Author Topic: Some Ideal Village of Uttarakhand - उत्तराखंड राज्य के आदर्श गाव!  (Read 37920 times)

Bhishma Kukreti

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 कुमार्था (उदयपुर ) में चंदन सिंह बिष्ट  के  भव्य जंगलेदार मकान में काष्ठ कला  दर्शन

कुमार्था   गाँव में भवन  (तिबारी , निमदारी ) काष्ठ कला -3 
   Traditional House wood Carving Art of  Tibari, Nimdari of  Kumartha Village  -3
उदयपुर संदर्भ में गढ़वाल  , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों  पर काष्ठ अंकन कला -  6
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya -6 
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  गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  39
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  39
 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   हिंवल  तटवर्ती कुमार्था गाँव  , कुमाठी   ग्राम पंचायत का हिस्सा है व गैंड , सिंधी , , जुकाळा , नेल के निकटवर्ती गाँव है। 
स्वतंत्रता उपरान्त लैंसडाउन तहसील अथवा दक्षिण गढ़वाल में पहली मंजिल में   काष्ठ जंगले  बाँधने  की संस्कृति का प्रचलन हुआ व तिबारी निर्माण में कमी आयी।  जंगला बाँधने का क्रम  सन 1970 तक बरकरार भी रहा।  धीरे धीरे  मैदानी शैली के   सीमेंट मकानों का प्रचलन शुरू हुआ जो अब अपनी ऊंचाई पर है। 
   कुमार्था (यमकेश्वर तहसील ) में भी    स्वतन्त्रता उपरान्त कुछ जंगलेदार मकानों का निर्माण हुआ जिनमे स्वतंत्रता सेनानी चंदन सिंह बिष्ट   का पहली मंजिल पर  जंगलेदार मकान कुमार्था की शान थी।  आज यह मकान जीर्ण -शीर्ण अवस्था में है किन्तु कभी बिष्ट मुंडीत का यह जंगलेदार  मकान कुमार्था क ही नहीं इस इलाके का ( तल्ला ढांगू व उदयपुर ) की शान था। 
    मकान के तल मंजिल पर पिलर हैं जो दस कमरे (उबर ) व बरामदा बनाते हैं व पहली मंजिल पर दस कमरे हैं व 15 -16 स्तम्भों से जंगल बना है।  स्तम्भों को जोड़ने वाला नीचे कोई जंगला  नहीं है जो आमतौर पर इस तरह की  निंदारियों में मिलते हैं।  जंगलेदार मकान की विशेष विशेषता (exclusivity ) है कि  15 -16 स्तम्भ में प्रत्येक दो स्तम्भ के ऊपरी भाग में तोरण बने हैं।  जो मकान को एक अलग ही perception छवि  देने में सक्षम  हैं।  जंगलेदार मकानों की अब तक जो भी सूचना मुझे मिली उनमे ऐसे मकानों में स्तम्भों के ऊपरी भाग में तोरण नुमा /arch type कोई आकृति नहीं दिखाई दी केवल कुमार्था के चंदन सिंह बिष्ट   के इस जंगलेदार मकान  में स्तम्भ के ऊपर काष्ठ तोरण लगाए गए हैं।  तोरण  में  कुछ कुछ trefoil arch  तिपत्ती  वृत्त की झलक मिलती है।
  स्तम्भ छज्जों के ऊपर ठीके हैं व प्रत्येक स्तम्भ आधार में ज्यामितीय व वास्पतिय कला उकेरी गयी है जो जंगलेदार मकान को भव्यता प्रदान करने में सक्षम हैं। 
तल मंजिल के पिलर से अनुमान लगाया जा सकता है कि मकान सन 1960 के लगभग ही निर्मित हुआ होगा।  मकान व काष्ठ कला के कलाकार कौन थे की जानकारी नहीं मिल पा रही है
कहा जा सकता है कुमार्था के स्वतन्त्रता सेनानी चंदन सिंह बिष्ट  का यह जंगलेदार मकान उदयपुर ढांगू में विशेष मकान में अवश्य गिना जाता रहा होगा। 

सूचना व फोटो आभार :  वीरेंद्र असवाल  (मूल डबराल स्यूं , वर्तमान देहरादून )  व कोमल बिष्ट , कुमार्था
Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020   
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Bhishma Kukreti

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  कुमार्था के प्रमेश बिष्ट व राकेश बिष्ट  की तिबारी /निमदारी /बैठक में भवन काष्ठ  कला


