Uttarakhand > Uttarakhand at a Glance - उत्तराखण्ड : एक नजर में

Some Ideal Village of Uttarakhand - उत्तराखंड राज्य के आदर्श गाव!

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
आजादी के रणबांकुरों की भूमि है सालम


जैंती (अल्मोड़ा) : आजाद हिंद फौज के जाबांज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोपाल नाथ की 98वीं जयंती समारोहपूर्वक मनाई गई। इस अवसर पर विधायक गोविन्द सिंह कुंजवाल ने सालम की धरती को आजादी के रणबांकुरों की उर्वरा भूमि बताया।

कहा कि जहां सालम में गांधी के नेतृत्व में आजादी की जंग लड़ रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की फौज खड़ी थी। वहीं सुभाष चन्द्र बोस की अगुवाई में सैकड़ों सालम वासियों ने गरम दल में भर्ती होकर जंग ए आजादी का ऐलान किया। स्व.गोपाल नाथ उन्हीं में से एक थे। श्री कुंजवाल ने स्व.गोपाल नाथ की स्मृति में उनके पैतृक निवास सूरी में स्मारक बनाने के लिए विधायक निधि से 5 लाख, प्राथमिक पाठशाला सूरी की सुरक्षा दीवाल हेतु 50 हजार एवं नालों के मरम्मत हेतु 50 हजार की घोषणा की। समारोह की अध्यक्षता कर रहे ब्लाक प्रमुख महेन्द्र मेर ने सूरी में संपर्क मार्ग हेतु 1 लाख की घोषणा करते हुए अपनी ओर से हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया। उक्रांद नेता किशोरी लाल वर्मा ने आजादी के समय के प्रसंग सुनाए। इससे पूर्व मुख्य अतिथि द्वारा स्व.गोपाल नाथ के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की धर्मपत्‍‌नी सरूली देवी को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध लोक गायक नैन नाथ रावल ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए।

Source : http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6185905.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

बैंजी कांडई दश्जूला


बैंजी कांडई दश्जूला उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले का एक बहुत ही खूबसूरत गॉव है. यह गॉव केवल कांडई नाम से भी रुद्रप्रयाग जिले मे विख्यात है. मूलत यह ब्राह्मण गॉव है और यहा कान्डपाल ब्राह्मण निवास करते है लेकिन प्राचीन से इनके साथ अन्य जाती के लोग भी रहते है जैसे की पुरोहित लोग, भट्ट लोग और साथ साथ मे कुछ राजपूत लोग भी यहा के निवासी है. पूरा गॉव मिलजुल रहता है और कभी यह अहसास नही होता है की यहा पर एक से अधिक जाती के लोग रहते है.



बैंजी कांडई के आस पास कुछ और गॉव है जैसे की जग्गी कांडई, मोहन नगर, जरम्वाड़, ढुंग , थपलगांव , इशाला, बनथाप्ला, कटमीणा , बिजराकोट , आगर, क्यूड़ी. यह छेत्र दश्जूला पट्टी के नाम से रुद्रप्रयाग मे बिखयात है

