पुरणकोट (शीला पट्टी ) में पीतांबर दत्त कोटनाला के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला
पुरणकोट (शीला पट्टी ) में भवन काष्ठ (तिबारी ) कला - 4
House Wood Carving (Tibari, Jangledar house ) Art of Purankot (Shila Patti ) -4
शीला पट्टी संदर्भ में , गढवाल हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों पर काष्ठ अंकन कला - 4
Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya ) -44-
गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 44
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 44
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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शीला पट्टी का पुरणकोट (दुगड्डा , हनुमंती निकट ) गाँव की समृद्धि का द्योत्तक पुरणकोट में स्थापित तिबारियां व भव्य जंगलेदार मकान हैं जो बताते हैं कि पुरण कोट उर्बरकता में गढ़वाल के उन्नत गांवों में अग्रणी गाँव रहा होगा। अब गाँव खाली ही सा हो गया है केवल तीन मवासे गाँव में रह गए हैं।
ऊमा शंकर कुकरेती ने इस गाँव की तिबारियों की सूचना व फोटो भेजने की शुरुवात की तो ततपश्चात पुरणकोट के भानजे मदन बहुखंडी व पुरणकोट की ध्याण शकुंतला कोटनाला देवरानी ने भी सूचनाएं व फोटो भेजीं .
वर्णित भव्य जंगला पीतांबर दत्त कोटनाला का तिबारी नाम से अधिक प्रसिद्ध है। पुरणकोट में मकानों की सूचना से विगत होता है कि पुरणकोट के जंगलेदार मकान ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं से भिन्न है व काष्ठ कला दृष्टि से अति विशेष जंगल हैं।
पीतांबर दत्त कोटनाला का जंगलेदार मकान में भी काष्ट कला भव्य किस्म की श्रेणी में आता है। मकान में तल मंजिल व पहिला मंजिल है। मकान तिभित्या याने तीन भीत या डीआर वाला है याने एक कमरा भहर व एक कमरा अंदर। पीतांबर दत्त कोटनाला के तल मंजिल पर बाहरी कमरों पर दीवार न हो खुला बरामदा बनाये गए हैं। किन्तु पहली मंजिल पर बाह्य कमरों को बंद किया गया है। पीतांबर दत्त कोटनाला के मकान के पहली मंजिल पर दस स्तम्भों वाला काष्ठ जंगला है. पुरण कोट के पीतांबर दत्त कोटनाला के जंगल की विशेषता है कि स्तम्भों पर नयनाभिरामी नक्कासी की गयी है। नक्कासी स्तम्भ आधार के कुछ ऊपर (थांत पत्ती blade ) कटिंग नक्कासी नयनों कोशुरू होता है नयनों को भाने वाली है. जब स्तम्भ छत से मिलने वाले होते हैं तो प्रत्येक स्तम्भ पर मेहराब /तोरण /arch का आधा भाग शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के आधे तोरण से मिलकर पूर्ण टॉर्न बनाता है। स्तम्भ शीर्ष जहां से तोरण शुरू होता है वहां भी नक्कासी की गयी है। नक्कासी में वानस्पतिक कला कम झलकती है किन्तु ज्यामितीय अलंकरण ही अधिक है या geometrical motifs dominates other motifs
जंगले के स्तम्भ व स्तम्भों को जोड़ने वाली कड़ी मकान को भव्य रूप देने में कामयाब है।
कहा जा सकता है कि पुरणकोट के जंगलेदार मकान गंगा सलाण (शीला , ढांगू , लंगूर , अजमेर , उदयपुर , डबरालस्यूं ) में अपने आप में विशेष हैं।
लगता है जंगला सन 1940 के आस पास का निर्मित होगा क्योंकि जनले में तोरण कला इसी समय दक्षिण गढ़वाल में विकसित हो रही थी। बाद में बिन तोरण के स्तम्भ वाले जनलगे निर्मित होने लगे।
सूचना व फोटो आभार : शकुंतला कोटनाला देवरानी
एवं आभार - ऊमा शंकर कुकरेती , मदन मोहन बहुखंडी
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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