House Wood Carving Art in Tibari of Pramesh Bisht and Rakesh Bisht
कुमार्था   गाँव में भवन  (तिबारी , निमदारी ) काष्ठ कला -4 
   Traditional House wood Carving Art of  Tibari, Nimdari of  Kumartha Village  -4
उदयपुर संदर्भ में गढ़वाल  , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों  पर काष्ठ अंकन कला -  7
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya -7 
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  गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  40
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  40
 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  हिंवल तटीय व ढांगू सीमा पर बसे कुमार्था गाँव समृद्ध गाँव कहा जाता है।  यहाँ से एक और तिबारी की सूचना व फोटो वीरेंद्र असवाल से मिली है।  यह तिबारी , निमदारी है प्रमेश  -राकेश बिष्ट की।  प्रमेश  -राकेश बिष्ट की तिबारी में  चार स्तम्भ (columns ) हैं जो तीन द्वार /मोरी /खोली बनाते  हैं।  लगता है द्वार अब बंद कर दिए गए हैं। 
स्तम्भ पाषाण देहरी पर टिके हैं व पाषाण चौकोर आधार पर टिके हैं।  काष्ठ स्तम्भ के आधार में वानस्पतिक व ज्यामितीय मिश्रित उत्कीर्णित कला के दर्शन होते हैं।  बाकी कहीं  भी वानस्पतिक /प्रकृति  व मानवीय कला के दर्शन प्रमेश  -राकेश बिष्ट की तिबारी /निमदारी /बैठक में दर्शन नहीं होते हैं।  बैठक /निमदारी /तिबारी  क के स्तम्भ शीर्ष मुण्डीर  भी चौकोर है और कोई तोरण /मेहराब नहीं है।   
कला दृष्टि से कुमार्था  के प्रमेश -राकेश बिष्ट की  तिबारी /निमदारी /बैठक एक सामान्य  किस्म की  तिबारी /निमदारी /बैठक है

सूचना व फोटो आभार :  वीरेंद्र असवाल  (मूल डबरालस्यूं , वर्तमान देहरादून ) 
Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
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पुरणकोट  (शीला पट्टी ) में नारायण दत्त कोटनाला 'पटवारी जी ' के  जंगलेदार मकान में काष्ठ कला

   पुरणकोट  (शीला  पट्टी ) में भवन काष्ठ कला - 1
  House Wood Carving  Art of Purankot (Shila Patti ) -1
शीला पट्टी  संदर्भ में   , गढवाल  हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों  पर काष्ठ अंकन कला - 1
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya  ) -41
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  41
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  41
 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पुरणकोट  शीला पट्टी का एक महत्वपूर्ण व  भूतकाल में कृषि दृष्टि से उर्बरक गाँव माना  जाता था व समृद्ध गाँव था।  निकटवर्ती गाँवों में दू ण -चंडा   आदि गाँव हैं।  पुरणकोट से चार पांच उच्च कोटि की तिबारियों व निमदारियों  की सूचना मिली है। तिबारियों में कला उत्कृष्ट श्रेणी की है
   पुरणकोट  में तिबारी के बाहर जंगला लगाने का भी प्रचलन था।  नारायण दत्त कोटनाला 'पटवारी जी ' का जंगलेदार मकान कभी क्षेत्र में बड़ा प्रसिद्ध था और'पटवरि जी क जंगला ' नाम से शीला पट्टी  में प्रसिद्ध था। 
मदन मोहन की सूचना अनुसार नारायण दत्त का जंगलेदार मकान का निर्माण  1940   -1945 में हुआ होगा।  वास्तव में यही काल था जब  दक्षिण पौड़ी गढ़वाल में इस  प्रकार के जंगलेदार मकान निर्माण में वृद्धि या बहुत प्रचलन हुआ था।  अधिकतर जंगलेदार मकान के निर्माता सरकारी मुलाजिम थे व मैदान व ब्रिटिश वास्तु शैली से प्रभावित थे या तिबारी निर्मण हेतु काष्ठ  कलाकार क्षेत्र में न मिलते रहे होंगे तो जंगलेदार मकानों का प्रचलन बढ़ा। 
    नारायण दत्त कोटनाला 'पटवारी जी '   जंगलेदार मकान तिभित्या (तीन दीवार याने एक कमरा अंदर व एक कमरा बाहर ) है व पहली मंजिल पर दो बैठक/बरामदा  (डंड्यळ या यहां पर काष्टयुक्त तिबारी  ) हैं दोनों डंड्य ळ /तिबारी /बैठक में आने हेतु  एक ही प्रवेश द्वार  (खोळी ) है।  तल मंजिल में बाह्य कमरों को बंद न कर बरामदा निर्मित हुआ है और ऊपर बरामद को तिबारी /डंड्यळ  में तब्दील किया गया है।  याने पहले मंजिल पर तिबारी /डंड्यळ  को जंगलेदार कृति से आच्छादित कर दिया गया है।  यही कारण है तिबारी /डंड्यळ  में चार स्तम्भों की कृति पर कोई विशेष स्तम्भीय  या तिबारीय कला नहीं उत्कीर्ण हुयी  है और जंगल से ढका  गया है।   
  पहली मंजिल मिटटी -पत्थर  के पललर पर खड़ा है व काष्ठ छज्जा  दास (टोढ़ी ) व दो आयताकार (rectangular )   काष्ठ पट्टी के ऊपर टिका है।  छज्जा आधार की ऊपरी पट्टी या पटला  पर दस काष्ठ स्तम्भ हैं जो ऊपर छत के आधार पट्टिका से मिलते हैं स्तम्भ शीर्ष में भी छत के नीचे दो काष्ट पट्टियां  हैं। 
 प्रत्येक स्तम्भ  सीधा ही है व आधार या अन्य भागों में पर कोई उल्लेखनीय कला दर्श नहीं होते हैं।  स्तम्भ आधार पर दोनों और से  दो फिट ऊँची पट्टिका चिपकायी गयी है जो स्तम्भ को कलापूर्ण छवि प्रदान करती हैं।  दो फिट ऊपर दो स्तम्भों को काष्ठ  पट्टिका  से जोड़ा गया है व फिर लौह जाली से जंगल सजाया गया है।
  पूरे मकान के अधिन से कहा जा सकता है कि पुरणकोट  में नारायण दत्त कोटनाला 'पटवारी जी ' के मकान में डंड्यळ /तिबारी /बैठक के चार स्तम्भों में व जंगले  के स्तम्भों व जंगले के स्तम्भ आधार पर कोई प्राकृतिक व मानवीय कला नहीं है (no natural  or figurative motifs ) केवल ज्यामितीय कला के ही दर्शन होते हैं।
 