http://hi.wikipedia.org/wik

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
 
          देहरादून [अनिल चमोली]। जब उत्तराखंड के ज्यादातर गांव देश के अन्य गांवों की तरह पिछड़ेपन, कुरीतियों, अभावों और इस सबके चलते पलायन से दो-चार हैं तब उत्तरकाशी जिले में एक गांव ऐसा है जो शहरों को मात देने के साथ गांधी जी के स्वावलंबी गांवों के सपने में रंग भर रहा है।
उत्तरकाशी जिले के दुरूह इलाके में स्थित रैथल आदर्श ग्राम का अनुपम उदाहरण पेश कर रहा है। इस गांव में बिछी सीवर लाइन, चमचमाती गलियां और जगमगाती स्ट्रीट लाइट देख लगता ही नहीं कि आप उत्तराखंड के किसी गांव में हैं।
गांव के बीचोंबीच लाखों की लागत से बना शानदार कम्युनिटी हाल और अत्याधुनिक सार्वजनिक शौचालय रैथल की समृद्धि की कहानी बयान करता है। इतना ही नहीं, गांव में गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस है तो हेलीपैड और स्टेडियम निर्माण प्रक्रिया में है।
लगभग दो सौ परिवारों वाला यह गांव उत्तराखंड का शायद पहला गांव होगा जहां एक भी परिवार ने पलायन नहीं किया। उत्तरकाशी मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर और समुद्रतल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर बसे रैथल की तस्वीर लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई यानी ग्राम सभा ने बदली है। शहर जैसी सुविधाओं से संपन्न रैथल गांव भटवाड़ी ब्लाक मुख्यालय से दस किमी दूर है और प्रसिद्ध दयारा बुग्याल [अल्पाइन ग्रास] पहुंचने के लिए सड़क मार्ग के अंतिम पड़ाव पर है। रैथल चमचमाती पक्की सड़क से जुड़ा है।
मुख्यमार्ग से ही गांव में प्रवेश के लिए कई रास्ते हैं। गांव में जिस गली से भी प्रवेश करो वह सीसी या फिर टाइल्स से बनी है। साफ सुथरी गलियों से यहां के लोगों में सफाई को लेकर जागरूकता का अंदाज लगाया जा सकता है। गांव में बिजली की दो लाइनें हैं। एक विद्युत विभाग की तो दूसरी पर्यटन विभाग की स्ट्रीट लाइट वाली।
पहाड़ के हर गांव की तरह रैथल भी सीढ़ीनुमा है। गांव के बीचोंबीच चार सौ नब्बे साल पुराना लकड़ी का बना एक पांच मंजिला मकान आज भी सुरक्षित खड़ा है। सेब, आलू, राजमा और गेहूं यहां की मुख्य फसल है। 18 साल तक गांव के प्रधान और साढ़े नौ साल तक ब्लाक प्रमुख रहे चंद्र सिंह राणा का कहना है कि उनके गांव को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
 
Source : http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6677106.html

Devbhoomi,Uttarakhand:
                      बेंजी,गाँव का इतिहास
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मान्यता के अनुसार बहुत वर्षों पहले एक बार अगस्त्यमुनि मन्दिर के पुजारी का देहान्त हो गया था जिस कारण वहाँ पूजा बन्द थी। इसी समय दक्षिण से कोई दो आदमी जो कि उत्तराखण्ड की यात्रा पर आये हुये थे, अगस्त्य ऋषि के मन्दिर के बारे में पता लगने पर मन्दिर में दर्शन को आये। स्थानीय लोगों ने उन्हें मना किया के मन्दिर के अन्दर मत जाओ, पूजा बन्द है और जो अन्दर जा रहा है उसकी मृत्यु हो रही है।

उन्होंने कहा कि अगस्त्य ऋषि तो हमारे देवता हैं, हम तो दर्शन करेंगे ही (दक्षिण में भी अगस्त्य ऋषि का आश्रम है)। वे अन्दर गये, दर्शन किया और उनको कुछ न हुआ तो स्थानीय लोगों ने उनसे ही मन्दिर में पूजा व्यवस्था सम्भालने का अनुरोध किया।इसके बाद वे बसने हेतु स्थान खोजने ऊपर पहाड़ पर गये, वहाँ एक स्थान पर उन्होंने चूहे तथा साँप के बीच लड़ाई होते देखी, अन्ततः चूहे ने साँप को हरा दिया। यह देखकर उन्होंने निश्चय किया कि इस स्थान में बल एवं सिद्धि है तथा यह रहने के लिये उपयुक्त है। तब वे वहाँ रहने लगे तथा बेंजी नामक गाँव बसाया। तब से अगस्त्यमुनि मन्दिर में ग्राम बेंजी से ही पुजारी (मठाधीश) होते हैं।


Devbhoomi,Uttarakhand:
बैंजी गाँव की कुछ तस्वीरें  सुभाष कांडपाल जी के द्वारा





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