कुठार (बिछला ढांगू ) में ठाकुर महेशा सिंह व विजय सिंह की तिबारी में काष्ठ अंकन कला
ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर काष्ठ अंकन कला -17
Traditional House wood Carving Art of Gangasalan (Dhanu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Llangur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya -17
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उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 29
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 29
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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कुठार बिछला ढांगू का एक विशेष गाँव है। गंगा घाटी में होने से कुठार गाँव व निकटवर्ती गांव हथनूड़ , दाबड़ , अमोळा , खंड , तैड़ी आदि गाँव समान उर्बरक है। व समृद्ध गाँवों में माना जाता था , कृषक बड़े परिश्रमी थे व कह सकते थे कि धन धान्य से परिपूर्ण थे व गाँव में घी दूध के गदन बहते थे। अब अन्य गढ़वाली गावों जस ही पलायन की मार भुगत रहा है।
कभी गाँव में तिबारियां होना गाँव की समृद्धि की निशानी होती थीं। कुठार (बिछला ढांगू ) में भी तिबारियाँ थीं व अभी तक दो तिबारियों की सूचना मिल पायी हैं। ठाकुर महेश सिंह व विजय सिंह की तिबारी आलिशान तिबारी कही जायेगी। में काष्ठ अंकन उच्च कोटि का है।
बिछला ढांगू कुठार के ठाकुर महेशा सिंह व विजय सिंह की तिबारी भी दक्षिण गढ़वाल की अन्य तिबारियों जैसे ही दुभित्या मकान के पहली मंजिल पर खुला बरामदा (बैठक ) है। चार स्तम्भों से तीन मोरी /द्वार, म्वार बनी हैं।
कुठार की इस कला के मामले में आलिशान तिबारी पर छज्जा पत्थरों के दासों (टोड़ी ) पर टिका है और पाषाण दास कलयुक्त है कुछ कुछ घोड़े की मोणी (सिर ) की छवि भी प्रदान करते हैं। छज्जे के ऊपर उप छज्जा है जिस पर स्तम्भों के आधार चौकोर पाषाण हैं जिन पर स्तम्भ के काष्ठ टिके हैं। किनारे के दो काष्ठ स्तम्भ (column ) दिवार से कलात्मक काष्ठ कड़ी के जरिये जुड़े हैं।
दीवार -स्तम्भ जोड़ती खड़ी कड़ी में ज्यामितीय व वानस्पतिक कलाएं अंकन हुआ है। वानस्पतिक व ज्यामितीय कला संगम अनूठा है। दिवार -स्तम्भ जोड़ती खड़ी कड़ी में ऊर्घ्वाकार कमल दल , नक्कासीदार डीलू (wood plate in between two shafts of same column ) एवम फर्न नुमा पत्ती /leaves अंकन साफ़ झलकता है।
स्तम्भ का आधार या कुम्भी अधोगामी पदम् दल (Downward lotus petals कला से निर्मित हुआ है ) अधोगामी कमल दल के उद्गम पर ही डीलू (wood plate ) जहां से ऊपर की ओर ऊर्घ्वाकार (upward ) कमल दल भी शुरू होता है। ऊर्घ्वाकार कमल दल के समाप्ति पर स्तम्भ की कलयुक्त कड़ी /shaft शुरू होती है जो दो अन्य पुष्पनुमा डीलों पर समाप्त होती है (वास्तव में चिपकी ही है अलग नहीं है ) , दो डीलों के बाद ऊर्घ्वाकार पद्म दल प्रारम्भ होता है जिसके समाप्ति से स्तम्भ से चाप (arch )की शुरुवात होती है।
कुठार (बिछला ढांगू ) के महेशा सिंह व विजय सिंह की तिबारी की एक विशेषता सामने आयी है कि आधार के कमल दल से ही तीन चीरे (vertical edges ) शुरू होते हैं जो अंत में ऊपर arch मंडप /तोरण की तीन तह (layers of intrados अंतश्चाप या अन्तः वक्र ) निर्माण करती हैं। सभी स्तम्भों में एक जैसी कला व शैली मिलती है।
तोरण शानदार व तिपत्ती नुमा/ trefoil arch नुमा है जिस पर मध्य विन्दु में ogee arch द्विज्या का तीखापन है। मोरी / तोरण (arch ) पांच तहों से बना है व सभी स्तम्भ से जुड़े हैं वाह्य तह /बहिश्चाप extrados / कुछ मोटा है व ऊपर horizontal क्षैतिज पट्टी से मिलता है। इस क्षैतिज पट्टी के दोनों किनारे स्तम्भ दिवार जोड़ू कड़ी के किनारे से मिलती है। प्रत्येक स्तम्भ जहां से चाप शुरू होता है से एक थांत नुमा प्लेन पट्टा ऊपर जाता है। इस पट्टा व चाप के मध्य पुष्प आकृति कला अंकित हुयी है , पुष्प चक्राकार भी है व एक स्थान में पुष्प चिड़िया जैसी छवि भी प्रदान करता है यह है कलाकार की कृति विशेषता। एक स्थान पर पुष्प केंद्र भैंस के मुंह की छवि प्रदान भी करता है हो सकता है यह नजर न लगने हेतु कोई शगुन प्रतीक के रूप में प्रयोग किया होगा।
स्तम्भों के शीर्ष के ऊपर क्षितिज पट्टी के ऊपर एक चौड़ी पट्टा है जिसपर जालीनुमा (किन्तु बंद ) आकृति अंकित है। जाली में दो जगह पुष्प आकृतियां भी अंकित हैं। जाली पट्टिका के नीचे किसी देव प्रतिमा भी अंकित दीखती है। जालीदार पट्टी छत आधार की पट्टी से जुड़ जाती है। छत पट्टिका दासों (टोड़ियों ) पर टिके हैं। एवं दास (टोड़ी ) के अग्र भाग में कलयुक्त कष्ट आकृति लटकी मिलती है।
इस तरह कहा जा सकता है कि कुठार के महेशा सिंह - विजय सिंह की तिबारी में ज्यामितीय , प्राकृतिक (natural motifs पुष्प , पत्तियां ) , मानवीय (भैंस मुंह , पक्षी गला व चोंच , Figurative motifs ) व दार्शनिक / आध्यात्मिक (देव प्रतिमा /deity image ) मिलते हैं।
एक बात सत्य है कि इस तिबारी के काष्ठ कला निर्माता ढांगू के तो न रहे होंगे क्योंकि ढांगू में यह कला कलाकारों ने कभी नहीं अपनायी यहां तक कि सौड़ -जसपुर जैसे कलकारयुक्त गाँवों ने भी इसकला को निर्माण हेतु नहीं अपनाया।
कहा जा सकता है कि कुठार के ठाकुर महेशा सिंह व विजय सिंह की तिबारी ढांगू की कला छवि वृद्धि करने में सक्षम है।
Cसूचना व फोटो आभार - अभिलाष रियाल व कमल जखमोला व कुछ फोटो भाग वीरेंद्र असवाल
Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
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