सूचना व फोटो आभार :   मदन मोहन  बहुखंडी

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Bhishma Kukreti

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पुरणकोट  (शीला पट्टी ) में कोटनाला  बंधुओं  के  जंगलेदार मकान की काष्ठ कला

   पुरणकोट  (शीला  पट्टी ) में भवन काष्ठ कला - 2 
  House Wood Carving  Art of Purankot (Shila Patti ) -2
शीला पट्टी  संदर्भ में   , गढवाल  हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों  पर काष्ठ अंकन कला - 2
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya  ) -42
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  42
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  42
 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पुरणकोट  शीला पट्टी का एक समृद्ध गाँव रहा है जहाँ जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है व मिट्टी  भी उपजाऊ है।  गढ़वाल के समृद्ध गाँव में तिबारी व जंगलदार मकान या डंड्यळ वला  तिभित्या मकान होना एक सामन्य बात थी।  पुरण गाँव से उमा शंकर कुकरेती ने दो एक तिबारियों व मदन मोहन (गौळा वाले ) ने जंगलेदार कूड़ों की सूचना भेजी है। 
 संदर्भित जंगलेदार कूड़ /मकान भी कोटनालाओं मुंडीत का है व समकोण में बना है , एक कमरा समकोणीय दिशा में भी है। 
जैसा कि  प्रचलन था मकान दो मंजिला है व तिभित्या (तीन भीत /दीवार याने एक कमरा अंदर  व एक कमरा बाहर ) है।  तल मंजिल में बाह्य कमरों को दीवार से बंद न कर बरामदा हेतु खुला छोड़ दिया गया और पहली मंजिल में छज्जा व जंगला  है।  जंगला  भी समकोणीय जंगला  है।  तल मंजिल से पहिले मंजिल पर जाने हेतु सीढ़ियां हैं व अंदर अंदर से प्रवेश नहीं है जो आम  तौर पर प्रचलन था।
  पहली मंजिल के समानांतर दिशा में  9 काष्ठ स्तम्भ (columns ) हैं तो खड़ी दिशा में दो स्तम्भ किन्तु समानंतर व खड़ी दिशा में एक स्तम्भ दोनों दिशाओं का  कॉमन स्तम्भ है।  याने पहली मंजिल पर कुल 11 काष्ठ स्तम्भ हैं। स्तम्भ छज्जे पर टिके हैं व छजजा काष्ठ दासों (टोढ़ी ) पर टिके  हैं।   स्तम्भों का आधार थांत के ब्लेड नुमा है किन्तु यह थांत नुमा आकृति दो पत्तियों को स्तम्भ आधार पर चिपका कर बना है।  जहां से  कड़ी  पट्टियां  समाप्त होती है तो वहां  रेलिंग है।  स्तम्भ छत की पट्टी या बौळ /पसूण  से मिलते हैं.
पुरण कोट के  कोटनाला बंधुओं  के इस जंगलेदार मकान में भी नारायण दत्त कोटनाला के मकान की भाँति  ही कोई कला दर्शन नहीं होते हैं किन्तु काष्ठ जंगल व स्तम्भों से सम्पूर्णता प्राप्ति हुयी व मकान पर एक भव्यता आयी है। कला दृष्टि से काष्ठ  ज्यामितीय अलंकरण ही इस मकान की विशेषता है। 
  पुरण कोट के कोटनाला    के इस जंगलेदार मकान का निर्माण काल भी लगभग 1950 ई  के करीब है। 
मकान को कला दृष्टि से  तो नहीं अपितु भव्यता की दृष्टि से याद किया जा सकता है। 
 
