संसोधित गटकोट (मल्ला ढांगू ) की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार
संसोधन में कमल जखमोला की महत्वपूर्ण भूमिका है
ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 5
(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी अपरिहार्य नहीं है )
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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गटकोट मल्ला ढांगू का एक महत्वपूर्ण ही नहीं प्राचीन गाँव है. गटकोट के बारे में कमल जखमोला गटकोट को खस समय का वसा गाँव बताते हैं।
गटकोट के दक्षिण में मंडळु गदन , पश्चिम में हिंवल नदी तो पूर्व में घणसाळी , जल्ली , व उत्तर में मित्रग्राम, पंयाखेत गाँव हैं. गटकोट की जमीन मंडुळ पार गुदड़ में भी है।
अन्य गढ़वाल क्षेत्र की भाँति (बाबुलकर द्वारा विभाजित ) गटकोट में भी निम्न कलाएं व शिल्प बीसवीं सदी अंत तक विद्यमान थे. अब अंतर् आता दिख रहा है।
अ - संस्कृति संस्कारों से संबंधित कलाभ्यक्तियाँ
ब - शरीर अंकन व अलंकरण कलाएं व शिल्प
स -फुटकर। कला /शिल्प जैसे भोजन बनाना , अध्यापकी , खेल कलाएं , आखेट, गूढ़ भाषा वाचन (अनका ये , कनका क, मनका म ललका ला =कमला , जैसे ) या अय्यारी भाषा आदि
द - जीवकोपार्जन की पेशेवर की व्यवसायिक कलाएं या शिल्प व जीवनोपयोगी शिल्प व कलायें
अ - संस्कृति संस्कारों से संबंधित कलाभ्यक्तियाँ व शरीर अंकन
जखमोला जाति के कई परिवार पंडिताई करते थे तो पूजन समय चौकल में चित्रकारी व दीवाल में पूजन चित्रकारी सामन्य बात है। विवाह समय हल्दी हाथ चढ़ाना , वर वधु का मेक अप /शरीर सौंदर्यीकरण , होली वक्त रंग चढ़ाना भी सामन्य कला प्रदर्शन होता ही है। तेरहवी व बार्षिकी श्राद्ध में वैतरणी पार करने हेतु मिट्टी , चावल से कला प्रदर्शन गढ़वाल के अन्य गाँव सामान है। कर्मकांड , धार्मिक उतस्वों की कला भी प्रदर्शित होती है। जनेऊ, राखी निर्माण गाँव के पंडित करते थे।
ब - अलंकरण कलाएं व शिल्प
सुनार गाँव में न था और शायद अलंकार निर्माण , रिपेयर हेतु गटकोट गाँव जसपुर या पाली पर निर्भर था। वनस्पति आभूषण भी गढ़वाली गाँव जैसे प्रचलित थे।
स फुटकर कला
कला /शिल्प जैसे भोजन बनाना , अध्यापकी , खेल कलाएं , आखेट, गूढ़ भाषा वाचन (अनका ये , कनका क, मनका म ललका ला =कमला , जैसे ) या अय्यारी भाषा आदि भी सामन्य थी। गटकोट से कई प्रसिद्ध अध्या पक हुए व वर्तमान में भी हैं व अचला नंद जखमोला सरीखे गढ़वाली विद्वान् भी गटकोट से ही हुए जिन्होंने गढ़वाली - हिंदी, अंग्रेजी व अंग्रेजी -गढ़वाली शब्दकोश रचा व अभी सतत कार्यरत हैं । वर्तमान में गटकोट के कमल जखमोला गढ़वाली गद्य व कविता में प्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं
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द -जीवकोपार्जन की पेशेवर की व्यवसायिक कलाएं या शिल्प व जीवनोपयोगी शिल्प व कलायें
ओड /भवन निर्माता - परवीन सिंह , जीत सिंह (म्वारी गाँव )
बक्की /भविष्यवक्ता - गणत हेतु चैनु, डखु
जागरी - हरकदेव , खीमानंद जखमोला, भगली राम
ढोल बादन - गरीब दास , सतरु दास , राम दास , मानदास , श्यामदास बच्चू ,
दर्जी - उपरोक्त ढल बादक परिवार
लोहार - मलंगी , तलंगी , थामा , गूड़ी प्रेम ,
मच्छे मार विशेषज्ञ - मुल्तान , चतरु , , मथुरा प्रसाद वर्तमान में रज्जी
बादी - बिजनी के हीरा बादी
कर्मकांडी ब्राह्मण - आशाराम जखमोला, महाबंद , लीलानंद , ज्योतिराम , आदित्यराम जखमोला वर्तमान में गुना नंद, प्यारेलाल जखमोला।
चर्मकार - मंडुळ में चमड़े कमाया जाता था। कांगड़ा से चर्मकार आये थे (रोशन लाल के पूर्वज ) आज भी मोची छप्पर के नाम से स्थान प्रसिद्ध है
गाँव में तीनेक तिबारियां थीं। एकतिबारी पधान की थी जिसमे लकड़ी पर नक्कासी थीं। शम्भु प्रसाद जखमोला की सूचना अनुसार तिबारी की लकड़ी पर नक्कासी में फूल पत्ती , पशु पक्षी, मोर की पूंछ थे।
माँगळ गीत व ने लोक गीत व चैत में गए जाने वाले गेट। नृत्य , स्वांग - लगभग सभी महिलाएं , प्रत्येक बारह वर्ष बाद बादी लांग खेलने आते थे व गीत , नृत्य स्वांग करते थे ,
थड्या। चौंफला नृत्य गीत विशेषज्ञ - जल्ली की दादी , संकरी देवी , भगा देवी व अन्य सभी महिलाएं
रामलीला कलाकार - दाता राम जखमोला, मनोहर , लीला नंद , अभयराम , टंखीराम , अनिल जखमोला आदि
रामलीला के विदूषक - कल्याण सिंह , बीणी राम
गटकोसंसोधित गटकोट (मल्ला ढांगू ) की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकारट में उपयोग होते कृषि यंत्र जो गढ़वाल के अन्य गाँव जैसे ही थे जैसे - हल-ज्यू , जोळ (पाटा ) , काष्ठ दंदळ , लौह दंदळ, कूटी , भद्वाड़ खणवा कूटी , फाळु /फावड़ा , सब्बल , दाथी , थांत , , कील , पल्ल -टाट , कुल्हाड़ी , बसूला , फरसा , मुंगर अधिकतर कुल्हाड़ी , बसूला , फरसा , सब्बल छोड़ कर गाँव में हर परिवार बना सकता था। अब स्थिति बदल गयी है।
स्वतंत्रता से पहले सफ़ेद कपड़ों पर रंग हल्दी या ढाक । किनग्वड़ से चढ़ाया जाता था तो हरा रंग जौ के पौधों से रंग चढ़ाया जाता था।
(आभार - शम्भू प्रसाद जखमोला, कमल जखमोला की सूचना पर आधारित )