तरह की सामन्य  नक्कासी वाली  तिबारियां बहुत थीं।  इसी तरह सामन्य कलाकृति लिए चार  पाषाण स्तम्भों वाली तिबारियां भी दक्षिण गढ़वाल क्षेत्र के उपरोक्त पट्टियों में देखने को मिलती थीं।  अधिकतर तिबारियां नष्ट होने के कगार पर हैं। 
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सूचना व फोटो आभार - दिनेश कंडवाल साइकलवाड़ी
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Traditional House Wood Carving Art of, Udayapur , , Himalaya; Traditional House Wood Carving Art of  Malla Udayapur , Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Udayapur , Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Udaypur , Himalaya; House Wood Carving Art of  Udayapur , Garhwal, Himalaya; Udayapur  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला


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जड़सारी , (उयदयपुर ) गढ़वाल की  लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला
 
(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती, श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )
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संकलन - भीष्म कुकरेती [/font]
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जड़सारी मल्ला उदयपुर का एक उपजाऊ व महत्वपूर्ण गाँव है जिसकी सीमाएं  मल्ला आव , डिबरण,  फिड्वा , सीला , चमकोट गांवों से मिलती हैं।   जड़सारी के निकट सतेड़ी नदी या गदन बहता है। जड़सारी गाँव में भी निम्न लोक कलाएं  1985 तक तो प्रचलित थीं जो उदयपुर पट्टी में भी प्रचलित थीं -
 संस्कृति व कर्मकांड  संबंधी कलाएं , जैसे पंडितों व तांत्रिकों द्वारा क्रियावनित लोक कलाएं
 कृषि संबंधी कृषकों की लो कलाएं जैसे टाट , पल्ल , मुणक , ज्यूड़ , निसुड़ निर्माण
घरेलू कार्य संबंधी  कलाएं - भोजन , लिपाई पुताई , रंग रोगन , वसंत पंचमी , होली आदि में घरेलू कार्य संबंधी कलाएं
जीविकोपार्जन संबंधी पेशेवर की कलाएं - भवन निर्माण , बढ़ई , लोहरगिरि, सुनारगिरि  आदि
जड़सारी में भी उपरोक्त सभी कलाएं विकसित थीं।  निम्न कलाकार बीसवीं सदी के अंत तक प्रसिद्ध हुए हैं -
सुनार - अधिकतर  ऋषिकेश पर निर्भर
लोहार - जीत सिंह , आनंद सिंह परिवार
बढ़ई -जीत सिंह , आनंद सिंह
भवन निर्माण /ओडगिरी -   जीत सिंह , आनंद सिंह परिवार
टाट , पल्ल , हल , जुआ , निसुड़ आदि निर्माण सभी कृषक अपने आप करते थे।
पंडित - मुण गाँव के भरोसा नंद व ठींगराबन्द के हर्ष बडोला
तांत्रिक मांत्रिक भी मुण गाँव के भरोसा नंद
औजी /ढोल वादक - बिसंदरी गांव के मथुरा दास , परिवार व अमोळा के रीठू दास
बादी बादण - जड़सारी के ही झम्पा परिवार


सूचना आभार - पंडित श्याम राणाकोटी , जड़सारी
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Folk Arts of Uadyapur , Garhwalm, Uttarakhand  ,Folk  Artisans of Udayapur , Garhwal, Himalaya  ;   ढांगू गढ़वाल की लोक कलायें , ढांगू गढ़वाल के लोक कलाकार 


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दक्षिण गढ़वाल के गंगा सलाण  ( ढांगू , उदयपुर , अजमेर , लंगूर , सीला ) में भवन निर्माण संबंधी लोक कला व शिल्प
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ढांगू संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय की  लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला  - 17

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संकलन - भीष्म कुकरेती




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गंगासलाण  में कुछ सामन्य या जग जाहिर लोक कलाएं निम्न हैं /थीं -
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           १-भवन निर्माण लोक कला
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भवन काष्ठ कला
खान से भवन छत पत्थर निकलने , काटने व उन्हें इच्छित आकर में छीलने की कला
भवन हेतु खान  से अन्य पत्थर निकलने , तोड़ने व इच्छित आकार में तोड़ने की लोक कला
भवन निर्माण हेतु खान से मिट्टी निकलना , मिटटी छानना व मिट्टी गीली करना
मिट्टी में कभी कभी उड़द दाल का पीठ /मस्यट /paste बनाने की कला
भवन निर्माण हेतु foundation डालना
भवन दीवार निर्माण
भवन निर्माण में छत निर्माण
चूल्हा निर्माण
आले बनाना
हथ  चक्की बिठाना
सीढ़ी निर्माण
पाषाण छज्जे निकलना व उन्हें बिठाना
भवन के पीछे दीवार जड़ों में रख आदि जोड़ना जिससे बारिश का पानी अंदर दीवारों में न घुसे (यह कल भी है व विज्ञानं भी )
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२- भवन निर्माण में काष्ठ कला उपयोग
उपयोगी पेड़ काटना
कटे पेड़ से पट्टियां , स्लीपर्स काटना , कड़ी-बौळी  ,पट्टी , पसुण - पटला अदि काटना /निर्माण (आरकसी  आदि )
द्वार की देहरी, स्तम्भ - सिंगार।  मुरिन्ड (स्तम्भों के की स्टोन ) आदि निर्माण व उन्हें बिठाना व सहूलियत अनुसार कला निरूपण
तिबारियों में काष्ट कलाएं उत्कीर्ण कला
भवन के अंदर कठबड़ या आलमारी बिठाना
भवन अंदर पट्टियां /पटला बिछाना
भवन निमदारी में काष्ठ जंगला  निर्माण व उन्हें बिठाना इसी तरह  निमदारियों में काष्ठ छज्जे निर्माण व बिठाना
 भवन  छज्जों को पत्थर की जगह काष्ट के छज्जे बनाना व  उन्हें बिठाना
भवन व सीढ़ियों में पटाळ बिछाना
छज्जों व छत के नीचे काष्ठ दास (टोढ़ी ) या पाषाण दास निर्माण व बिठाना
अन्य कई बढ़ई के कार्य जैसे  पहली मंजिल से ढैपर हेतु लकड़ी की सीढ़ियां 

३- भवनों पर धातु कार्य जोड़ना
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४ - लिपाई पुताई
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कच्चे बने भवन पर मिट्टी का पलस्तर लगाना

पलस्तर पर काली   या  लाल , -सफेद (कमेड़ा ) मिट्टी  को गोबर में मिलाकर पुताई करना
केवल गोबर से ही पुताई करना
समयांतर  बाद घर में या भवन कमरों में लिपाई 

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Himalayan Folk Arts for  House Building; Garhwali  Folk Arts for  House Building, Uttarakhand  Folk Arts for  House Building; ढांगू , उदयपुर, अजमेर लंगूर , शीला  पट्टियों में भवन  निर्माण हेतु लोक कला व शिल्प


 

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