सूचना व फोटो आभार : मदन मोहन बहुखंडी  , गौळा
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Bhishma Kukreti

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पुरणकोट (शीला पट्टी ) में एक उजड़ती तिबारी में काष्ठ कला

  पुरणकोट  (शीला  पट्टी ) में भवन काष्ठ  (तिबारी ) कला - 3 
  House Wood Carving  (Tibari )  Art of Purankot (Shila Patti ) -3 
शीला पट्टी  संदर्भ में   , गढवाल  हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों  पर काष्ठ अंकन कला - 3
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya  ) -43
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  43
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  43
 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

 शीला पट्टी में दुगड्डा , हनुमंती के निकटवर्ती गाँव  पुरणकोट से ऊमा शंकर कुकरेती ने कुछ फोटो भेजीं व ततपश्चात मदन मोहन बहुखंडी ने भी कुछ सूचनाएं भेजीं जिससे अनुमान लगाना सरल है कि समृद्धशाली गाँव पुरणकोट तिबारियों के मामले में भी समृद्ध गाँव था।  पुरणकोट में तिबारियों की कुछ विशेषता भी दिखी कि तिबारी ही नहीं अपितु बाहर छज्जे पर तोरणदार जंगल भी बंधे हैं और जंगलों के स्तम्भों पर नयनाभिरामी नक्कासी भी हुयी है जो ढांगू , उदयपुर, लंगूर में अभी तक मिली सूचना में नहीं है कि तिबारी भी हो व छज्जे पर तोरण दार (arch, मेहराब  ) जंगल भी हों व जंगलों के स्तम्भों में नक्कासी भी हो।
भूतकाल के समृद्ध गाँव  में अब केवल तीन परिवार ही गाँव में वास करते हैं बाकी पलायन के शिकार हो गया है यह गांव। 
 कुछ प्रवासी अपने पैतृक मकान /कूड़ के देखरेख /मरोम्मत करने में सफल है कुछ प्रवासी विभिन्न कारणों से अपने वैभवशाली पितरों की कूड़ों की देख   रेख  करने में सर्वथा असमर्थ हैं।  ऐसी ही एक वैभवशाली तिबारी को फोटो व सूचना उमा शंकर कुकरेती व मदन मोहन बहुखंडी से मिली जो अब उजड़ ही रही है या खंडहर में परिवर्तित हो चुकी है।   
इस उजड़ती तिबारी को सर्वथा तिबारी भी नहीं कह सकते किन्तु छज्जों के बाहर तोरणधारी जंगलइ  हैं। मकान के दो ओर छज्जों पर आठ या दस जंगल के स्तम्भ हैं व दो स्तोभों के मध्य जोड़ पर ऊपर तोरण /arch /मेहराब लगे हैं।  स्तम्भों के तोरण में तीन पत्ती शैली का तोरण उत्कीर्ण हुयी है।
 प्रत्येक स्तम्भ के आधार व शीर्ष में कलयुक्त नक्कासी  हुयी है।   छत के पट्टिका आधार से शंकुनुमा कलायुक्त आकृति भी लटकती है।  शंकुनुमा आकृति तिबारी या जंगलेदार मकान की शोभा वृद्धि करने में सफल हुए हैं। 
    यह तिबारी /जंगलेदार मकान किसका है व कब बनी पर पूरी सूचना की प्रतीक्षा है।  तिबारी की कला से अनुमान लगाना सरल है कि तिबारी या जंगल 1940 से पहले का ही होगा।  काष्ठ कलाकर कहाँ के थे पर भी सूचना नहीं मिल पायी है।
इतना कहा जा सकता है कि इस मकान की विशेषता जंगला  स्तम्भों पर नक्कासी व जंगला  स्तम्भों पर ऊपर तोरण/arch  लगना व छत  आधार पट्टिका से शंकुनुमा आकृतियों  का लटकना . 

     

सूचना व फोटो आभार :   ऊमा शंकर कुकरेती व मदन मोहन बहुखंडी
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Bhishma Kukreti

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 पुरणकोट  (शीला पट्टी ) में पीतांबर दत्त कोटनाला के जंगलेदार मकान में काष्ठ  कला 

 पुरणकोट  (शीला  पट्टी ) में भवन काष्ठ  (तिबारी ) कला - 4

  House Wood Carving  (Tibari, Jangledar house  )  Art of Purankot (Shila Patti ) -4 

शीला पट्टी  संदर्भ में   , गढवाल  हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों  पर काष्ठ अंकन कला - 4

  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya  ) -44-

  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  44

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  44

 

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 संकलन - भीष्म कुकरेती

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 शीला पट्टी का  पुरणकोट (दुगड्डा , हनुमंती निकट ) गाँव  की समृद्धि  का द्योत्तक पुरणकोट में स्थापित तिबारियां व भव्य जंगलेदार मकान हैं जो  बताते हैं कि पुरण कोट उर्बरकता में गढ़वाल के उन्नत गांवों में अग्रणी गाँव रहा होगा।  अब गाँव खाली ही सा हो गया है केवल तीन मवासे गाँव में रह गए हैं। 

    ऊमा शंकर कुकरेती ने इस गाँव  की  तिबारियों की सूचना व फोटो भेजने की शुरुवात की तो ततपश्चात पुरणकोट  के भानजे  मदन बहुखंडी व पुरणकोट की ध्याण  शकुंतला कोटनाला देवरानी ने भी सूचनाएं व फोटो भेजीं .   

  वर्णित भव्य जंगला  पीतांबर दत्त कोटनाला का तिबारी नाम से अधिक प्रसिद्ध है।  पुरणकोट में मकानों की सूचना से विगत होता है कि पुरणकोट  के जंगलेदार मकान ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं से भिन्न है व काष्ठ कला दृष्टि से अति विशेष जंगल हैं। 

  पीतांबर दत्त कोटनाला का जंगलेदार मकान में भी काष्ट कला भव्य किस्म की श्रेणी में आता है।  मकान में तल मंजिल व पहिला मंजिल है।  मकान तिभित्या याने तीन भीत  या डीआर वाला है याने एक कमरा भहर व एक कमरा अंदर।  पीतांबर दत्त कोटनाला के तल मंजिल पर बाहरी कमरों पर दीवार न हो खुला बरामदा बनाये गए हैं। किन्तु पहली मंजिल पर बाह्य कमरों को बंद किया गया है।  पीतांबर दत्त कोटनाला के मकान के पहली मंजिल पर दस स्तम्भों वाला काष्ठ जंगला है.  पुरण कोट  के पीतांबर दत्त कोटनाला  के जंगल की विशेषता है कि स्तम्भों पर नयनाभिरामी नक्कासी की गयी है।  नक्कासी स्तम्भ आधार के कुछ ऊपर (थांत पत्ती  blade  ) कटिंग नक्कासी नयनों कोशुरू होता है  नयनों को  भाने  वाली है. जब स्तम्भ छत से मिलने वाले होते हैं तो प्रत्येक स्तम्भ पर मेहराब /तोरण /arch  का आधा भाग शुरू  होता है जो दुसरे स्तम्भ के आधे तोरण से मिलकर पूर्ण टॉर्न बनाता है।  स्तम्भ शीर्ष जहां से तोरण शुरू होता है वहां भी नक्कासी की गयी है।  नक्कासी में वानस्पतिक कला कम झलकती है किन्तु ज्यामितीय अलंकरण ही अधिक है या geometrical motifs dominates other motifs

   जंगले  के स्तम्भ व स्तम्भों  को जोड़ने वाली कड़ी मकान को भव्य रूप देने में कामयाब है।

  कहा जा सकता है कि पुरणकोट के जंगलेदार मकान गंगा सलाण  (शीला , ढांगू , लंगूर , अजमेर , उदयपुर , डबरालस्यूं ) में अपने आप में विशेष हैं। 

लगता है जंगला सन 1940 के आस पास का निर्मित होगा क्योंकि जनले में तोरण कला इसी समय दक्षिण गढ़वाल में विकसित हो रही थी।  बाद में बिन तोरण के स्तम्भ वाले जनलगे निर्मित होने लगे। 

सूचना व फोटो आभार : शकुंतला कोटनाला देवरानी

एवं आभार - ऊमा शंकर कुकरेती , मदन मोहन बहुखंडी

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Bhishma Kukreti

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पुरण कोट (शीला ) में कोटनाला भयात  की जंगलेदार तिबारियों  में  शानदार भव्य काष्ठ नक्कासी / कला[/[/font][/size][/color]b]

पुरणकोट  (शीला  पट्टी ) में भवन काष्ठ  (तिबारी ) कला - 5
  House Wood Carving  (Tibari, Jangledar house  )  Art of Purankot (Shila Patti ) -5
शीला पट्टी  संदर्भ में   , गढवाल  हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों  पर काष्ठ अंकन कला - 5
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaipur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya  ) -45
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  45
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  45
 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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     पुरणकोट (शीला पट्टी ) की पुरातन समृद्धि इस गाँव की तिबारियों , जंगलेदार तिबारियों व जंगलेदार मकान में झलती है।  कुछ मकान आज भी समृद्धि के द्योतक बने खड़े हैं कुछ उजड़ने लगे हैं।  तिबारी काष्ठ अंकन क्रम में भाई उमा शंकर कुकरेती ने पुरणकोट से कुछ सूचना व फोटो भेजी हैं. इसी क्रम में  सूचना  व दो मकानों की फोटो ऐसी मिली है जो सिद्ध करती है कि पुरणकोट में तिबारियों के बाहर जंगले भी लगे होते थे और एक ही मकान में दो तिबारियां माय जंगले  होते थे।
   कोटनाला  भयात के इन दो मकानों से साबित हो जाता है कि पुरणकोट  में तिबारी व जंगला शैली ढांगू -उदयपुर , डबरालस्यूं , अजमेर से कुछ अलग तो था।  मेरा दृष्टिकोण है कि चूंकि पुरणकोट बिजनौर से निकट है तो  तिबारी व जंगले  हेतु दो सिद्धांत निकलने की संभावना है   एक अनुमान अनुसार बिजनौर से सल्ल्ली /मिस्त्री /बढ़ई पुरणकोट आएं हों या हो सकता है बढ़इयों ने बिजनौर की प्रसिद्ध हवेलियों से शैली व कला सीखी हो या  हो सकता है बिजनौरहवेली  शैली  की नकल की व इस शैली का निरूपण पुरणकोट  में किया गया हो।  बिजनौर हवेली /किला शैली का प्रभाव अवश्य ही पुरणकोट के मकानों पर रहा हिअ .
      जिन दो मकानों या  जंगलेदार तिबारियों की सूचना मिली है उन मकानों को फोटो से साफ़ जाहिर  है कि दो दो तिबारी एक मकान में हैं व दो तरफ जंगले  भी हैं। 
जहां तक मकान का प्रश्न है मकान तिभित्या या तीन दीवार या एक कमरा बाहर व एक कमरा अंदर की शैली में है।  तलम मंजिल पर बाहर के कमरों को बंद कर दिया गया है और कमरे  अलग अलग हैं।  पहली मंजिल पर जाने हेतु तल मंजिल से एक खोली/प्रवेश द्वार  है।   किंतु पहली मंजिल पर दो तिबारी है जो दो दो कमरों के बरामदे पर बने है।  काष्ठ तिबारी  चार चार स्म्वभों से बनी है जो तीन तीन खोली बनाते हैं. स्तम्भ आधार पर शुभम करोति  या शकुन  का प्रतीकात्मक अलंकरण है फिर डीला हैं व ऊपर वानस्पतिक/प्राकृतिक  अलंकरण है।  तिबारी को खोलियों में तोरण नहीं अपितु तिबारी चौखट तिबारी हैं ।   तिबारी से बाहर छज्जों में मकान ओर काष्ठ जंगले  हैं व  जैसे कि  पुरणकोट के एक अन्य जंगलेदार मकान  के जंगल में हैं जंगले  के स्तम्भ शीर्ष में  काष्ठ तोरण  हैं। जंगले के स्तम्भ आधार पर थांत पर प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकरण है व ऊपर जाती कड़ी पर भी कई प्राकृतिक कट करने वाला अलंकरण हुआ है।  मकान के  पहली मजिल के जंगले  पर कम से कम 16 स्तम्भ हैं जिन पर तोरण लगे हैं।
तल मंजिल के कमरों के दरवाजों पर  ज्यामितीय अलंकरण ही दिख रहे है यहाँ तक कि प्रवेश द्वार या खोली पर भी ज्यामितीय अलंकरण दिख रहा है।
 पुरणकोट  के इन दो मकानों की तिबारी व उन पर लगे जंगले वास्तव में भव्य है और अलंकरण में भी  कामयाब हैं। 

सूचना व छाया चित्र  आभार :   उमा शंकर कुकरेती

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti

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ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में रामचंद्र कंडवाल के जंगले दार मकान में काष्ठ अलंकरण 

ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में लोक कला (तिबारी , निमदारी , जंगला ) कला -3
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -24
Tibari, Nimdari Jangledar  House Wood Carving Art of Dhangu - 24
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   45
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  45
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  45
 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 वैदकी व कर्मकांडी पंडिताई दृष्टि से ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में  एक महत्वपूर्ण गांव है व ठंठोली से छज्जे के पत्थर , ओखली , दास आदि हेतु  पत्थर निर्यात होते थे अब यह व्यापार बंद हो गया है व अब मांग  भी नहीं रही।
  ठंठोली में मलुकराम बडोला की तिबारी के बारे पहले ही विवरण दिया चुका है।  कुछ समय पहले ठंठोली में तीन जंगलेदार मकानों को सूचना मिली थी किन्तु अभी तक एक ही जंगलेदार मकान की फोटो मिल पायी है।
  अभी विवरण हेतु रामचंद्र कंडवाल निर्मित जंगलेदार मकान की फोटो व सूचना मंगतराम कंडवाल से मिली है।  रामचंद्र कंडवाल प्रसिद्ध वैद्य, पंडित  व व्यापारी  भवा नंद  कंडवाल के पुत्र थे। 
  रामचन्द्त कंडवाल का जंगला सामन्य आम जंगला कहलाया जायेगा क्योंकि इस  जंगले   में स्तम्भों (सिंगाड़ )  , मुरिन्ड (स्तम्भ शीर्ष ) या दरवाजों पर कोई अलंकरण उत्कीर्ण नहीं हुआ है।
पहली मंजिल पर छज्जा काष्ठ का है  व  उस छज्जे   पर दस स्तम्भ खड़े हैं जो ऊपर छत के आधार से मिलते हैं।  दरवजाजों पर केवल ज्यामितीय अलंकरण मिलता है कोई मानवीय या प्राकृतिक अलंकरण नहीं मिलता है।
  इस तरह के जंगलेदार मकान निर्माण का समय 1980 तक ढांगू , उयदपुर , डबराल स्यूं में प्रचलन रहा है।  कला या अलंकरण दृष्टि से जंगले  को आम या सामन्य श्रेणी में ही रखा जा सकता है।  ओड , बढ़ई -मिस्त्री भी अवश्य ही ढांगू के ही रहे होंगे। स्व राम चंद्र कंडवाल के इस   जंगलेदार मकान का निर्माण काल भी लगभग 1970 -1980 का है
  एक समय ऐसे जंगले  बनाने में गर्व महसूस किया जाता था व छज्जे का उपयोग होने का फायदा मिलता था। 
सूचना व फोटो आभार : मंगतराम कंडवाल , ठंठोली
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Bhishma Kukreti

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  कुमार्था (उदयपुर ) में बिष्ट मुंडीत  की तिबारी (भग्न) में काष्ठ कला /अलंकरण
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कुमार्था  में भवन काष्ठ कला (तिबारी , निमदारी , जंगलेदार मकान  )  -5
उदयपुर पट्टी में जंगलेदार मकान, तिबारियों , निमदारियों में काष्ठ  कलंकरण -8
Tibari, Nimdari Jangledar  House Wood Carving Art of  Udaipur Dhangu - 8
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaipur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   46
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  46
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  46
 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 कुमार्था (शिवपुरी , मोहनचट्टी निकट ) उदयपुर का एक समृद्ध गाँव है।  तिबारी कड़ी में एक ऐसी तिबारी की सूचना मिली जो बिष्ट मुंडीत की तिबारी नाम से प्रसिद्ध थी किन्तु आज उजड़ गयी है।  यह सौभाग्य  है कि  बची खुची तिबारी की संरचना से अनुमान लग सकता है कि किस प्रकार की तिबारी रही होगी।
   बिष्ट मुंडीत की इस भग्न तिबारी से पता चलता है कि पहली मंजिल पर चौखट वाली तिबारी थी।   चार स्तम्भों  की तिबारी में तीन मोरी , द्वार , खोळी  बनी हैं।  स्तम्भ शीर्ष/ मुरिन्ड / चौकोर या आयाताकार है और कोई तोरण , मेहराब , arch  नहीं है। स्तम्भ आधार पर वानस्पतिक अलंकरण उत्कीर्ण के चिन्ह बाकी हैं , बाकी पूरे सिंगाड़/स्तम्भ /column में अन्य स्थान पर कोई प्राकृतिक अलंकरण के चिन्ह नहीं है केवल ज्यामितीय अलंकरण ही हुआ है। भवन खंडहर हो चूका है किंतु चारों सिंगाड़ /स्तम्भ /column आज भी पक्के व खड़े हैं जिससे पक्की लकड़ी प्रयोग का अनुमान लगाने में कोई हिचकिचाट नहीं होती है। 
  अलंकरण व कला दृष्टि से पिछड़ी होने के बाद भी बिष्ट मुंडीत की यह तिबारी अपने समय की   भव्य तिबारियों  में एक भव्य तिबारी रही होगी।   


सूचना व फोटो - वीरेन्द्र असवाल , डबरालस्यूं
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Bhishma Kukreti

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बरसुड़ी (लंगूर ) में स्व . कलीराम कुकरेती की भव्य तिबारी

 लंगूर,   गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -1
House Wood  Carving  Art of  Langur Patti  -1
Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 47
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  47   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  बरसुड़ी में लोक कलाओं के बारे में कुछ सूचना पहले भी दे दी गयी है।  लंगूर का बरसुड़ी गाँव लँगूरगढ़ी , रजकिल , द्वारीखाल का  निकटवर्ती गाँव  . यहां के कुकरेती जसपुर (ढांगू ) से  पंडिताई हेतु बसाये गए थे।   बरसुडी में क्चक तिबारी व जंगलदार कूड़ों  की सूचना मिली थी।  बरसुड़ी  से एक तिबारी की  फोटो व सूचना उदय राम कुकरेती ने भेजी है जो उनके दादा ने निर्मित करवाई थी। 
जैसे की आम तिबारी होती हैं इस तिबारी में भी चार सिंगाड़ , स्तम्भ , column हैं जो तीन खोळी , द्वार , मोरी बनाते हैं। किनारे के दोनों सिंगाड़ /स्तम्भ  दीवार  नक्कासीदार कड़ी की सहायता से जुड़े हैं।  दोनों कड़ियों पर वानस्पतिक अलंकरण हुआ है और जब कड़ी ऊपर शीसरष बनाती हैं तो उस पट्टी पर भी वानस्पतिक /प्राकृतिक अलंकरण साफ़ उभर कर आता है।   
कलीराम कुकरेती की इस तिबारी में भी स्तम्भ आधार देहरी /देळी पर टिके  हैं. देहरी के ऊपर स्तम्भ का आधार या कुम्भी /पथ्वड़ अधोगामी पुष्प दल की शक्ल में है  फिर ऊपर एक डीला या धगुल उभर कर आता है।  फिर इस डीले या धगुल से खिलता कमल दल की पंखुड़ियां उभरती हैं। फिर सिंगाड़ पर ज्यामितीय रेखाएं  दिखती  हैं।  रेखाएं जहां समाप्त होती हैं वहां डीला /धगुल उभरता है व फिर  उर्घ्वगामी कमल दल शुरू होता है। कमल दल के ऊपर पट्टिका है और वहीं से सिंगाड़ से मेहराब पट्टिका (अर्ध मंडल ) शुरू होता है जो दूसरे  सिंगाड़ के मेहराब के अर्ध मंडल से मिलकर पूर्ण मेहराब बनता है।  मेहराब , चाप या arch तिपत्ती स्वरूप है।  बीच का चाप नुकीला है।  मेहराब या चाप के बाहर की हर पट्टिका पर एक फूल व एक S नुमा आकृति उभर कर आया है।  सारी पट्टिका पर वानस्पतिक अलंकरण हुआ है।
   स्तम्भ का ऊपरी भाग चाप से अलग दीखता है क्योंकि अलंकरण हुआ है और इस भाग (थांत के ब्लेड नुमा ) एक पर्तीकात्मक आकृति दिखती है।
 स्तम्भ शीर्ष व चाप शीर्ष /मुंडीर में पट्टिकाओं पर वानस्पतिक अलंकरण   हुआ है. मुण्डीर छत के छज्जे से जुड़ा है।
तिबारी  निर्माण काल 1900 -1910  क्व करीब होना  चाहिए।  कलाकार कहाँ से आये की सूचना नहीं मिल पायी है। 
बरसुड़ी के कलीराम कुकरेती की इस तिबारी में भव्यता तो है साथ में वनस्पतीय /प्राकृतिक अलंकरण  है व ज्यामितीय अलंकरण है जो इस तिबारी को भव्यता प्रदान करते हैं 
सूचना व फोटो आभार : उदयराम कुकरेती , बरसुड़ी ,
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